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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2015
w15 6/15 पेज 32

क्या आपको याद है?

क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ ध्यान से पढ़ी हैं? देखिए कि क्या आप नीचे दिए सवालों के जवाब दे पाते हैं या नहीं:

क्या मसीहियों को यीशु से प्रार्थना करनी चाहिए?

नहीं। यीशु ने न सिर्फ हमें सिखाया कि हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए बल्कि उसने खुद अपने पिता यहोवा से प्रार्थना की। (मत्ती 6:6-9; यूह. 11:41; 16:23) उसी तरह, पहली सदी के उसके शिष्यों ने परमेश्‍वर से प्रार्थना की, न की यीशु से। (प्रेषि. 4:24, 30; कुलु. 1:3)—4/1, पेज 14.

हर साल हम यीशु की मौत का स्मारक मनाने की तैयारी में क्या कर सकते हैं?

इसका एक तरीका है, स्मारक की बाइबल पढ़ाई करना। इस दौरान हम प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की योजना भी बना सकते हैं। और परमेश्‍वर से मिली अपनी आशा के बारे में हम मनन और प्रार्थना कर सकते हैं।—1/15, पेज 14-16.

प्राचीन दूसरों को कैसे तालीम दे सकते हैं?

प्राचीन जिन भाइयों को तालीम देते हैं, उन्हें वे होड़ लगानेवाले नहीं बल्कि “सहकर्मी” समझते हैं और मानते हैं कि वे मंडली के लिए अनमोल तोहफे हैं। (2 कुरिं. 1:24) उन्हें इस बात का भी एहसास होता है कि एक कामयाब शिक्षक वही होता है जिसे न सिर्फ तालीम देना पसंद हो या उससे लगाव हो, बल्कि तालीम लेनेवाले व्यक्‍ति से भी लगाव हो। (नीति. 17:17; यूह. 15:15)—4/15, पेज 6-7.

जापान के भाई-बहनों को क्या खूबसूरत तोहफा मिला?

उन्हें मत्ती की खुशखबरी की किताब मिली जो नयी दुनिया अनुवाद से ली गयी थी। इसे भाई-बहन प्रचार में पेश करते हैं और यह किताब ऐसे बहुत-से लोगों ने ली है जो बाइबल के बारे में नहीं जानते।—2/15, पेज 3.

किन बातों ने पहली सदी में प्रचार काम को आगे बढ़ाना काफी आसान कर दिया था?

उस वक्‍त पैक्स रोमाना (रोमी शांति) कायम होने की वजह से लड़ाई-झगड़े बहुत कम होते थे। और सड़कों का ताना-बाना इतना ज़बरदस्त था कि इनकी मदद से पहली सदी के मसीही आसानी से सफर कर सकते थे। साथ ही, उस वक्‍त ज़्यादातर इलाकों में यूनानी भाषा बोली जाती थी जिससे खुशखबरी सुनाना और आसान हो गया। यहाँ तक कि उन यहूदियों को भी खुशखबरी सुनायी जा सकी जो पूरे रोमी साम्राज्य में फैल गए थे। चेलों को खुशखबरी की पैरवी करने में रोमी कानून से भी काफी मदद मिली।—2/15, पेज 20-23.

यहोवा हमसे कैसे बात करता है?

जब आप लगातार बाइबल पढ़ते हैं और उसका अध्ययन करते हैं, तो ध्यान दीजिए कि आप जो पढ़ रहे हैं, उस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं। और सोचिए कि जो बातें आपने सीखी हैं, उन्हें आप अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं। ऐसा करके आप यहोवा को उसके वचन के ज़रिए आपसे बात करने का मौका दे रहे होते हैं। इससे आप उसके और भी करीब आ जाते हैं। (इब्रा. 4:12; याकू. 1:23-25)—4/15, पेज 20.

हाल के कुछ सालों में हमारी किताबों-पत्रिकाओं में कभी-कभार ही यह बताया जाता है कि बाइबल में बताया कोई व्यक्‍ति, घटना या कोई चीज़ भविष्य में होनेवाली किसी बड़ी बात को दर्शाती है। ऐसा क्यों?

बाइबल बताती है कि कुछ किरदार भविष्य में आनेवाले किसी महान व्यक्‍ति को दर्शाते हैं। इसका एक उदाहरण गलातियों 4:21-31 में मिलता है। लेकिन हमें बाइबल के ऐसे ब्यौरों का खास मतलब निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जिनका खास मतलब निकालने के लिए बाइबल में कोई साफ वजह न दी हो। इसके बजाय, हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि बाइबल के किसी किरदार या घटना से हम क्या सबक सीख सकते हैं। (रोमि. 15:4)—3/15, पेज 17-18.

अंदरूनी समझ से काम लेने से क्या फायदा होता है?

“अंदरूनी समझ” का मतलब है किसी मामले को अच्छी तरह देखने-समझने की काबिलीयत। (नीति. 19:11, एन. डब्ल्यू.) जो इंसान अंदरूनी समझ से काम लेता है, उसे अगर कोई नाराज़ करता है या गुस्सा दिलाता है तो वह जल्दी गुस्सा नहीं होता। क्योंकि वह मामले को सिर्फ ऊपरी तौर पर ही नहीं देखता बल्कि उसकी तह तक जाता है।—1/1, पेज 12-13.

पश्‍चाताप न दिखानेवाले गुनहगार का बहिष्कार करना क्यों एक प्यार-भरा इंतज़ाम है?

बाइबल, बहिष्कार के बारे में बताती है जो एक गंभीर फैसला है, मगर इसके अच्छे नतीजे निकल सकते हैं। (1 कुरिं. 5:11-13) इससे परमेश्‍वर के नाम की महिमा होती है और मंडली पवित्र बनी रहती है। साथ ही, इससे गलती करनेवाले को अपनी गलती का एहसास हो सकता है।—4/15, पेज 29-30.

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