क्या हम अपने जीनस् द्वारा पूर्वनियत हैं?
“हम सोचा करते थे कि हमारा भाग्य तारों में था। अब हम जानते हैं कि काफ़ी हद तक हमारा भाग्य हमारे जीनस् में है।” इस तरह जेम्स् वॉटसन ने कहा, जिसे रूथ हबर्ड और एलीजा वॉल्ड की किताब जीन की कहानी का भंडाफोड़ करना (अंग्रेज़ी) की शुरूआत में उद्धृत किया गया था। लेकिन, वॉटसन के उद्धरण के तुरन्त बाद, आर. सी. लॆवोन्टन, स्टीवन रोस, और लीऑन जे. केमन को यह कहते हुए उद्धृत किया गया: “हम ऐसे किसी विशिष्ट मानवीय सामाजिक बर्ताव के बारे में नहीं सोच सकते जो हमारे जीनस् में इस तरीक़े से गठित है कि इसे सामाजिक परिस्थितियों द्वारा ढाला नहीं जा सकता।”
इस किताब का आवरण इसकी कुछ विषय-वस्तु का सार देता है और इस कठिन प्रश्न से शुरूआत करता है: “क्या मानव बर्ताव आनुवंशिक है?” दूसरे शब्दों में, क्या मानव बर्ताव पूरी तरह उन जीनस् द्वारा निर्धारित होता है जो उस जीव की वंशागत जैविक विशेषताओं और लक्षणों को संचारित करते हैं? क्या किसी अनैतिक बर्ताव को इस आधार पर स्वीकार्य होना चाहिए कि वह आनुवंशिक है? क्या अपराधियों के साथ उनके आनुवंशिक कोड के शिकारों के तौर पर व्यवहार किया जाना चाहिए, जो किसी आनुवंशिक प्रवृत्ति के कारण कम ज़िम्मेदारी का दावा कर सकते हैं?
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वैज्ञानिकों ने इस शताब्दी में अनेक लाभदायक शोध किए हैं। इस शोध में एक है चित्ताकर्षक डी.एन.ए., हमारी आनुवंशिक रचना की तथाकथित रूप-रेखा। इस आनुवंशिक कोड में जो जानकारी होती है उसने वैज्ञानिकों और सामान्य व्यक्ति दोनों का कुतूहल जगाया है। आनुवंशिकी के क्षेत्र में अनुसंधान ने वास्तव में क्या खोज निकाला है? इस खोज को पूर्वयोजना या पूर्वनियति के आधुनिक सिद्धान्त का समर्थन करने के लिए कैसे प्रयोग किया जाता है?
विश्वासघात और समलिंगकामुकता के बारे में क्या?
दी ऑस्ट्रेलियन (अंग्रेज़ी) में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, कुछ आनुवंशिक अनुसंधान दावा करते हैं कि “विश्वासघात संभवतः हमारे जीनस् में है। . . . ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे धोखेबाज़ हृदय ऐसे ही होने के लिए बनाए गए हैं।” ज़रा सोचिए कि यह मनोवृत्ति, ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए जो स्वच्छन्द जीवन-शैली के लिए कम ज़िम्मेदारी का दावा करना चाहता है, एक बचाव का रास्ता निकालने के द्वारा विवाहों और परिवारों पर कैसा कहर ढा सकती है!
समलिंगकामुकता के बारे में, न्यूज़वीक (अंग्रेज़ी) पत्रिका में यह सुर्ख़ी थी “पैदायशी या पोषित?” उस लेख ने कहा: “विज्ञान और मनोरोगविज्ञान नए अनुसंधान को समझने की कोशिश कर रहे हैं जो सुझाता है कि समलिंगकामुकता शायद आनुवंशिकी का मामला हो, न कि पालन-पोषण का। . . . समलिंगकामियों के समाज में ही, अनेक इस सुझाव का स्वागत करते हैं कि समलिंगकामुकता गुणसूत्रों में शुरू होती है।”
यह लेख फिर डॉ. रिचर्ड पिलर्ड को उद्धृत करता है, जिसने कहा: “लैंगिक अनुस्थापन का एक आनुवंशिक भाग कहता है, ‘यह कोई दोष नहीं है, और इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।’” इस “दोष-नहीं” तर्क को और मज़बूत करते हुए, समलिंगकामुकता पर एक अनुसंधायक, फ्रेडरिक विटम कहता है कि “लोगों की एक प्रवृत्ति है, जब उन्हें बताया जाता है कि समलिंगकामुकता जन्मजात है, तो राहत की एक साँस लेते हैं। यह परिवारों और समलिंगकामियों को दोष-भावना से मुक्त करता है। इसका यह अर्थ भी है कि समाज को समलिंगकामी शिक्षकों जैसी बातों के बारे में चिन्तित होने की ज़रूरत नहीं है।”
कभी-कभी, तथाकथित प्रमाण कि समलिंगकामी मनोवृत्तियाँ जीनस् द्वारा निर्धारित होती हैं, संचार-माध्यम द्वारा एक संभावना और अनिश्चित प्रमाण के बजाय वास्तविक और निश्चित प्रमाण समझकर प्रस्तुत किया जाता है।
न्यू स्टेट्स्मैन एण्ड सोसाइटी (अंग्रेज़ी) पत्रिका इस शोध की रिपोर्ट देने के लिए प्रयोग की गयी कुछ प्रभावशाली शब्दांडबरी पर पानी फेर देती है: “विस्मित पाठक ने शायद असल निश्चित भौतिक प्रमाण की अपूर्णता को या, इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया होगा कि वास्तव में, इस वैज्ञानिक तौर पर भद्दे [शर्मनाक] दावे का कोई आधार नहीं है कि स्वच्छन्दता ‘नर के जीनस् में कूटबद्ध है और नर के मस्तिष्क में अंकित है।’” अपनी किताब कोड की गुत्थी सुलझाना (अंग्रेज़ी) में, डेविड सूज़ूकी और जोसॆफ़ लॆवाइन हाल के आनुवंशिक अनुसंधान पर अपनी चिन्ता के बारे में लिखते हैं: “जबकि यह तर्क करना संभव है कि जीनस् सामान्य अर्थ में बर्ताव को प्रभावित करते हैं, यह दिखाना बिलकुल अलग बात है कि एक अमुक जीन—या जीनस् का जोड़ा, या बीसियों जीनस् भी—वास्तव में किसी प्राणी की अपने वातावरण के प्रति अनुक्रिया के विशिष्ट विवरणों को नियंत्रित करता है। इस मोड़ पर, यह पूछना उचित होगा कि क्या किसी ने, पता लगाने और उसमें अदला-बदली करने के सही आण्विक अर्थ में, डी.एन.ए. के ऐसे किसी भी रेशे को ढूँढ निकाला है जो कथित रूप से विशिष्ट बर्ताव को प्रभावित करता है।”
मद्यव्यसनता और अपराधिता के लिए जीनस्
सालों से मद्यव्यसनता के अध्ययन ने अनेक आनुवंशिकी अनुसंधायकों को रोमांचित किया है। कुछ दावा करते हैं कि अध्ययनों ने दिखाया है कि अमुक जीनस् की मौजूदगी या उनकी ग़ैर-मौजूदगी मद्यव्यसनता के लिए ज़िम्मेदार है। उदाहरण के लिए, द न्यू इंग्लैड जर्नल आफ़ मॆडिसिन (अंग्रेज़ी) ने १९८८ में रिपोर्ट किया कि “पिछले दशक में, तीन अलग-अलग जाँचों ने निश्चित प्रमाण प्रस्तुत किया है कि मद्यव्यसनता एक वंशागत लक्षण है।”
लेकिन, व्यसन के क्षेत्र में कुछ विशेषज्ञ अब इस दृष्टिकोण पर प्रश्न उठा रहे हैं कि मद्यव्यसनता काफ़ी हद तक जैविक तत्वों से प्रभावित होती है। अप्रैल ९, १९९६ के द बास्टन ग्लोब (अंग्रेज़ी) की एक रिपोर्ट ने कहा: “मद्यव्यसनता जीन का कोई अता-पता नहीं है, और कुछ अनुसंधायक स्वीकार करते हैं कि ज़्यादा-से-ज़्यादा वे शायद आनुवंशिकी अतिसंवेदनशीलता का पता लगा सकें जिससे कुछ लोगों को बहुत पीने पर भी नशा नहीं होता—एक लक्षण जो उन्हें मद्यव्यसनता की ओर प्रवृत्त कर सकता है।”
द न्यू यॉर्क टाइम्स् (अंग्रेज़ी) ने मेरीलैंड विश्वविद्यालय में “आनुवंशिकी और अपराधी बर्ताव पर अनुसंधान का अर्थ और महत्व” शीर्षक के सम्मेलन पर रिपोर्ट की। एक अपराधी जीन का विचार आकर्षक रूप से सरल है। अनेक टीकाकार इस प्रचलित मत को समर्थन देने के लिए उत्सुक प्रतीत होते हैं। द न्यू यॉर्क टाइम्स् मैगज़ीन (अंग्रेज़ी) में एक विज्ञान लेखक ने कहा कि वह दुष्टता शायद “उन गुणसूत्रों की कुण्डलियों में गहरी पैठी हुई है जिन्हें हमारे माता-पिता हमारे गर्भ में पड़ने पर हमें देते हैं।” द न्यू यार्क टाइम्स् के एक लेख ने रिपोर्ट किया कि अपराधिता के जीनस् की यह लगातार चर्चा आभास दिलाती है कि अपराध का “एक सर्वसामान्य मूल है—मस्तिष्क की असामान्यता।”
हार्वर्ड का एक मनोवैज्ञानिक, जॆरोम केगन यह पूर्वकथन करता है कि ऐसा समय आएगा जब आनुवंशिकी परीक्षण उन बच्चों की पहचान कराएँगे जिनकी हिंसक प्रवृत्ति है। कुछ लोग सुझाते हैं कि सामाजिक परिवर्तन के बजाय जैविक अदला-बदली से अपराध को नियंत्रित करने की आशा हो सकती है।
बर्ताव के लिए आनुवंशिक आधार की इन अटकलबाज़ियों की रिपोर्टों में प्रयोग की गयी भाषा अकसर अस्पष्ट और अनिश्चित होती है। किताब जीन की कहानी का भंडाफोड़ करना बर्ताव-सम्बन्धी एक आनुवंशिकी-विज्ञानी, लिंकन ईव्स् द्वारा एक अध्ययन के बारे में बताती है, जिसने कहा कि उसने हताशा के लिए एक आनुवंशिक कारण का प्रमाण पाया है। जो स्त्रियाँ हताशा की ओर प्रवृत्त समझी जाती थीं उनका सर्वेक्षण लेने के बाद, ईव्स् ने “सुझाया कि [इन स्त्रियों के] हताशापूर्ण नज़रिए और व्यवहार ने ऐसी विरल कठिनाइयों के उठने की संभावना को और बढ़ा दिया होगा।” “विरल कठिनाइयाँ”? अध्ययन की गयी स्त्रियों “का बलात्कार हुआ था, उन पर प्रहार किया गया था, या उनकी नौकरियों से उन्हें निकाला” गया था। सो क्या हताशा इन दुःखदायी घटनाओं का कारण थी? “यह किस प्रकार का तर्क है?” किताब आगे कहती है। “इन स्त्रियों का बलात्कार हुआ था, इन पर प्रहार किया गया था, या उन्हें अपनी नौकरियों से निकाला गया था, और वे हताश थीं। जितनी ज़्यादा दुःखदायी घटनाओं का उन्होंने अनुभव किया था, उतनी दीर्घकालिक हताशा थी। . . . एक आनुवंशिक कड़ी को ढूँढना शायद सार्थक होता अगर उसने [ईव्स् ने] पता लगाया होता कि हताशा जीवन के किसी अनुभव से सम्बन्धित नहीं थी।”
वही प्रकाशन बताता है कि ये कहानियाँ “आनुवंशिकी [बर्ताव-सम्बन्धी] पर अधिकांश सामयिक रिपोर्टों, दोनों जन-संचार माध्यमों और वैज्ञानिक पत्रिकाओं, की विशिष्टता हैं। इनमें दिलचस्प तथ्य, अनुमान जो समर्थन-प्राप्त नहीं हैं, और हमारे जीवन में जीनस् के महत्त्व की बेबुनियाद अतिशयोक्तियों का मिश्रण होता है। इस अधिकांश लेखन के बारे में एक असाधारण बात होती है इसकी अस्पष्टता।” यह आगे कहता है: “जीनस् को उन स्थितियों के साथ जोड़ना जो वंशानुक्रमण के मेन्डेलीय नमूने पर चलती हैं और कैन्सर या उच्च रक्तचाप जैसी जटिल स्थितियों को समझाने के लिए परिकाल्पनिक आनुवंशिक ‘प्रवृत्तियों’ का प्रयोग करने के बीच बड़ा अंतर है। वैज्ञानिक जल्दबाज़ी में निष्कर्ष निकाल रहे हैं जब वे सुझाते हैं कि आनुवंशिकी अनुसंधान मानव बर्ताव को समझाने के लिए मदद कर सकता है।”
लेकिन, ऊपर कही गयी सब बातों को ध्यान में रखते हुए, अकसर उठनेवाले प्रश्न फिर भी रहते हैं: हम क्यों कभी-कभी अपने जीवन में बदले हुए विशिष्ट बर्ताव को उभरता हुआ पाते हैं? और ऐसी स्थितियों पर हमारा कितना नियंत्रण है? हम अपने जीवन पर कैसे नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं और उसे बनाए रख सकते हैं? अगला लेख इन प्रश्नों के कुछ हद तक उत्तर देने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
[पेज 6 पर बक्स/तसवीर]
जीन चिकित्सा—क्या आशाएँ पूरी हुई हैं?
जीन चिकित्सा—मरीज़ों के जन्मजात आनुवंशिक रोगों का इलाज करने के लिए उन्हें सुधारक जीनस् का इंजेक्शन देने—के बारे में क्या? कुछ वर्ष पहले वैज्ञानिकों की ऊँची अपेक्षाएँ थीं। “क्या जीन चिकित्सा ऐसी टॆक्नॉलॉजी है जिसका समय आ पहुँचा है?” दिसम्बर १६, १९९५ की दी इकॉनॉमिस्ट (अंग्रेज़ी) यह कहते हुए पूछती है: “इसके चिकित्सकों के सार्वजनिक कथनों, और इतने प्रसार से आँकते हुए, आप शायद ऐसा सोचें। लेकिन अमरीका के विख्यात वैज्ञानिक विशेषज्ञों का एक मंडल सहमत नहीं है। स्वास्थ्य के राष्ट्रीय संस्थान (एन.आइ.एच.) के मुख्य, हेरल्ड वार्मस ने चौदह प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों से इस क्षेत्र पर पुनर्विचार करने के लिए कहा। सात महीनों के गंभीर सोच-विचार के बाद उन्होंने पिछले सप्ताह प्रकाशित रिपोर्ट में कहा कि, हालाँकि जीन चिकित्सा आशाजनक है, इसकी उपलब्धियाँ आज तक ‘अतिशयोक्तिपूर्ण’ रही हैं।” एडॆनोसीन डॆमीनेस रोग (ए.डी.ए.) या एक दर्जन में से अन्य किसी ऐसे रोग से पीड़ित ५९७ मरीज़ों को लेकर परीक्षण किए गए, जिन्हें बाहरी जीनस् के जोड़े जाने से उपचार के लिए उचित समझा जाता है। “इस मंडल के अनुसार,” दी इकॉनॉमिस्ट कहती है, “ऐसे परीक्षण में भाग लेने से किसी एक मरीज़ को भी स्पष्ट रूप से लाभ नहीं हुआ है।”
[पेज 7 पर तसवीरें]
आनुवंशिक प्रवृत्ति के बारे में कुछ लोग शायद जो दावा करें, उसके बावजूद लोग अपने व्यवहार करने के तरीक़े का चुनाव कर सकते हैं