पहले पेज का विषय: आखिर इतनी दुख-तकलीफें क्यों हैं? ये कब खत्म होंगी?
कई मासूम ज़िंदगियाँ मौत के घाट उतारी गयीं!
चार साल का आनंद अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ तालाब के पास गुब्बारे से खेल रहा था। गुब्बारा तालाब में गिर गया और वह उसे उठाने तालाब में गया और वहाँ डूबकर उसकी मौत हो गयी।
शारलेट, डेनियल, ओलिवीया और जोज़फिन . . . ये उन 20 में से कुछ लोगों के नाम हैं जिनकी उम्र 6 या 7 साल रही होगी। चौदह दिसंबर 2012 को अमरीका के कनेटिकट शहर के एक स्कूल में 26 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। उन लोगों के लिए रखी गयी स्मारक सभा में, अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा ने मरे हुए उन बच्चों के नाम लिए और शोक मना रहे लोगों से कहा: “इस तरह के दर्दनाक घटनाओं का अंत होना चाहिए।”
रवि दिलसुख नगर का रहनेवाला था। एक दिन वह अपने दोस्त जी. तिरूपति के साथ होटल में कुछ खाने आया। वह हैदराबाद अपनी परीक्षा की तैयारी करने आया था। 21 फरवरी 2013 की शाम थी जब ज़्यादातर लोग सड़क पर थे, तभी अचानक दो बम विस्फोट हुए। बताया जाता है कि यह आतंकवादी हमला था। तिरूपति की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी।
दुनिया-भर में ऐसी कई दिल-दहलानेवाली घटनाएँ सुनने को मिलती हैं। ज़रा सोचिए दुर्घटनाओं, जुर्म, युद्ध, आतंकवाद, कुदरती आफतें और ऐसी दूसरी घटनाओं से कितना दुख और दर्द इंसानों को झेलना पड़ता है। अकसर बिना किसी वजह के मासूम लोगों की ज़िंदगी रौंद दी जाती है और उन्हें कई दुख-तकलीफें उठानी पड़ती हैं।
कुछ लोग परमेश्वर पर इलज़ाम लगाते हैं कि वह इंसानों की परवाह नहीं करता। दूसरे यह कहते हैं कि परमेश्वर हमारे दुखों को देखकर भी अनदेखा कर देता है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं कि ये मुसीबतें पहले से ही तय हैं। इस मामले में लोगों की राय कभी खत्म नहीं होती। हमें भरोसेमंद और संतोष-भरा जवाब कहाँ मिलेगा? आगे के लेखों में हम परमेश्वर के वचन, बाइबल पर गौर करेंगे और देखेंगे कि दुख-तकलीफों की वजह क्या है और किस तरह इसका अंत होगा। (w13-E 09/01)