युवा लोग पूछते हैं . . .
क्या काल्पनिक किरदारोंवाले खेल खेलना खतरनाक है?
“यह सपनों की दुनिया है। कभी आप जादूगर बन जाते हैं, तो कभी सिपाही। आप तरह-तरह के रूप अपना सकते हैं, जो चाहे वो बन सकते हैं। आप पर कोई बंदिश नहीं होती।”—क्रीसटॉफ।
“आप कुछ भी बन सकते हैं।” एक पत्रिका ने इन शब्दों में कल्पना की दुनिया में ले जानेवाली एक लोकप्रिय विडियो गेम के बारे में बताया। आजकल लाखों नौजवान ऐसे विडियो गेम्स् बहुत पसंद करते हैं जिनमें वे अलग-अलग किरदार निभाते हुए एक निराली दुनिया में खो जाते हैं। मगर, ये काल्पनिक किरदारोंवाले गेम्स् क्या होते हैं?
किताब ज़्हो डा रोल (काल्पनिक किरदारोंवाला खेल) के अनुसार इस खेल में, “हर खिलाड़ी, किसी जानी-मानी काल्पनिक हस्ती का किरदार निभाते हुए एक निराली-सी दुनिया में किसी मिशन या खोज के लिए निकल पड़ता है, जिसमें वह कई खतरों का सामना करता है।” खेल का यही मकसद होता है कि आप अपने मिशन को पूरा करने के लिए ज़रूरी पैसा, हथियार, चमत्कारी शक्ति या अनुभव हासिल करते जाएँ और इस तरह अपने किरदार में जान डाल दें।
१९७० के दशक में ‘डन्जियन्स एण्ड ड्रॆगन्स’ नाम से निकला एक खेल लोगों को बहुत पसंद आया और इसी से काल्पनिक किरदारोंवाले विडियो गेम्स् की शुरूआत हुई।a और तब से विडियो गेम्स् के ज़रिए करोड़ों डॉलर कमाए जाते हैं। इनमें बोर्ड गेम्स्, ट्रेडिंग काड्र्स, इंटरैक्टिव पुस्तकें, कंप्यूटर गेम्स् और लाइव-ऐक्शन गेम्स् भी शामिल हैं। इन खेलों में खिलाड़ी बड़े-बड़े साहसी काम करके दिखाते हैं। अनुमान है कि अमरीका में ६० लाख से ज़्यादा लोग इन खेलों में लगातार हिस्सा लेते हैं और यूरोप में भी ऐसे खिलाड़ी लाखों की तादाद में हैं। फ्रांस के कई हाइ-स्कूलों में ऐसे क्लब हैं जहाँ पर काल्पनिक किरदारोंवाले विडियो गेम खेले जाते हैं और जापान में बाकी वीडियो गेम्स् से ज़्यादा इन्हें पसंद किया जाता है।
इन खेलों को बढ़ावा देनेवाले दावा करते हैं कि इन खेलों से कल्पना-शक्ति बढ़ती है, खिलाड़ी मुश्किलों का सामना करना सीखते हैं और उनमें मिलजुलकर काम करने की अच्छी आदत पैदा होती है। लेकिन कुछ लोग इन खेलों के खिलाफ भी हैं। उनका कहना है कि इन खेलों की वज़ह से ही कई आत्महत्याएँ, कत्ल, बलात्कार हुए हैं और कब्रिस्तानों को तहस-नहस किया गया है और शैतानी काम किए गए हैं। स्पेन के मैड्रिड शहर में दो युवाओं को इस शक की बिनाह पर गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने किसी काल्पनिक किरदार की एक्टिंग करते-करते ५२ साल के एक आदमी का कत्ल किया। इसी तरह के एक खेल में, एक जापानी लड़के ने अपने माता-पिता की हत्या कर दी और फिर अपनी कलाइयों को चीर डाला। यह सच है कि ऐसा कभी-कभार ही होता है क्योंकि अधिकतर खिलाड़ी अकलमंद और मिलनसार होते हैं। फिर भी, हमारे जवान भाई-बहनों को अपने आप से यह पूछना चाहिए, ‘क्या मुझे काल्पनिक किरदारोंवाले विडियो गेम खेलने चाहिए? क्या इसमें कोई सावधानी बरतने की ज़रूरत है?’
हिंसा और जादू
काल्पनिक किरदारोंवाले विडियो गेम अलग-अलग प्रकार के होते हैं और उनकी कहानी भी अलग-अलग होती है। फिर भी, इनमें से कई खेलों में हिंसा होती है। दरअसल, इन खेलों में जिस तरह की दुनिया पैदा की जाती है उसमें अगर आप खून-खराबा नहीं करते तो आप न तो ज़िंदा रह पाएँगे न ही कामयाब होंगे। तो फिर, क्या ऐसे खेल खेलना बाइबल में दी गयी सलाह के मुताबिक होगा? नीतिवचन ३:३१ कहता है: “उपद्रवी पुरुष के विषय में डाह न करना, न उसकी सी चाल चलना।” बाइबल हमसे यह भी कहती है कि हिंसा को नहीं बल्कि ‘मेल मिलाप को ढूंढें, और उसके यत्न में रहें।’—१ पतरस ३:११.
एक और चिंता की बात यह है कि इनमें से कई खेलों में जादू होता है। अकसर खिलाड़ी कोई जादूगर या तांत्रिक बन सकता है जिसके पास जादुई शक्ति होती है। और किसी मुश्किल को पार करने या दुश्मन पर जीत हासिल करने के लिए जादू-टोना किया जाता है। एक पसंदीदा खेल के बारे में कहा जाता है कि उसमें “खिलाड़ी अच्छे स्वर्गदूतों के प्रधान या दुष्ट पिशाचों के सरदार की सेवा करने के लिए या तो स्वर्गदूत का या पिशाचों का किरदार अदा कर सकते हैं। . . . खेल को और भी मज़ेदार बनाने के लिए पवित्र समझी जानेवाली चीज़ों का मज़ाक उड़ाया जाता है।” एक ऐसा भी कंप्यूटर गेम है जिसमें खिलाड़ी को सिर्फ “शैतान” शब्द टाइप करना होता है और वह शक्तिमान बन जाता है।
साक्षियों में कुछ युवा यह मानते हैं कि इन काल्पनिक किरदारोंवाले खेल में कोई बुराई नहीं है, अगर इसमें हद-से-ज़्यादा समय न बिताया जाए। एक युवा कहता है, “यह तो सिर्फ एक खेल है।” शायद यह सच हो, मगर परमेश्वर ने इस्राएलियों को आगाह किया था कि जादू-टोना बिलकुल भी न करें। मूसा को दी गयी कानून-व्यवस्था में बताया गया था कि “भावी कहनेवाला, वा शुभ अशुभ मुहूर्त्तों का माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, वा बाजीगर, वा ओझों से पूछनेवाला, . . . वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं।”—व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२.
तो क्या ऐसा कोई खेल खेलना अकलमंदी होगी जिसमें जादू-टोना होता है? क्या जादूगर का रूप धरकर खेल खेलना, ‘शैतान की गहिरी बातों’ में उलझने के बराबर नहीं होगा? (प्रकाशितवाक्य २:२४) एक युवा कहता है: “दिन भर किरदारोंवाला गेम खेलने के बाद मुझे घर से निकलने में डर लग रहा था। मुझे लगा जैसे कोई मुझ पर हमला कर देगा।” ऐसी दहशत पैदा करनेवाला खेल क्या अच्छा हो सकता है?
कुछ और वज़हें
पहला कुरिन्थियों ७:२९, कहता है, “समय कम किया गया है।” इसलिए एक और चिंता की बात यह है कि अकसर ऐसे विडियो गेम्स् में बहुत ज़्यादा समय बरबाद होता है। कुछ खेलों में कई-कई घंटे, दिन, यहाँ तक कि हफ्ते भी लग जाते हैं। और तो और, खेल इतना दिलचस्प हो सकता है या उसकी ऐसी लत लग सकती है कि और कोई बात मायने ही नहीं रखती। एक युवा कहता है, “खेलते वक्त मैं बाधाएँ पार करता गया और इसके बाद मैं उनसे भी मुश्किल और सच लगनेवाली बाधाओं को पार करना चाहता था। मुझे इस खेल की लत लग चुकी थी।” सोचने की बात है, ऐसी लत बच्चों की पढ़ाई पर और परमेश्वर की उनकी सेवा पर कैसा असर डालेगी?—इफिसियों ५:१५-१७.
जापान का एक युवा कहता है: “मैं हमेशा इस धुन में रहता था कि मैं अगली बार कौन-सी चाल चलूँगा, तब भी जब मैं गेम नहीं खेल रहा होता था। चाहे स्कूल में होऊँ या सभाओं में, मैं गेम के सिवा कुछ और सोच ही नहीं पाता था। मेरी हालत ऐसी हो गयी कि मुझे और कोई बात सूझती ही नहीं थी। मेरी आध्यात्मिकता तार-तार हो गयी।” क्रीसटॉफ, जिसका ज़िक्र शुरू में किया गया है, बताता है कि वह “हकीकत की दुनिया से दूर हो गया था।” बेशक, “हंसने का भी समय . . . और नाचने का भी समय है,” लेकिन मनोरंजन में इतना डूब जाना क्या ठीक होगा कि परमेश्वर के काम के लिए समय ही न रहे?—सभोपदेशक ३:४.
इस बात पर भी गौर कीजिए कि एक खेल किस किस्म की भावना पैदा करता है। फ्रांस की एक पत्रिका काल्पनिक किरदारोंवाले विडियो गेम की बिक्री बढ़ाने के लिए कहती है: “बहुत सोच-समझकर आपको ऐसे-ऐसे गंदे, घिनौने और नीच काम दिखाने की तैयारी की गयी है, जिन्हें देखकर आपका दिल दहल जाएगा और इसके बाद आप इस दुनिया को अलग ही नज़र से देखने लगेंगे।” क्या ऐसी भावना बाइबल की इस सलाह से मेल खाती है कि “बुराई में तो बालक रहो”? (१ कुरिन्थियों १४:२०) आखिरकार क्रीसटॉफ ने यह कबूल किया कि जो खेल वह खेल रहा था, वे “सच्चे मसीहियों के लायक नहीं” थे। वह आगे कहता है: “मुझे यह ठीक नहीं लग रहा था कि एक तरफ तो मैं प्रचार करता हूँ, सभाओं में जाकर अच्छी-अच्छी बातें सीखता हूँ, जैसे कि मसीह जैसा प्रेम दिखाना, और दूसरी तरफ मैं ऐसा खेल खेलता हूँ जो मसीही विश्वास से बिलकुल भी मेल नहीं खाता। ऐसा करना ठीक नहीं है।”
सपना या हकीकत?
बहुत-से नौजवान हकीकत से मुँह मोड़कर सपनों की दुनिया में खोए रहना चाहते हैं और इसीलिए ये खेल खेलते हैं। लेकिन ऐसा करना क्या किसी के लिए भी अच्छा होगा? फ्राँसीसी समाज-विज्ञानी लॉराँ ट्रेमॆल कहते हैं: “हकीकत की दुनिया, जहाँ हम यह नहीं जानते कि आगे क्या होगा, . . . खेलों की उस दुनिया से कितनी अलग है, जो सच तो लगती है, मगर हकीकत से कोसों दूर होती है। खेल खेलते-खेलते आप जान जाते हैं कि आपको आगे क्या करना है। आप अपने किरदार को जो चाहे वो रूप दे सकते हैं, उसे अपने जैसा या जैसा आप बनना चाहते हैं वैसा बना सकते हैं।” मानसिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञ ऎटी बूज़िन इसी विषय में कहती हैं: “खेलते समय युवाओं को लगता है कि वे खतरों से खेल रहे हैं, दुनिया को एक नया रूप दे रहे हैं, मगर हकीकत में वे किसी भी खतरे का सामना करने के काबिल नहीं हैं। वे समाज से और उसकी बंदिशों से दूर भाग रहे हैं।”
इस तरह हकीकत से मुँह मोड़ लेने से सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है, क्योंकि खेल खत्म होते ही ज़िंदगी की हकीकतें फिर से सामने आ जाती हैं। इन हकीकतों का कभी-न-कभी तो सामना करना ही होगा। कल्पना की दुनिया में मिली हज़ारों कामयाबियाँ या वीरता के काम, असल ज़िंदगी की एक नाकामयाबी को छिपा नहीं सकतीं। ज़िंदगी की सच्चाइयों का डटकर सामना करना ही सबसे बड़ा हिम्मत का काम है! हकीकत की ज़िंदगी में आनेवाली मुश्किलों का सामना करके अपनी ज्ञानेंद्रियों को पक्का कीजिए। (इब्रानियों ५:१४) ऐसे आध्यात्मिक गुण पैदा कीजिए जो आपको समस्याओं का सामना करने में मदद दें। (गलतियों ५:२२, २३) ऐसा करने से आपको जो संतोष मिलेगा और जो फायदा होगा वो कोई भी खेल खेलने से आपको नहीं मिल सकता।
हमारे कहने का यह मतलब नहीं कि काल्पनिक किरदारोंवाले सभी विडियो गेम्स् से नुकसान ही होता है। यीशु के मुताबिक, बाइबल के ज़माने में भी छोटे बच्चे ऐसे खेल खेलते थे जिसमें काफी कुछ कल्पना होती थी और वे अलग-अलग किरदार निभाते थे। (लूका ७:३२) और यीशु ने ऐसे मनोरंजन को गलत नहीं बताया जिससे किसी को नुकसान नहीं होता। लेकिन, मसीही जवानों को और उनके माता-पिता को भी चाहिए कि ‘परखते रहें कि प्रभु को क्या भाता है।’ (इफिसियों ५:१०) कोई भी खेल खेलने से पहले खुद से पूछिए, ‘क्या इससे “शरीर के काम” प्रकट होंगे? क्या इससे परमेश्वर के साथ मेरे रिश्ते में दरार पड़ जाएगी?” (गलतियों ५:१९-२१) अगर आप इन बातों पर ध्यान देंगे, तो आप इस बारे में सोच-समझकर फैसला कर पाएँगे कि किरदारोंवाले गेम्स् खेलें या नहीं।
[फुटनोट]
a मार्च २२, १९८२ की अँग्रेज़ी सजग होइए! में पृष्ठ २६-७ देखिए।
[पेज 15 पर तसवीरें]
काल्पनिक किरदारोंवाले कुछ खेल किस प्रकार की भावना पैदा करते हैं?