कृपा बनाए कड़वाहट को मिठास!
नेदरलैंड्स में, जॉर्ज और मानों नाम के दो यहोवा के साक्षी जब एक बुज़ुर्ग स्त्री को राज की खुशखबरी सुनाने गए, तो वह उनके साथ बहुत रुखाई से पेश आयी। उस स्त्री का नाम रीय था। एक-के-बाद-एक उसके दो पतियों की मौत हो गयी थी और वह अपना बेटा भी खो चुकी थी। इसके अलावा, वह संधिशोथ की बीमारी से ग्रस्त थी। हालाँकि बातचीत करते-करते वह थोड़ी-बहुत शांत हो गयी, लेकिन फिर भी उसका बात करने का अंदाज़ कुछ दोस्ताना नहीं था।
जॉर्ज ने सुझाया कि वे दोनों एक गुलदस्ता लेकर उससे दोबारा मिलने जाएँ क्योंकि वह बहुत अकेली और खफा-खफा सी लग रही थी। उन्हें देखकर रीय को हैरानी हुई। वह उस वक्त व्यस्त थी इसलिए उन्होंने उससे मिलने के लिए कोई और दिन तय किया। अगली बार जब जॉर्ज और मानों उसके घर गए, तो किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला। उन्होंने कई बार उससे मिलने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे। उन्हें लगा कि शायद वह उनसे मिलना नहीं चाहती इसलिए दरवाज़ा नहीं खोल रही है।
आखिरकार एक दिन जॉर्ज को रीय घर पर मिली। उसने उनसे न मिल पाने के लिए माफी माँगी और बताया कि वह अस्पताल में भरती थी। रीय ने कहा, “आपको यकीन नहीं होगा कि आप दोनों के जाने के बाद मैंने क्या किया। मैंने बाइबल पढ़नी शुरू कर दी!” उनके बीच अच्छी बातचीत हुई और उसके साथ बाइबल का अध्ययन शुरू किया गया।
जैसे-जैसे रीय का अध्ययन आगे बढ़ा, वह बदलने लगी। पहले अकेली और खफा रहनेवाली रीय, अब खुशमिज़ाज और भली औरत बन गयी थी। इसके बावजूद कि वह बाहर आ-जा नहीं सकती थी, उसने जल्द ही दूसरों को वे बातें बतानी शुरू कर दीं जो उसने सीखी थीं। वह उन लोगों से बात करती थी जो उससे मिलने आते थे। खराब सेहत की वजह से वह अकसर मंडली की सभाओं में नहीं जा पाती थी, मगर जब भाई-बहन उससे मिलने आते, तो उसे बहुत खुशी होती। जिस दिन वह 82 की हुई उस दिन उसने एक सर्किट सम्मेलन में बपतिस्मा लिया।
रीय की मौत के कुछ महीनों बाद, उसकी लिखी एक कविता मिली। उसमें उसने बुढ़ापे के सूनेपन का बयान किया था और कृपा दिखाने की अहमियत के बारे में लिखा था। मानों कहती है, “वह कविता मेरे दिल को छू गयी। मुझे बहुत खुशी है कि उसे कृपा दिखाने के लिए यहोवा ने हमारी मदद की।”
जी हाँ, प्यार और कृपा दिखाने में खुद यहोवा ने जो मिसाल रखी है उससे हमें भी इसी तरह पेश आने का बढ़ावा मिलता है। (इफि. 5:1, 2) जब हम “कृपा” दिखाकर “परमेश्वर के सेवक होने का सबूत देते हैं,” तो हमें सेवा में अच्छे नतीजे मिलते हैं।—2 कुरिं. 6:4, 6.