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एक औरत की ज़िंदगी की दास्तान तसवीरों में बयान की गयी है, बचपन की तसवीर, पियानो सीख रही है, फूलों का गुलदस्ता हाथ में लिए है, शादी के दिन की तसवीर, अपने पति और बेटे के साथ, बुढ़ापे में अपने पति के साथ, पियानो बजा रही है, और अब अकेली है

मौत—ज़िंदगी का कड़वा सच

मान लीजिए आप एक मशहूर संगीतकार के बारे में फिल्म देख रहे हैं जिसे आप बहुत पसंद करते हैं। फिल्म की शुरूआत उसके बचपन की कुछ घटनाओं से होती है। एक सीन में दिखाया जाता है कि वह संगीत सीख रही है और घंटों अभ्यास कर रही है। फिर वह अलग-अलग देशों में संगीत के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती है और संगीत की दुनिया में बहुत नाम कमाती है। फिल्म के आखिर में आप देखते हैं कि सालों बाद उसकी ज़िंदगी कैसी हो गयी है। वह बूढ़ी हो गयी है और आखिर में उसकी मौत हो जाती है।

यह फिल्म कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है, बल्कि एक व्यक्‍ति की सच्ची कहानी है। हर किसी की कहानी का अंत ऐसा ही होता है, फिर चाहे वह संगीतकार हो, वैज्ञानिक हो, खिलाड़ी हो या फिर कोई मशहूर व्यक्‍ति। वह अपनी ज़िंदगी में कुछ-न-कुछ हासिल करता है और आखिर में बूढ़ा होकर मर जाता है। लेकिन अगर इंसान बूढ़ा न होता और मरता नहीं, तो सोचिए वह अपनी ज़िंदगी में कितना कुछ हासिल कर पाता!

मगर हकीकत तो यह है कि हम सबको एक-न-एक-दिन मरना पड़ेगा। (सभोपदेशक 9:5) हम चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, हम बुढ़ापे और मौत से नहीं बच सकते। यही नहीं, कोई दुर्घटना या बीमारी की वजह से अचानक हमारी मौत हो सकती है। पवित्र शास्त्र बाइबल में सही लिखा है कि हम सुबह की धुंध की तरह हैं “जो थोड़ी देर दिखायी देती है और फिर गायब हो जाती है।”—याकूब 4:14.

कुछ लोग मानते हैं कि ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं, आज है तो कल नहीं। उनके जीने का सिर्फ एक ही मकसद होता है, “आओ हम खाएँ-पीएँ क्योंकि कल तो मरना ही है।” (1 कुरिंथियों 15:32) वे जानते हैं कि मौत कभी-भी आ सकती है और उनके पास भविष्य के लिए कोई आशा नहीं है। लेकिन कभी-न-कभी शायद वे सोचें, खासकर तब जब वे किसी मुश्‍किल दौर से गुज़र रहे होते हैं कि “क्या यही है ज़िंदगी?” इस सवाल का जवाब हमें कहाँ मिलेगा?

बहुत-से लोग सोचते हैं कि इसका जवाब वैज्ञानिकों के पास है। यह सच है कि विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई है और इस वजह से लोग पहले के मुकाबले ज़्यादा साल जी रहे हैं। कुछ वैज्ञानिक तो लोगों की उम्र और भी बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए हैं। वे अपनी कोशिशों में कामयाब हों या नहीं, फिर भी ये सवाल, सवाल ही रह जाते हैं कि हम क्यों बूढ़े होकर मर जाते हैं? क्या कभी हमारे दुश्‍मन मौत को मिटाया जाएगा? अगले कुछ लेखों में इसी विषय पर चर्चा की गयी है और इस सवाल का भी जवाब दिया गया है कि क्या यही है ज़िंदगी?

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