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अपनी वक्‍तव्य क्षमता और शिक्षण क्षमता कैसे सुधारें
ht अध्या. 5 पेज 25-29

अध्ययन ५

बाइबल की ओर ध्यान निर्दिष्ट करना

१, २. हमें अपने श्रोताओं को बाइबल की ओर क्यों निर्दिष्ट करना चाहिए?

सेवकाई में हमारी इच्छा है सब का ध्यान परमेश्‍वर के वचन, बाइबल की ओर निर्दिष्ट करना। इसमें वह संदेश है जिसका हम प्रचार करते हैं, और हम चाहते हैं कि लोग यह समझें कि हम जो कह रहे हैं वह हमारी अपनी ओर से नहीं परन्तु परमेश्‍वर की ओर से है। जो लोग परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं उनका भरोसा बाइबल पर है। जब यह उनको पढ़कर सुनायी जाती है तो वे सुनते हैं और उसकी सलाह पर ध्यान देते हैं। परन्तु जब वे बाइबल की अपनी प्रति निकालते हैं और स्वयं उसे पढ़ते हैं तो उसका प्रभाव काफ़ी हद तक बढ़ जाता है। अतः, क्षेत्र सेवकाई में जब परिस्थितियाँ इसकी अनुमति दें, तो गृहस्वामी को बाइबल की उसकी अपनी प्रति निकालकर शास्त्रवचनों को आपके साथ देखने के लिए प्रोत्साहित करना बुद्धिमानी की बात है। उसी प्रकार, कलीसिया सभाओं में भी, यदि सब को अपनी बाइबल का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो नए लोग अधिक तत्परता से यह पहचानेंगे कि यह हमारे विश्‍वासों का स्रोत है, और सभी इस दृश्‍य छाप के अतिरिक्‍त प्रभाव से फ़ायदा प्राप्त करेंगे।

२ अतः भाषण देने के आपके उद्देश्‍य को पूरा करने में आपके पास एक निश्‍चित फ़ायदा होगा यदि आपके श्रोता, जहाँ भी व्यावहारिक हो, शास्त्र पाठों के आपके पठन को उनकी अपनी बाइबलों में देखते हैं। उनका ऐसा करना काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या आप उन्हें सही प्रोत्साहन देते हैं या नहीं। इसी को आपकी भाषण सलाह परची पर “श्रोतागण बाइबल प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित” कहा गया है।

३, ४. हम इसे प्रभावकारी रीति से कैसे कर सकते हैं?

३ सुझाव से। श्रोतागण को बाइबल इस्तेमाल करने के लिए एक सीधा आमंत्रण देना सबसे बेहतर तरीक़ा है; यह तरीक़ा अकसर इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी वही परिणाम पाठ को पढ़ने से पहले वे कहाँ हैं यह कहने से भी प्राप्त हो सकता है; संभवतः इस प्रकार: “अब जब हम २ तीमुथियुस ३:१-५ पढ़ते हैं तो इसी पड़ोस की परिस्थितियों के बारे में विचार कीजिए।” फिर जब आप स्वयं वह पाठ खोलते हैं, यह देखने के लिए नज़र दौड़ाइए कि क्या श्रोतागण सुझाव का फ़ायदा उठा रहे हैं। सामान्यतः वे भी पाठ खोलना शुरू करेंगे।

४ यह वक्‍ता के ऊपर निर्भर करता है कि यदि वह चाहता है तो कौन-से पाठों को श्रोतागण द्वारा बाइबल खुलवाकर वह उन पर ज़ोर देना चाहता है। अपने श्रोतागण पर नज़र डालिए। यह देखने में दिलचस्पी रखिए कि क्या वे आपको समझ रहे हैं। यदि किसी कारणवश आपको एक हस्तलिपि भाषण देना पड़े तो भी आप अकसर मुख्य पाठों को इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं कि श्रोतागण अपनी बाइबलों में आपके साथ देखेंगे।

५, ६. समझाइए कि जिन शास्त्रवचनों को हम पढ़ने की योजना बनाते हैं उन्हें खोलने के लिए श्रोतागण को समय देना क्यों लाभदायक है।

५ पाठ खोलने के लिए समय देने से। मात्र एक शास्त्रवचन का हवाला देना ही काफ़ी नहीं है। श्रोतागण को उसे ढूँढने का समय मिलने से पहले ही यदि आप उसे पढ़कर आगे बढ़ जाएँगे तो वे अंततः निरुत्साहित हो जाएँगे और छोड़ देंगे। अपने श्रोतागण पर नज़र रखिए, और जब अधिकांश लोगों ने पाठ को ढूँढ लिया है तब वह पढ़ा जा सकता है।

६ सामान्यतः यह बुद्धिमानी की बात होगी कि आप पाठ के उद्धरण को उसके पढ़ने के अपेक्षित समय से काफ़ी पहले बताएँ ताकि जब श्रोतागण पाठ को ढूँढ रहे हैं तब अकसर होनेवाले लम्बे ठहरावों में या अनावश्‍यक “भरती” में बहुमूल्य समय गँवाया न जाए। फिर भी यहाँ उपयुक्‍त ठहराव उचित है। दूसरी ओर, यदि उद्धरण आपके पाठ की प्रस्तावना में पहले ही उद्धृत किया गया है तो आपको मन में रखना चाहिए कि कुछ बातें जो आप कहेंगे, वे उतनी ध्यानपूर्वक नहीं सुनी जाएँगी। अतः ऐसे एक अवसर पर उत्सुकता जगानेवाले तर्क से सम्बन्धित बातों का उद्धरण देने से पहले बताया जाना चाहिए।

७-१८. प्रभावकारी रीति से शास्त्र पाठों को किन तरीक़ों से प्रस्तुत किया जा सकता है?

७ एक भाषण में इस्तेमाल किए जानेवाले शास्त्रवचन सामान्यतः भाषण की मुख्य बातें होती हैं। तर्क, इन पाठों पर केन्द्रित होते हैं। अतः वे भाषण में कितना योग देंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें कितनी प्रभावकारिता से इस्तेमाल किया जाता है। अतः ‘शास्त्रवचनों को उचित रूप से प्रस्तुत करने’ की बात, जो आपकी भाषण सलाह परची पर है, विचार करने का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।

८ अनेक विभिन्‍न तरीक़े हैं जिनसे एक शास्त्र पाठ को प्रस्तुत किया, पढ़ा और लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कभी-कभी एक पाठ की प्रस्तुति न केवल उसके पठन की ओर ले जाती है परन्तु उसका अनुप्रयोग भी करती है। अतः पठन मात्र उस मुद्दे पर ज़ोर देता है या उसे स्थापित करता है। दूसरी ओर, कुछ पाठ अत्यधिक प्रभावकारिता से इस्तेमाल किए जाते हैं जब प्रस्तावना में कुछ भी शब्द नहीं कहे जाते, उदाहरण के लिए, जैसे एक भाषण की बिलकुल शुरूआत में।

९ प्रभावकारी रीति से शास्त्रवचनों को प्रस्तुत करना सीखने के लिए, अनुभवी वक्‍ता जो करते हैं उसका विश्‍लेषण कीजिए। उन विभिन्‍न तरीक़ों को पहचानने की कोशिश कीजिए जिनसे शास्त्रवचन प्रस्तुत किए जाते हैं। उनकी प्रभावकारिता पर विचार कीजिए। अपने भाषणों को तैयार करते वक़्त पहले ही इस बात पर विचार कीजिए कि उस पाठ को क्या हासिल करना है, ख़ासकर यदि यह किसी मुख्य मुद्दे का मूलपाठ हो। उसकी प्रस्तुति की ध्यानपूर्वक योजना बनाइए ताकि वह सबसे प्रभावकारी रीति से इस्तेमाल की जाए। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं:

१० एक सवाल। सवाल जवाबों की माँग करते हैं। ये चिन्तन को प्रेरित करते हैं। पाठ और उसके अनुप्रयोग को जवाब प्रदान करने दीजिए। उदाहरण के लिए, रक्‍ताधान की चर्चा करते हुए इब्रानी शास्त्र के अनुसार उस पाबन्दी को स्थापित करने के पश्‍चात्‌ आप शायद प्रेरितों १५:२८, २९ को प्रस्तुत कर रहे हों। आप पाठ को यह कहकर प्रस्तुत कर सकते हैं, “परन्तु क्या यही पाबंदी मसीहियों पर भी लागू होती है? पवित्र आत्मा द्वारा उभारे जाकर आरम्भिक कलीसिया के शासी निकाय ने जो आधिकारिक निर्णय लिया उस पर ध्यान दीजिए।”

११ एक कथन या सिद्धांत, जिसकी पुष्टि प्रस्तुत पाठ करेगा। उदाहरण के लिए, अपचार पर एक भाषण में आप शायद कहें: “सही और ग़लत के प्रति हमारी मनोवृत्ति क्या होगी इस बारे में हमारे साथियों का चयन भी एक महत्त्वपूर्ण तत्व है।” फिर आप अपने कथन का समर्थन करने के लिए १ कुरिन्थियों १५:३३ में पौलुस के शब्दों को पढ़ सकते हैं।

१२ बाइबल को अधिकार के तौर पर बताना। ख़ासकर गौण पाठों के लिए आप मात्र यह कह सकते हैं: “ध्यान दीजिए परमेश्‍वर का वचन इस बारे में क्या कहता है।” यह पाठ को उत्सुकता से देखने का पर्याप्त कारण है और यह उसे इस्तेमाल करने का एक स्पष्ट कारण प्रदान करता है।

१३ एक समस्या। “नरक” पर एक भाषण में आप शायद कहें: “यदि एक मनुष्य को आग की अनन्त लपटों को सहना है तो इसके लिए उसे मृत्यु के पश्‍चात्‌ सचेत होना चाहिए। लेकिन ध्यान दीजिए सभोपदेशक ९:५, १० क्या कहता है।”

१४ विविध चुनाव प्रश्‍न। यदि एक सीधा सवाल या समस्या किसी ख़ास श्रोतागण के लिए शायद बहुत कठिन हो, तो कई संभावनाओं को प्रस्तुत कीजिए और पाठ और उसके अनुप्रयोग को जवाब प्रदान करने दीजिए। एक कैथोलिक व्यक्‍ति से बात करते वक़्त, उन्हें यह दिखाने के लिए कि प्रार्थना उचित रूप से किसको निर्दिष्ट होनी चाहिए, आप शायद मत्ती ६:९ का इस्तेमाल करना चाहें। एक सीधा सवाल या समस्या शायद आपके गृहस्वामी के मन को ग़लत दिशा में मोड़े, अतः आप शायद कहें: “इस सम्बन्ध में अनेक मत हैं कि हमें किससे प्रार्थना करनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं मरियम, अन्य लोग कहते हैं किसी ‘संत’ से, लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि हमें केवल परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए। ध्यान दीजिए यीशु ने क्या कहा।”

१५ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि। यदि आपको छुड़ौती पर एक भाषण में यह दिखाने के लिए इब्रानियों ९:१२ का इस्तेमाल करना पड़े कि यीशु ने अपना लहू अर्पित करने के द्वारा हमारे लिए “अनन्त छुटकारा प्राप्त किया” है, तो आप शायद पाठ के पढ़ने से पहले निवासस्थान में “पवित्र स्थान” का एक संक्षिप्त वर्णन करना ज़रूरी पाएँ। पौलुस सूचित करता है कि इस निवासस्थान ने उस जगह को चित्रित किया जहाँ यीशु ने प्रवेश किया।

१६ संदर्भ। कभी-कभी जैसे आस-पास के वाक्यों में समझाया गया है एक पाठ की सेटिंग उस शास्त्रवचन को प्रस्तुत करने में सहायक होती है। उदाहरण के लिए, ‘जो कैसर का है, वह कैसर को देने’ के अर्थ को समझाने में लूका २०:२५ के शास्त्रवचन के आपके इस्तेमाल में, जैसे संदर्भ में इसके वृत्तांत में बताया गया है, आप शायद कैसर के अंकन के एक सिक्के के यीशु के इस्तेमाल का वर्णन करना फ़ायदेमंद पाएँ।

१७ संयोग। जी हाँ, ऊपर बताए गए तरीक़ों के संयोग भी संभव हैं और अकसर लाभदायक भी होते हैं।

१८ एक पाठ की प्रस्तावना को पर्याप्त उत्सुकता जगानी चाहिए कि जब पाठ पढ़ा जा रहा है तो उस पर ध्यान आकर्षित हो और इसे पाठ के इस्तेमाल करने के आपके कारण पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

१९, २०. हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हमने उद्धृत पाठ के लिए उत्सुकता जगायी है या नहीं?

१९ शास्त्रवचनों के लिए उत्सुकता जगायी गयी। आप कैसे जान सकते हैं कि आपने पाठ के लिए उत्सुकता जगायी है? मुख्यतः श्रोतागण की प्रतिक्रिया के ज़रिए, परन्तु जिस तरह आप पाठ को प्रस्तुत करते हैं उससे भी। यदि पाठ को प्रस्तुत करने के बाद उसे न पढ़ने की वजह से श्रोता हवा में छोड़ दिए गए हैं, या आपने अपनी प्रस्तावना में किसी सवाल का जवाब नहीं दिया है, तब आप निश्‍चित हो सकते हैं कि आपने पाठ में दिलचस्पी जगायी है। जी हाँ, प्रस्तावना को विषय के और प्रस्तुत किए जानेवाले पाठ के अनुरूप होना चाहिए। और या तो पाठ या उसके बाद उसके अनुप्रयोग को प्रस्तावना में पूछे गए सवाल का जवाब प्रदान करना चाहिए।

२० एक पाठ की प्रस्तावना की तुलना एक बिगुल की आवाज़ से की जा सकती है जो एक घोषणा से पहले सुनाई देता है। वह घोषणा करनेवाला स्वयं पूरा नाटक नहीं प्रस्तुत करता है। इसके बजाय उसके बिगुल के उत्साह-वर्धक स्वर घोषणा की ओर सारी दिलचस्पी और ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस प्रकार प्रस्तुत, आपका चुना हुआ पाठ अत्यधिक आनन्द के साथ सुना जाएगा और उससे फ़ायदा होगा।

२१. हमें एक पाठ के इस्तेमाल करने के अपने कारण पर क्यों ध्यान केन्द्रित करना चाहिए?

२१ पाठ के इस्तेमाल करने के कारण पर ध्यान केन्द्रित किया गया। जबकि एक पाठ की प्रस्तावना शायद किसी सवाल का जवाब न दे, फिर भी उसे यह दर्शाने के लिए कुछ कारण प्रदान करना चाहिए कि यह पाठ क्यों उपयुक्‍त और पूर्ण ध्यान के योग्य है। उदाहरण के लिए, पृथ्वी का मनुष्यों के लिए स्थायी घर होने की एक चर्चा में आप शायद प्रकाशितवाक्य २१:३, ४ का इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहे होंगे। अपने प्रारंभिक तर्कों के साथ आप शायद कहें: “अब इस अगले शास्त्रवचन, प्रकाशितवाक्य २१:३, ४ में, ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर का डेरा कहाँ होगा जब पीड़ा और मृत्यु न रहेगी।” पाठ को कुछ बात बताने के लिए छोड़ने से न केवल आपने उत्सुकता जगायी है, परन्तु आपने अपने पाठ के मुख्य भाग पर ध्यान भी केन्द्रित किया है, जिसे आप शास्त्रवचन को पढ़ने के बाद आसानी से अपने तर्क पर लागू कर सकते हैं। इस प्रकार शास्त्रवचन के वास्तविक विषय की ओर ध्यान केन्द्रित करने के द्वारा आप परमेश्‍वर के वचन के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।

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