डर और चिंता—दुनिया की महामारी
क्या आपको कभी-कभी लगता है कि आपकी ज़िंदगी के साथ कभी-भी कुछ-भी हो सकता है? आप अकेले नहीं। लाखों-करोंड़ों लोग ऐसा ही महसूस करते हैं। चाहे हम किसी भी देश, किसी भी धर्म या समाज के क्यों न हों, डर और चिंता एक महामारी की तरह पूरी दुनिया में फैली हुई है।
एक डिक्शनरी कहती है कि जब हमें ज़िंदगी में असुरक्षा महसूस होती है तब “डर और चिंता हम पर हमला बोल देते हैं।” डर और चिंता दिल और दिमाग पर एक बोझ है, जिससे बहुत टेन्शन हो जाती है और इसका हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर हो सकता है। मगर हमें डर और चिंता क्यों सताती है?
यूरोपीय देशों में डर और चिंता की वज़ह
यूरोपीय संघ के देशों में, ६ में से १ व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे जीता है, १.८ करोड़ लोगों के पास नौकरी नहीं है, और बेशुमार लोगों को अपनी नौकरी खोने का डर है। यूरोप की कई जगहों में माता-पिताओं की रातों की नींद हराम हो गई है क्योंकि उनके बच्चों को ऐसे लोगों से खतरा है जो उन्हें अपनी लैंगिक हवस का शिकार बनाते हैं। एक ऐसे ही देश में, ३ में से २ लोगों को अपराध की चिंता सताती है। यूरोप के बाकी लोगों में अपनी जान-माल की, आतंकवाद की, और प्रदूषण की चिंता बढ़ रही है।
लोगों की जान-माल को खतरा सिर्फ समाज की ऐसी बुराइयों की वज़ह से ही नहीं है, बल्कि प्राकृतिक विपदाओं से भी है। मिसाल के तौर पर, १९९७ और १९९८ में, तेज़ बारिश, भू-स्खलन, और बवंडरों ने अमरीका के कुछ भागों में तबाही मचा दी। १९९७ में, मध्य यूरोप में ऑडर और निस्सॆ नदियों का बांध टूट गया, जिससे वहाँ बाढ़ आ गयी। पोलैंड की साप्ताहिक पत्रिका पोलिटिका के मुताबिक, खेती के बड़े भाग के साथ-साथ करीब ८६ शहर और कस्बे और ९०० गाँव पानी में डूब गए। करीब ५०,००० घरों की खेती बर्बाद हो गई और करीब ५० लोग मारे गए। और १९९८ की शुरुआत में भू-स्खलन ने दक्षिण इटली के कई लोगों की जान ली।
हमारी अपनी सुरक्षा का क्या?
मगर क्या हमें यह यकीन नहीं दिलाया जाता कि हमारी ज़िंदगी पिछले १० साल के मुकाबले अब काफी सुरक्षित है? क्या शीत युद्ध के खत्म होने के बाद से हथियारों में कटौती नहीं हुई है? जी हाँ, राष्ट्र की सुरक्षा में शायद सुधार आया हो। मगर जब हमारी अपनी सुरक्षा की बात आती है, तो चार-दीवारी के अंदर और बाहर, यानी घर के अंदर और सड़कों पर जो भी होता है, उसका असर हमारी अपनी सुरक्षा पर पड़ता है। अगर हम अपनी नौकरी से हाथ धो बैठें या अगर हमारे घर के आस-पास कहीं कोई चोर-लुटेरा या बच्चों का अपनी हवस का शिकार बनानेवाला खुला घूम रहा है, तो हथियारों में भले ही कितनी भी कटौती क्यों न की गयी हो, हमारे दिल पर डर और चिंता का भूत सवार हो जाता है।
कुछ लोग ज़िंदगी के इन बदलावों से कैसे झूझ रहे हैं? इससे भी ज़रूरी सवाल यह है कि क्या आपकी—और हम सब की—ज़िंदगी को हमेशा-हमेशा के लिए डर और चिंता की गर्दिश से निकालने का कोई रास्ता है? आइए अगले दो लेखों में इनका जवाब देखें।
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UN PHOTO 186705/J. Isaac
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