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  • “कुछ अपने पास रख छोड़ा करे”
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हमारी राज-सेवा—2002
km 2/02 पेज 7

“कुछ अपने पास रख छोड़ा करे”

पहली सदी में मसीहियों की कलीसिया में आर्थिक ज़रूरत पर ध्यान दिया जाना था। उनमें से हरेक की जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती थी तो, उन्हें उसमें से ‘कुछ अपने पास रख छोड़ने’ का बढ़ावा दिया गया ताकि वे उन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्वेच्छा से दान दे सकें। (1 कुरि. 16:1-3) उनके उदारता से दिए गए दान की वजह से सभी ने खुशी से “परमेश्‍वर का धन्यवाद” किया।—2 कुरि. 9:11, 12.

आज संसार भर में यहोवा के लोगों के काम में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, इस वजह से पहले से कहीं ज़्यादा आर्थिक मदद की ज़रूरत पैदा हुई है। इसलिए अच्छा होगा कि हम भी नियमित रूप से इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए ‘कुछ अपने पास रख छोड़ें।’ (2 कुरि. 8:3, 4) पिछले साल आर्थिक मामलों में संस्था पर लगायी गयी रोक के बारे में सुनकर कइयों ने पहले से ज़्यादा ‘रख छोड़ने’ का इंतज़ाम किया है। उनकी इन कोशिशों की हम बड़ी कदर करते हैं, साथ ही इससे यहोवा की आशीषें भी मिलती हैं।—मला. 3:10.

जब भी हम सेवकाई या खुद के इस्तेमाल के लिए पत्रिकाएँ लेते हैं तो उस वक्‍त दान देने के लिए कुछ अलग रख छोड़ना एक अच्छी आदत है। याद रखिए कि हमारा उदारता से दिया गया दान, न सिर्फ प्रकाशनों की छपाई और उन्हें अलग-अलग जगहों तक पहुँचाने का खर्च पूरा करता है, बल्कि संसार भर में किए जा रहे दूसरे कामों में भी इस्तेमाल होता है। बच्चों को भी दान देने के लिए बढ़ावा दिया जा सकता है। बच्चों को बड़ी खुशी महसूस होती है जब वे अपने माता-पिता से मिली जेब-खर्ची में से कुछ पैसे दान के लिए ‘रख छोड़ते’ हैं, फिर चाहे वह रकम कितनी ही छोटी क्यों न हो।

लेकिन फिर भी दान देना आसानी से भूला जा सकता है। एक कलीसिया में प्राचीनों ने देखा कि साल भर में संस्था को भेजी गयी रकम, पिछले साल भेजी गयी रकम से कम थी जबकि खुद कलीसिया की जमा-पूँजी बढ़ रही थी। उन्होंने हिसाब लगाया कि देश में हरेक प्रकाशक को हर महीने अंदाज़न कितना दान देना चाहिए जिससे कि संस्था खर्च उठा सके। उस कलीसिया के भाई-बहन हामी भरते हुए इस बात पर सहमत हुए कि संसार भर में हो रहे काम के लिए वे हर महीने कम-से-कम प्राचीनों द्वारा हिसाब लगायी गयी अंदाज़न रकम भेजेंगी। और उन्होंने यह भी ठाना कि अगर यह रकम कम पड़ी तो वे अपनी कलीसिया की पूँजी से निकालकर देंगे।

एक और कलीसिया में देखा गया कि बहुत-सी पत्रिकाएँ यूँ ही पड़ी-पड़ी बेकार हो रही थीं जबकि यह एक बहुमूल्य साधन है। तब प्राचीनों ने अपने इलाके के फैरीबोट के घाट पर पत्रिकाएँ बाँटने का खास इंतज़ाम किया। उन्होंने प्रकाशकों को निर्देशित किया कि कैसे उन्हें लोगों को दान देने के बढ़िए मौके के बारे में बताएँ। नतीजा यह हुआ कि उस महीने, कलीसिया ने 15,000 से भी ज़्यादा रुपए जमा किए।

क्या आपने और आपके परिवार ने ‘कुछ रख छोड़ने’ के बारे में विचार किया है? आर्थिक मदद कई तरीकों से दी जा सकती है। (नवंबर 1, 2001 की प्रहरीदुर्ग के पेज 28-9 देखिए।) इस तरह से मदद करना हमारे लिए एक सुनहरा मौका है, जिससे हमें सच्ची खुशी मिलती है।—प्रेरि. 20:35.

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