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सजग होइए!–1996
g96 1/8 पेज 11-13

ऐन्ड्रू से हमने जो सीखा

जब मैं अपनी गाड़ी में काम पर जा रहा था, पिछले कुछ दिनों में हुई बातों के बारे में सोचकर मैं ख़ुश हो रहा था। मैं अभी-अभी एक बेटे का बाप बना था, जो मेरा दूसरा बच्चा था। आज मेरी पत्नी बॆटी जेन और हमारा नन्हा ऐन्ड्रू, अस्पताल से घर आनेवाले थे।

लेकिन, उनके छोड़े जाने से पहले मेरी पत्नी ने फ़ोन किया। उसकी आवाज़ में चिन्ता का भाव झलक रहा था। मैं तुरन्त वहाँ पहुँचा। “कुछ समस्या है!” उसके पहले शब्द थे। हम एकसाथ बैठे रहे, बालचिकित्सक विशेषज्ञ के साथ डॉक्टर के लौटने का इंतज़ार करते हुए।

उस विशेषज्ञ की पहली टिप्पणी आघात पहुँचानेवाली ख़बर थी। उन्होंने कहा: “हम काफ़ी हद तक निश्‍चित हैं कि आपके बेटे को डाउन सिन्ड्रोम है।” उन्होंने समझाया कि हमारा बेटा संभवतः मन्दबुद्धि होगा। असल में, मैं उनके स्पष्टीकरण को इसके बाद समझ नहीं पाया। आघात से सुन्‍न मेरे मस्तिष्क ने सभी श्रवण आवेगों को काट दिया था। लेकिन दृश्‍य छवियाँ अंकित होती रहीं।

उन्होंने ऐन्ड्रू को उठाया और हमारा ध्यान उस एक बात की ओर आकर्षित किया जिसने उन्हें इस बात के प्रति सचेत किया था कि कुछ समस्या थी। शिशु का सिर लचककर झूल रहा था। माँसपेशीय शक्‍ति की यह कमी नवजात डाउन सिन्ड्रोम शिशुओं की विशेषता थी। जब धीरे-धीरे हमारी समझने की योग्यता वापस आयी, तो बाद में उस विशेषज्ञ के साथ एक बैठक में, हमने उनसे वे अनेक सवाल पूछे जो हमारे मन में भरे हुए थे। वह किस हद तक अशक्‍त होगा? हम किस बात की अपेक्षा कर सकते थे? हम उसे कितना सिखा पाएँगे? वह कितना सीखने में समर्थ होगा? उन्होंने समझाया कि हमारे अनेक सवालों के जवाब, वह जिस वातावरण में जीएगा उस पर साथ ही उसकी स्वाभाविक योग्यताओं पर निर्भर करेंगे।

तब से २० से अधिक सालों में, हमने ऐन्ड्रू को यथोचित प्यार और स्नेह देने की और उसे वह सब कुछ सिखाने की कोशिश की है जो हम सिखाने में समर्थ हैं। लेकिन अतीत को देखते वक़्त, हम अब महसूस करते हैं कि हमने केवल दिया ही नहीं, बल्कि पाया भी है।

ठोस सलाह

इससे पहले कि ऐन्ड्रू की उपस्थिति के साथ हमें समझौता करने का समय मिलता, प्रेमपूर्ण दोस्तों ने हमें सलाह दी जो उन्होंने स्वयं अपनी कठिनाइयों को सहते वक़्त इकट्ठी की थीं। उनका अभिप्राय अच्छा था, लेकिन जैसे अपेक्षा की जाती, हर सलाह विवेकपूर्ण या उपयोगी साबित नहीं हुई। लेकिन, सालों परखने के बाद उनकी सलाह का निचोड़ दो मूल्यवान और विवेकपूर्ण सुझाव थे।

कुछ लोगों ने यह कहने के द्वारा हमें दिलासा देने की कोशिश की कि ऐन्ड्रू वास्तव में मन्दबुद्धि नहीं था। लेकिन फिर एक पुराने दोस्त ने सलाह दी: “इससे इन कार मत कीजिए! जितनी जल्दी आप उसकी सीमाओं को स्वीकार करते हैं, उतनी जल्दी आप अपनी अपेक्षाओं में परिवर्तन करेंगे और वह जैसा है वैसे ही उसके साथ काम करना शुरू करेंगे।”

कष्ट का सामना करते वक़्त हमने जो सबक़ सीखे उनमें यह सबसे महत्त्वपूर्ण साबित हुआ। जब तक सच्चाई स्वीकार न की जाए तब तक मनोव्यथा दूर नहीं हो सकती। जबकि अकसर इनकार सहज होता है, जितनी देर तक इनकार बना रहेगा, उतनी देर तक हम ‘सब पर पड़नेवाली अप्रत्याशित घटनाओं’ का सामना करने और उनकी सीमाओं के अन्दर कार्य करने में देर करते हैं।—सभोपदेशक ९:११, NW.

इन सालों के दौरान, जब हम ऐसे माता-पिता से मिले जिनके बच्चे सामान्य स्कूली पाठ्यक्रम को पूरा नहीं कर सकते थे या उपचारी स्कूल में पढ़ रहे थे, हम अकसर सोचते कि असल में कितने बच्चे अवरुद्ध या अन्यथा अपंग होंगे। क्या उनमें से कुछ “अदृश्‍य रीति से अपंग” हो सकते हैं—वे जिनमें, ऐन्ड्रू के विपरीत, कोई स्पष्ट शारीरिक भिन्‍नता नहीं है और सामान्य बच्चों की तरह नज़र आते हैं? डाउन सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्‍ति आसानी से पहचाने जाते हैं। लेकिन अन्य प्रकार की विकलाँगताओं के कोई स्पष्ट सूचक नहीं होते। कितने माता-पिता ग़ैर मुनासिब आशाओं को थामे रहते हैं और अपने बच्चे की सीमाओं को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हरेक व्यक्‍ति व्याकुल होता है?—कुलुस्सियों ३:२१ से तुलना कीजिए।

दूसरी सलाह जो हमारे अनुभव से सच साबित हुई वह है: आख़िरकार आप निर्धारित करेंगे कि अधिकांश लोग आपके बच्चे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। जिस तरीक़े से आप उसके साथ व्यवहार करेंगे, संभवतः उसी तरीक़े से दूसरे भी उसके साथ व्यवहार करेंगे।

पिछले कुछ दशकों में, शारीरिक और मानसिक रूप से अपंग व्यक्‍तियों के प्रति लोगों की मनोवृत्ति में काफ़ी परिवर्तन आया है। लेकिन इनमें से अनेक परिवर्तनों को स्वयं कुछ विकलाँग व्यक्‍तियों, उनके रिश्‍तेदारों और अन्य सामान्य और पेशेवर समर्थकों द्वारा प्रोत्साहित किया गया है। अनेक माता-पिताओं ने साहस से अपनी सन्तान को किसी संस्था में दाख़िल करने की सलाह को नहीं माना है और, असल में, अपंग बच्चों के साथ व्यवहार के स्थापित विचार को संशोधित किया है। पचास साल पहले डाउन सिन्ड्रोम पर अधिकांश चिकित्सीय किताबें संस्थाओं से इकट्ठे किए गए आँकड़ों पर आधारित थीं। आज अपेक्षाओं को पूरी तरह से बदल दिया गया है, अकसर इसलिए कि माता-पिता और अन्य व्यक्‍तियों ने नई दिशाओं में क़दम बढ़ाए हैं।

ज़्यादा करुणा सीखना

यह आश्‍चर्य की बात है कि हम कितनी आसानी से अपने आप को यह सोचकर धोखा दे सकते हैं कि हम सचमुच करुणामयी हैं। लेकिन जब तक हम व्यक्‍तिगत रूप से अंतर्ग्रस्त नहीं हैं, अनेक समस्याओं की हमारी समझ अकसर ऊपरी हो सकती है।

ऐन्ड्रू ने हमें इस बात को स्वीकार करने पर मजबूर किया है कि प्रतिकूल अवस्थावाले व्यक्‍तियों का अकसर अपनी स्थिति पर नियंत्रण नहीं होता। असल में, इससे हमने इस सवाल का सामना किया है, कमज़ोर, मन्दबुद्धि और वृद्ध लोगों के प्रति वास्तव में मेरी मनोवृत्ति कैसी है?

हम अकसर ऐन्ड्रू के साथ सार्वजनिक स्थानों पर गए। और कुछ अजनबियों ने, हमारा उसको बिना किसी शर्म के अपने परिवार के पूर्ण सदस्य के तौर पर स्वीकार करना देखा है, और हमारे पास अपने गुप्त बोझ को बाँटने के लिए आए हैं। मानो ऐन्ड्रू की उपस्थिति ने उन्हें आश्‍वस्त किया कि हम उनकी समस्याओं के प्रति सहानुभूति दिखा सकते थे।

प्रेम का बल

इन सबसे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण सबक़ जो ऐन्ड्रू ने हमें सिखाया है वह है कि प्रेम केवल दिमाग़ी कार्य नहीं है। मुझे समझाने दीजिए। यहोवा के साक्षियों के तौर पर हमारी उपासना का एक मूल-सिद्धान्त यह है कि सच्ची मसीहियत, जातीय, सामाजिक और राजनीतिक विभाजनों और पूर्वधारणाओं से ऊपर उठती है। इस सिद्धान्त से विश्‍वस्त, हम जानते थे कि ऐन्ड्रू हमारे आध्यात्मिक भाइयों और बहनों द्वारा स्वीकारा जाएगा। उन पेशेवरों की सलाह को नज़रअंदाज़ करते हुए, जिन्होंने कहा कि यह आशा करना मुनासिब नहीं है कि वह उपासना की बैठकों में पूरा समय आदरपूर्वक बैठेगा, उसके जन्म से हमने यह निश्‍चित किया है कि वह सभाओं में और साथ ही घर-घर में हमारी प्रचार गतिविधि में हमारे साथ आए। जैसे अनुमान लगाया गया था, कलीसिया उसके साथ कृपा और करुणा से व्यवहार करती है।

लेकिन ऐसे लोग हैं जो इससे अधिक करते हैं। उन्हें उसके लिए ख़ास लगाव है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऐन्ड्रू को यह बात समझने की ख़ास योग्यता है जो उसके कम दिमाग़ के कारण किसी भी तरह घटी नहीं है। इन व्यक्‍तियों के साथ वह आसानी से अपने स्वाभाविक संकोच पर क़ाबू पाता है, और सभाओं की समाप्ति पर वह सीधे उनके पास जाता है। कई बार, हमने उसकी इस सहज योग्यता को ध्यान से देखा है कि भीड़ में भी, उन लोगों को पहचान लेना जो उसके प्रति ख़ास लगाव महसूस करते हैं।

यही बात उसके प्रेम-प्रदर्शन पर भी लागू होती है। ऐन्ड्रू बच्चों, वृद्ध लोगों और घरेलू पशुओं से बहुत ही कोमलता से पेश आता है। कभी-कभी जब वह ऐसे किसी व्यक्‍ति के शिशु के पास बेहिचक जाता है जिसे हम नहीं जानते, तो हम पास ही रहते हैं, कि अगर अनजाने में ऐन्ड्रू का हाथ उल्टा-सीधा पड़ जाए तो हम बच्चे को बचाने के लिए तैयार हों। फिर भी अकसर हम अपनी आशंकाओं से शर्मिंदा हुए हैं, जब हमने उसे शिशु को दूध-पिलानेवाली माँ की तरह कोमलता से छूते हुए देखा!

जो सबक़ हमने सीखे हैं

क्योंकि डाउन सिन्ड्रोम से पीड़ित सभी बच्चे एक समान दिखते हैं, हमने अपेक्षा की थी कि उन सभी के व्यक्‍तित्व एक समान होंगे। लेकिन, हमें जल्द ही पता चला कि वे एक दूसरे के समान होने से ज़्यादा अपने परिवार के समान होते हैं। हरेक का एक अनोखा व्यक्‍तित्व होता है।

ऐन्ड्रू को, अनेक अन्य बच्चों की तरह, कठिन काम में मज़ा नहीं आता। लेकिन हमने पाया कि अगर हमारे पास उससे बारम्बार एक कार्य स्वयं करवाने का धैर्य और सहनशक्‍ति हो जब तक यह उसकी आदत न बन जाए, तो यह उसे काम नहीं लगता। घर में उसके काम अब निश्‍चित आदत बन चुकी है, और केवल अतिरिक्‍त कामों को ही काम समझा जाता है।

ऐन्ड्रू के जीवन के दौरान जो सबक़ हमने सीखे हैं, उन्हें याद करते वक़्त एक दिलचस्प विरोधाभास उभरता है। असल में वे सभी सिद्धान्त जो हमने ऐन्ड्रू का पालन-पोषण करते वक़्त सीखे, वे हमारे अन्य बच्चों के साथ और सामान्यतः लोगों के साथ हमारे सम्बन्धों पर समान रूप से लागू हुए।

उदाहरण के लिए, हम में से कौन व्यक्‍ति सच्चे प्रेम के प्रति सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दिखाता? अगर आपकी तुलना कभी नकारात्मक रूप से किसी ऐसे व्यक्‍ति के साथ की गयी जिसकी योग्यताएँ या अनुभव आपकी योग्यताओं या अनुभव से बहुत भिन्‍न थीं, तो क्या आपने इसे अनुचित और निराशाजनक नहीं पाया? आख़िर में, क्या हम में से अनेक लोगों के बारे में यह सच नहीं कि जो काम पहले अरुचिकर थे वे आख़िरकार सहनीय, यहाँ तक कि संतोषजनक हो गए, जब हम में उन्हें पूरा करने तक उन्हें करते रहने का अनुशासन था?

हालाँकि हमारी मानवीय अदूरदर्शिता के कारण हमने ऐन्ड्रू पर कई आँसू बहाए हैं, हम ने छोटी-बड़ी अनेक ख़ुशियों को भी बाँटा है। और हम पाते हैं कि जिन क्षेत्रों का ऐन्ड्रू के साथ कोई वास्ता नहीं है, उनमें हम उसके कारण परिपक्व हुए हैं। हम ने सीखा कि जीवन के किसी भी अनुभव में, चाहे वह कितना ही कष्टदायक क्यों न हो, यह क्षमता है कि हमें बदमिज़ाज़ व्यक्‍ति होने के बजाय बेहतर व्यक्‍ति होने के लिए तराशे।

कुछ और बात है जो हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हम उस शानदार घड़ी की प्रत्याशा से बहुत सुख पाते हैं जब ऐन्ड्रू की अशक्‍तता को उलटते हुए देखेंगे। बाइबल प्रतिज्ञा करती है कि जल्द ही परमेश्‍वर के धर्मी नए संसार में, सभी अंधे, बहरे, लंगड़े और गूँगे व्यक्‍ति बढ़िया स्वास्थ्य पुनःप्राप्त करेंगे। (यशायाह ३५:५, ६; मत्ती १५:३०, ३१) उस ख़ुशी की कल्पना कीजिए जो सबको मिलेगी जब वे मन और शरीर की चंगाई को ख़ुद देखेंगे, जब मानवजाति खिलकर अपनी पूर्ण सुंदरता तक पहुँचेगी! (भजन ३७:११, २९)— योग दिया गया।

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अपंगता की अवस्थाएँ

कुछ विशेषज्ञ डाउन सिन्ड्रोम के व्यक्‍तियों को तीन समूहों में विभाजित करते हैं। (१) शिक्षणीय (सीमित): वे जो काफ़ी शैक्षिक कौशल हासिल कर सकते हैं। इस समूह में कुछ ऐसे व्यक्‍ति सम्मिलित हैं जो अभिनेता या यहाँ तक कि प्राध्यापक भी बने हैं। कुछ लोग कम-से-कम निरीक्षण के साथ स्वावलम्बन से जीने में सफल हुए हैं। (२) प्रशिक्षणीय (मध्यम): वे जो कुछेक उपयोगी कौशल सीखने के योग्य होते हैं। जबकि उन्हें कुछ हद तक अपनी देख-रेख ख़ुद करना सिखाया जा सकता है, ज़्यादा निरीक्षण की ज़रूरत होती है। (३) गहन (गंभीर): सबसे कम क्रियाशील समूह, जिन्हें काफ़ी निरीक्षण की ज़रूरत होती है।

ऐन्ड्रू के बारे में क्या? अब हम जानते हैं कि वह “प्रशिक्षणीय” नामक वर्ग में आता है।

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