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हमारी राज-सेवा—2008
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प्रश्‍न बक्स

◼ क्या परमेश्‍वर की सेवा स्कूल और सेवा सभा में पेश किए जानेवाले हर भाग के बाद तालियाँ बजाना सही है?

जब हमारे सिरजनहार यहोवा ने पृथ्वी की नींव डाली, तब ‘भोर के तारे एक संग आनन्द से गाने लगे और परमेश्‍वर के सब पुत्र जयजयकार करने लगे।’ (अय्यू. 38:7) इस तरह परमेश्‍वर के पुत्रों ने, यानी स्वर्गदूतों ने यहोवा की बेमिसाल सृष्टि के कामों के लिए उसकी महिमा की, क्योंकि परमेश्‍वर ने अपनी बुद्धि, भलाई और शक्‍ति को नए तरीके से उन पर ज़ाहिर किया।

हमारे भाई-बहन अपना भाग पेश करने के लिए जो भी मेहनत करते हैं, उसके लिए दिल से कदरदानी ज़ाहिर करना अच्छी बात है। मिसाल के लिए, सम्मेलनों और अधिवेशनों जैसे खास मौकों पर दिए जानेवाले भाषणों और प्रदर्शनों के लिए हम आम तौर पर ताली बजाकर अपनी कदरदानी ज़ाहिर करते हैं। क्योंकि उन भागों को पेश करने की तैयारी में काफी समय और मेहनत लगती है। जब हम तालियाँ बजाते हैं, तो हम न सिर्फ वक्‍ता की कड़ी मेहनत के लिए कदरदानी दिखाते हैं, बल्कि उन हिदायतों के लिए भी जो यहोवा अपने वचन और संगठन के ज़रिए हमें देता है।—यशा. 48:17; मत्ती 24:45–47.

मगर परमेश्‍वर की सेवा स्कूल और सेवा सभा में दिए जानेवाले भाषणों के बाद तालियाँ बजाने के बारे में क्या? मिसाल के लिए, जब एक विद्यार्थी पहली बार सेवा स्कूल में अपना भाग पेश करता है, और अगर कोई भाई या बहन अचानक से अपनी कदरदानी ज़ाहिर करने के लिए ताली बजाता या बजाती है, तब क्या? ऐसे वक्‍त पर ताली बजायी जानी चाहिए या नहीं, इस बारे में कोई नियम नहीं है। जब एक नया विद्यार्थी सेवा स्कूल में अपना पहला भाग पेश करता है, तो हो सकता है, भाई-बहन उसके लिए तालियाँ बजाएँ। लेकिन अगर परमेश्‍वर की सेवा स्कूल और सेवा सभा में हर भाग के बाद तालियाँ बजायी जाएँ, तो वक्‍त के गुज़रते यह एक ढर्रा बन सकता है। और अगर यह ऐसा ही चलता रहा, तो फिर तालियाँ बजाने के कोई मायने नहीं रह जाएँगे। इसलिए हम आम तौर पर हर भाग के बाद तालियाँ नहीं बजाते।

हालाँकि हम परमेश्‍वर की सेवा स्कूल और सेवा सभा में दिए जानेवाले ज़्यादातर भागों के बाद तालियाँ नहीं बजाते, मगर हम भाग पेश करनेवाले उन भाई-बहनों के लिए और उनके ज़रिए मिली हिदायतों के लिए दूसरे तरीकों से शुक्रिया अदा ज़रूर कर सकते हैं। कैसे? एक तरीका है जब वे अपना भाग पेश करते हैं, तो हम उस पर ध्यान दे सकते हैं। और सभा खत्म होने के बाद, हम खुद जाकर उनका शुक्रिया अदा कर सकते हैं।—इफि. 1:15, 16.

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