इंका जाति ने अपना सुनहरा साम्राज्य कैसे खो दिया
पेरू में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
सूर्योदय। सुबह-सुबह आकाश में प्रकाश की किरणों के बिखरने से, ऐन्डीज़ पर्वत की बर्फीली चोटियों पर हलका गुलाबी रंग छाया हुआ था। जल्दी उठनेवाले आदिवासी धूप सेंक रहे थे, ४,३०० मीटर की ऊँचाई पर सर्द रात की ठिठुरन दूर कर रहे थे। धीरे-धीरे, सूरज की किरणों ने नीचे पहुँचकर सूर्य मंदिर को समेट लिया। यह इंका साम्राज्य की राजधानी, कूसको (अर्थात् “विश्व की नाभि”) का केंद्र है। सुनहरी दीवारों पर सूरज की किरणें झिलमिला रही थीं। लामा, विकून्या और कॉनडर, ठोस सोने के बने जीव-जंतु मंदिर के सामने इंकाa के बाग़ में चमचमा रहे थे। राहगीर अपने देवता, सूर्य की उपासना में हवा में चुंबन उड़ा रहे थे। वे जीवित होने और सूर्य की आशीष पाने के लिए कितने आभारी थे! वे मानते थे कि सूर्य ही उनका भरण-पोषण करता है।
चौदहवीं और सोलहवीं शताब्दियों के बीच, दक्षिण अमरीका के पश्चिमी तट पर एक महान सुनहरे साम्राज्य का दबदबा था। कुशाग्र-बुद्धि वास्तुकारों और शिल्पियों के राज में, इंका जाति सामाजिक रूप से प्रगति करने के लिए संगठित थी। शानदार इंका साम्राज्य ने अपनी सीमाएँ लगभग ५,००० किलोमीटर तक बढ़ा ली थीं, वर्तमान-दिन कोलम्बिया के दक्षिणी भाग से लेकर अर्जेंटीना तक। असल में, “इंका लोग सोचते थे कि लगभग पूरा संसार उनके नियंत्रण में है।” (नैशनल जीओग्राफ़िक) उनका मानना था कि उनके साम्राज्य की सीमाओं के बाहर, ऐसा कुछ नहीं है जो जीतने के योग्य हो। लेकिन, बाक़ी के संसार को पता भी नहीं था कि यह साम्राज्य अस्तित्त्व में है।
इंका लोग कौन थे? उनका उद्गम क्या था?
इंका जाति से पहले कौन आया?
पुरातत्त्वीय खोजें दिखाती हैं कि इंका लोग महाद्वीप के मूल निवासी नहीं थे। उनके आने से पहले के कई सौ साल से लेकर कई हज़ार साल तक दूसरी सुविकसित संस्कृतियाँ थीं। पुरातत्त्वज्ञों ने इन्हें लाम्बायॆक, चावीन, मोचीका, चीमू, और टीआवानाको संस्कृति में वर्गीकृत किया है।
वे आरंभिक समूह विभिन्न पशुओं की उपासना करते थे—जागुआर, प्यूमा और मछलियों की भी। पहाड़ी देवताओं के प्रति श्रद्धा उनके बीच व्याप्त थी। उनके मिट्टी के बरतनों ने दिखाया कि कुछ जातियाँ लिंग उपासना का अभ्यास करती थीं। टिटिकाका झील के निकट, ऊपर पेरू और बोलिविया की सीमा पर, एक जाति ने एक मंदिर बनाया जिसमें लिंग प्रतीक रखे थे, जिनकी पूजा उर्वरता रस्मों में की जाती थी यह निश्चित करने के लिए पाचा-मामा, अर्थात् “धरती माँ” अच्छी फ़सल दे।
कथा और वास्तविकता
लगभग वर्ष १२०० में इंका लोग प्रकट हुए। इंका राजकुमारी और स्पेनी सामंत और ज़मींदार के पुत्र इतिहासकार गारथीलासो दे ला बेगा के अनुसार, यह कथा थी कि मूल इंका, माँको कापाक को उसके पिता, सूर्य-देवता ने उसकी बहन/पत्नी के साथ नीचे टिटिकाका झील पर भेजा कि सभी लोगों को सूर्य का उपासक बनाएँ। आज तक यह कहानी कुछ स्कूलों में बच्चों को सुनायी जाती है।
लेकिन, कथाओं को एक किनारे करें, इंका लोग संभवतः टिटिकाका झील की एक जाति, टीआवानाको से आए थे। कुछ समय बाद, बढ़ते साम्राज्य ने पराजित जातियों की अनेक सुव्यवस्थित रचनाओं पर कब्ज़ा कर लिया, और पहले से बनी हुई नहरों और सीढ़ीदार खेतों को विस्तृत किया और सुधारा। इंका लोग विशाल इमारतें बनाने में निपुण थे। इस बारे में कई विचार हैं कि कैसे उनके वास्तुकार साक्सावामान के क़िले और मंदिर को बनाने में समर्थ हुए, जो ऊँचे पठार से कूसको नगर पर छाया हुआ है। बड़े-बड़े १०० टन के एकाश्मक स्तंभों को एकसाथ जोड़ा गया है। उन्हें जोड़ने के लिए किसी तरह का गारा इस्तेमाल नहीं किया गया है। प्राचीन नगर कूसको की दीवारों में बिठायी गयी शिलाओं पर भूकंपों का शायद ही कोई असर हुआ है।
सूर्य का चमचमाता मंदिर
राजसी नगर कूसको में, इंका लोगों ने चमकदार पत्थरों से बने मंदिर में सूर्य की उपासना के लिए पुरोहितों का संगठन बनाया। अंदर की दीवारों पर शुद्ध सोना और चाँदी चढ़ा हुआ था। पुरोहितों के साथ-साथ, विशेष मठ स्थापित किये गये, जैसे लीमा से थोड़ी-सी दूरी पर, पाचाकामाक के सूर्य मंदिर परिसर में पुनःनिर्मित मठ। अति सुंदर कुँवारियों को आठ साल की छोटी उम्र से ‘सूर्य की कुँवारियाँ’ बनने का प्रशिक्षण दिया जाता था। पुरातत्त्वीय प्रमाण संकेत देता है कि इंका लोग मानव बलि भी चढ़ाया करते थे। वे आपुस या पहाड़ी देवताओं को बच्चों की बलि चढ़ाते थे। कुछ बच्चों के शरीर ऐन्डीज़ की चोटियों पर जमे हुए पाये गये हैं।
जबकि इंका लोगों और आरंभिक जातियों को लेखन का कोई ज्ञान नहीं था, फिर भी उन्होंने कीपू नामक वस्तु का प्रयोग करके रिकॉर्ड रखने की एक प्रणाली विकसित की थी। यह “एक यंत्र था जो एक मुख्य रस्सी और उससे जुड़ी और गाँठ बँधी छोटी-छोटी रंग-बिरंगी रस्सियों से बना होता था और इसे प्राचीन पेरूवासी प्रयोग करते थे।” वे इसे सामान-सूची और रिकार्ड रखनेवालों के लिए स्मरण सहायक के रूप में प्रयोग करते थे।
साम्राज्य को संयुक्त कैसे रखा गया?
सख़्त कानूनों और योजनाबद्ध नीतियों ने एक केंद्रीय सरकार को दृढ़ता से स्थापित किया। एक मूल माँग थी कि सभी जन इंका लोगों की भाषा, कचूआ सीखें। पुस्तक ऎल कॆचूआ आल आलकानसॆ दॆ तोदोस (कचूआ सभी की पहुँच के अंदर) कहती है, “कचूआ दक्षिण अमरीका की सबसे विस्तृत, सबसे विविध, साथ ही सबसे सुंदर बोली” मानी जाती है। पेरू के पहाड़ों में क़रीब ५० लाख लोग और इस साम्राज्य का भाग रहे पाँच देशों में अन्य लाखों लोग आज भी इसे बोलते हैं। टिटिकाका झील के दक्षिण-पूर्व में एक समूह आज भी आइमरा बोली बोलता है, जो इंका-पूर्व समय की कचूआ से उद्भूत बोली है।
कचूआ के प्रयोग का लगभग १०० पराजित जातियों पर एकत्व का प्रभाव हुआ और यह गाँव के कूराका (मुखिया) के लिए सहायक था, जो हर समूह को नियंत्रित करता था। हर परिवार को खेती के लिए ज़मीन दी जाती थी। विजय के बाद, इंका स्थानीय जातीय नृत्यों और त्योहारों को जारी रखने की अनुमति देता था और सभी पराजित लोगों को संतुष्ट रखने के लिए रंगमंच प्रस्तुतियों और खेलों का प्रबंध करता था।
मीटा कर
पूरे साम्राज्य में कोई मुद्रा इकाई नहीं थी, जिसका अर्थ था कि अपने आपमें सोने का लोगों के लिए कोई महत्त्व नहीं था। उसका आकर्षण यह था कि वह सूर्य को प्रतिबिंबित करता था। मीटा (कचूआ, “बारी”) एकमात्र कर था जो लागू किया गया था। यह एक माँग थी कि प्रजा इंकाओं की अनेक सड़कों और निर्माण परियोजनाओं पर बारी-बारी से बेगारी करे। इस प्रकार कानूनन हज़ारों आदिवासी मज़दूरों को काम पर लगाया जाता था।
मीटा मज़दूरों से काम लेते हुए, इंका कुशल निर्माण करनेवालों ने २४,००० किलोमीटर से भी लंबा सड़कों का जाल बना दिया था! कूसको से शुरू करके, इंकाओं ने साम्राज्य के दूरतम स्थानों को जोड़ने के लिए चट्टानी सड़कों की एक प्रणाली बनायी। प्रशिक्षित संदेशवाहक धावक, जिन्हें चास्की कहा जाता था, इनका प्रयोग करते थे। वे क़रीब एक से तीन किलोमीटर की दूरी पर झोपड़ियों में तैनात रहते थे। जैसे ही एक चास्की कोई संदेश लेकर पहुँचता, अगला चास्की रिले धावक की तरह उसके साथ-साथ दौड़ने लगता। इस प्रणाली का प्रयोग करके, वे एक दिन में २४० किलोमीटर की दूरी तय कर लेते थे। कुछ ही समय में सत्तारूढ़ इंका को अपने पूरे साम्राज्य से समाचार प्राप्त हो जाता था।
सड़कों के किनारे, इंका ने बड़े-बड़े भंडार बनवाये। इन्हें इंका की सेना के प्रयोग के लिए भोजन सामग्री और कपड़ों से भरकर रखा जाता था, जब वह आक्रमण करने के लिए यात्रा पर होती थी। संभव हो तो इंका युद्ध नहीं चाहता था। रणनीति चलाकर, वह जातियों के पास दूत भेजता था और उन्हें उसके शासन के अधीन आने का निमंत्रण देता था, शर्त यह होती थी कि वे सूर्य की उपासना स्वीकार करें। यदि वे मान जाते थे, तो उन्हें अपनी ही जाति में रहने की अनुमति दी जाती थी, और प्रशिक्षित इंका उपदेशक उनका निर्देशन करते थे। यदि वे इनकार कर देते थे, तो वे कठोर आक्रमण का शिकार बनते थे। शत्रुओं की लाशों की खोपड़ियों को चीचा पीने के लिए कटोरों के रूप में प्रयोग किया जाता था। चीचा एक नशीला पेय था जो मकई से बनाया जाता था।
नौवें इंका, पाचाकूटी (१४३८ से आगे), उसके पुत्र टोपा इंका यूपान्की, और विजेता-राजनेता वाइना कापाक के अधीन साम्राज्य ने तेज़ी से अपनी सीमाओं का विस्तार किया और उत्तर से दक्षिण तक अपनी अधिकतम सीमा तक पहुँच गया। लेकिन यह सब अधिक समय तक नहीं टिकनेवाला था।
उत्तर से आक्रमणकारी
इन समाचारों से प्रलोभित होकर कि इस अज्ञात देश में बहुत सोना है, वर्ष १५३० के क़रीब स्पेनी विजेता फ्रान्सीसको पज़ारो और उसके सैनिक पनामा से यहाँ आए। उस समय यह देश गृह युद्ध में उलझा हुआ था। सिंहासन का कानूनी वारिस, राजकुमार वासकार अपने सौतेले भाई आतावाल्पा के हाथों पराजित हुआ था और क़ैद किया गया था। अब आतावाल्पा राजधानी की ओर बढ़ रहा था।
पज़ारो और उसके सैनिक कठिनाई से भीतरी नगर, काहमार्का तक पहुँचे। वहाँ तख़्ता पलटनेवाले आतावाल्पा ने उनका स्वागत किया। फिर भी, चालबाज़ी से स्पेनी लोग उसे उसकी गाड़ी से बाहर खींच निकालने और बंदी बनाने में सफल हुए, साथ ही उन्होंने उसके हज़ारों चकित और अचेत सैनिकों को मार डाला।
इसके बावजूद, बंदी होते हुए भी, आतावाल्पा ने गृह युद्ध जारी रखा। उसने अपने दूतों को कूसको भेजा कि उसके सौतेले भाई इंका वासकार को और राज-घराने के सैकड़ों लोगों को मार डालें। अनजाने में, उसने जीत हासिल करने की पज़ारो की योजना को आसान बना दिया।
सोने और चाँदी के लिए स्पेनियों का लालच देखकर, आतावाल्पा ने प्रतिज्ञा की कि अपनी रिहाई के लिए छुड़ौती के रूप में वह एक बड़े कमरे को सोने और चाँदी की प्रतिमाओं से भर देगा। लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ। एक बार फिर धोखेबाज़ी बीच में आयी! जब प्रतिज्ञात छुड़ौती को भर दिया गया, तब १३वें इंका आतावाल्पा को, जिसे स्पेनी मठवासी मूर्तिपूजक मानते थे, पहले एक कैथोलिक के रूप में बपतिस्मा दिया गया और फिर उसका गला घोंट दिया गया।
पतन का आरंभ
आतावाल्पा का पकड़ा जाना और क़त्ल इंका साम्राज्य पर घातक वार था। लेकिन आदिवासी लोगों ने आक्रमणकारियों का विरोध किया, और साम्राज्य ने अगले ४० सालों में अपनी आख़िरी साँसें गिनीं।
जब और सैनिक आ गये, तब पज़ारो और उसके सभी सैनिक कूसको की ओर बढ़ने तथा इंका लोगों के और भी अधिक सोने पर अपने हाथ डालने के लिए उत्सुक थे। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए स्पेनी लोगों ने निष्ठुरता से आदिवासियों को सताया कि उनसे ख़ज़ाने के राज़ जान सकें और विरोध करनेवाले किसी भी व्यक्ति को धमकाने और चुप कराने के लिए वे क्रूरता करने से नहीं झिझके।
वासकार के भाई राजकुमार माँको द्वितीय को साथ लेकर, जो अगला इंका (माँको इंका यूपान्की) बनता, पज़ारो कूसको की ओर बढ़ा और वहाँ का सारा सोने का ख़ज़ाना लूट लिया। सोने की अधिकतर प्रतिमाओं को पिघलाकर स्पेन के लिए धातु रूप में बदल दिया। इसमें आश्चर्य नहीं कि अंग्रेज़ समुद्री-डाकू उन स्पेनी जहाज़ों को लूटने के लिए उत्सुक थे जो पेरू से बड़ा ख़ज़ाना लेकर जा रहे होते थे! ख़ज़ाने से लदा हुआ, पज़ारो समुद्र-तट के लिए रवाना हुआ, जहाँ १५३५ में उसने लीमा नगर को अपनी सरकार के केंद्र के रूप में बसाया।
माँको इंका यूपान्की ने, जो अब तक आक्रमणकारियों के लालच और धोखेबाज़ी से पूरी तरह परिचित हो चुका था, विद्रोह भड़काया। दूसरों ने भी स्पेनियों के विरुद्ध विद्रोह किया, लेकिन अंततः आदिवासियों को अपना भरसक बचाव करने के लिए दूर क्षेत्रों में भागना पड़ा। इनमें से एक सुरक्षित बचाव-स्थान शायद पवित्र नगर माचू पीकचू था, जो पहाड़ों में छुपा हुआ था।
अंतिम इंका
आख़िरी चरण में, माँको इंका यूपान्की का एक पुत्र, टूपाक आमारू इंका बन गया (१५७२)। अब स्पेनी वाइसरॉय पेरू पर राज कर रहे थे। वाइसरॉय टोलेदो का लक्ष्य था कि इंकाओं को ख़त्म कर डाले। बड़ी सेना के साथ, उसने विल्काबाम्बा क्षेत्र में प्रवेश किया। टूपाक आमारू को जंगल में पकड़ लिया गया। उसे और उसकी गर्भवती पत्नी को वध के लिए कूसको ले जाया गया। एक कान्यारी आदिवासी ने टूपाक आमारू पर वध की तलवार उठायी। चौक पर इकट्ठा हज़ारों आदिवासियों ने ऊँची आवाज़ में शोक व्यक्त किया जब एक वार से उनके इंका का सिर उड़ा दिया गया। उसके कप्तानों को सता-सताकर मार डाला गया या फाँसी दे दी गयी। क्रूरता से हत्या करके, इंकाओं का राज्य समाप्त कर दिया गया।
नियुक्त वाइसरॉय, साथ ही अनेक कैथोलिक मठवासियों और पादरियों ने धीरे-धीरे आदिवासियों पर अपना अच्छा और बुरा प्रभाव फैलाया, जिन्हें लंबे अरसे तक बस दास ही समझा जाता था। बहुतों को सोने या चाँदी की खदानों में काम करने के लिए मजबूर किया गया, जिनमें से एक खदान पोटसी, बोलिविया में स्थित एक पहाड़ था जो चाँदी की कच्ची धातु से भरा था। अमानवीय परिस्थितियों में जीने के लिए, सताये गये आदिवासियों ने कोका पत्ती का सहारा लिया जिसमें नशीला असर होता है। उन्नीसवीं सदी की शुरूआत में जाकर कहीं पेरू और बोलिविया को स्पेन से स्वतंत्रता मिली।
इंकाओं के आधुनिक-दिन वंशज
इस आधुनिक युग में इंकाओं के वंशजों की क्या स्थिति है? पेरू की राजधानी लीमा, अनेक दूसरे आधुनिक नगरों की तरह, लाखों नागरिकों से भरी पड़ी है। लेकिन दूर गाँवों में, कभी-कभी ऐसा लगता है कि समय सौ साल पहले ही ठहर गया है। अनेक दूर-दराज़ के गाँवों पर अभी भी कैथोलिक पादरियों का नियंत्रण है। आदिवासी किसान के लिए, गाँव के चौक पर कैथोलिक गिरजा मुख्य आकर्षण है। शानदार ढंग से तैयार संतों की अनेक मूर्तियाँ, बहुरंगी बत्तियाँ, सुनहरी वेदी, जलती मोमबत्तियाँ, पादरी द्वारा संपन्न रहस्यमयी रस्में, और ख़ासकर नृत्य और त्योहार—ये सभी मनबहलाव की उसकी ज़रूरत को पूरा करते हैं। लेकिन आँखों को लुभानेवाले ऐसे मनबहलाव कभी प्राचीन विश्वासों को दूर नहीं कर पाये हैं। और कोका पत्ती का इस्तेमाल, जिसमें माना जाता है कि रहस्यमयी शक्तियाँ हैं, अनेक लोगों के जीवन को अभी भी प्रभावित करता है।
अपनी अजेय मनोवृत्ति के कारण, इंकाओं के ये वंशज—अनेक अब अंतर्जातीय हैं—अपने सजीव नृत्यों और ठेठ वाइनो संगीत को सुरक्षित रखने में सफल रहे हैं। यदि वे शुरू-शुरू में अजनबियों से खुलकर पेश न आएँ, तो भी उनकी स्वाभाविक सत्कारशीलता सामने आ ही जाती है। जो इंका साम्राज्य के इन वंशजों को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं—जो अस्तित्त्व के लिए उनके हर दिन के संघर्ष को देखते हैं और जो आगे बढ़कर उनमें दिलचस्पी दिखाते हैं—वे उनकी कहानी को सचमुच हृदयविदारक पाते हैं!
शिक्षा बदलाव लाती है
सजग होइए! के साथ एक इंटरव्यू में, टिटिकाका झील के पास, सॉका गाँव के आइमरा-भाषी आदिवासियों के एक वंशज, वालॆनटीन आरीसाका ने बताया: “यहोवा का साक्षी बनने से पहले, मैं नाम भर का कैथोलिक था। अपने कुछ मित्रों के साथ, मैं अनेक विधर्मी प्रथाओं को मानता था। मैं कोका पत्ती भी चबाता था, लेकिन अब मैंने वह सब पीछे छोड़ दिया है।”
उन अनेक अंधविश्वासों को अच्छी तरह याद करते हुए जो उसे आपुस को अप्रसन्न करने के भय में हमेशा जकड़े हुए थे, ८९ वर्षीया पॆट्रोनीला मामानी ने कहा: “मैं पहाड़ी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए और अपनी जीविका निश्चित करने के लिए नियमित रूप से भेंट चढ़ाती थी। मैं किसी हालत उनको अप्रसन्न करके विपत्तियाँ सहने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी। अब, अपने बुढ़ापे में, मैंने स्थिति को अलग तरह से देखना सीख लिया है। बाइबल और यहोवा के साक्षियों के कारण, मैं ऐसे सोच-विचार से मुक्त हूँ।”
यहोवा के साक्षी अनेक कचूआ-भाषी और आइमरा-भाषी आदिवासियों को पढ़ना सिखा रहे हैं। बदले में, वे दूसरों को बाइबल सिखाते हैं। इस तरह हज़ारों इंका और स्पेनी आदिवासियों को अपना जीवन बेहतर बनाने के लिए शिक्षा दी जा रही है। वे न्याय, शांति और धार्मिकता के एक नये संसार की परमेश्वर की प्रतिज्ञा के बारे में भी सीख रहे हैं, जो बाइबल में दी गयी है। वह संसार जल्द ही पूरी पृथ्वी पर स्थापित किया जाएगा।—२ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य २१:१-४.
[फुटनोट]
a शब्द “इंका,” इंका साम्राज्य के सर्वोच्च शासक को सूचित कर सकता है और यह वहाँ के निवासियों को भी सूचित कर सकता है।
[पेज 15 पर तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
इंका जाति का सुनहरा साम्राज्य
दक्षिण अमरीका
कूसको
पोटॆसी
इंका साम्राज्य
केरेबियन सागर
प्रशांत महा सागर
कोलम्बिया
इक्वाडोर
ऐन्डीज़
पेरू
काहामार्का
लीमा
पाचाकामाक
विल्काबाम्बा
माचू पीकचू
कूसको
टिटिकाका झील
बोलिविया
चिली
अर्जेंटीना
[पेज 16 पर तसवीर]
ऊपर: कूसको में सूर्य का मौलिक मंदिर इस कैथोलिक गिरजे के आधार के रूप में कार्य करता है
[पेज 16 पर तसवीर]
बाँयें: चूक्वीटो के एक मंदिर में इंका-पूर्व लिंग प्रतिमा
[पेज 16 पर तसवीर]
दाँयें: इंका बलि का खून इन तराशे हुए पत्थरों पर से नीचे बहता था
[पेज 17 पर तसवीर]
दाँयें: कूसको के निकट, माचू पीकचू में सींचे गये सीढ़ीदार खेत
[पेज 17 पर तसवीर]
नीचे: माचू पीकचू के एक प्राचीन द्वार से नज़ारा
[पेज 17 पर तसवीर]
नीचे दाँयीं ओर: साक्सावामान के क़िला-मंदिर में १०० टन के स्तंभ