निडरतापूर्वक पर व्यवहार-कुशलता से प्रचार करना
प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी, “वचन को प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ।” उसने कहा, “क्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे।” (२ तीमु. ४:२, ३) जैसे-जैसे हम अन्तिम दिनों के कठिन समयों में आगे बढ़ते हैं, बढ़ती हुई संख्या में लोग बाइबल के खरे उपदेश को स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक बन रहे हैं। जिन सच्चाइयों को हम उन्हें प्रस्तुत करते हैं, उसकी अवहेलना करने से वे यह मनोवृत्ति कभी-कभी प्रकट करते हैं। जैसे उपरोक्त परिच्छेद आगे कहता है, वे ‘कानों की खुजली के कारण . . . अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेना’ पसंद करते हैं। लेकिन दूसरे समय पर, वे अभिमानी, असंयमी और कठोर होने से भी भविष्यवाणी पूरी करते हैं, जो हमारे नियत कार्य को पूरा करना कठिन बनाता है। चूँकि हमें यह कार्य आगे बढ़ाना है और “असमय” में भी यह अत्यावश्यकता से करते रहना है, किस तरह हम निडरतापूर्वक पर व्यवहार-कुशलता से प्रचार कर सकते हैं?—२ तीमु. ३:१-३.
२ यहोवा के सेवकों का विरोध कोई नयी बात नहीं है। हाबिल के समय से जो अपनी ईश्वरीय भक्ति के लिए मारा गया, यहोवा के सच्चे उपासकों ने शैतान के लोगों के हाथों सताहट का अनुभव किया है। और शास्त्रवचन में अनेक भविष्यवाणियाँ हैं जो सूचित करती हैं कि यीशु के शिष्य सताए जाएँगे। (मत्ती २३:३४) ख़ास तौर पर इस अन्त के समय में हम शैतान को गर्जनेवाले सिंह की तरह व्यवहार करते हुए पाते हैं। जितना हो सके वह यहोवा के सेवकों को फाड़ खाना चाहता है, क्योंकि वह पृथ्वी के आस-पास है और “बड़े क्रोध के साथ . . . है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (१ पत. ५:८; प्रका. १२:१२) उसी समय, हालाँकि हम अवगत हैं कि हमें कष्टकर अनुभव होंगे, हम मुसीबत मोल लेना नहीं चाहते या अकारण ख़ुद को सताहट पाने की स्थिति में नहीं डालना चाहते। इसलिए यीशु ने हमें “सांपों की नाईं बुद्धिमान” और विरोध करनेवाले ‘लोगों से सावधान रहने’ की सलाह दी। हम ऐसे कैसे बन सकते हैं?—मत्ती १०:१६, १७.
३ यीशु का उदाहरण: विश्वमण्डल में प्रमुख सुसमाचारक के तौर पर, निडरता और व्यवहार-कुशल के सम्बन्ध में यीशु ने हमारे लिए क्या उदाहरण रखा? क्या आपको वे दो अवसर याद हैं जब उसने मंदिर से व्यापारियों को निकालने के लिए शारीरिक रूप से कार्य किया, जो यहोवा के नियम का अनुचित लाभ उठा रहे थे और उसे लाभ के एक ज़रिये में बदल रहे थे? (यूहन्ना २:१३-१७; मत्ती २१:१२, १३. सर्वश्रेष्ठ मनुष्य किताब अध्याय १६ और १०३ देखिए.) और उसने शास्त्रियों और फरीसियों को उनके पाखण्ड और उनकी उपासना की कुटिलता के लिए कितनी बार धिक्कारा—कभी-कभी दृष्टांतों के द्वारा और कभी-कभी सुस्पष्ट शब्दों में।—मत्ती १६:६, १२; अध्याय २३.
४ वैसे ही आज, हमें सेवकाई में निडर रहने की ज़रूरत है। बेशक हम झूठी उपासना की वस्तुओं को शारीरिक रूप से नष्ट करना शुरू करने के लिए प्राधिकृत नहीं हैं, न ही हम उन व्यक्तियों की निन्दा करते हैं जो ऐसी उपासना में भाग लेते हैं। फिर भी झूठ को काटकर नष्ट करने के लिए हम परमेश्वर के वचन को एक तलवार की तरह इस्तेमाल करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। (इफि. ६:१७; इब्रा. ४:१२) हम निडरतापूर्वक घोषणा करते हैं कि आत्मा और सच्चाई से यहोवा की सेवा करना इंसानों के लिए अनन्त जीवन पाने का एकमात्र मार्ग है। इंसानों को प्रसन्न करने के लिए हम कभी परमेश्वर के संदेश के महत्त्व को कम नहीं करते, या किसी प्रकार के अन्तरधर्मीय गतिविधियों में भाग लेने के द्वारा या किसी प्रकार से झूठी उपासना का समर्थन करने के द्वारा अपने विश्वासों का समझौता नहीं करते। यह निडरता हमें उन व्यक्तियों के विरोध में लाती है जो हम से सहमत नहीं हैं। तब क्या?
५ व्यवहार-कुशल रहना: फिर से, आइए हम यीशु के उदाहरण को देखें। उस घटना को याद कीजिए जहाँ यीशु अवगत था कि शास्त्री और फरीसी यह देखने के लिए उसे आलोचनात्मक नज़र से देख रहे थे कि वह सब्त पर एक आदमी के सूखे हुए हाथ को चंगा करेगा या नहीं। क्या यीशु ने निडरतापूर्वक उस आदमी को आराधनालय के “बीच में” आने को नहीं कहा और उसे चंगा किया? लेकिन जब उसे एहसास हुआ कि “वे आपे से बाहर” हो गए हैं और उसे मार डालने का षड्यंत्र रचा रहे थे, क्या वह यह तर्क करते हुए वहाँ रुका रहा कि उसे सताहट सहने के लिए इच्छुक होना चाहिए? नहीं! “यीशु वहां से चला गया।”—मत्ती १२:१४-१७; लूका ६:६-११. सर्वश्रेष्ठ मनुष्य किताब अध्याय ३२ और ३३ भी देखिए।
६ फिर क्या आपको वह समय याद है जब उसने फरीसियों को मंदिर में यह कहते हुए सख़्ती से धिक्कारा था कि वे उनके पिता इब्लीस से हैं? जब उन्होंने उसे मारने के लिए पत्थर उठाए, यीशु ने वहाँ गर्व से खड़े रहकर अपना पत्थरवाह होने नहीं दिया। इसके बजाय, वह छिप गया और बाद में धीरे से मंदिर से निकल गया। (यूहन्ना ८:३७-५९) और उस अवसर के बारे में क्या जब उसने यहोवा के साथ अपने रिश्ते को खुले आम घोषित किया और यहूदियों ने “उसे पत्थरवाह करने को फिर पत्थर उठाए”? उसने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन जब “उन्हों ने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया” उसने भाग जाने को अपनी आन से नीचा नहीं समझा, बल्कि वह भाग गया और इस प्रकार “उन के हाथ से निकल गया।” दरअसल उस अवसर पर उसने उस क्षेत्र को ही छोड़ना ठीक समझा।—यूहन्ना १०:२४-४२; मत्ती १०:२३ से तुलना कीजिए. सर्वश्रेष्ठ मनुष्य किताब अध्याय ६९ और ८१ देखिए।
७ हमारे क्षेत्र में: राज्य का सुसमाचार का प्रचार करते हुए जैसे-जैसे हम यीशु के पदचिह्नों पर चलते हैं, हम अपना संदेश चाहे कितनी व्यवहार-कुशलता से क्यों न प्रस्तुत करें, हम ऐसे गृहस्थों से मिलते हैं जो हमारे कार्य का विरोध करते हैं। जब हम अपनी स्थिति को आदर के साथ समझाते हैं तब अगर उस व्यक्ति का रवैया बदलता नहीं है, तो वार्तालाप को शिष्टता से समाप्त करके अगले घर को जाना सामान्यतः बेहतर होता है।—मत्ती १०:१४.
८ लेकिन कभी-कभार, हम ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो दरवाज़े पर ही चिल्लाने लगता है। ऐसी स्थिति में उस दिन क्षेत्र से निकल जाना शायद बुद्धिमानी की बात होगी और उस व्यक्ति के पड़ोसियों को मिलने के लिए हम बाद में आ सकते हैं। और तब क्या अगर एक ख़ास क्षेत्र में अनेक बार हमारे साथ ऐसा अनुभव होता है? शायद एक ख़तरनाक भीड़ भी इकट्ठी होकर हमें हानि पहुँचाने की धमकी देती हो? तब यह बुद्धिमानी की बात होगी कि होहल्ला शांत हो जाने तक हम कुछ सप्ताहों के लिए, शायद महीनों के लिए भी उस क्षेत्र में कार्य न करें। कुछ समय बाद हम सावधानीपूर्वक वहाँ फिर से कार्य करने की कोशिश कर सकते हैं यह देखने के लिए कि क्या उन लोगों का रवैया बदला है और क्या वे हमारे संदेश के प्रति अधिक अनुकूल हैं।—सुझावों के लिए कि कैसे उन मामलों को निपटाया जा सकता है जहाँ व्यक्ति ख़ास तौर पर हमें भेंट न करने का निवेदन करते हैं या इसके लिए अपने दरवाज़े पर चिह्न लगाते हैं, हमारी राज्य सेवकाई के इस अंक में प्रश्न बक्स देखिए।
९ पहले से ही अधिक व्यवहार-कुशल होने से अकसर ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है। हम जानते हैं कि बहुत लोग अपने धर्म के समर्थन में ज़्यादा-से-ज़्यादा युद्धप्रिय बन रहे हैं। उन क्षेत्रों में जहाँ हम जानते हैं कि ऐसे लोगों की भरमार है, या एक दरवाज़े पर किसी एक धर्म का विज्ञापन और अत्यधिक प्रशंसा करनेवाले अनेक नारों और चिह्नों को देखने पर, हमें अपने शब्दों को और भी अधिक सावधानी से तोलने की ज़रूरत है। अपनी पहचान एक ‘बाइबल’ या ‘मसीही’ संगठन से आनेवालों के तौर पर करने के बजाय, हम अपने कार्य के शैक्षिक क़िस्म पर ज़ोर डाल सकते हैं। हालाँकि हम लोगों को परमेश्वर का वचन दिखाना और उस में से पढ़ना कभी बंद करना नहीं चाहते, हम बाइबल इस्तेमाल करने के बारे में सावधान हो सकते हैं और अगर शास्त्रवचन दिखाना है तो इन्हें सावधानीपूर्वक चुनें। फिर हम ‘मिशनरी,’ ‘प्रचार’ और, ख़ास तौर पर, ‘धर्म-परिवर्तन’ जैसे शब्दों को अनावश्यक रूप से इस्तेमाल करने से दूर रह सकते हैं, जो हम जानते हैं नाराज़गी उत्पन्न कर सकते हैं।
१० यह हमें एक और क्षेत्र में लाता है जहाँ हम सावधानी बरत सकते हैं। जैसे भविष्यवाणी की गयी, सभी कुल और भाषा और जाति—और धार्मिक पृष्ठभूमि—के लोग यहोवा की उन्नत उपासना की ओर धारा की नाईं आ रहे हैं। (यशा. २:२, ३; प्रका. ७:९) हम इसे उसकी आशिष का एक चिह्न मानते हैं और जैसे-जैसे छोटे से छोटा एक हज़ार होता है और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बनता है हम आनन्दित होते हैं। (यशा. ६०:२२) उसी समय, सच्ची उपासना के लिए स्थिति लिए हुए व्यक्ति की धार्मिक पृष्ठभूमि का विज्ञापन विस्तृत रूप से करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
११ अनेक भाई घर-घर और अन्य स्थानों में नए प्रकाशकों का परिचय कराते हैं और विशिष्ट रूप से उनके पिछले धर्म का उल्लेख करते हैं और नए प्रकाशकों द्वारा किए गए परिवर्तन की ओर गृहस्वामी का ध्यान आकर्षित करते हैं। इससे गृहस्वामी नाराज़ हो सकता है और यह ऐसा विचार दे सकता है कि हमारा एकमात्र उद्देश्य किसी ख़ास धर्म के लोगों को मसीहियत में ‘धर्म-परिवर्तन’ करना है। परमेश्वर पक्षपाती नहीं है—वह सब व्यक्तियों के लिए आशा का संदेश प्रदान कर रहा है, चाहे उनका धर्म जो भी हो, और सभी पृष्ठभूमि के लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं। (प्रेरितों १०:३४, ३५) हम ख़ुश होते हैं जब एक व्यक्ति यहोवा का एक उपासक बनता है, और उसका धार्मिक पृष्ठभूमि चाहे जो भी हो हम उसका स्वागत करते हैं। लेकिन उसके पिछले धर्म, और जिस मात्रा में उसने परिवर्तन किया है उसे विशेष मानकर विस्तृत रूप से विज्ञापित करने की ज़रूरत नहीं है।
१२ जैसे-जैसे अन्त क़रीब आता है हम अधिक सताए जाने और लोगों का व्यवहार बदतर होने की अपेक्षा कर सकते हैं। (२ तीमु. ३:१२, १३) यह बात कि इतिहास भर हमारे संगी दास विजयी हुए हैं हमें विश्वास देती है कि यहोवा की आत्मा की मदद से हम भी वैसा ही कर सकते हैं। इस बीच, “परमेश्वर का वह अनुग्रह . . . जो सब मनुष्यों के उद्धार का कारण है” की घोषणा हम निडरतापूर्वक पर व्यवहार-कुशलता से प्रचार करने के द्वारा करते रहेंगे।—तीतुस २:११.