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सजग होइए! ब्रोशर (1993) (gbr-3)
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बच्चे सम्पत्ति—या भार?

परिवार नियोजन का मामला जनसंख्या विस्फोट से नज़दीकी रूप से जुड़ा हुआ है। मानव इतिहास के ज़्यादातर समय के दौरान, जनसंख्या वृद्धि तुलनात्मक रूप से धीमी थी; मरनेवालों की संख्या लगभग पैदा होनेवालों की संख्या के बराबर थी। आख़िरकार, वर्ष १८३० के लगभग, संसार की जनसंख्या एक अरब हो गई।

फिर हुई चिकित्सीय और वैज्ञानिक प्रगति, जिसके परिणामस्वरूप बीमारियों से, ख़ासकर बालपन की बीमारियों से, मृत्यु में कमी हो गई। लगभग १९३० तक, संसार की जनसंख्या दो अरब हो गई। उन्‍नीस सौ साठ तक, एक और अरब लोग बढ़ गए थे। उन्‍नीस सौ पचहत्तर तक, एक और अरब। उन्‍नीस सौ सतासी तक, संसार की जनसंख्या पाँच अरब तक पहुँच गई।

इसको एक दूसरे ढंग से देखें तो, इस ग्रह पर लोगों की संख्या इस समय लगभग १७० लोग प्रति मिनट बढ़ रही है। इसको जोड़ा जाए तो प्रतिदिन २,५०,००० लोग बढ़ते हैं, एक अच्छे बड़े शहर के लिए काफ़ी। इसका यह भी अर्थ है कि, हर साल ९ करोड़ से ज़्यादा लोगों की वृद्धि होती है, जो तीन कनाडा देश या एक और मैक्सिको देश के बराबर है। इस वृद्धि का ९० प्रतिशत से ज़्यादा भाग विकासशील देशों में हो रहा है, जहाँ संसार की ७५ प्रतिशत जनसंख्या पहले ही रहती है।

चिन्तित सरकारें

लेकिन सरकारें क्यों परिवार नियोजन के द्वारा जनसंख्या वृद्धि को सीमित करने के लिए उत्सुक हैं? संयुक्‍त राष्ट्र जनसंख्या निधि के लिए नाइजीरिया का राष्ट्रीय कार्यक्रम अधिकारी, डॉ. बाब्स्‌ सेगो, इस प्रश्‍न का उत्तर एक सरल दृष्टान्त के साथ देता है। लेकिन वह सावधान करता है कि यह दृष्टान्त एक जटिल और विवादास्पद स्थिति को अत्यन्त सरल दिखाता है। वह समझाता है:

‘मान लीजिए कि एक किसान के पास दस एकड़ ज़मीन है। यदि उसके दस बच्चे हैं और ज़मीन को उनके बीच बराबर से बाँटता है, तो हर बच्चे के पास एक एकड़ ज़मीन होगी। यदि उनमें से हर बच्चे के दस बच्चे हैं और वह ज़मीन को उसी प्रकार बाँटता है, तो उनके हर बच्चे के पास केवल एक एकड़ का दसवाँ भाग ही होगा। स्पष्ट है कि, ये बच्चे अपने दादा की तरह धनी नहीं होंगे, जिसके पास दस एकड़ ज़मीन थी।’

यह दृष्टान्त लोगों की बढ़ती हुई संख्या और सीमित साधनोंवाली सीमित पृथ्वी के बीच सम्बन्ध को विशिष्ट करता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जाती है, अनेक विकासशील देश वर्तमान जनसंख्या की तादाद का सामना करने के लिए जूझ रहे हैं। कुछ समस्याओं पर विचार कीजिए।

साधन. जैसे-जैसे लोगों की संख्या बढ़ती जाती है, जंगलों, ऊपरी मिट्टी, कृषि भूमि, और मीठे पानी की माँग भी बढ़ती जाती है। परिणाम? पोपूलाई (Populi) पत्रिका खेद प्रकट करती है: “विकासशील देश . . . अक़सर राष्ट्रीय साधनों को हद से ज़्यादा इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हो जाते हैं जिन साधनों पर उनके भविष्य का विकास निर्भर करता है।”

अवसंरचना. जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जाती है, पर्याप्त घर, स्कूल, जन सुविधाएँ, सड़कें, और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना सरकारों के लिए ज़्यादा कठिन काम होता जाता है। भारी कर्ज़ और घटते हुए साधनों के दोहरे बोझ से दबे, विकासशील राष्ट्र वर्तमान जनसंख्या की ही ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तंगहाल हैं, और बड़ी जनसंख्या की तो बात ही छोड़िए।

रोज़गार. संयुक्‍त राष्ट्र जनसंख्या निधि प्रकाशन जनसंख्या और पर्यावरण: आगे की चुनौतियाँ (Population and the Environment: The Challenges Ahead) कहता है कि अनेक विकासशील देशों में, ४० प्रतिशत श्रम बल पहले ही बेरोज़गार है। विकासशील संसार में सभी जगह, ५० करोड़ से ज़्यादा लोग या तो बेरोज़गार हैं या फिर अल्प रोज़गार हैं, और यह संख्या उद्योगिकृत संसार के लगभग सम्पूर्ण श्रम बल के बराबर है।

इन दरों को ज़्यादा बिगड़ने से रोकने के लिए, विकासशील देशों को हर साल ३ करोड़ से अधिक नौकरियाँ बनानी पड़ेंगी। जिन लोगों को इन नौकरियों की ज़रूरत होगी, आज जीवित हैं—वे आज के बच्चे हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अत्यधिक बेरोज़गारी गृह संघर्ष, बढ़ती हुई ग़रीबी, और प्राकृतिक साधनों के और भी ज़्यादा विनाश का कारण बन सकती है।

तो इसमें कोई आश्‍चर्य की बात नहीं कि ज़्यादा से ज़्यादा विकासशील राष्ट्र परिवार नियोजन को बढ़ावा देने का प्रयत्न कर रहे हैं। आगे क्या होगा, इस पर टिप्पणी करते हुए ब्रिटिश चिकित्सा पत्रिका लैन्सेट (Lancet) ने कहा: “[लोगों की] संख्या में वृद्धि का दबाव, जो मुख्य रूप से संसार के ग़रीब देशों में सीमित है, उस कठिन काम को अत्यधिक बढ़ा देता है जिसका वे सामना कर रहे हैं। . . . अनपढ़, बेरोज़गार, बिना अच्छे घरों के और स्वास्थ्य, कल्याण तथा स्वच्छता की मूल सेवाओं तक पहुँच के बिना ही लाखों अपना जीवन बिता देंगे। और इन समस्याओं का एक मुख्य तत्त्व अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि है।”

चिन्तित परिवार

लक्ष्य बनाना और राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन कार्यक्रमों को स्थापित करना एक बात है; जनता द्वारा इसे स्वीकार कराना एक अलग बात है। बड़े परिवारों के पक्ष में पारंपरिक धारणाएँ अभी भी अनेक समाजों में मज़बूत हैं। उदाहरण के लिए, जन्मदर कम करने के उसकी सरकार द्वारा प्रोत्साहन के प्रति एक नाइजीरियाई माँ ने यह कहते हुए प्रतिक्रिया दिखाई: “मैं अपने पिता के २६ बच्चों में से आख़िरी हूँ। मुझ से बड़े सभी भाई-बहनों के आठ और १२ के बीच बच्चे हैं। सो, क्या मैं ही कम बच्चे पैदा करूँ?”

फिर भी, ऐसा दृष्टिकोण अब नाइजीरिया में भी उतना आम नहीं है जितना कि एक समय पर हुआ करता था, जहाँ औसत स्त्री छः बच्चों को जन्म देती है। बढ़ती क़ीमतों का सामना करते हुए, लाखों लोग अपने परिवारों का पालन-पोषण करने के लिए तंगहाल हैं। अनेक जनों ने अनुभव द्वारा इस योरूबा कहावत की सत्यता को सीखा है: “Ọmọ bẹẹrẹ, òṣì bẹẹrẹ” (बच्चों की बहुतायत, ग़रीबी की बहुतायत).

अनेक दंपति परिवार नियोजन के लाभों को समझते हैं, फिर भी इसे नहीं करते। परिणाम? संयुक्‍त राष्ट्र शिशु निधि द्वारा प्रकाशित, संसार के बच्चों की स्थिति १९९२ (The State of the World’s Children 1992) में कहा गया कि विकासशील देशों में साल के दौरान क़रीब ३ में से १ गर्भ न सिर्फ़ अनियोजित होगा बल्कि अनचाहा भी।

परिवार नियोजन जीवन बचाता है

आर्थिक समस्याओं के अलावा, परिवार नियोजन पर विचार करने का एक प्रमुख कारण है, माँ और उसके बच्चों का स्वास्थ्य। एक पश्‍चिम अफ्रीकी कहावत है, “गर्भावस्था जुआ है और जन्म देना जीवन-और-मृत्यु का संघर्ष है।” हर साल विकासशील देशों में, पाँच लाख स्त्रियाँ गर्भावस्था या प्रसूति के दौरान मरती हैं, दस लाख बच्चे मातृहीन रह जाते हैं, और साथ ही ५० लाख से ७० लाख तक स्त्रियाँ प्रसूति सम्बन्धी स्वास्थ्य क्षति के कारण विकलांग या अपंग हो जाती हैं।

विकासशील देशों में सभी स्त्रियों को ऐसा ख़तरा नहीं है। जैसा कि संलग्न बक्स दिखाता है, जो स्त्रियाँ बहुत अधिक बच्चे बहुत कम उम्र में, बहुत जल्दी-जल्दी, या बहुत बड़ी उम्र में पैदा करती हैं उनको सबसे ज़्यादा ख़तरा है। यू.एन. स्रोत अनुमान लगाते हैं कि परिवार नियोजन इन में से एक चौथाई से लेकर एक तिहाई तक मौतों से बचा सकता है और लाखों अपंगताओं से बचा सकता है।

लेकिन क्या लाखों जीवन बचाने से सिर्फ़ जनसंख्या की वृद्धि नहीं होगी? आश्‍चर्य की बात है कि अनेक विशेषज्ञ कहते हैं, नहीं। उन्‍नीस सौ इकानवे मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report) कहती है “यह सोचा जा सकता है कि यदि ज़्यादा बच्चे जीवित बचें, तो जनसंख्या समस्या बद्‌तर हो जाएगी। बात इसके विपरीत है। जब माता-पिता ज़्यादा विश्‍वस्त होते हैं कि उनके बच्चे जीवित बचेंगे तो प्रजनन दर कम हो जाता है।”

फिर भी, लाखों स्त्रियाँ, ख़ासकर ग़रीब समाजों में, बारंबार जन्म देती रहती हैं। क्यों? क्योंकि उनका समाज उनसे इसकी अपेक्षा करता है, क्योंकि बहुत बच्चों का होना इस बात की सम्भावना बढ़ाता है कि कुछ तो जीवित बचेंगे, और क्योंकि वे शायद परिवार नियोजन सेवाओं के विषय में न जानती हों या उन तक उनकी पहुँच न हो।

इसके बावजूद भी, अनेक स्त्रियाँ जिनके बड़े परिवार हैं ऐसा ही चाहती हैं। वे हर बच्चे को परमेश्‍वर की ओर से आशीष समझती हैं।

[पेज 6 पर बक्स]

विकासशील देशों में जोखिम से भरी गर्भावस्था

बहुत जल्दी: पंद्रह से १९ वर्षीय स्त्रियों में गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान मृत्यु का जोखिम २० से २४ वर्षीय स्त्रियों से तीन गुना तक ज़्यादा है। जो बच्चे किशोरियों को पैदा होते हैं, उनके मरने की, समय से पहले पैदा होने की, या जन्म के समय बहुत कम वजन के होने की ज़्यादा सम्भावना होती है।

बहुत पास-पास: बच्चों के जन्म के बीच के समय की लम्बाई बच्चे की उत्तरजीविता पर बहुत प्रभाव डालती है। माँ के पिछले बच्चे के जन्म के बाद दो साल से कम समय के दौरान हुए बच्चे को बालपन में मरने की ६६ प्रतिशत ज़्यादा सम्भावना है। यदि ये बच्चे जीवित बचते हैं, तो उनकी वृद्धि के अवरुद्ध होने की ज़्यादा सम्भावना है और ज़्यादा सम्भावना है कि उनके बौद्धिक विकास को क्षति पहुँचेगी। उचित जन्म अन्तराल द्वारा क़रीब ५ में से १ शिशु मृत्यु को रोका जा सकता है। जन्मों के बीच तीन या ज़्यादा साल का अन्तर होने से सबसे कम जोखिम होता है।

बहुत ज़्यादा: चार से ज़्यादा बच्चे पैदा करना गर्भावस्था और प्रसूति के ख़तरों को बढ़ा देता है, ख़ासकर यदि पिछले बच्चों के बीच दो साल से ज़्यादा का अन्तर नहीं था। चार गर्भावस्थाओं के बाद, माताओं को अरक्‍तता से ग्रस्त होने और रक्‍तस्राव के लिए ज़्यादा प्रवृत्त होने की ज़्यादा सम्भावना है, और उनके बच्चों को अपंगताओं के साथ पैदा होने का ज़्यादा जोखिम है।

बहुत देर से: पैंतीस साल से बड़ी उम्र की स्त्रियों को गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान मरने की सम्भावना २० से २४ वर्षीय स्त्रियों से पाँच गुना ज़्यादा है। बड़ी उम्र की स्त्रियों को पैदा हुए बच्चों के मरने की भी ज़्यादा सम्भावना है।

स्रोत: विश्‍व-स्वास्थ्य संगठन, संयुक्‍त राष्ट्र शिशु निधि, और संयुक्‍त राष्ट्र जनसंख्या निधि।

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