युवा लोग पूछते हैं . . .
मैं किसी चीज़ पर अपना ध्यान कैसे लगाऊँ?
“कितने साल मैंने यूँ ही बरबाद कर दिये। मैं सभाओं में बैठता था लेकिन मुझे खास फायदा नहीं होता था। मेरा मन न जाने कहाँ भटकता रहता था।”—मैथ्यू।
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप स्कूल में या मसीही सभा में बैठे हों और अचानक आपको एहसास हुआ कि आपको तो पता ही नहीं कि वहाँ क्या चल रहा है? यदि आपका मन कभी-कभी भटक जाता है तो यह कोई अजीब बात नहीं। जैसे हमारे एक पिछले लेख में बताया गया था, युवाओं के बीच एकाग्रता की कमी आम बात है।a लेकिन थोड़ी कोशिश और अपनी मनोवृत्ति में बदलाव करके आप एकाग्रता रखने की अपनी क्षमता को बढ़ा सकते हैं।
दिलचस्पी रखिए
एक प्रशिक्षित खिलाड़ी के बारे में सोचिए। प्रेरित पौलुस कहता है, “खेल प्रतियोगिता में भाग लेने वाला प्रत्येक खिलाड़ी सभी प्रकार का संयम रखता है।” यदि खिलाड़ी का ध्यान पल भर के लिए भी भटक जाए तो वह हार सकता है। जीतने के लिए उसका यह सीखना ज़रूरी है कि एकाग्रता कैसे रखे—उसे शोर मचाती भीड़ की आवाज़ को अनसुना करना है, अपनी पीड़ा और थकान को भूलना है, हारने की बात तो सोचनी तक नहीं है। लेकिन कौन-सी बात खिलाड़ियों को प्रेरित करती है कि इतनी ज़्यादा मेहनत करें? प्रेरित पौलुस के अनुसार वे “नष्ट होने वाले मुकुट की प्राप्ति के लिए”—विजेताओं की मिलनेवाली ट्रॉफियों और पुरस्कारों के लिए—यह सब करते हैं।—१ कुरिन्थियों ९:२५, NHT.
उसी तरह आपको भी ध्यान लगाने के लिए प्रेरित होना चाहिए! विलियम एच. आर्मस्ट्राँग की पुस्तक पढ़ाई करना कठिन काम है (अंग्रेज़ी) कहती है: “विद्यार्थी की यह ज़िम्मेदारी है कि दिलचस्पी रखे। कोई दूसरा आपके बदले में दिलचस्पी नहीं रख सकता और कोई दूसरा आपकी दिलचस्पी नहीं बढ़ा सकता जब तक कि आप खुद न बढ़ाना चाहें।” ज्ञान अपने आस-पास की दुनिया को समझने की कुँजी है। जितना ज़्यादा आप जानते हैं उतना ज़्यादा आप सीख सकते हैं। “समझवाले को ज्ञान सहज से मिलता है,” नीतिवचन १४:६ कहता है। स्कूल में सीखी हर बात शायद आपको याद न रहे, लेकिन कम-से-कम स्कूल आपको सोचने की क्षमता बढ़ाने में तो मदद करता ही है। (नीतिवचन १:४ से तुलना कीजिए।) मानसिक अनुशासन और एकाग्रता रखने की क्षमता से आपको जीवन भर लाभ होगा।
ऊबे हुए और उबाऊ शिक्षक
लेकिन कुछ युवा शिकायत करते हैं कि उनके शिक्षकों में भी दिलचस्पी नहीं दिखती। जॆसी नाम का युवा कहता है: “शिक्षक आपके सामने खड़े हो जाते हैं, कुछ कहते हैं, आपको कुछ काम देते हैं और फिर आपको भेज देते हैं। मेरे खयाल से वे लापरवाह हो रहे हैं। शिक्षक ऐसा नहीं जताते कि विषय ज़रूरी है सो हम भी ध्यान लगाने की ज़रूरत नहीं समझते।”
तो फिर क्या आपको यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि ध्यान लगाना समय की बरबादी है? ऐसा ज़रूरी नहीं। अनेक शिक्षक एक कुचक्र में फँसे होते हैं। कॉलिन नाम का किशोर बताता है: “कोई शिक्षकों की बात पर ध्यान नहीं देता तो शिक्षक सोचते हैं कि कोई सीखना ही नहीं चाहता। सो वे मेहनत और जोश के साथ नहीं सिखाते।”
मानें या न मानें, आप इस रुख को बदल सकते हैं। कैसे? बस ध्यान लगाइए। दिलचस्पी दिखानेवाला एक बच्चा भी हो तो ऊबा हुआ शिक्षक शायद फिर से अपने काम में जोश दिखाने लगे। माना कि कुछ शिक्षकों में क्लास की दिलचस्पी जगाए रखने की क्षमता नहीं होती। लेकिन इससे पहले कि आप दिन में सपने देखने लगें, अपने आपसे पूछिए, ‘क्या शिक्षक को मालूम है कि वह क्या बोल रहा है?’ यदि हाँ, तो ठान लीजिए कि आप उससे कुछ ज़रूर सीखेंगे। ध्यान से सुनिए—एकाग्रता रखिए! क्लास में होनेवाली चर्चाओं में भाग लीजिए। उपयुक्त प्रश्न पूछिए। पुस्तक हाई स्कूल में कैसे पढ़ें (अंग्रेज़ी) कहती है: “बहुत-से विद्यार्थी पाते हैं कि शिक्षक जो चित्र, शब्द, चार्ट, परिभाषाएँ और मुख्य मुद्दे बोर्ड पर लिखता है या ज़ोर देकर कहता है उन्हें लिख लेने से मदद मिलती है।”
“और भी अधिक गहराई से ध्यान” देना
लेकिन मसीही सभाओं में ध्यान से सुनना इससे कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। जॆसी कहता है: “कभी-कभी युवा सभाओं जैसी चीज़ों पर ध्यान नहीं लगाते क्योंकि उन्हें एहसास नहीं होता कि सभाएँ कितनी ज़रूरी हैं।” इब्रानियों २:१ (NHT) में हमें आज्ञा दी गयी है कि “जो कुछ हमने सुना है, उस पर और अधिक गहराई से ध्यान दें, ऐसा न हो कि हम उससे भटक जाएं।” कलीसिया सभा समाप्त होने के बाद क्या आपको हर प्रस्तुति में से कुछ बातें याद रहती हैं? या क्या कभी ऐसा होता है कि आपको यह भी याद नहीं रहता कि कार्यक्रम किसने प्रस्तुत किया था?
बात फिर यही है कि जो आप सीख रहे हैं उसके महत्त्व को समझें। आपकी ज़िंदगी का सवाल है! (यूहन्ना १७:३) इस बात पर भी विचार कीजिए: जब आप बाइबल के बारे में सीखते हैं तो आप खुद परमेश्वर की तरह सोचना सीखते हैं! (यशायाह ५५:८, ९) और जब आप उन बातों पर अमल करते हैं जो आपने सीखी हैं तो आप वह धारण कर रहे होते हैं जिसे बाइबल “नया मनुष्यत्व” कहती है। (कुलुस्सियों ३:९, १०) दूसरी ओर, यदि आप ध्यान नहीं लगाते तो आप शायद अपने जीवन में ज़रूरी सुधार न करें; आप अपने ही आध्यात्मिक विकास को रोक रहे होंगे। यहोवा जानता है कि कभी-कभी हम सबका मन भटक जाता है। इसलिए वह बिनती करता है: “मेरी ओर मन लगाकर सुनो . . . कान लगाओ, और मेरे पास आओ; सुनो, तब तुम जीवित रहोगे।”—यशायाह ५५:२, ३.
सभाओं से ज़्यादा लाभ कैसे उठाएँ
फिर भी, सभाओं में पूरा ध्यान लगाना शुरू-शुरू में शायद मुश्किल हो। लेकिन शोधकर्ता दावा करते हैं कि जितना ज़्यादा हम ध्यान लगाने की कोशिश करेंगे उतना ज़्यादा हमारा दिमाग इस काम में माहिर हो जाएगा। मैथ्यू ने, जिसका ज़िक्र शुरूआत में किया गया है, सभाओं के दौरान मन भटकने की कमज़ोरी पर काबू पा लिया है। वह कहता है: “मैंने पाया है कि ध्यान लगाने के लिए मुझे अपने आपको अनुशासित करना पड़ता है। कुछ समय के बाद आदत सुधर जाती है और आप ज़्यादा देर तक ध्यान लगाए रख पाते हैं।” साथ ही मैथ्यू वह सबसे बड़ी बात बताता है जो सभाओं को उसके लिए आनंददायी बना देती है। वह कहता है: “मैं पहले से अध्ययन करता हूँ।” शरीस नाम की युवती भी यही कहती है: “जब मैं तैयारी करती हूँ तो मुझे सभा में ज़्यादा अच्छा लगता है। भाषणों में ज़्यादा ध्यान लगता है और मेरे लिए उनका ज़्यादा अर्थ होता है।”
ध्यान भंग करनेवाले विचारों को दूर रखना भी ज़रूरी है। सच है, आपके दिमाग में शायद कई वाजिब चिंताएँ हों: अगले हफ्ते परीक्षाएँ हैं, किसी से आपकी पटती नहीं है जिससे कारण आपको तनाव हो रहा है, किसी चीज़ का खर्च उठाना है। लेकिन यीशु ने यह सलाह दी: “तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है? सो कल के लिये चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा; आज के लिये आज ही का दुख बहुत है।” (मत्ती ६:२७, ३४) कलीसिया सभाओं में ध्यान लगाने से आपकी समस्याएँ चली नहीं जाएँगी, लेकिन वे आपको आध्यात्मिक रूप से नयी शक्ति देंगी ताकि आप समस्याओं का सामना ज़्यादा अच्छी तरह कर सकें।—२ कुरिन्थियों ४:१६ से तुलना कीजिए।
ध्यान से सुनना भी आपको एकाग्रता रखने में मदद दे सकता है। मैथ्यू कहता है: “मैं यह सोचने की कोशिश करता हूँ कि वक्ता भाषण के दौरान कौन-से मुद्दे बताएगा और फिर देखता हूँ कि वह क्या बताता है।” अपने आपसे पूछिए, ‘चर्चा के मुख्य मुद्दे क्या हैं? जो सिखाया जा रहा है उसे मैं कैसे इस्तेमाल कर सकता हूँ?’ पहले से यह सोचना कि वक्ता आगे क्या कहेगा आपको ध्यान लगाए रखने में मदद देगा। उसके तर्क करने का तरीका समझने की कोशिश कीजिए। देखिए कि वह कौन-से शास्त्रीय तर्क इस्तेमाल करता है। उसके मुख्य मुद्दों पर विचार कीजिए और उनका सार निकालिए। संक्षिप्त और अर्थपूर्ण नोट्स लिखिए। जब किसी भाग में श्रोताओं से हिस्सा लेने को कहा जाता है तो हिस्सा लीजिए! ऐसा करने से आपका दिमाग व्यस्त रहेगा और आपके विचार इधर-उधर नहीं भटकेंगे।
माना, सुनना एक चुनौती बन जाता है यदि एक वक्ता में जोश की कमी है या उसके बोलने का तरीका दमदार नहीं। याद कीजिए कि प्रेरित पौलुस की भाषण-शैली के बारे में पहली सदी के कुछ मसीहियों की क्या राय थी: “वह देह का निर्बल और वक्तव्य में हल्का जान पड़ता है।” (२ कुरिन्थियों १०:१०) लेकिन पौलुस ने ऐसी आलोचना का यह कहकर जवाब दिया: “भले ही मैं बोलने में निपुण नहीं, फिर भी ज्ञान में तो हूं।” (२ कुरिन्थियों ११:६, NHT) जी हाँ, यदि पौलुस के सुननेवालों ने उसकी भाषण-शैली को छोड़ उसके भाषण पर ध्यान दिया होता तो उन्होंने “परमेश्वर की गूढ़ बातें” सीखी होतीं। (१ कुरिन्थियों २:१०) उसी तरह आप भी यदि ध्यान लगाकर सुनें तो एक “बेजान” वक्ता की भी बातों से सीख सकते हैं। कौन जाने? वह शायद किसी चीज़ को हल्के-से अलग अर्थ में बताए या शास्त्रवचन को उस तरह से लागू करे जिसके बारे में आपने पहले कभी नहीं सोचा।
लूका ८:१८ में यीशु के शब्द इसका अच्छा निचोड़ देते हैं: “चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो।” माना, ध्यान लगाना—और मन को भटकने से रोकना—सीखने के लिए प्रयास और अभ्यास की ज़रूरत होगी। लेकिन कुछ समय बाद आपको बहुत लाभ होगा। ध्यान लगाना सीखेंगे तो शायद ज़्यादा अच्छे नंबर आने लगें—और उससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आपका आध्यात्मिक विकास होगा!
[फुटनोट]
a हमारे अगस्त ८, १९९८ के अंक में प्रकाशित लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . मेरा ध्यान क्यों नहीं लगता?” देखिए।
[पेज 21 पर तसवीर]
ध्यान लगाने के लिए ज़रूरी है कि जो बात आप सुन रहे हैं उसमें दिलचस्पी लें