वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g97 3/8 पेज 26-28
  • झूठ बोलने के बारे में सत्य

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • झूठ बोलने के बारे में सत्य
  • सजग होइए!–1997
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • पहला झूठ
  • मृत्युकारी प्रभाव
  • एक पक्का अभ्यास
  • आज धार्मिक झूठ
  • सावधान रहने की ज़रूरत
  • सत्य के पक्ष में स्थिति अपनाना
  • झूठ बोलना इतना आसान क्यों है?
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1993
  • सच बोलिए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2018
  • उन्होंने अपना घर गँवा दिया
    परमेश्‍वर का पैगाम—आपके नाम
  • मरे हुए कहाँ हैं?
    बाइबल असल में क्या सिखाती है?
और देखिए
सजग होइए!–1997
g97 3/8 पेज 26-28

झूठ बोलने के बारे में सत्य

“झूठे कहीं के!” क्या आप पर कभी इन चुभीले शब्दों का वार हुआ है? यदि हाँ, तो निःसंदेह आप इनका भावात्मक प्रभाव समझते हैं।

जैसे एक मनपसन्द फूलदान ज़मीन पर गिरने से टूट सकता है, वैसे ही झूठ बोलने से एक अनमोल सम्बन्ध बिगड़ सकता है। सच है कि कुछ समय के बाद, आप शायद गाँठ दूर कर पाएँ, लेकिन सम्बन्ध में शायद फिर कभी पहले जैसी बात न रहे।

“जो जान जाते हैं कि उनसे झूठ बोला गया है,” पुस्तक झूठ बोलना—जन और निजी जीवन में नैतिक चुनाव (अंग्रेज़ी) कहती है, “नए प्रस्तावों के प्रति सतर्क रहते हैं। और वे सामने आए झूठ के प्रकाश में अपने पिछले विश्‍वासों और कार्यों पर फिर से विचार करते हैं।” धोखे का खुलासा होने के बाद, एक सम्बन्ध जो पहले खुले संचार और भरोसे के साथ बढ़ रहा था अब संदेह और अविश्‍वास के द्वारा दब सकता है।

झूठ से जुड़ी हुई सभी नकारात्मक भावनाओं के कारण, हमें पूछना चाहिए, ‘इतना भ्रामक अभ्यास शुरू कैसे हुआ?’

पहला झूठ

जब यहोवा परमेश्‍वर ने प्रथम मानव जोड़े, आदम और हव्वा की सृष्टि की, तब उसने उन्हें एक सुन्दर उद्यानरूपी घर में रखा। उनका घर किसी भी प्रकार के धोखे या छल से मुक्‍त था। वह सचमुच एक परादीस था!

लेकिन, हव्वा की सृष्टि के बाद किसी समय, शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस उसके पास एक प्रलोभक प्रस्ताव लेकर पहुँचा। हव्वा से कहा गया कि यदि वह ‘उस वृक्ष का फल’ खाए, जिसे खाने के लिए परमेश्‍वर ने मना किया था, तो वह मरेगी नहीं जैसा परमेश्‍वर ने कहा था कि वह मर जाएगी। इसके बजाय, वह “भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो” जाएगी। (उत्पत्ति २:१७; ३:१-५) हव्वा ने शैतान की बात पर विश्‍वास कर लिया। उसने वह फल तोड़ा, उसे खाया, और फिर थोड़ा अपने पति को दिया। लेकिन परमेश्‍वर के तुल्य होने के बजाय जिसकी प्रतिज्ञा शैतान ने की थी, आदम और हव्वा अवज्ञाकारी पापी, सड़ाहट के दास बन गए। (२ पतरस २:१९) और वह पहला झूठ बोलने के द्वारा, शैतान “सभी झूठ का पिता” बन गया। (यूहन्‍ना ८:४४, टुडेज़ इंग्लिश वर्शन) कुछ समय बाद, इन तीनों पापियों ने जाना कि जब कोई झूठ बोलता है या झूठ पर विश्‍वास करता है तब किसी को लाभ नहीं होता।

मृत्युकारी प्रभाव

यहोवा चाहता था कि उसकी समस्त सृष्टि—स्वर्ग में और पृथ्वी पर—यह जान ले कि जानबूझकर की गयी अवज्ञा का दण्ड अवश्‍य मिलेगा। उसने विद्रोही आत्मिक प्राणी को अपना बाक़ी जीवन परमेश्‍वर के पवित्र संगठन के बाहर बिताने का दण्ड देने के द्वारा तुरन्त कार्यवाही की। इसके अलावा, यहोवा परमेश्‍वर अंततः यह निश्‍चित करेगा कि शैतान को पूरी तरह नाश कर दिया जाए। यह तब होगा जब परमेश्‍वर द्वारा प्रतिज्ञा किया हुआ “वंश” उसके सिर पर एक घातक प्रहार करेगा।—उत्पत्ति ३:१४, १५; गलतियों ३:१६.

जहाँ तक आदम और हव्वा की बात है, उन्हें अदन की वाटिका से निकाल दिया गया। परमेश्‍वर ने आदम को यह कहते हुए दण्ड सुनाया: “[तू] अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” कुछ समय बाद, आदम और हव्वा मर गए, जैसा परमेश्‍वर ने पूर्वबताया था।—उत्पत्ति ३:१९.

आदम के वंशज होने के नाते, समस्त मानव परिवार “पाप के हाथ बिका हुआ” है। सभी मनुष्यों ने विरासत में अपरिपूर्णता पायी है जो मृत्यु की ओर ले जाती है। (रोमियों ५:१२; ६:२३; ७:१४) उस पहले झूठ के परिणाम कितने भयानक रहे हैं!—रोमियों ८:२२.

एक पक्का अभ्यास

क्योंकि शैतान को और उन स्वर्गदूतों को जो परमेश्‍वर के विरुद्ध विद्रोह में उसके साथ हो लिए अभी तक नाश नहीं किया गया है, हमें चकित नहीं होना चाहिए कि वे मनुष्यों को ‘झूठ बोलने’ के लिए प्रेरित करते हैं। (१ तीमुथियुस ४:१-३, NW) फलस्वरूप, झूठ बोलना मानव समाज में गहरी जड़ पकड़े हुए है। “झूठ बोलना इतना सुस्थापित हो गया है,” लॉस ऐन्जलॆस टाइम्स (अंग्रेज़ी) ने कहा, “कि समाज अब अधिकांशतः उसके प्रति सुन्‍न हो गया है।” आज अनेक लोग राजनीति और राजनीतिज्ञों का झूठ के साथ एक निकट सम्बन्ध देखते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि धार्मिक अगुवे सबसे कुख्यात झूठ बोलनेवालों में से हैं?

यीशु के धार्मिक विरोधियों ने उसकी पार्थिव सेवकाई के दौरान उसके बारे में झूठ फैलाए। (यूहन्‍ना ८:४८, ५४, ५५) उसने यह कहते हुए खुले आम उनकी भर्त्सना की: “तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। . . . जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, बरन झूठ का पिता है।”—यूहन्‍ना ८:४४.

क्या आपको वह झूठ याद है जो तब फैलाया गया था जब यीशु के पुनरुत्थान के बाद उसकी क़ब्र खाली मिली थी? बाइबल कहती है कि मुख्य याजकों ने “सिपाहियों को बहुत चान्दी देकर कहा। कि यह कहना, कि रात को जब हम सो रहे थे, तो उसके चेले आकर उसे चुरा ले गए।” यह झूठ दूर-दूर तक फैलाया गया, और अनेक लोग इसके कारण धोखा खा गए। वे धार्मिक अगुवे कितने दुष्ट थे!—मत्ती २८:११-१५.

आज धार्मिक झूठ

आज धार्मिक अगुवे कौन-सा प्रमुख झूठ बोलते हैं? यह उससे मिलता-जुलता है जो शैतान ने हव्वा से बोला था: “तुम निश्‍चय न मरोगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (उत्पत्ति ३:४) लेकिन हव्वा मर गयी, और वह मिट्टी में मिल गयी, उसी मिट्टी में मिल गयी जिससे वह बनायी गयी थी।

लेकिन, क्या केवल प्रतीत हुआ कि वह मरी थी परन्तु असल में किसी और रूप में जीवित थी? क्या मृत्यु किसी और जीवन के लिए मात्र एक प्रवेश-द्वार है? बाइबल इसका कोई संकेत नहीं देती कि हव्वा का कोई सचेतन भाग जीवित रहा। उसका प्राण जीवित नहीं बचा। परमेश्‍वर की अवज्ञा करने के द्वारा उसने पाप किया था, और बाइबल कहती है: “जो प्राण पाप कर रहा है—वह स्वयं मरेगा।” (यहेजकेल १८:४, NW) अपने पति की तरह, हव्वा एक जीवित प्राण बनायी गयी थी, और एक जीवित प्राण के रूप में उसका जीवन समाप्त हो गया। (उत्पत्ति २:७) मृतकों की अवस्था के बारे में, बाइबल कहती है: “मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” (सभोपदेशक ९:५) लेकिन, सामान्य रूप से गिरजे क्या सिखाते हैं?

प्रायः गिरजे सिखाते हैं कि मनुष्यों में एक अमर प्राण है और कि मृत्यु उसे एक और जीवन का अनुभव करने के लिए मुक्‍त कर देती है—चाहे वह सुख का हो या यातना का। उदाहरण के लिए, द कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया कहती है: “विश्‍वास के एक सत्य के रूप में चर्च स्पष्ट रूप से नरक की अनन्त पीड़ाओं की शिक्षा देता है, जिसका प्रत्यक्ष अपधर्म के बिना कोई खण्डन नहीं कर सकता अथवा प्रश्‍न नहीं उठा सकता।”—खंड ७, पृष्ठ २०९, १९१३ संस्करण।

यह शिक्षा उससे कितनी भिन्‍न है जो बाइबल स्पष्ट रूप से बताती है! बाइबल सिखाती है कि जब एक व्यक्‍ति मरता है, ‘वह मिट्टी में मिल जाता है; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाती हैं।’ (भजन १४६:४) सो, बाइबल के अनुसार, मृतक कोई पीड़ा नहीं सह सकते, क्योंकि उनको किसी भी बात की कोई सचेतना नहीं है। इसलिए, बाइबल आग्रह करती है: “जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्‍ति भर करना, क्योंकि अधोलोक [मानवजाति की सामान्य क़ब्र] में जहां तू जानेवाला है, न काम न युक्‍ति न ज्ञान और न बुद्धि है।”—सभोपदेशक ९:१०.

सावधान रहने की ज़रूरत

जैसे यीशु के समय में अनेक लोग याजकों के झूठ के बहकावे में आ गए, वैसे ही आज के धार्मिक अगुवों की झूठी शिक्षाओं के द्वारा धोखा खाने का ख़तरा है। इन लोगों ने “परमेश्‍वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला” है, और वे मानव प्राण की अमरता और यह विचार कि मनुष्यों के प्राण नरकाग्नि में प्रताड़ित किए जाएँगे, जैसी झूठी शिक्षाओं को बढ़ावा देते हैं।—रोमियों १:२५.

इसके अलावा, आज के धर्म सामान्य रूप से मानवी परंपरा और तत्वज्ञान को बाइबल सत्य के बराबर स्तर पर रखते हैं। (कुलुस्सियों २:८) अतः, नैतिकता के सम्बन्ध में परमेश्‍वर के नियम—जिनमें ईमानदारी और लैंगिक आचरण के नियम सम्मिलित हैं—सापेक्ष समझे जाते हैं, निरपेक्ष नहीं। परिणाम वह है जैसा टाइम (अंग्रेज़ी) पत्रिका में बताया गया है: “झूठ सामाजिक अनिश्‍चितता में पनपते हैं, जब लोग एक दूसरे के प्रति अपने व्यवहार को मार्गदर्शित करनेवाले नियमों को नहीं समझते, अथवा उन पर सहमत नहीं होते।”—यशायाह ५९:१४, १५; यिर्मयाह ९:५ से तुलना कीजिए।

एक ऐसे वातावरण में रहना जहाँ सत्य को महत्त्व नहीं दिया जाता, झूठ न बोलने के बारे में परमेश्‍वर के प्रबोधन को मानना कठिन बना देता है। कौन-सी बात हमें हर समय सत्यवादी होने में मदद दे सकती है?

सत्य के पक्ष में स्थिति अपनाना

अपने रचयिता को महिमा देने की हमारी इच्छा हमें सत्यपूर्ण बोली विकसित करने की सर्वोत्तम प्रेरणा देती है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बाइबल उसे “सत्यवादी ईश्‍वर” कहती है। (भजन ३१:५) सो, यदि अपने रचयिता को प्रसन्‍न करना हमारी इच्छा है, जो “झूठ बोलनेवाली जीभ” से घृणा करता है, तो हम उसका अनुकरण करने के लिए प्रेरित होंगे। (नीतिवचन ६:१७) यह हम कैसे कर सकते हैं?

परमेश्‍वर के वचन का गंभीर अध्ययन हमें वह शक्‍ति दे सकता है जो ‘हर एक को अपने पड़ोसी से सच बोलने’ के लिए चाहिए। (इफिसियों ४:२५) लेकिन, बस यह जानना काफ़ी नहीं है कि परमेश्‍वर हमसे क्या माँग करता है। यदि संसार के अनेक लोगों के जैसे हम भी हमेशा सत्य बोलने के लिए प्रवृत्त नहीं रहे हैं, तो हमें ऐसा करने के लिए कड़ा प्रयास करने की ज़रूरत होगी। हमें प्रेरित पौलुस के उदाहरण का अनुकरण करके अपने साथ सख़्ती बरतने की ज़रूरत हो सकती है। “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं,” पौलुस ने लिखा।—१ कुरिन्थियों ९:२७.

हर समय सत्य बोलने की लड़ाई में एक और मदद है प्रार्थना। यहोवा से सहायता की बिनती करने के द्वारा, हमें “असीम सामर्थ” मिल सकती है। (२ कुरिन्थियों ४:७) सचमुच, “सच्चाई का होंठ” बनाए रखना और “झूठी जीभ” दूर करना एक बड़ा संघर्ष हो सकता है। (नीतिवचन १२:१९, फुटनोट) लेकिन यहोवा की मदद से ऐसा किया जा सकता है।—फिलिप्पियों ४:१३.

हमेशा याद रखिए कि शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस ही यह प्रतीत करवाता है कि झूठ बोलना सामान्य बात है। उसने प्रथम स्त्री, हव्वा से दुर्भावपूर्वक झूठ बोलने के द्वारा उसे बहकाया। लेकिन, हम शैतान के झूठे तरीक़ों के विनाशकारी परिणामों को अच्छी तरह जानते हैं। एक स्वार्थी झूठ और तीन स्वार्थी व्यक्‍तियों—आदम, हव्वा, और शैतान—के कारण मानव परिवार पर अकथित दुःख आया है।

जी हाँ, झूठ बोलने के बारे में सत्य यह है कि यह मृत्युकारी विष के बराबर है। लेकिन, शुक्र है कि हम इसके बारे में कुछ कर सकते हैं। हम झूठ बोलने का अभ्यास रोक सकते हैं और सदा-सर्वदा यहोवा के अनुग्रह का आनन्द ले सकते हैं, जो “अति करुणामय और सत्य” का परमेश्‍वर है।—निर्गमन ३४:६.

[पेज 28 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

झूठ बोलना मृत्युकारी विष के बराबर है

[पेज 26 पर तसवीर]

झूठ बोलने के प्रभाव एक फूलदान के टूटने के समान हैं

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें