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सोच-समझकर टीवी देखिए

अमरीका में मीडिया पर नज़र रखनेवालों ने एक रिपोर्ट तैयार की, जनता के लिए संदेश—अमरीका में टीवी। इस रिपोर्ट ने कहा कि “टीवी ही रिपोर्टर है, टीवी ही बच्चों की आया है, टीवी ही जनता के सोच-विचार को ढालता है।” यह रिपोर्ट आगे कहती है, “हमारे चारों तरफ टेलीविज़न ही टेलीविज़न है . . . जैसे सिगरेट का धुँआ सारे माहौल को ज़हरीला बना देता है वैसे ही टीवी पर आनेवाले ढेरों प्रोग्राम हैं।” घंटों बैठकर इन्हें देखना सिगरेट के धुँए में साँस लेने के बराबर है। ऐसा करना खतरे से खाली नहीं, खासकर बच्चों के लिए।

टीवी में दिखाए जानेवाले जुर्म और हिंसा के बारे में यही रिपोर्ट कहती है, “की गयी जाँच से पता चला है कि खून-खराबा देखते रहने से बच्चे की सीखने की काबिलीयत और ज़िंदगी में कुछ कर दिखाने का इरादा कमज़ोर हो जाता है। वह दूसरों का दर्द महसूस नहीं कर पाता।” सन्‌ 1992 में अमरीकी चिकित्सा समुदाय ने कहा, “टेलीविज़न पर दिखायी जानेवाली हिंसा, बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाती है।”

टीवी के बुरे असर से आप अपने बच्चों को कैसे बचा सकते हैं? इस बारे में यह रिपोर्ट कई सुझाव देती है। ये सुझाव बहुत-से सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों से मिले मशविरों से लिए गए हैं। इनमें से कुछ सुझाव यहाँ नीचे दिए गये हैं, जो हमें बतलाते हैं कि टीवी देखने के मामले में किस तरह सावधानी बरतनी ज़रूरी है।

◼ पहले से ही तय कीजिए कि कितना समय टीवी देखेंगे और यह समय कम ही रखिए। और यह भी तय कीजिए कि बच्चे किस वक्‍त टीवी देख सकते हैं। बच्चों के कमरे में टीवी रखने की गलती मत कीजिए।

◼ टीवी के साथ एक ग्लोब रखिए ताकि प्रोग्राम में दिखायी जानेवाली जगहों को बच्चे ग्लोब में ढूँढ़ सकें।

◼ अपने बच्चों के साथ बैठकर टेलीविज़न देखिए ताकि आप उन्हें बता सकें कि जो दिखाया जा रहा है उसमें से कितना सच है और कितनी कहानी। दस साल से कम उम्र के बहुत-से बच्चों को टीवी में दिखाई जानेवाले काल्पनिक सीरियल असली लगते हैं। वे यह नहीं समझ पाते कि इनमें दिखाई गई सब बातें सच नहीं है।

◼ टेलीविज़न को ऐसे केबिनेट में रखिए जिसे ताला लगाया जा सके। इस तरह कोई भी आसानी से टीवी नहीं चला पायेगा।

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