हद-से-ज़्यादा गरीबी क्या होती है?
हद-से-ज़्यादा गरीबी जीवन के लिए एक खतरा है। क्योंकि ऐसी स्थिति में पानी, खाना बनाने के लिए ईंधन और दो वक्त की रोटी जुटा पाना तक मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा सिर छुपाने के लिए छत, स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा नहीं मिलती। पूरी दुनिया में एक अरब लोग, यानी भारत की आबादी के जितने लोग हद-से-ज़्यादा गरीबी में जी रहे हैं। लेकिन ज़्यादातर जगहों के लोग, जैसे पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमरीका के लोग नहीं जानते कि हद-से-ज़्यादा गरीबी में जीना कैसा होता है। इसलिए आइए हम कुछ ऐसे लोगों से मिलें जो गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं।
अम्बारूशीमा अपनी पत्नी और पाँच बच्चों के साथ अफ्रीका के रवांडा देश में रहता है। उसके एक बच्चे की मौत मलेरिया से हो गयी। वह कहता है: “मेरे पिता को अपनी ज़मीन छ: हिस्सों में बाँटनी पड़ी। मेरा हिस्सा इतना छोटा था कि मुझे अपने परिवार के साथ गाँव छोड़कर शहर आना पड़ा। मैं और मेरी पत्नी पत्थरों और बालू के बोरे उठाने का काम करते हैं। हम जिस मकान में रहते हैं उसमें एक भी खिड़की नहीं है। हम पुलिस थाने के कुएँ से पानी भरकर लाते हैं। अकसर हमें दिन में सिर्फ एक वक्त की रोटी नसीब होती है, लेकिन जिस दिन हमें काम नहीं मिलता उस दिन हमें भूखे सोना पड़ता है। ऐसे में मैं घर से बाहर निकल जाता हूँ, क्योंकि मैं अपने बच्चों को भूख से बिलखते नहीं देख सकता।”
बीकटॉर और कारमेन मोची हैं। वे बोलीविया के दूर दराज़ के एक इलाके में अपने पाँच बच्चों के साथ रहते हैं। वे किराए के कमरे में रहते हैं। उनका कमरा जिस मकान में है, उसकी हालत बहुत जर्जर है। टीन की छत टपकती रहती है और बिजली भी नहीं है। उस इलाके का स्कूल बच्चों से इतना भरा है कि बीकटॉर को अपनी बेटी के लिए एक मेज़ बनानी पड़ी, नहीं तो उसकी बेटी स्कूल नहीं जा पाती। खाना बनाने और पीने का पानी उबालने के लिए दोनों पति-पत्नी दस किलोमीटर दूर से लकड़ी लाते हैं। कारमेन कहती है, “हमारे यहाँ शौचालय नहीं है। इसलिए हमें नदी के किनारे जाना पड़ता है, जहाँ लोग नहाते भी हैं और कूड़ा-कचरा भी फेंकते हैं। बच्चे अकसर बीमार पड़ जाते हैं।”
फ्रांसीसकू और इलीड्या मोज़म्बिक के एक गाँव में रहते हैं। उनके पाँच बच्चे थे, लेकिन एक बच्चे की मौत मलेरिया से हो गयी क्योंकि अस्पताल वालों ने उसे भर्ती नहीं किया। उनके पास थोड़ी-सी ज़मीन है जिस पर वे चावल और शकरकंद उगाते हैं और इससे उनका तीन महीने तक का गुज़ारा चल जाता है। फ्रांसीसकू कहता है: “कभी-कभी बारिश नहीं होती है या कभी चोर हमारी फसल चुरा लेते हैं, इसलिए मैं बाँस के पटरे बनाकर बेचता हूँ जिनका इस्तेमाल निर्माण काम में किया जाता है। मैं और मेरी पत्नी दो घंटे पैदल चलकर जंगल से लकड़ियाँ भी लाते हैं। हम दोनों एक-एक गट्ठर लाते हैं, एक बेचने के लिए और दूसरा उस हफ्ते का खाना पकाने के लिए।”
कई लोगों को लगता है कि यह दुनिया बहुत ही बेदर्द है और यहाँ बहुत नाइंसाफी हो रही है क्योंकि 7 में से 1 व्यक्ति की ज़िंदगी अम्बारूशीमा, बीकटॉर और फ्रांसीसकू की तरह है, जबकि दूसरे करोड़ों लोग पैसों में खेलते हैं। कुछ लोगों ने इस मामले में सुधार लाने की कोशिश की है। अगले लेख में उनकी कोशिशों और आशाओं के बारे में बताया गया है। (w11-E 06/01)
[पेज 2, 3 पर तसवीर]
कारमेन अपने दो बच्चों के साथ नदी से पानी भरती हुई