जब आशा और प्रेम नहीं रहता
कनाडा की एक १७-वर्षीय लड़की ने लिखा कि वह क्यों मरना चाहती है। कुछ कारण इस प्रकार थे: ‘अकेला महसूस करती हूँ और अपने भविष्य के बारे में डर लगता है; परमाणु युद्ध का डर; ओज़ोन परत में छेद होना; अपने साथ काम करनेवालों के सामने बहुत छोटा महसूस करती हूँ; मैं बहुत बदसूरत हूँ इसलिए मेरी कभी शादी नहीं होगी और मैं हमेशा अकेली रह जाऊँगी; मेरे ख्याल से जीने के लिए कुछ है ही नहीं, सो जी कर क्या करूँ; मर जाऊँगी तो सबके सिर से बोझ उतर जाएगा; फिर मुझे कोई चोट नहीं पहुँचा सकेगा।’
क्या इनमें से कुछ कारणों की वज़ह से युवा अपना जीवन खत्म कर रहे हैं? कनाडा में, “मोटर-गाड़ियों से हुई दुर्घटनाओं को छोड़, आत्महत्या अब [युवाओं] की मौत का सबसे बड़ा कारण है।”—द ग्लोब एण्ड मेल।
फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया का प्रोफॆसर रियाज़ हसन अपने लेख “अधूरे जीवन: युवाओं की आत्महत्या का रुख” में कहता है: “ऐसे कई सामाजिक कारण हैं जो इस प्रश्न से जुड़े हुए हैं और लगता है कि युवाओं के बीच आत्महत्या की बढ़ोतरी में इनका बहुत बड़ा हाथ है। ये कारण हैं युवाओं के बीच बढ़ती बेरोज़गारी; ऑस्ट्रेलियाई परिवार में बदलाव; नशीले पदार्थों का बढ़ता दुरुपयोग; युवाओं के बीच बढ़ती हिंसा; मानसिक बीमारी; और उनका बस आज़ादी चाहना मगर उसके साथ आनेवाली ज़िम्मेदारी नहीं।” लेख यह भी बताता है कि अनेक सर्वेक्षणों से पता चला है कि भविष्य के बारे में एक किस्म की निराशा फैली हुई है और लगता है कि “बड़ी तादाद में युवाओं को अपने और दुनिया के भविष्य के बारे में डर और आशंका है। वे सोचते हैं कि भविष्य में संसार परमाणु युद्ध से तहस-नहस हो जाएगा और प्रदूषण तथा पर्यावरण के बिगड़ने के कारण बरबाद हो जाएगा, समाज में इंसान का नहीं टॆक्नॉलजी का नियंत्रण होगा और बेरोज़गारी फैली होगी।”
सोलह से चौबीस साल के युवाओं के बीच किया गया एक गैलप सर्वेक्षण दिखाता है कि आत्महत्या के अन्य कारण हैं अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ता फासला, एक-जनक घरानों की बढ़ती संख्या, बंदूकों का बढ़ता इस्तेमाल, बाल दुर्व्यवहार और आम तौर पर “भविष्य में कोई आशा न होना।”
न्यूज़वीक रिपोर्ट करती है कि अमरीका में “शस्त्रों का होना शायद [किशोर आत्महत्या का] सबसे बड़ा कारण हो। एक अध्ययन किया गया जिसमें आत्महत्या नहीं करनेवाले बच्चों की तुलना आत्महत्या करनेवाले बच्चों से की गयी। आत्महत्या करनेवाले इन किशोरों में कोई मानसिक बीमारी दिखायी नहीं दी थी। उनके बीच सिर्फ एक फर्क देखने को मिला: घर में गोलियों से भरी बंदूक। फिर यह कहा जाता है कि बंदूकें लोगों की जान नहीं लेतीं।” और लाखों घरों में गोलियों से भरी बंदूकें हैं!
डर और बेपरवाह समाज कमज़ोर युवाओं को बड़ी आसानी से आत्महत्या करने की सीमा तक पहुँचा सकते हैं। गौर कीजिए: १२ से १९ साल के युवाओं के विरुद्ध किये गये हिंसक अपराधों की दर आम जनता के विरुद्ध किये गये अपराधों की दर से दोगुनी से भी ज़्यादा है। अध्ययनों ने पाया है कि “१४ से २४ साल की युवतियों पर हमला होने की संभावना ज़्यादा है,” मैकलीन्स पत्रिका ने रिपोर्ट किया। “स्त्रियों पर अकसर वे लोग हमला करते हैं और उनकी जान लेते हैं जो कहते हैं कि वे उनसे प्रेम करते हैं।” परिणाम? ये और दूसरे डर “इन लड़कियों में सुरक्षा की भावना और विश्वास घटा देते हैं।” एक अध्ययन ने पाया कि इंटरव्यू देनेवालों में से बलात्कार की शिकार एक तिहाई युवतियों ने आत्महत्या की सोची थी।
न्यू ज़ीलैंड की एक रिपोर्ट युवा आत्महत्या का एक और कारण बताती है: “आज प्रचलित भौतिकवादी, सांसारिक मूल्य जो व्यक्ति की सफलता को धन, सुंदरता और शक्ति से तौलते हैं अनेक युवाओं को यह एहसास दिलाते हैं कि वे एकदम बेकार हैं और समाज द्वारा दुतकारे गये हैं।” इसके अलावा, द फ्यूचरिस्ट कहती है: “[युवाओं] में तुरंत फल पाने की तीव्र इच्छा होती है, वे सब कुछ पाना चाहते हैं और जल्दी पाना चाहते हैं। टीवी पर धारावाहिक देखना उन्हें बहुत अच्छा लगता है। वे चाहते हैं कि उनकी दुनिया ऐसे ही सुंदर लोगों से भरी हो, जो नये-नये फैशन के कपड़े पहनते हों, उनके पास बहुत-सा पैसा और रुतबा हो और उन्हें बहुत मेहनत भी न करनी पड़े।” लगता है कि इतनी ढेर सारी अव्यावहारिक, पूरी न होनेवाली इच्छाएँ ही कुछ हद तक निराशा पैदा करती हैं और आत्महत्या की ओर ले जा सकती हैं।
जीवन-बचानेवाला गुण?
शेक्सपियर ने लिखा: “प्रेम से ऐसी राहत मिलती है जैसे बारिश के बाद धूप से।” बाइबल कहती है: “प्रेम कभी टलता नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:८) इस गुण में उन युवाओं की समस्या का समाधान है जो आत्महत्या करने की सोचते हैं—वे प्रेम और बातचीत के लिए तरसते हैं। दी अमॆरिकन मॆडिकल असोसिएशन एनसाइक्लोपीडिया ऑफ मॆडिसिन कहती है: “आत्महत्या करनेवाले लोग आम तौर पर बहुत अकेला महसूस करते हैं, और किसी हमदर्द, समझदार सुननेवाले से बात करने का मौका ही कभी-कभी आत्महत्या करने से रोकने के लिए काफी होता है।”
युवाओं को अकसर प्रेम और लोगों के साथ की बहुत ज़रूरत होती है। इस ज़रूरत को पूरा करना इस प्रेमरहित और विनाशकारी संसार में दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है—यह ऐसा संसार है जिसमें युवाओं की बहुत कम या बिलकुल भी नहीं चलती। परिवार टूटने और तलाक होने के कारण माता-पिता द्वारा ठुकराया जाना किशोर आत्महत्या का एक कारण हो सकता है। कई तरीकों से दिखाया जा सकता है कि युवाओं को ठुकराया जा रहा है।
उन माता-पिताओं के बारे में सोचिए जो अपने बच्चों के साथ शायद ही कभी घर पर होते हैं। मम्मी-पापा अपनी नौकरियों में पूरी तरह से उलझे होते हैं या किसी ऐसे मनोरंजन में लगे होते हैं जिसमें बच्चे शामिल नहीं हो सकते। बच्चों को यह संदेश मिल जाता है कि उन्हें ठुकराया जा रहा है। जाना-माना पत्रकार और शोधकर्ता ह्यू मके कहता है कि “माता-पिता दिन-ब-दिन स्वार्थी होते जा रहे हैं। वे अपनी जीवन-शैली को बनाए रखने के लिए पहले अपने बारे में सोचते हैं। . . . दो टूक शब्दों में कहें तो बच्चों का फैशन चला गया है। . . . जीवन कठिन है और लोग अपने में ही मस्त हो जाते हैं।”
फिर कुछ संस्कृतियों में पुरुष अपने आपको मर्द समझने की वज़ह से बच्चों की देखभाल करने जैसे औरतों वाले काम करना पसंद नहीं करते। पत्रकार केट लॆग अच्छी तरह बताती है: “जो पुरुष जन सेवा करने के इच्छुक होते हैं वे पालन-पोषण जैसे कामों के बदले आम तौर पर जीवन-रक्षक या खतरों से खेलनेवाले काम करने का चुनाव करते हैं . . . वे ऐसा काम करना पसंद नहीं करते हैं जहाँ उन्हें ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों के संपर्क में आना पड़ता है इसके बजाय वे ऐसा काम करना पसंद करते हैं जिनमें कुदरती ताकतों से लड़ना पड़ता हो।” और आज देखभाल का एक बहुत बड़ा काम है बाल-बच्चे पालना। बच्चे की अच्छी देखरेख न करना बच्चे को ठुकराने के बराबर है। और इसके फलस्वरूप आपका बेटा या बेटी अपने बारे में नकारात्मक छवि बना सकता है और उसमें सामाजिक कौशल की कमी हो सकती है। दी एजुकेशन डाइजॆस्ट कहती है: “अपनी अच्छी छवि नहीं हो तो बच्चों में अपने ही भले के लिए फैसले करने का आधार नहीं होता।”
निराशा पैदा हो सकती है
शोधकर्ताओं का मानना है कि आत्महत्या में निराशा का बहुत बड़ा हाथ है। ऑस्ट्रेलिया में युवा आत्महत्या के विषय पर लिखनेवाली, गेअल मेसन ने कहा: “माना जाता है कि आत्महत्या के विचारों से निराशा का ज़्यादा नज़दीकी संबंध है, डिप्रेशन की बीमारी का उतना नहीं। कभी-कभी निराशा को डिप्रेशन की बीमारी का एक लक्षण कहा जाता है। . . . यह आम तौर पर युवाओं के भविष्य के बारे में और खासकर पैसों के मामले में उनके भविष्य के बारे में उदासी और निराशा की सामान्य भावना का रूप लेती है: और कुछ हद तक विश्वव्यापी स्थिति के बारे में निराशा की भावना है।”
जनता के नेता ईमानदारी का अच्छा उदाहरण नहीं रखते सो युवाओं को भी अपने आचार-व्यवहार का स्तर बढ़ाने का प्रोत्साहन नहीं मिलता। फिर उनकी यह मनोवृत्ति बन जाती है, “कोशिश ही क्यों करें?” हार्पर्स मैगज़ीन पाखंड को भाँपने की युवाओं की क्षमता पर टिप्पणी करते हुए कहती है: “पाखंड का पता लगाने का युवाओं के पास बहुत बढ़िया वरदान है, वे बहुत अच्छी तरह पढ़ लेते हैं—लेकिन किताबों को नहीं। वे उन सामाजिक संकेतों को बहुत बारीकी से पढ़ते हैं जो उन्हें उस संसार से मिल रहे हैं जिसमें उन्हें अपने पैरों पर खड़े होना है।” और ये संकेत क्या बताते हैं? लेखिका स्टॆफ़नी डाउरिक कहती है: “इससे पहले कभी हमें इतनी जानकारी नहीं मिली कि किस तरह जीएँ। आज हमारे पास पहले से कहीं ज़्यादा पैसा और शिक्षा है, फिर भी हर जगह निराशा ही निराशा है।” राजनैतिक और धार्मिक समाज के उच्च वर्गों में बहुत कम आदर्श हैं। डाउरिक कुछ उपयुक्त प्रश्न पूछती है: “हम अर्थहीन दुःख में से बुद्धि, नयी शक्ति यहाँ तक कि अर्थ कैसे निकालें? हम स्वार्थ, बदमिज़ाजी और लालच के माहौल में प्रेम कैसे विकसित करें?”
इन प्रश्नों के उत्तर आपको हमारे अगले लेख में मिलेंगे और आप उन्हें जानकर शायद दंग रह जाएँ।
[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“बड़ी तादाद में युवाओं को अपने और दुनिया के भविष्य के बारे में डर और आशंका है”
[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“किसी हमदर्द और समझदार सुननेवाले से बात करने का मौका ही कभी-कभी आत्महत्या करने से रोकने के लिए काफी होता है”
[पेज 6 पर बक्स]
आत्महत्या के कुछ संकेत
● नींद न आना, भूख मर जाना
● गुमसुम और कटा-कटा रहना, अकसर दुर्घटना होना
● घर से भाग जाना
● रूप-रंग में बहुत ज़्यादा बदलाव
● नशीली दवाओं और/या शराब का दुरुपयोग
● चिड़चिड़ा होना और गुस्सा करना
● मरने की बात करना; खुद को मिटाने के बारे में संदेश लिखना; खासकर अपने खिलाफ की गयी हिंसा के चित्र बनाना
● दोष की भावनाएँ
● आशाहीनता, चिंता, हताशा, बार-बार रोना
● अपनी चीज़ें दूसरों को दे देना
● बार-बार ध्यान भंग होना
● मनोरंजन में दिलचस्पी न रहना
● अपनी आलोचना करना
● लैंगिक स्वच्छंदता
● स्कूल के नंबरों में अचानक गिरावट आना, स्कूल में हाज़िरी कम होना
● किसी पंथ या गैंग का भाग बनना
● हताशा के बाद बहुत ज़्यादा खुशी
संकट में पड़े किशोर (अंग्रेज़ी) (अमॆरिकन असोसिएशन ऑफ स्कूल एडमिनिस्ट्रेटर्स) और फिलिप जी. पैट्रस और टॉन्या के. शामू द्वारा बच्चों और किशोरों में हताशा और आत्महत्या (अंग्रेज़ी) पर आधारित।
[पेज 7 पर तसवीर]
सच्चा प्रेम और करुणा एक युवा को जीवन की कदर करना सिखा सकते हैं