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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2003
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‘शुद्ध विवेक रखो’

कई लोग सोचते हैं कि उनका विवेक जो कहता है उसी के आधार पर उन्हें निर्णय लेना चाहिए। मगर इसके लिए विवेक को भरोसे लायक होना चाहिए और यह तभी हो सकता है जब उसे सही और गलत के बारे में प्रशिक्षित किया जाए। साथ ही जब हमारा विवेक हमें कुछ कहता है तो उसकी सुनने के लिए हमें सचेत भी रहना चाहिए।

आइए हम जक्कई नाम के एक व्यक्‍ति के अनुभव पर गौर करें जिसके बारे में बाइबल में बताया गया है। जक्कई, यरीहो का रहनेवाला एक रईस आदमी था और वह कर वसूल करनेवालों का सरदार था। उसने स्वीकार किया कि लोगों से छल करके उसने काफी धन इकट्ठा कर लिया था यानी ऐसा चलन अपनाया जिससे दूसरों को नुकसान झेलना पड़ता। जक्कई के गलत कामों की वजह से क्या उसके विवेक ने उसे कभी नहीं कचोटा? अगर कचोटा भी होगा, तो ज़ाहिर है कि उसने अपने विवेक को कठोर कर लिया था।—लूका 19:1-7.

मगर फिर एक ऐसी परिस्थिति आयी कि जक्कई को अपने कामों के बारे में दोबारा विचार करना पड़ा। एक बार जब यीशु यरीहो आया तो जक्कई उसे देखना चाहता था मगर कद छोटा होने के कारण वह भीड़ में उसे देख नहीं पा रहा था। इसलिए वह दौड़कर आगे गया और एक पेड़ पर चढ़ गया ताकि यीशु को अच्छी तरह देख सके। जक्कई की गहरी दिलचस्पी देखकर यीशु इतना प्रभावित हुआ कि उसने जक्कई से कहा कि वह उसके घर आ रहा है। यह सुनकर जक्कई भी खुशी-खुशी अपने इस खास मेहमान की खातिरदारी करने के लिए तैयार हो गया।

यीशु के साथ रहते वक्‍त जक्कई ने जो देखा-सुना वे सारी बातें उसके दिल को छू गयीं और वह अपने तौर-तरीकों को बदलने के लिए प्रेरित हुआ। उसने सबके सामने कहा: “हे प्रभु, देख, मैं अपनी सारी सम्पत्ति का आधा गरीबों को दे दूँगा और यदि मैंने किसी का छल से कुछ भी लिया है तो उसे चौगुना करके लौटा दूँगा!”—लूका 19:8, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।

जक्कई का सोया हुआ विवेक जाग उठा। उसने अपने विवेक की आवाज़ सुनी और उसके मुताबिक काम किया। इससे न सिर्फ उसे बल्कि उसके घराने को भी आशीषें मिलीं। ज़रा सोचिए जक्कई को कैसा लगा होगा जब यीशु ने उससे कहा: “आज इस घर में उद्धार आया है”!—लूका 19:9.

क्या ही हौसला बढ़ानेवाला उदाहरण! इससे यह पता चलता है कि चाहे पहले हमने कैसे भी काम क्यों ना किए हों, हम बदल सकते हैं। जक्कई की तरह, हम भी बाइबल में दर्ज़ यीशु के शब्दों को ध्यान में रख सकते हैं और अपनी सही-गलत की समझ को बढ़ा सकते हैं। तब जैसा प्रेरित पतरस ने कहा था, हम अपना ‘विवेक शुद्ध रख’ सकेंगे और प्रशिक्षित किए विवेक की आवाज़ सुनकर, सही कदम उठा सकेंगे।—1 पतरस 3:16.

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