बाइबल का दृष्टिकोण
क्या मांस खाना ग़लत है?
“जितने बीजवाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं।”—उत्पत्ति १:२९.
अठारह-वर्षीय सुजाता, जो एक शाकाहारी हिंदू परिवार से है, परमेश्वर द्वारा पहले मनुष्य, आदम को दिए गए भोजन-संबंधी निर्देशन से तुरंत सहमत हो गई। लेकिन उसने पलटकर पूछा: “तो फिर लोग भोजन के लिए जानवरों को क्यों मारते हैं, जबकि खाने के लिए दूसरी कई चीज़ें हैं?”
संसार भर में कई लोग ऐसा ही सोचते हैं। पूर्वी देशों में करोड़ों लोगों का खानपान मांस-रहित है। साथ ही, पश्चिम में शाकाहारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। सिर्फ़ अमरीका में ही, लगभग १.२४ करोड़ लोग शाकाहारी होने का दावा करते हैं, जो कि एक दशक पहले की संख्या से क़रीब ३० लाख ज़्यादा है।
इतने सारे लोग मांस-रहित खानपान क्यों पसंद करते हैं? पशु-जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण क्या है? क्या मांस खाना जीवन के प्रति अनादर प्रदर्शित करता है? उत्पत्ति १:२९ में जो कहा गया है, उसको मद्देनज़र रखते हुए क्या मांस खाना ग़लत है? आइए, पहले ग़ौर करें कि कुछ लोग मांस क्यों नहीं खाते।
कुछ लोग माँस क्यों नहीं खाते?
सुजाता के लिए उसके खानपान का संबंध उसकी धार्मिक मान्यताओं से है। “मैं पुनर्जन्म के सिद्धांत में विश्वास करते हुए, एक हिंदू परिवार में बड़ी हुई,” वह बताती है। “चूँकि एक मनुष्य का प्राण एक जानवर के रूप में लौट सकता है, मैं जानवरों को अपने बराबर का मानती हूँ। इसलिए खाने के लिए उन्हें मारना ग़लत लगता है।” अन्य धर्म भी शाकाहारी खानपान के पक्षधर हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अलावा दूसरे कारण भी लोगों के खाने-पीने की पसंद को प्रभावित करते हैं। मिसाल के तौर पर, डॉ. नील बार्नर्ड साफ़ कहते हैं: “आदत या अनभिज्ञता के अलावा, मांस खाने का दूसरा कोई कारण नहीं है।” मांस खाने से होनेवाली दिल की बीमारी और कैंसर जैसे स्वास्थ्य-ख़तरों के बारे में उनके विचार, उनकी सुस्पष्ट राय का आधार हैं।a
कहा जाता है कि अमरीका में, शाकाहारियों का सबसे तेज़ी से बढ़ता वर्ग किशोर-किशोरियों का है। और इसका एक कारण है जानवरों के लिए परवाह। ट्रेसी राइमन, जो ‘पीपल फॉर दी ऎथिकल ट्रीटमॆंट ऑफ ऎनिमल्स’ की ओर से हैं, का कहना है कि “बच्चे जानवरों से प्यार करते हैं। जब वे जानने लगते हैं कि भोजन के लिए मारे जाने से पहले जानवरों के साथ क्या होता है, तो उनकी सहानुभूति बढ़ जाती है।”
पर्यावरण के प्रति जागरूक कई व्यक्ति अपने खानपान और खाए जानेवाले जानवरों को पालने में प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ रहे भारी दबाव के बीच संबंध को भी समझते हैं। उदाहरण के लिए, मात्र एक किलो गोमांस के लिए लगभग ३,३०० लीटर पानी लगता है और एक किलो मुर्गे के मांस के लिए ३,१०० लीटर। इसलिए, यह कुछ लोगों के लिए मांस न खाने का कारण बन जाता है।
आपके बारे में क्या? क्या आपको मांस नहीं खाना चाहिए? इस सवाल का जवाब देने से पहले, आइए एक दूसरे नज़रिए से देखें। जैसा कि भजन ५०:१०, ११ में लिखा है, सब वस्तुओं का बनानेवाला, यहोवा परमेश्वर कहता है: “वन के सारे जीवजन्तु और हजारों पहाड़ों के जानवर मेरे ही हैं। पहाड़ों के सब पक्षियों को मैं जानता हूं, और मैदान पर चलने फिरनेवाले जानवर मेरे ही हैं।” चूँकि सभी जानवर परमेश्वर के हैं, इसलिए यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि पशु-जीवन और भोजन के लिए मनुष्य द्वारा उसके उपयोग के बारे में सृष्टिकर्ता क्या सोचता है।
क्या जानवरों को मारना ग़लत है?
सुजाता की तरह, जो लोग जानवरों को मनुष्य के बराबर समझते हैं, वे किसी भी मक़सद से जानवर को मारना एकदम ग़लत समझते हैं—खाने के लिए उन्हें मारना तो और भी ग़लत। फिर भी, शास्त्र बताता है कि परमेश्वर पशु-जीवन और मनुष्य-जीवन में फ़र्क समझता है और अनेक कारणों से जानवरों को मारने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए, इस्राएल में किसी मनुष्य-जीवन या पशुधन के लिए ख़तरा बन जाने पर जानवर को मारा जा सकता था।—निर्गमन २१:२८, २९; १ शमूएल १७:३४-३६.
प्राचीन समय से, परमेश्वर ने उपासना में जानवरों की बलि चढ़ाने की अनुमति दी थी। (उत्पत्ति ४:२-५; ८:२०, २१) उसने इस्राएलियों को मिस्र से उनके निकलने की स्मृति में हर साल फसह का पर्व मनाने का निर्देश दिया, जिसमें मेमने या बकरे की बलि चढ़ाना और उसका मांस खाना शामिल था। (निर्गमन १२:३-९) और मूसा के नियम में, दूसरे अवसरों पर भी जानवरों की बलि दी जाती थी।
पहली बार बाइबल पढ़ते समय, एक ७०-वर्षीय हिंदू महिला को जानवरों के बलिदान का विचार अप्रिय लगा। लेकिन जैसे-जैसे शास्त्र के बारे में उसका ज्ञान बढ़ा, वह देख सकी कि परमेश्वर ने एक उद्देश्य से बलिदानों की आज्ञा दी थी। उन्होंने आगे यीशु मसीह के बलिदान की ओर इशारा किया, जिसे पापों के क्षमा किए जाने की विधिसम्मत आवश्यकता पूरी करनी थी। (इब्रानियों ८:३-५; १०:१-१०; १ यूहन्ना २:१, २) बहुत से मौक़ों पर याजकों और कभी-कभी उपासकों के लिए भोजन के रूप में भी बलिदानों का इस्तेमाल होता था। (लैव्यव्यवस्था ७:११-२१; १९:५-८) परमेश्वर ने, जो प्रत्येक जीवित प्राणी का मालिक है, एक उद्देश्य से उचित ही ऐसा प्रबंध स्थापित किया। बेशक, यीशु की मृत्यु के बाद, उपासना में जानवरों के बलिदान की ज़रूरत नहीं रही।—कुलुस्सियों २:१३-१७; इब्रानियों १०:१-१२.
भोजन के लिए जानवरों का इस्तेमाल करना
भोजन के लिए जानवरों को मारने के बारे में क्या? यह सच है कि शुरू-शुरू में मनुष्य का खानपान शाकाहारी था। लेकिन यहोवा ने बाद में उसमें जानवर का मांस शामिल करने की अनुमति दी। कुछ ४,००० साल पहले—धर्मी नूह के दिनों में—यहोवा एक विश्वव्यापी जल-प्रलय लाया और पृथ्वी पर उस समय मौजूद दुष्टता का अंत किया। नूह, उसका परिवार और जो जीव-जंतु वह जहाज़ में ले गया, उस जल-प्रलय से बच निकले। जब वे जहाज़ से निकले, तब यहोवा ने पहली बार कहा: “सब चलनेवाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसा तुम को हरे हरे छोटे पेड़ दिए थे, वैसा ही अब सब कुछ देता हूं।” (उत्पत्ति ९:३) लेकिन साथ ही परमेश्वर ने यह नियम दिया: “जो कोई मनुष्य का लोहू बहाएगा उसका लोहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप के अनुसार बनाया है।” (उत्पत्ति ९:६) तो यह बात साफ़ है कि परमेश्वर ने जानवरों को मनुष्यों की बराबरी का दर्जा नहीं दिया।
दरअसल, जानवरों के बारे में सुजाता की धारणा, पुनर्जन्म के सिद्धांत में उसके विश्वास पर आधारित थी। इस मामले में बाइबल समझाती है कि हालाँकि मनुष्य और जानवर दोनों प्राणी हैं, लेकिन प्राण अमर नहीं है। (उत्पत्ति २:७; यहेजकेल १८:४, २०; प्रेरितों ३:२३; प्रकाशितवाक्य १६:३) प्राणी होने के नाते, मनुष्य और जानवर दोनों मरते हैं और उनका अस्तित्त्व ख़त्म हो जाता है। (सभोपदेशक ३:१९, २०) लेकिन मनुष्यों को परमेश्वर के नए संसार में पुनरुत्थान की एक शानदार आशा है।b (लूका २३:४३; प्रेरितों २४:१५) यह बात भी प्रदर्शित करती है कि जानवर मनुष्य के बराबर नहीं हैं।
“फिर भी, खानपान क्यों बदला गया?” सुजाता ने जानना चाहा। ज़ाहिर है जल-प्रलय के कारण पृथ्वी की जलवायु में भारी बदलाव आए। क्या यहोवा ने मनुष्य के भोजन में मांस को इसलिए शामिल किया क्योंकि उसने भविष्य की उन पीढ़ियों की ज़रूरतों को पहले ही देखा, जो ऐसे इलाक़ों में रहतीं जहाँ हरियाली कम होती, इस विषय में बाइबल कुछ नहीं कहती। लेकिन सुजाता ने यह स्वीकार किया कि सब जीवित वस्तुओं के मालिक को बदलाव लाने का पूरा हक़ था।
पशु-जीवन के लिए आदर दिखाना
फिर भी, सुजाता ने सोचा, ‘क्या हमें पशु-जीवन के लिए ज़रा भी आदर दिखाने की ज़रूरत नहीं?’ जी हाँ, ज़रूरत है। और सभी वस्तुओं के सृष्टिकर्ता ने हमें बताया है कि हम यह कैसे कर सकते हैं। उत्पत्ति ९:४ में उसका आदेश है: “मांस को प्राण समेत अर्थात् लोहू समेत तुम न खाना।” लोहू खाने पर पाबंदी क्यों? “क्योंकि शरीर का प्राण लोहू में रहता है,” बाइबल कहती है। (लैव्यव्यवस्था १७:१०, ११) यहोवा ने माँग की है: ‘मारे गए जानवर के लोहू को जल की नाईं भूमि पर उंडेल देना।’—व्यवस्थाविवरण १२:१६, २४.
इसका यह मतलब नहीं कि मांस खाने की व्यवस्था को शिकार करने के मज़े के लिए या अपनी बहादुरी दिखाने के लिए जानवरों का खून बहाने की छूट समझा जाए। लगता है निम्रोद ने ऐसा ही किया। बाइबल उसे “यहोवा के विरोध में एक पराक्रमी शिकारी” कहती है। (उत्पत्ति १०:९, NW) आज भी बड़ी आसानी से, कुछ लोगों में शिकार खेलने और जानवरों को मारने का रोमांच पैदा हो सकता है। लेकिन ऐसी भावना का पशु-जीवन के लिए अनादर के साथ गहरा संबंध है, और परमेश्वर इसकी अनुमति नहीं देता।c
जानवरों के प्रति करुणामय होना
कुछ शाकाहारी लोगों ने आज आधुनिक मांस उद्योग द्वारा जानवरों के साथ किए जानेवाले सलूक पर भी सच्ची चिंता व्यक्त की है। “यह धंधा जानवरों की मूल प्रवृत्तियों में बहुत कम रुचि रखता है,” द वॆजिटेरियन हैंडबुक टिप्पणी करती है। “बेहद घुटे-घुटे और अप्राकृतिक वातावरण में पाले गए,” यह किताब कहती है, “आधुनिक-समय के जानवरों का पहले से कहीं ज़्यादा बुरी तरह शोषण किया जाता है।”
जबकि भोजन के लिए जानवरों का इस्तेमाल परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध नहीं है, लेकिन उनके साथ क्रूर व्यवहार परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध ज़रूर है। “धर्मी अपने पशु के भी प्राण की सुधि रखता है,” बाइबल नीतिवचन १२:१० में कहती है। और मूसा के नियम ने पालतू जानवरों की उचित देखभाल की आज्ञा दी थी।—निर्गमन २३:४, ५; व्यवस्थाविवरण २२:१०; २५:४.
क्या मसीही को शाकाहारी होना चाहिए?
जैसा कि हमने शुरू में देखा, शाकाहारी बनने—या बने रहने—का सवाल पूरी तरह से व्यक्तिगत निर्णय का मामला है। स्वास्थ्य, आर्थिक कारण, पारिस्थितिकी, या जानवरों के लिए करुणा की वज़ह से शायद एक व्यक्ति शाकाहारी खानपान अपनाने का चुनाव करे। लेकिन उसे अपनी पसंद को खानपान के एक तरीक़े के रूप में लेना चाहिए। उसे मांस खानेवालों की आलोचना नहीं करनी चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे एक मांसाहारी को एक शाकाहारी की निंदा नहीं करनी चाहिए। मांस खाना या न खाना एक व्यक्ति को बेहतर नहीं बना देता। (रोमियों १४:१-१७) न ही एक व्यक्ति का खानपान उसके जीवन में सबसे प्रमुख विषय बनना चाहिए। “मनुष्य,” यीशु ने कहा, “केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।”—मत्ती ४:४.
जहाँ तक जानवरों के साथ क्रूरता और पृथ्वी के संसाधनों के दुरुपयोग का सवाल है, यहोवा ने इस भ्रष्ट और लालची व्यवस्था का अंत करने और इसके स्थान पर अपने नए संसार को स्थापित करने का वादा किया है। (भजन ३७:१०, ११; मत्ती ६:९, १०; २ पतरस ३:१३) उस नए संसार में, मनुष्य और जानवर हमेशा के लिए आपस में शांति से रहेंगे और यहोवा ‘सब प्राणियों को तृप्त करेगा।’—भजन १४५:१६; यशायाह ६५:२५.
[फुटनोट]
a जुलाई ८, १९९७ की सजग होइए! पृष्ठ ३-१३ देखिए।
b वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित मई १५ १९९७ की प्रहरीदुर्ग के पृष्ठ ३-८ देखिए।
c मई १५, १९९० की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ ३०-१ देखिए।
[पेज 18 पर चित्र का श्रेय]
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