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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2011
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अप्रैल – जून, 2011

संतोष से भरी ज़िंदगी जीने के पाँच राज़

शुरू के लेखों में

3 क्या संतोष से भरी ज़िंदगी जीना मुमकिन है?

4 पहला राज़ इंसानों से प्यार कीजिए दौलत-शोहरत से नहीं

5 दूसरा राज़ दूसरों से खुद की तुलना मत कीजिए

6 तीसरा राज़ एहसानमंद बने रहिए

7 चौथा राज़ सोच-समझकर दोस्त चुनिए

8 पाँचवा राज़ अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कीजिए

इस अंक में

13 आपके सवाल

14 उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए—वह “यहोवा के संग . . . बढ़ता गया”

19 परमेश्‍वर के करीब आइए—वह “आदमियों के मन का जाननेवाला है”

20 सुखी परिवार का राज़—सेक्स के बारे में अपने बच्चों से बात कीजिए

23 परमेश्‍वर के करीब आइए—वह ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ है

24 हम यीशु से क्या सीखते हैं?—स्वर्गदूतों का हमारी ज़िंदगी पर क्या असर होता है?

26 परमेश्‍वर के करीब आइए—उसे ढूँढ़ने पर “वह तुझ को मिलेगा”

27 आपके सवाल

28 अपने बच्चों को सिखाइए—एक राज़, जो आप दूसरों को बता सकते हैं

इस अंक में और लेख

9 आप बुरी भावनाओं से कैसे लड़ सकते हैं?

30 अकेले बच्चों की परवरिश करनेवालों के लिए लिहाज़ दिखाइए

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