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  • स्त्रियों का भविष्य क्या है?
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सजग होइए!–1998
g98 5/8 पेज 12-14

स्त्रियों का भविष्य क्या है?

“मानवजाति का इतिहास पुरुष द्वारा बारंबार स्त्री को चोट पहुँचाने और उसके अधिकार छीनने का इतिहास है।” सॆनिका फॉल्स, न्यू यॉर्क, मत घोषणापत्र में इस प्रकार कहा गया। यह स्त्रियों के साथ हुए अन्याय की निंदा करते हुए १५० साल पहले अमरीका में लिखा गया था।

तब से अब तक निश्‍चित ही प्रगति हुई है, लेकिन संयुक्‍त राष्ट्र का प्रकाशन संसार की स्त्रियाँ १९९५ (अंग्रेज़ी) कहता है, अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है। वह रिपोर्ट करता है, ‘अकसर स्त्रियाँ और पुरुष अलग-अलग संसार में रहते हैं, ऐसे संसार जिनमें शिक्षा और रोज़गार अवसरों की सुविधा, स्वास्थ्य, निजी सुरक्षा और फुरसत का समय एकसमान नहीं होता।’

इसके बारे में बढ़ती जानकारी ने राष्ट्रों को उकसाया है कि स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कानून बनायें। लेकिन अन्याय और पूर्वधारणा की जड़ें हृदय में होती हैं और कानून लोगों के हृदय नहीं बदल सकता। उदाहरण के लिए, वेश्‍या लड़कियों की दुर्दशा पर विचार कीजिए। न्यूज़वीक ने इस अंतर्राष्ट्रीय कलंक के बारे में कहा: “बच्चों के लैंगिक शोषण को रोकने के लिए बनाये गये कानून का उद्देश्‍य तो भला है लेकिन वह अकसर प्रभावकारी नहीं होता।” उसी तरह, कानून का होना अपने आपमें हिंसा को रोकने के लिए काफी नहीं। “प्रमाण दिखाता है कि स्त्रियों के साथ की गयी हिंसा एक बड़ी विश्‍वव्यापी समस्या है,” मानव विकास रिपोर्ट १९९५ (अंग्रेज़ी) कहती है। “अधिकतर कानून ऐसी हिंसा को रोकने में समर्थ नहीं हैं—जब तक कि वर्तमान सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य न बदल दिये जाएँ।”—तिरछे टाइप हमारे।

“सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य” आम तौर पर पुरानी परंपराओं पर आधारित होते हैं—जिन्हें बदलना बच्चों का खेल नहीं। “परंपराएँ पुरुषों में यह विश्‍वास बिठाती हैं कि स्त्रियों से प्रेम करने के बजाय उन्हें भोगना चाहिए, उनकी देखरेख करने के बजाय उनका शोषण करना चाहिए,” मध्य पूर्व की एक स्त्री कहती है। “फलस्वरूप, स्त्री के पास कोई आवाज़ नहीं, कोई अधिकार नहीं, और अपनी स्थिति सुधारने का शायद ही कोई मौका है।”

पतियों और पिताओं को शिक्षित करना

बेजिंग, चीन में हुए स्त्री विश्‍व सम्मेलन १९९५ में एक कार्यवाही घोषणापत्र पेश किया गया जिसमें घोषणा की गयी कि “सभी लोगों द्वारा तुरंत और एकजुट कार्यवाही” करने से ही एक “शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण और दयापूर्ण संसार” बन सकता है जिसमें स्त्रियों को आदर दिया जाएगा।

स्त्रियों के जीवन को अधिक ‘शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण, और दयापूर्ण’ बनाने की कोई भी कार्यवाही घर से, पतियों और पिताओं से शुरू होनी चाहिए। इस संबंध में, यहोवा के साक्षी विश्‍वस्त हैं कि बाइबल शिक्षा सफलता की कुंजी है। उन्होंने देखा है कि जब पुरुष यह सीख जाते हैं कि परमेश्‍वर उनसे अपनी पत्नी और बेटियों के साथ आदर और विचारशीलता से व्यवहार करने की अपेक्षा करता है तो वे इस बात को दिल में उतार लेते हैं और वैसा ही करते हैं।

केंद्रीय अफ्रीका में चार बच्चों का पिता, पेडरो अब अपनी पत्नी की ज़रूरतों का ध्यान रखता है। वह बच्चों की देखभाल करने में उसकी मदद करता है और जब मेहमान घरवालों के साथ खाना खाते हैं तो भोजन भी परोसता है। उसके देश में ऐसी विचारशील मनोवृत्ति बहुत असाधारण है। कौन-सी बात उसे अपनी पत्नी की कदर करने और उसे सहयोग देने के लिए उकसाती है?

“जब मैंने बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया, तो मैंने पति की भूमिका के बारे में दो महत्त्वपूर्ण सिद्धांत सीखे,” पेडरो बताता है। “अपनी पत्नी के प्रति मेरे दृष्टिकोण पर उनका बहुत प्रभाव पड़ा है। पहला सिद्धांत १ पतरस ३:७ में है, जो बताता है कि पति को चाहिए कि अपनी पत्नी को ‘निर्बल पात्र’ जानकर उसका आदर करे। दूसरा सिद्धांत इफिसियों ५:२८, २९ में है, जो कहता है कि पति को अपनी पत्नी से ‘अपनी देह के समान’ व्यवहार करना चाहिए। जब से मैंने उस सलाह को माना है हमारी नज़दीकी बढ़ी है। सो हम पुरुषों को स्थानीय प्रथाओं से ज़्यादा महत्त्व परमेश्‍वर की सलाह को देना चाहिए।”

माइकल पश्‍चिम अफ्रीका का है। वह मानता है कि साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू करने से पहले वह अपनी पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता था। “जब मुझे गुस्सा आता था तो मैं उसे पीट भी देता था,” वह स्वीकार करता है। “लेकिन बाइबल ने मुझे सिखाया कि मुझे अपने तौर-तरीके बदलने चाहिए। अब मैं अपने गुस्से को काबू में रखने और अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम करने की पूरी कोशिश करता हूँ। और अब हम दोनों पहले से कहीं ज़्यादा खुश हैं।” (कुलुस्सियों ३:९, १०, १९) उसकी पत्नी कम्फर्ट इससे सहमत है: “अब माइकल मेरे साथ ज़्यादा आदर और स्नेह से व्यवहार करता है। यह हमारे समाज में अधिकतर पतियों का दस्तूर नहीं है। हम अपनी समस्याओं के बारे में बात करते हैं और एकसाथ मिलकर काम करते हैं।”

पेडरो और माइकल ने अपनी अपनी पत्नी का आदर करना और उनसे प्रेम करना सीखा क्योंकि उन्होंने परमेश्‍वर के वचन में दिये गये उपदेश को गंभीरता से लिया, जो स्पष्ट बताता है कि स्त्रियों के साथ अन्याय करना हमारे सृष्टिकर्ता को बहुत दुःखी करता है।

स्त्रियों के लिए परमेश्‍वर की चिंता

परमेश्‍वर हमेशा से स्त्रियों और उनके हित की चिंता करता आया है। हालाँकि उसने हमारे प्रथम माता-पिता से कहा कि उनके विद्रोह के कारण अपरिपूर्णता में स्त्रियों पर “प्रभुता” की जाएगी, परंतु यह परमेश्‍वर का उद्देश्‍य कभी नहीं था। (उत्पत्ति ३:१६) उसने हव्वा को आदम की “संपूरक” और साथी बनाया था। (उत्पत्ति २:१८, NW) प्राचीन इस्राएल को दी गयी मूसा की व्यवस्था में यहोवा ने विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार की विशेष रूप से निंदा की और इस्राएलियों को निर्देश दिया कि उनके साथ कृपालुता से व्यवहार करें और उनकी मदद करें।—निर्गमन २२:२२; व्यवस्थाविवरण १४:२८, २९; २४:१७-२२.

अपने स्वर्गीय पिता का अनुकरण करते हुए यीशु अपने समय की प्रचलित परंपरा पर नहीं चला जिसमें स्त्रियों को तुच्छ माना जाता था। उसने स्त्रियों के साथ कृपालुता से बात की—उनके साथ भी जो बदनाम थीं। (लूका ७:४४-५०) इसके अलावा, यीशु ने खुशी से उन स्त्रियों की मदद की जिन्हें स्वास्थ्य समस्याएँ थीं। (लूका ८:४३-४८) एक अवसर पर, जब उसने देखा कि एक विधवा अपने एकलौते पुत्र की हाल ही में हुई मृत्यु का शोक मना रही है, तो उसने तुरंत जनाज़े के पास जाकर उस युवक का पुनरुत्थान किया।—लूका ७:११-१५.

यीशु के आरंभिक शिष्यों में स्त्रियाँ भी थीं और उसके पुनरुत्थान की पहली गवाह स्त्रियाँ ही थीं। लुदिया, दोरकास, और प्रिसका जैसी स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए बाइबल कहती है कि वे पहुनाई, करुणा, और साहस का उदाहरण थीं। (प्रेरितों ९:३६-४१; १६:१४, १५; रोमियों १६:३, ४) और आरंभिक मसीहियों को सिखाया गया था कि स्त्रियों को आदर दिखाएँ। प्रेरित पौलुस ने अपने संगी मिशनरी तीमुथियुस को कहा कि ‘बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहिन जानकर’ व्यवहार करे।—१ तीमुथियुस ५:१, २.

जिन स्त्रियों को आदर मिला है

यदि आप मसीही पुरुष हैं, तो आप भी स्त्रियों को वैसा ही आदर दिखाएँगे। आप स्त्रियों के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए परंपरा की आड़ कभी नहीं लेंगे। इसके अलावा, स्त्रियों के साथ आदरपूर्ण व्यवहार आपके विश्‍वास का प्रभावशाली प्रमाण दे सकता है। (मत्ती ५:१६) अफ्रीका की एक युवती, सलीमा बताती है कि उसने कामों में दिखते मसीही सिद्धांतों से कैसे लाभ उठाया।

“मैं ऐसे माहौल में पली-बढ़ी थी जहाँ स्त्रियों और लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था। मेरी माँ दिन में १६ घंटे काम करती थीं, लेकिन यदि कोई काम छूट जाए तो उन्हें सिर्फ शिकायतें ही सुनने को मिलती थीं। उससे भी बदतर, जब मेरे पिताजी बहुत पी लेते थे तो माँ को पीटते थे। हमारे इलाके की दूसरी स्त्रियाँ भी इसी तरह दुःख उठाती थीं। लेकिन मुझे पता था कि ऐसा व्यवहार गलत है—यह हमारे जीवन को कुंठा और दुःखों से भर रहा है। फिर भी, इस स्थिति को बदलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था।

“लेकिन किशोरावस्था में मैंने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू कर दिया। मैं बहुत प्रभावित हुई जब मैंने प्रेरित पतरस के शब्दों को पढ़ा। उसने कहा कि स्त्रियों के साथ आदर से व्यवहार किया जाना चाहिए। लेकिन मैंने सोचा, ‘यह नहीं हो सकता कि लोग इस सलाह को लागू करें, और हमारी स्थानीय परंपरा को देखते हुए तो बिलकुल भी नहीं।’

“लेकिन, जब मैं राज्यगृह में गयी जहाँ साक्षी अपनी सभाएँ आयोजित करते हैं तो वहाँ स्त्री-पुरुष दोनों ने शिष्टता से मेरे साथ व्यवहार किया। उससे भी ज़्यादा हैरानी की बात यह थी कि वहाँ पति अपनी अपनी पत्नी की सचमुच परवाह कर रहे थे। जैसे-जैसे मैंने वहाँ के लोगों को ज़्यादा अच्छी तरह जाना, मुझे एहसास हुआ कि सभी साक्षियों से ऐसा व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है। हालाँकि कुछ पुरुष मेरी जैसी पृष्ठभूमि से आये थे, फिर भी अब वे स्त्रियों के साथ आदर से व्यवहार कर रहे थे। मैं इस बड़े परिवार का हिस्सा बनना चाहती थी।”

स्थायी समाधान

सलीमा ने जो आदर देखा वह अचानक ही नहीं आ गया। वह परमेश्‍वर के वचन पर आधारित एक शैक्षिक कार्यक्रम का परिणाम था, जो लोगों को सिखाता है कि परमेश्‍वर की तरह एक दूसरे की कदर करें। यह इस बात का संकेत है कि आज भी क्या किया जा सकता है और जब परमेश्‍वर का राज्य सारी पृथ्वी पर शासन करेगा तब हर जगह क्या किया जाएगा। (दानिय्येल २:४४; मत्ती ६:१०) वह स्वर्गीय सरकार सभी अन्याय दूर करेगी। बाइबल हमें आश्‍वस्त करती है: “जब तेरे [यहोवा के] न्याय के काम पृथ्वी पर प्रगट होते हैं, तब जगत के रहनेवाले धर्म को सीखते हैं।”—यशायाह २६:९.

आज भी, धार्मिकता की शिक्षा लाखों लोगों के सोचने के तरीके को बदल रही है। जब सभी जीवित मनुष्य परमेश्‍वर के राज्य के अधीन होंगे, तब भी यह शिक्षा पृथ्वी भर में जारी रहेगी और स्त्रियों के साथ पुरुषों के अत्याचारी व्यवहार का अंत करेगी, जो आदम के पाप का परिणाम है। परमेश्‍वर का नियुक्‍त राजा, यीशु मसीह स्त्रियों के साथ अन्याय की अनुमति देकर अपने शासन पर कलंक नहीं लगने देगा। मसीह के उस शासन का वर्णन करते हुए बाइबल कहती है: “वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा।”—भजन ७२:१२-१४.

इस लेख श्रृंखला में स्त्रियों की समस्याओं पर ध्यान दिया गया है। लेकिन, यह स्वीकार किया जाता है कि अनेक पुरुषों के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया है। पूरे इतिहास में शक्‍तिशाली और दुष्ट पुरुषों ने स्त्री-पुरुष दोनों के साथ भयंकर-से-भयंकर अत्याचार किया है। और कुछ स्त्रियों ने भी ऐसा किया है। उदाहरण के लिए, बाइबल ईज़ेबेल अतल्याह, और हेरोदियास जैसी दुष्ट स्त्रियों का उल्लेख करती है जिन्होंने निर्दोष लोगों का लहू बहाया।—१ राजा १८:४, १३; २ इतिहास २२:१०-१२; मत्ती १४:१-११.

इसलिए, पूरी मानवजाति को परमेश्‍वर के राज्य शासन के अधीन उसके नये संसार की ज़रूरत है। वह दिन जल्द ही आनेवाला है। तब न स्त्रियों और न ही पुरुषों के साथ कभी भेदभाव या दुर्व्यवहार किया जाएगा। उसके बजाय, सभी के लिए हर दिन “आनन्द” का दिन होगा।—भजन ३७:११.

[पेज 13 पर तसवीर]

मसीही पति बाइबल के मार्गदर्शन पर चलते हैं और अपनी अपनी पत्नी को आदर और सम्मान देते हैं

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