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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2006
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पाठकों के प्रश्‍न

मूसा की कानून-व्यवस्था के मुताबिक, ऐसा क्यों था कि वीर्यपात, मासिक-धर्म और प्रसव से एक इंसान “अशुद्ध” हो जाता है?

परमेश्‍वर ने लैंगिक संबंधों की शुरूआत इसलिए की ताकि इंसान बच्चे पैदा कर सकें और शादीशुदा जोड़े इसका आनंद ले सकें। (उत्पत्ति 1:28; नीतिवचन 5:15-18) लेकिन लैव्यव्यवस्था किताब के अध्याय 12 और 15 में ऐसे नियमों की ब्यौरेवार जानकारी दी गयी है, जिसमें बताया गया है कि वीर्यपात, मासिक-धर्म और प्रसव से एक इंसान अशुद्ध हो जाता है। (लैव्यव्यवस्था 12:1-6; 15:16-24) प्राचीन इस्राएल को दिए इन नियमों की बदौलत, उन्हें स्वस्थ जीवन जीने और ऊँचे नैतिक उसूलों पर चलने का बढ़ावा मिला। साथ ही, उन्होंने खून की पवित्रता और पापों की माफी पाने की अहमियत को बखूबी समझा।

मूसा की व्यवस्था में वीर्यपात, मासिक-धर्म और प्रसव के बारे में दिए नियमों को मानने के कई फायदे थे। एक था, पूरी इस्राएल जाति में लोगों की सेहत अच्छी बनी रही। किताब, बाइबल और नए ज़माने की चिकित्सा (अँग्रेज़ी) कहती है: “मासिक-धर्म के दौरान लैंगिक संबंध न रखने का नियम, कुछ तरह की लैंगिक बीमारियों से बचने का असरदार तरीका था . . . और इस नियम की वजह से स्त्रियाँ गर्भाशय के कैंसर से भी बची रहीं।” ऐसे नियमों की वजह से परमेश्‍वर के लोग उन बीमारियों से बचे रहे जिनके बारे में शायद ही उन्हें उस वक्‍त मालूम होता या जिनका पता लगाना भी मुश्‍किल होता। लैंगिक मामले में इस तरह की स्वच्छता बनाए रखने से इस्राएल जाति फलने-फूलने लगी, जिस जाति को बढ़ाने और खुशहाल बनाने का परमेश्‍वर ने वादा किया था। (उत्पत्ति 15:5; 22:17) इन नियमों ने परमेश्‍वर के लोगों में सही भावनाएँ बनाए रखने में भी मदद दी। क्योंकि इन्हें मानकर पति-पत्नियों ने अपनी लैंगिक इच्छाओं पर काबू पाना सीखा।

लेकिन खासकर मासिक-धर्म और प्रसव जो सबसे अहम मसला शामिल था, वह था लहू का बहना। यहोवा ने इस्राएलियों को लहू के बारे में जो नियम दिए थे, उनसे उनके दिलो-दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठ गयी थी कि लहू पवित्र है। यही नहीं, उन्होंने यह भी समझा कि यहोवा की उपासना में लहू की एक खास भूमिका थी, और वह थी बलिदानों में और पापों की माफी पाने में उसका इस्तेमाल।—लैव्यव्यवस्था 17:11; व्यवस्थाविवरण 12:23, 24, 27.

तो फिर इस मामले में मूसा की व्यवस्था के नियम, इंसान की असिद्धता को ध्यान में रखकर दिए गए थे। इस्राएली जानते थे कि पाप करने के बाद, आदम और हव्वा सिद्ध बच्चों को जन्म नहीं दे सकते थे। उनकी संतानों को विरासत में पाप मिला और इसके साथ-साथ उन्हें इसके बुरे अंजाम यानी असिद्धता और मौत भी भुगतना पड़ा। (रोमियों 5:12) असिद्ध होने की वजह से माँ-बाप अपने बच्चों को असिद्ध और पापी जीवन ही दे सकते थे, इसके बावजूद कि इंसान के जननांगों को शुरू में इसलिए बनाया गया था कि शादी के इंतज़ाम के ज़रिए वे अपनी संतान तक सिद्ध जीवन पहुँचा सकें।

व्यवस्था में दिए शुद्धिकरण के नियमों से इस्राएलियों को न सिर्फ यह याद दिलाया गया कि उन्हें विरासत में पाप मिला है बल्कि यह भी कि उन्हें एक छुड़ौती बलिदान की ज़रूरत है, जो उनके पापों को ढाँप सके और इंसान को दोबारा सिद्ध जीवन दे सके। बेशक, जानवरों की बलि से यह ज़रूरत पूरी नहीं हुई। (इब्रानियों 10:3, 4) मूसा की व्यवस्था का मकसद था, उन्हें मसीह तक पहुँचाना और उन्हें यह समझने में मदद देना कि सिर्फ यीशु की सिद्ध ज़िंदगी के बलिदान से ही सच्ची माफी मिल सकती है। और इस तरह वफादार लोगों के लिए हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता खुल जाता।—गलतियों 3:24; इब्रानियों 9:13, 14.

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