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  • एक अच्छा नागरिक कौन होता है?

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  • एक अच्छा नागरिक कौन होता है?
  • सजग होइए!–1999
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  • “हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रह”
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सजग होइए!–1999
g99 10/8 पेज 26-27

बाइबल का दृष्टिकोण

एक अच्छा नागरिक कौन होता है?

दूसरे विश्‍व-युद्ध के बाद, यूरोप और जापान में बहुत-से ऐसे लोगों पर मुकद्दमा चलाया गया जो खुद को कानून का पालन करनेवाले नागरिक समझते थे। उनमें मिलिट्री के बड़े-बड़े अफसर, वैज्ञानिक और कारोबार करनेवाले शामिल थे जिन्होंने युद्ध के समय राक्षसी हरकतें की थीं। उन मुजरिमों ने अपने कारनामों की सफाई देते हुए क्या कहा? उन्होंने कहा कि हमने तो बस वही किया जो एक नागरिक को करना चाहिए। हमें जो ऑर्डर मिला था उसी के मुताबिक हमने किया। वे ऐसे नागरिक थे जिन्होंने सरकार के प्रति इतनी वफादारी दिखाई कि इंसानियत के खिलाफ शर्मनाक जुर्म तक किए।

दूसरी तरफ आज ऐसे लोग भी हैं जो सरकार के अधिकार की कोई परवाह नहीं करते। कुछ तो उनके खिलाफ खुलेआम विद्रोह करते हैं और कुछ ऐसे भी हैं कि अगर उन्हें कोई देखनेवाला ना हो तो कानून तोड़ने में उन्हें ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं होती। कुछ तब तक कानून तोड़ते रहते हैं जब तक उन्हें पकड़े जाने का खतरा नहीं होता। लेकिन ज़्यादातर लोग मानते हैं कि हमें सरकार के कायदे-कानूनों के अधीन इसलिए रहना चाहिए, क्योंकि अगर कोई भी इनके अधीन नहीं रहेगा तो सब जगह गड़बड़ी और आतंक फैल सकता है। इसलिए यह सवाल पैदा होता है कि एक नागरिक का असल कर्त्तव्य क्या है, और किस हद तक उसे सरकार और अधिकारियों के मुताबिक चलना चाहिए? आइए कुछ आम सिद्धांतों को देखते हैं जिनसे पहली शताब्दी के मसीहियों को यह समझने में मदद मिली थी कि उन्हें किस हद तक सरकार के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करना है।

‘अधिकारियों’ के अधीन मसीही

पहली शताब्दी के मसीही खुशी-खुशी “प्रधान अधिकारियों” यानी सरकार के अधीन रहते थे। (रोमियों १३:१) मसीही विश्‍वास करते थे कि ‘सरकारों और अधिकारियों के अधीन रहना, और उनकी आज्ञा मानना’ सही है। (तीतुस ३:१) हालाँकि वे मानते थे कि मसीह उनका स्वर्गीय राजा है, मगर वे मानव-सरकारों के प्रति भी अधीनता दिखाते थे, और कभी भी देश के अमन-चैन के लिए खतरा नहीं बने। दरअसल उन्हें यह हिदायत दी गई थी कि हमेशा “राजा का सम्मान करो।” (१ पतरस २:१७) प्रेरित पौलुस ने तो मसीहियों से यहाँ तक कहा: “अब मैं सब से पहिले यह उपदेश देता हूं, कि बिनती, और प्रार्थना, और निवेदन, और धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएं। राजाओं और सब ऊंचे पदवालों के निमित्त इसलिये कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्‍ति और गम्भीरता से जीवन बिताएं।”—१ तीमुथियुस २:१, २.

पहली शताब्दी के मसीहियों से जितने टैक्स की माँग की जाती थी उसे वे पूरी ईमानदारी से देते थे चाहे ऐसा करना उन्हें बोझ ही क्यों न लगे। इस मामले में वे प्रेरित पौलुस द्वारा परमेश्‍वर से मिले निर्देशन के मुताबिक चलते थे: “हर एक का हक्क चुकाया करो, जिसे कर चाहिए, उसे कर दो।” (रोमियों १३:७) यीशु के चेले यह मानते थे कि रोमी सरकार और उसके अधिकारी परमेश्‍वर की अनुमति से ही शासन कर रहे हैं और एक मायने में वे देश में शांति और सुरक्षा कायम रखने के लिए ‘परमेश्‍वर के सेवकों’ के तौर पर काम करते हैं।—रोमियों १३:६.

“हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रह”

पहली शताब्दी के मसीहियों को प्रोत्साहित किया गया था कि सरकार उनसे जो सेवा करवाना चाहती है उसे वे करें। यीशु मसीह ने अपने चेलों को सलाह दी थी कि जब सरकारी अधिकारी हमसे कुछ करने की माँग करते हैं तो हमें उस माँग से ज़्यादा करने की इच्छा होनी चाहिए। यीशु ने कहा: “जो कोई [अधिकारी] तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।” (मत्ती ५:४१) इस सलाह को मानते हुए मसीहियों ने साबित किया कि वे समाज में रहकर मिलनेवाली सहूलियतों का सिर्फ फायदा ही नहीं उठाते मगर बदले में समाज की भलाई में अपना योगदान भी देते हैं। वे हमेशा हर ‘अच्छे काम के लिये तैयार रहते’ थे।—तीतुस ३:१; १ पतरस २:१३-१६.

मसीही अपने पड़ोसियों से सच्चा प्यार करते थे और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। (मत्ती २२:३९) पहली शताब्दी के मसीहियों के प्यार और बेहतरीन चाल-चलन की वज़ह से समाज पर बहुत अच्छा असर पड़ा। मसीहियों के आस-पास रहनेवाले परिवारों को इस बात की बेहद खुशी होती थी कि उनके पड़ोस में एक मसीही परिवार रहता है। (रोमियों १३:८-१०) मसीही दूसरों से प्यार करने की खातिर न सिर्फ बुराई से दूर रहते थे बल्कि वे दूसरों की भलाई करने के लिए हमेशा तैयार भी रहते थे। उन्हें प्रोत्साहित किया गया था कि वे यीशु मसीह की तरह खुद आगे बढ़कर दूसरों की भलाई करें, “[सिर्फ विश्‍वासी भाइयों के साथ ही नहीं बल्कि] सब के . . . [साथ]।”—गलतियों ६:१०.

“मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना”

लेकिन मसीहियों के लिए सरकारी हुक्म मानने की एक हद थी। वे ऐसा कोई काम नहीं करते जिसकी वज़ह से उनका ज़मीर उन्हें सताता या परमेश्‍वर के साथ उनका रिश्‍ता खराब होता। उदाहरण के लिए, जब यरूशलेम की यहूदी महासभा ने प्रेरितों को यह हुक्म दिया कि वे यीशु के बारे में प्रचार न करें, तब प्रेरितों ने उनकी नहीं सुनी। उन्होंने डंके की चोट पर यह ऐलान किया: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” (प्रेरितों ५:२७-२९) मसीहियों ने सम्राट की उपासना करने से भी साफ इंकार कर दिया था। (१ कुरिन्थियों १०:१४; १ यूहन्‍ना ५:२१; प्रकाशितवाक्य १९:१०) इसका नतीजा क्या हुआ? इतिहासकार जे. एम. रॉबर्ट कहता है: “उन्हें दोषी ठहराया गया। इसलिए नहीं कि वे मसीही थे बल्कि इसलिए कि उन्होंने सरकार का हुक्म नहीं माना था।”—शॉर्टर हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड।

इस मामले में मसीहियों ने ‘सरकार का हुक्म क्यों नहीं माना’? क्योंकि वे जानते थे कि “प्रधान अधिकारियों” को शासन करने की अनुमति परमेश्‍वर से इसलिए मिली है ताकि वे ‘परमेश्‍वर के सेवक’ के तौर पर समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखें। (रोमियों १३:१, ४) मगर मसीही यह भी जानते थे कि परमेश्‍वर की आज्ञा सरकार के हुक्म से कहीं ज़्यादा बढ़कर है। इसके अलावा, उन्हें याद था कि उन्हें यीशु मसीह द्वारा दिया गया यह सिद्धांत मानना ज़रूरी है: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।” (मत्ती २२:२१) इसलिए परमेश्‍वर के प्रति उनकी यह ज़िम्मेदारी थी कि वे कैसर की माँगों से बढ़कर परमेश्‍वर के नियमों का पालन करें।

सच्चे मसीहियों ने जो किया वह एकदम सही था क्योंकि जब मसीही होने का दावा करनेवालों ने इन बेहतरीन सिद्धांतों को नहीं माना तब अंजाम बहुत बुरा हुआ। उदाहरण के लिए, मिलिट्री इतिहासकार जॉन कीगन कहता है, कि मसीहीजगत के पादरी “सरकार के हाथों की कठपुतली बन गए। खासकर उन्होंने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को सेना में भर्ती करने में सरकार की मदद की।” उनके अनुयायियों ने युद्धों में हिस्सा लिया और इसकी वज़ह से लाखों बेकसूर लोग मारे गए। कीगन आगे कहता है: “जब इंसान खून का प्यासा हो जाता है तो परमेश्‍वर के वचन को एक तरफ रख देता है।”

लेकिन पहली शताब्दी के मसीहियों ने हमारे लिए एक बहुत ही अच्छी और एकदम सही मिसाल रखी। वे बेहतरीन नागरिक थे। उन्होंने सरकार के प्रति सेवा और ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाया। मगर उन्होंने बाइबल के सिद्धांतों का भी हमेशा पालन किया और वे बाइबल से ढले हुए विवेक के मुताबिक जीवनभर चलते रहे।—यशायाह २:४; मत्ती २६:५२; रोमियों १३:५; १ पतरस ३:१६.

[पेज 26 पर तसवीर]

‘जो कैसर का है, वह कैसर को दो’

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