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w20 दिसंबर पेज 15

आपने पूछा

नीतिवचन 24:16 कहता है, “नेक जन चाहे सात बार गिरे, तब भी उठ खड़ा होगा।” क्या इसका यह मतलब है कि अगर एक इंसान बार-बार पाप करे, तो भी परमेश्‍वर उसे माफ कर देगा?

इस आयत में ‘गिरने’ का मतलब पाप करना नहीं है। इसका मतलब है कि एक नेक इंसान चाहे बार-बार मुश्‍किलों और मुसीबतों का सामना करे, तो भी वह सँभल जाएगा। इस मायने में वह गिरकर भी उठ खड़ा होगा।

गौर कीजिए कि आयत 16 से पहले और बाद की आयतों में क्या लिखा है, “दुष्टों की तरह नेक जन के घर पर घात मत लगा, उसके आशियाने को मत उजाड़। नेक जन चाहे सात बार गिरे, तब भी उठ खड़ा होगा, लेकिन अगर दुष्ट मुसीबत की वजह से ठोकर खाए, तो वह नहीं उठेगा।  जब तेरा दुश्‍मन गिरे तब खुश मत हो और जब वह ठोकर खाकर उठ न पाए, तो तेरा मन खुशी से फूल न उठे।”​—नीति. 24:15-17.

कुछ लोगों का मानना है कि आयत 16 का यह मतलब है कि एक इंसान भले ही पाप करे, लेकिन अगर वह पश्‍चाताप करे तो परमेश्‍वर उसे अपना लेगा। ब्रिटेन के दो धर्म-गुरुओं ने लिखा कि “पुराने ज़माने और आज के धर्म-प्रचारकों ने इस आयत का यही मतलब समझाया है।” इन धर्म-गुरुओं ने यह भी लिखा कि अगर इस आयत का यही मतलब है तो ‘एक भला इंसान चाहे कितने ही बड़े-बड़े पाप करे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर वह पश्‍चाताप करे और परमेश्‍वर से प्यार करता रहे, तो परमेश्‍वर उस पर कृपा करेगा। इस तरह वह इंसान उठ खड़ा होगा।’ ऐसी बातें शायद उन लोगों को अच्छी लगें जो अपनी बुरी इच्छाओं को काबू में करने की कोशिश नहीं करते। वे शायद यह भी सोचें कि अगर वे बार-बार पाप करते रहेंगे, तो भी परमेश्‍वर उन्हें माफ करता रहेगा।

लेकिन आयत 16 का यह मतलब बिलकुल भी नहीं है।

जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद आयत 16 और 17 में “गिरे” किया गया है, उसका मतलब कुछ आयतों में सचमुच का गिरना है। जैसे बैल रास्ते में गिरा पड़ा है, आदमी छत से गिर गया या कंकड़ ज़मीन पर गिरा है। (व्यव. 22:4, 8; आमो. 9:9) और कुछ आयतों में गिरने का मतलब सचमुच गिर जाना नहीं बल्कि ज़िंदगी में ठोकर खाना है। जैसे इस आयत पर गौर कीजिए: “जब यहोवा एक आदमी के चालचलन से खुश होता है, तो उसके कदमों को राह दिखाता है। चाहे उसे ठोकर लगे, तो भी वह चित नहीं होगा, क्योंकि यहोवा हाथ से उसे थामे रहता है।”​—भज. 37:23, 24.

मगर जैसे प्रोफेसर एडवर्ड एच. प्लमट्रे बताते हैं, “किसी भी आयत में इस इब्रानी शब्द का मतलब पाप करना नहीं है।” इस बात को ध्यान में रखते हुए एक और विद्वान ने आयत 16 का यह मतलब समझाया, “परमेश्‍वर के लोगों पर चाहे कितने भी ज़ुल्म करो, कोई फायदा नहीं। वे सँभल जाएँगे। मगर दुष्ट लोग नहीं सँभल पाएँगे।”

इन सारी बातों से साफ पता चलता है कि नीतिवचन 24:16 में पाप करने की बात नहीं की गयी है। इसका यह मतलब है कि एक नेक इंसान की ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें, दुख-तकलीफें आ सकती हैं और ये कई बार आ सकती हैं। हो सकता है, इस दुष्ट दुनिया में वह किसी बीमारी या समस्या का सामना करे। या सरकार उस पर ज़ुल्म ढाए क्योंकि वह यहोवा की उपासना करता है। मगर वह भरोसा रख सकता है कि परमेश्‍वर उसकी मदद करेगा और वह सँभल जाएगा। हमने खुद कितनी बार देखा है कि परमेश्‍वर के लोग चाहे कितनी भी मुश्‍किलें झेलें, लेकिन बाद में सबकुछ ठीक हो जाता है। हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि “यहोवा गिरनेवाले सभी लोगों को सँभालता है और उन सबको उठाता है जो झुक गए हैं।”​—भज. 41:1-3; 145:14-19.

“नेक जन” के बारे में एक और बात गौर करने लायक है। जब वह देखता है कि दूसरे मुसीबत में हैं, तो वह खुश नहीं होता। वह जानता है कि “आखिर में सच्चे परमेश्‍वर का डर माननेवाले का ही भला होता है क्योंकि उसमें परमेश्‍वर के लिए सच्ची श्रद्धा है।” और इस बात से नेक जन को खुशी मिलती है।​—सभो. 8:11-13; अय्यू. 31:3-6; भज. 27:5, 6.

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