वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g21 अंक 3 पेज 4-5
  • ब्रह्‍मांड से क्या पता चलता है?

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • ब्रह्‍मांड से क्या पता चलता है?
  • सजग होइए!—2021
  • मिलते-जुलते लेख
  • हमारी खूबसूरत पृथ्वी पर ज़िंदगी का लुत्फ उठाइए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • हमारा अनोखा सौर-मंडल—इसकी शुरूआत कैसे हुई
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • सृजने की शक्‍ति—‘आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता’
    यहोवा के करीब आओ
  • सिरजनहार को जानना आपकी ज़िंदगी को मकसद दे सकता है
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
और देखिए
सजग होइए!—2021
g21 अंक 3 पेज 4-5
कुछ लोग रात को एक पहाड़ की चोटी पर खड़े हैं और आसमान के तारे और ग्रह देख रहे हैं। उनमें से एक टेलीस्कोप से देख रहा है।

ब्रह्‍मांड से क्या पता चलता है?

ब्रह्‍मांड इतना लाजवाब है कि वैज्ञानिक इसे देखकर दंग रह जाते हैं। आज उनके पास तारों और ग्रहों का अध्ययन करने के लिए एक-से-बढ़कर-एक टेलिस्कोप वगैरह हैं। उन्होंने क्या पता किया है?

ब्रह्‍मांड में हर चीज़ अपनी जगह पर है। ऐस्ट्रोनॉमी  पत्रिका में लिखा था, “मंदाकिनियाँ (यानी अरबों-खरबों तारों का समूह) अंतरिक्ष में बस यूँ ही नहीं बिखरी हुई हैं, बल्कि कायदे से अपनी-अपनी जगह पर हैं, ठीक जैसे मकड़ी का जाला नज़र आता है।” वैज्ञानिक मानते हैं कि यह सब शायद एक ऐसी चीज़ की वजह से मुमकिन हुआ है जो दिखाई नहीं देती। इसे आन्ध्र पदार्थ या डार्क मैटर कहा जाता है। उसी पत्रिका में लिखा था कि डार्क मैटर एक ढाँचे जैसा है। यह मंदाकिनियों, मंदाकिनियों के समूहों (क्लस्टर) और उनके बड़े समूहों (सुपर-क्लस्टर) को उनकी अपनी-अपनी जगह पर टिकाए रखता है।

ब्रह्‍मांड में सब कुछ कायदे और तरतीब से क्यों है? क्या यह अपने आप हो गया? ध्यान दीजिए कि इस बारे में ऐलन सैनडेज ने क्या कहा। एक अखबार के मुताबिक ‘वे बीसवीं शताब्दी के बहुत ही जाने-माने खगोल वैज्ञानिक थे’ और वे ईश्‍वर को मानते थे।

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि ब्रह्‍मांड में ऐसा बढ़िया तालमेल किसी धमाके से हुआ होगा। ज़रूर किसी वजह से यह व्यवस्था हुई होगी।’

ब्रह्‍मांड के नियम बहुत सटीक हैं, इसीलिए पृथ्वी पर जीव हैं। ज़रा सूरज पर ध्यान दीजिए। यह एक तरह के बल की वजह से चमकता है जिसे दुर्बल नाभकीय बल (या वीक फोर्स) कहा जाता है। अगर यह बल थोड़ा कम होता, तो सूरज कभी बनता ही नहीं। और अगर थोड़ा ज़्यादा होता, तो सूरज कब का जलकर खत्म हो चुका होता।

जिस तरह सूरज में यह बल न कम है न ज़्यादा, बिलकुल सही है, उसी तरह ब्रह्‍मांड में और भी कई बल और नियम हैं जो बिलकुल सटीक हैं। इस वजह से इंसान, पेड़-पौधे और जानवर ज़िंदा हैं। लेखक अनिल अनंतस्वामी कहते हैं कि अगर इनमें से किसी नियम में ज़रा-भी फर्क होता, तो “तारे, ग्रह और मंदाकिनियाँ बनती ही नहीं और न ही कोई जीव होता।”

ब्रह्‍मांड में सिर्फ पृथ्वी इंसानों के लिए सही जगह है। पृथ्वी पर पानी की मात्रा और वायुमंडल बिलकुल सही है। चाँद भी बिलकुल सही आकार का है। इसी वजह से पृथ्वी अपनी जगह पर बनी रहती है। नैशनल ज्यॉग्रैफिक  पत्रिका में लिखा था कि पृथ्वी पर जो हवा-पानी, पेड़-पौधे और जीव हैं, उन सबकी वजह से पृथ्वी पर बिलकुल सही वातावरण है। इसलिए यही ऐसा ग्रह है जहाँ इंसान ज़िंदा रह सकते हैं।a

वैज्ञानिक बताते हैं कि हमारा सौर मंडल आकाशगंगा के बाकी तारों से बहुत दूर है। इसी वजह से पृथ्वी पर जीव हैं। हमारी आकाशगंगा सर्पिल आकार की है जिससे कई भुजाएँ निकलती हैं। इसके केंद्र में और भुजाओं में तारे ज़्यादा हैं। अगर हमारा सौर मंडल आकाशगंगा के केंद्र में या किसी भुजा में होता, तो तारों के रेडिएशन की वजह से कोई ज़िंदा नहीं रह पाता। हमारा सौर मंडल आकाशगंगा में बिलकुल सही जगह पर है। इसी वजह से इंसान, पेड़-पौधे और जानवर ज़िंदा रह पाते हैं।

भौतिक वैज्ञानिक पॉल डेवीस ने ब्रह्‍मांड और इसके नियमों का काफी अध्ययन करने के बाद कहा, ‘मैं इस बात को नहीं मान सकता कि हम इत्तफाक से बन गए या दुनिया में किसी हादसे या गलती की वजह से आ गए। हम दुनिया में क्यों हैं, इसके पीछे ज़रूर कोई-न-कोई वजह है।’ उन्होंने यह तो नहीं कहा कि ब्रह्‍मांड और इंसानों को ईश्‍वर ने बनाया, पर ज़रा सोचिए, सिर्फ पृथ्वी पर ही इंसान, जानवर और पेड़-पौधे ज़िंदा रह सकते हैं। कहीं इसकी यह वजह तो नहीं कि ब्रह्‍मांड और पृथ्वी को इस तरह रचा गया था? आपको क्या लगता है?

a नैशनल ज्यॉग्रैफिक  में ऐसा कुछ नहीं बताया गया था कि पृथ्वी और इंसानों को ईश्‍वर ने बनाया है। इसमें सिर्फ यह लिखा था कि पृथ्वी इंसानों के रहने के लिए बिलकुल सही जगह है।

ज़रा सोचिए:

लोग अखबार या मोबाइल ऐप से सही-सही पता लगा पाते हैं कि सूरज और चाँद कब निकलेगा और ढलेगा। यह इत्तफाक से नहीं हो जाता। ऐप बनानेवाले अंतरिक्ष के नियमों के मुताबिक इसका अनुमान लगाते हैं। तो आपको क्या लगता है, क्या अंतरिक्ष के नियम खुद-ब-खुद बन गए होंगे या किसी ने इन्हें बनाया होगा?

एक आदमी अपने स्मार्टफोन में देख रहा है कि सूरज कब ढलेगा।
    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें