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  • अपने हाथ धोइए!
  • पीछे देखने से उन्‍नति
  • हँसिए, और ज़्यादा समय जीवित रहिए?
  • डॉल्फ़िन जीवन-रक्षक
  • “झटपट-भोजन” प्रसाद
  • यात्रा करनेवाले कबूतर
सजग होइए!–1997
g97 3/8 पेज 29

विश्‍व-दर्शन

अपने हाथ धोइए!

न्यू यॉर्क टाइम्स्‌ (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करता है, सूक्ष्मजीव-विज्ञान के अमरीकी संस्थान ने हाल ही में यह निर्धारित करने के लिए एक अनुसंधान प्रायोजित किया कि कितने लोग सार्वजनिक शौचालय का प्रयोग करने के बाद अपने हाथ धोते हैं। साफ़ है, लगभग हर व्यक्‍ति जानता है कि उन्हें अपने हाथ धोने चाहिए। १,००४ बड़ों के फ़ोन पर लिए गए सर्वेक्षण में, ९४ प्रतिशत ने दावा किया कि वे सार्वजनिक शौचालय का प्रयोग करने के बाद हमेशा हाथ धोते हैं। लेकिन क्या यह सच है? खोजकर्ता जो पाँच बड़े अमरीकी शहरों के शौचालयों पर नज़र रखे हुए थे, उन्होंने पाया कि ६,३३३ व्यक्‍तियों में से केवल ६१ प्रतिशत पुरुष और ७४ प्रतिशत स्त्रियाँ शौचालय का प्रयोग करने के बाद अपने हाथ धोते हैं। गन्दे हाथ जल्द रोग फैलाते हैं, और गन्दे हाथों से खाना देनेवाला केवल एक व्यक्‍ति दर्जनों लोगों को बीमार कर सकता है। समस्या का एक अंश है माता-पिता द्वारा निर्देशन की कमी। “आज अकसर मम्मी अपने बच्चों को हाथ धोने के लिए नहीं कहती,” डॉ. गेल कासॆल ने कहा। “स्कूल बच्चों को इस बारे में नहीं बता रहे। हमें यह याद दिलाए जाने की ज़रूरत है कि यह महत्त्वपूर्ण है।”

पीछे देखने से उन्‍नति

ट्रांज़िस्टर से पहले, वैक्यूम ट्यूब हुआ करती थीं। अब खोजकर्ता पीछे की ओर देख रहे हैं। नार्थ कैरोलाइना स्टेट यूनिवर्सिटी का भौतिक-विज्ञानी ग्रिफ़ एल. बिलब्रो कहता है, “हम चालीस के दशक की वैक्यूम ट्यूबों की दुबारा जाँच कर रहे हैं। लेकिन अब हम नए पदार्थों और कम्प्यूटर डिज़ाइन टूल्ज़ का लाभ उठाते हुए तीव्र आवृत्ति पर उनके कार्य के बारे में पहले से बता सकते हैं, जिससे राडार और सॆल्यूलर फ़ोन में उनका इस्तेमाल हो सके।” नई और पुरानी ट्यूबों में एक भिन्‍नता उनका आकार है। नई ट्यूबें छोटी और लगभग माचिस की तीली के सिर के आकार के समूहों में आती हैं। विज्ञान समाचार (अंग्रेज़ी) पत्रिका कहती है, इनका निर्माण “हीरे में इलैक्ट्रॉड रखने और फिर अन्दर से हवा को बाहर निकालने” के द्वारा किया जाता है। “नई हीरे की वैक्यूम ट्यूब और ५० साल पहले के बड़े शीशे के बल्ब के बीच एक बड़ी भिन्‍नता ऊष्मा है। इलॆक्ट्रॉन धारा छोड़ने के लिए पुरानी ट्यूबों को लाल-गर्म चमकना पड़ता था। नई ट्यूब सामान्य तापमान पर विद्युत धारा उत्पन्‍न करती है।” अर्धचालकों और कम्प्यूटर चिप्सों से ज़्यादा टिकाऊ होने के अलावा, नई ट्यूबें उच्च तापमान, वोल्टता, और विकिरण स्तरों पर इनसे कहीं बढ़कर साबित होती हैं।

हँसिए, और ज़्यादा समय जीवित रहिए?

ऐसा काफ़ी समय से माना जाता है कि हँसी अच्छी दवा है। दस साल पहले न्यू यॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी ने यह खोज करने की ठानी कि ऐसा क्यों है। उन्होंने हाल ही में अपनी खोज को प्रकट किया कि हँसी ऐसे शक्‍तिशाली हार्मोन निकालना शुरू करने में मदद देती है जो एक व्यक्‍ति के प्रतिरक्षा-तंत्र को बल प्रदान करते हैं। साइटॆकाइन नामक हार्मोनों का एक समूह है जो श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं के कार्य को बढ़ाता हुआ पाया गया है, ये कोशिकाएँ विषाणु और जीवाणु संक्रमणों से बचाव के लिए और ऐसी कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए ज़रूरी हैं जो आगे चलकर कैंसर कोशिकाएँ बन सकती हैं। “हँसी से जिन तत्वों का स्तर बढ़ता है उनमें [ये केवल] एक हैं,” लंडन का द सन्डे टाइम्स्‌ (अंग्रेज़ी) कहता है। साइटॆकाइन और हँसी के बीच सम्बन्ध के कारण, कुछ खोजकर्ता उनका उल्लेख ख़ुश हार्मोन के तौर पर करते हैं। अतः, यह समाचार-पत्र हँसी को “लम्बे जीवन के लिए एक नुस्ख़ा” कहता है।

डॉल्फ़िन जीवन-रक्षक

लाल सागर में तैरनेवाले एक व्यक्‍ति को डॉल्फ़िनों के एक समूह द्वारा शायद बचाया गया हो, वाणिज्य पत्रिका (अंग्रेज़ी) ने रिपोर्ट किया। ब्रिटॆन का मार्क रिचर्डसन, मिस्र के तट के पास तैर रहा था जब उस पर एक शार्क मछली ने हमला किया। उसकी बगल और बाँह पर शार्क के काटने के बाद, “शार्क मछली को डराकर भगाने के लिए अपने मीन-पंख और पूँछ फड़फड़ाती हुईं” बॉटल-नोज़ डॉल्फ़िनों ने उसे घेर लिया। डॉल्फ़िनें “श्री. रिचर्डसन को घेरे रहीं जब तक कि उसके मित्र उस तक न पहुँचे।” पत्रिका के अनुसार, “डॉल्फ़िनों द्वारा ऐसा व्यवहार तब सामान्य होता है जब माता-डॉल्फ़िन अपने बच्चों की रक्षा कर रही होती हैं।”

“झटपट-भोजन” प्रसाद

गिरजे की परमप्रसाद धर्मसभाओं में प्रयोग किए जाने के लिए, एक अमरीकी व्यापारी, जिम जॉनसन एक बार के प्रयोग के लिए, पहले से पैक परमप्रसाद का उत्पादन कर रहा है, आज की मसीहियत (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करती है। बहुत छोटे प्लास्टिक के बैंजनी कपनुमा पैकेटों में, एक घूँट द्राक्षरस या दाखमधु होता है। उसमें एक अख़मीरी छोटी रोटी भी दो ढक्कनों के बीच सीलबन्द होती है। इन ढक्कनों पर खोलने के लिए पट्टी लगी होती है। जॉनसन के अनुसार, इस उत्पादन के फ़ायदे हैं कि प्रसाद जल्द तैयार होता है और ज़्यादा साफ़-सफ़ाई नहीं करनी पड़ती, किफ़ायती और साफ़-सुथरा भी है। ४,००० से अधिक गिरजों ने इस नए उत्पादन का प्रयोग करना शुरू भी कर दिया है, हालाँकि कुछ शिकायतें की गयी हैं कि परमप्रसाद को “थोक-बाज़ार” के तौर पर लिया गया है। जॉनसन जवाब में कहता है: “यीशु ने जन-समुदायों को भोजन देते वक़्त पहला झटपट-भोजन दिया।”

यात्रा करनेवाले कबूतर

लंडन में कबूतरों को लम्बे अरसे से सुरंग-रेल में पृथ्वी के यात्रियों के साथ मुफ़्त यात्रा करते हुए देखा गया है, न्यू साइन्टिस्ट पत्रिका रिपोर्ट करती है। इसके अलावा, कुछ लोग दावा करते हैं कि पंछी यह भी जानते हैं कि उन्हें किस स्टेशन पर उतरना चाहिए। इस पत्रिका द्वारा निमंत्रण मिलने पर, अनेक पाठकों ने इन पंखोंवाले यात्रियों के साथ उनके अपने अनुभवों के बारे में बताने के लिए लिखा। उदाहरण के लिए, एक व्यक्‍ति ने लिखा: “१९७४-७६ के बीच, मैं नियमित रूप से एक हल्के लाल रंग के कबूतर को देखता था जो पैडिंगटन पर सुरंग-रेल में चढ़ता था और अगले स्टेशन पर उतर जाता था।” एक और व्यक्‍ति ने ऐसा ही दृश्‍य १९६५ में देखा था। ऐसा लगता है कि कुछ ३० सालों से कबूतर लंडन की परिवहन व्यवस्था का किराया नहीं दे रहे हैं!

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