मरकुस
अध्ययन नोट—अध्याय 9
एक ऊँचे पहाड़: मुमकिन है कि यह हेरमोन पहाड़ है जो कैसरिया फिलिप्पी के पास है। (मर 8:27; कृपया मत 16:13 का अध्ययन नोट देखें।) इसकी ऊँचाई समुद्र-तल से करीब 9,232 फुट (2,814 मी.) है। शायद इसी पहाड़ की किसी ऊँची ढलान पर यीशु का रूप बदला था।—अति. ख10 देखें।
यीशु का रूप बदल गया: मत 17:2 का अध्ययन नोट देखें।
गुरु: शा., “रब्बी।” इसका शाब्दिक मतलब है, “मेरे महान।” यह इब्रानी शब्द राव से निकला है जिसका मतलब है, “महान।” आम तौर पर “रब्बी” का मतलब होता है, “गुरु।”—यूह 1:38.
आवाज़: खुशखबरी की किताबों में बताया गया है कि यहोवा ने तीन मौकों पर सीधे-सीधे इंसानों से बात की और यह दूसरा मौका था।—मर 1:11; यूह 12:28 के अध्ययन नोट देखें।
इंसान का बेटा: मत 8:20 का अध्ययन नोट देखें।
गूँगा दुष्ट स्वर्गदूत: यानी एक ऐसा दुष्ट स्वर्गदूत जो एक इंसान में समाकर उसे गूँगा बना देता है।
मरोड़ा: इस मामले में बच्चे को मिरगी के दौरे इसलिए पड़ते थे क्योंकि उसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया हुआ था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मिरगी की बीमारी हमेशा दुष्ट स्वर्गदूतों की वजह से होती है, ठीक जैसे इनकी वजह से हमेशा लोग गूँगे और बहरे नहीं हो जाते। (मर 9:17, 25 से तुलना करें।) इसके बजाय, मत 4:24 में बताया गया है कि लोग यीशु के पास अपने बीमार जनों को लाने लगे और उनमें ऐसे लोग थे “जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे और मिरगी” से पीड़ित थे। इस तरह यहाँ दो तरह के पीड़ित लोगों की बात की गयी है।—मत 4:24 का अध्ययन नोट देखें।
गूँगे और बहरे दूत: यानी एक ऐसा दुष्ट स्वर्गदूत जो एक इंसान में समाकर उसे गूँगा और बहरा बना देता है।
प्रार्थना से: कुछ हस्तलिपियों में ये शब्द भी जोड़े गए हैं: “और उपवास से।” लेकिन ये शब्द सबसे पुरानी और भरोसेमंद हस्तलिपियों में नहीं पाए जाते। ज़ाहिर है कि ये शब्द उन नकल-नवीसों ने जोड़ दिए जो खुद उपवास करते थे और इसका बढ़ावा देते थे। उन्होंने कई दूसरी आयतों में भी उपवास के बारे में लिखा, जबकि पुरानी हस्तलिपियों में उन आयतों में इस बारे में बात नहीं की गयी है।—मत 17:21 का अध्ययन नोट देखें।
ठोकर खिलाता है: या “के सामने ठोकर का पत्थर रखता है।” मसीही यूनानी शास्त्र में ठोकर के लिए यूनानी शब्द स्कानडेलाइज़ो इस्तेमाल हुआ है और इसका मतलब सचमुच का ठोकर खाना नहीं है। इस आयत में इस शब्द का मोटे तौर पर मतलब है, कुछ ऐसा करना कि दूसरा आदमी यीशु पर विश्वास करना और उसके पीछे चलना छोड़ दे। इसका यह भी मतलब हो सकता है कि दूसरे व्यक्ति से पाप करवाना या उसके लिए फंदा बनना। ठोकर खिलाने में परमेश्वर के नैतिक नियमों को तोड़ना, विश्वास में कमज़ोर पड़ना या झूठी शिक्षाओं को अपनाना शामिल है। (मत 18:7 का अध्ययन नोट देखें।) शब्द ऐसे छोटों में से यीशु के उन चेलों के लिए इस्तेमाल किया गया है जिन्हें दुनिया कुछ नहीं समझती मगर जो परमेश्वर की नज़रों में बहुत अनमोल हैं।
चक्की का वह पाट . . . जिसे गधा घुमाता है: मत 18:6 का अध्ययन नोट देखें।
तुझसे पाप करवाए: शा., “तुझे ठोकर खिलाए।” यहाँ यूनानी शब्द स्कानडेलाइज़ो का अनुवाद इस तरह से भी किया जा सकता है, “तेरे लिए फंदा बन जाए।”—मत 18:7 का अध्ययन नोट देखें।
उसे काट डाल: यीशु यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार इस्तेमाल कर रहा था। वह कह रहा था कि एक व्यक्ति को हाथ, पैर या आँख जैसी कोई भी अनमोल चीज़ त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए, बजाय इसके कि वह उसकी वजह से परमेश्वर से विश्वासघात करे। बेशक यीशु अपने शरीर को नुकसान पहुँचाने का बढ़ावा नहीं दे रहा था, न ही कह रहा था कि इंसान किसी तरह अपने अंगों का गुलाम है। (मर 9:45, 47) उसके कहने का मतलब था कि इंसान को अपने किसी अंग के ज़रिए पाप करने के बजाय उसे मार डालना चाहिए या ऐसा समझना चाहिए मानो वह शरीर से कट गया हो। (कुल 3:5 से तुलना करें।) उसे हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए किसी भी चीज़ को आड़े नहीं आने देना चाहिए।
गेहन्ना: मत 5:22 का अध्ययन नोट और शब्दावली देखें।
कुछ हस्तलिपियों में यहाँ लिखा है: “जहाँ उनके कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती।” लेकिन ये शब्द प्राचीन और अहम हस्तलिपियों में नहीं पाए जाते। इनसे मिलते-जुलते शब्द आयत 48 में पाए जाते हैं, जिनके बारे में कोई शक नहीं है। सबूतों से पता चलता है कि किसी नकल-नवीस या नकल-नवीसों ने आयत 48 के शब्द आयत 44 और 46 में लिख दिए।—अति. क3 देखें।
तुझसे पाप करवाता है: मर 9:43 का अध्ययन नोट देखें।
गेहन्ना: मत 5:22 का अध्ययन नोट और शब्दावली देखें।
मर 9:44 का अध्ययन नोट देखें।
तुझसे पाप करवाती है: मर 9:43 का अध्ययन नोट देखें।
गेहन्ना: मत 5:22 का अध्ययन नोट और शब्दावली देखें।
जहाँ: यानी “गेहन्ना” जिसका ज़िक्र पिछली आयत में किया गया है। जैसे मत 5:22 के अध्ययन नोट में बताया गया है, यीशु के दिनों तक हिन्नोम घाटी (जिससे “गेहन्ना” शब्द निकला है) कूड़ा-करकट जलाने की जगह बन गयी थी। ज़ाहिर है कि यीशु यह कहकर कि कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती, यश 66:24 की भविष्यवाणी की तरफ इशारा कर रहा था। उस भविष्यवाणी में यह नहीं बताया गया कि ज़िंदा लोगों को तड़पाया जाएगा बल्कि यह बताया गया है कि ‘उन आदमियों की लाशों’ का क्या होगा जो यहोवा के खिलाफ हो जाते हैं। हिन्नोम घाटी में जहाँ आग नहीं पहुँचती थी, वहाँ कीड़े पड़ जाते थे और बची हुई चीज़ों को खा जाते थे। इस आधार पर यीशु के कहने का मतलब था कि जब परमेश्वर कड़ी सज़ा देगा, तब लोगों को तड़पाया नहीं जाएगा बल्कि पूरी तरह नाश कर दिया जाएगा।
ऐसे आग बरसायी जाएगी जैसे नमक छिड़का जाता है: शा., “आग से नमकीन किया जाएगा।” यह एक अलंकार है जिसे दो तरीकों से समझा जा सकता है। (1) अगर यह अलंकार मर 9:43-48 में दर्ज़ यीशु की बात से जुड़ा है तो इसका मतलब है, गेहन्ना की आग से नाश। यीशु शायद उस घटना की तरफ इशारा कर रहा था जब परमेश्वर ने मृत (लवण) सागर के पास बसे सदोम और अमोरा शहरों पर “आग और गंधक” बरसायी थी। (उत 19:24) इस संदर्भ के मुताबिक “हर इंसान आग से नमकीन किया जाएगा” शब्दों का मतलब है, जो लोग अपने हाथों, पैरों या आँखों के ज़रिए पाप करते हैं या दूसरों को ठोकर खिलाते हैं उन्हें गेहन्ना की आग से नमकीन किया जाएगा यानी पूरी तरह नाश कर दिया जाएगा। (2) अगर यह अलंकार “आग से नमकीन किया जाएगा” मर 9:50 में दर्ज़ यीशु की बात से जुड़ा है, तो उसके कहने का मतलब शायद यह था कि उसके चेलों पर ऐसी आग आएगी जिससे उनका भला होगा और उनके बीच शांति होगी। इस संदर्भ के मुताबिक, हर इंसान यानी उसके सभी चेले यहोवा के वचन से शुद्ध किए जाएँगे, जो आग की तरह सभी झूठी शिक्षाओं और गलत बातों को भस्म कर देता है। साथ ही, चेले परीक्षाओं की आग से शुद्ध किए जाएँगे, यानी जब उन्हें सताया जाएगा तो उनकी वफादारी और भक्ति की परख होगी और उनके ये गुण और भी निखर जाएँगे। (यिर्म 20:8, 9; 23:29; 1पत 1:6, 7; 4:12, 13) यह भी हो सकता है कि जब यीशु ने यह बात कही तो उसके मन में ये दोनों विचार रहे हों।
नमक: एक ऐसा खनिज जो खाने का स्वाद बढ़ाता है। यह खाने की चीज़ों को खराब होने से भी बचाता है।—मत 5:13 का अध्ययन नोट देखें।
अपना स्वाद खो दे: या “अपना नमकीनपन खो दे।” यीशु के दिनों में आम तौर पर नमक मृत सागर के पास से निकाला जाता था और इसमें दूसरे खनिज भी मिले होते थे। नमक को साफ करते वक्त इन खनिजों को अलग किया जाता था। इनमें कोई स्वाद नहीं होता था और ये किसी काम के नहीं रह जाते थे।
खुद में नमक जैसा स्वाद रखो: ज़ाहिर है कि यहाँ “नमक” का मतलब है, मसीहियों में पायी जानेवाली खूबी जो उन्हें ऐसे काम करने और ऐसी बातें कहने के लिए उभारती है जिनमें भलाई और लिहाज़ झलकता है और जिनसे दूसरों की जान बच सकती है। प्रेषित पौलुस ने इसी मतलब को ध्यान में रखते हुए “नमक” शब्द का इस्तेमाल किया था। (कुल 4:6, फु.) शायद यीशु के मन में प्रेषितों के झगड़ों की बात रही होगी कि उनमें सबसे बड़ा कौन होगा। अगर एक इंसान में लाक्षणिक नमक होगा तो वह ऐसी बातें कहेगा, जिन्हें स्वीकार करना दूसरों के लिए आसान होगा और इससे शांति बनी रहेगी।