वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • ht अध्या. 10 पेज 46-52
  • उचित उच्चारण के साथ वाक्पटु, वार्तालापी प्रस्तुति

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • उचित उच्चारण के साथ वाक्पटु, वार्तालापी प्रस्तुति
  • अपनी वक्‍तव्य क्षमता और शिक्षण क्षमता कैसे सुधारें
  • मिलते-जुलते लेख
  • प्रवाह के साथ भाषण देना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
  • बोलचाल की शैली
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
  • सहजता
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
  • नोट्‌स बार-बार देखे बिना बात करना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
और देखिए
अपनी वक्‍तव्य क्षमता और शिक्षण क्षमता कैसे सुधारें
ht अध्या. 10 पेज 46-52

अध्ययन १०

उचित उच्चारण के साथ वाक्पटु, वार्तालापी प्रस्तुति

१-४. वाक्पटुता की कमी के कारण और लक्षणों की सूची दीजिए।

जब आप श्रोतागण के सामने खड़े होकर एक भाषण देने लगते हैं तो क्या आप पाते हैं कि आप अकसर सही शब्दों को ढूँढते रहते हैं? या, जब आप ऊँची आवाज़ में पढ़ते हैं तो क्या आप कुछ शब्दों पर अटक जाते हैं? यदि ऐसा है तो आपको वाक्पटुता के सम्बन्ध में समस्या है। एक वाक्पटु व्यक्‍ति वह होता है जो शब्दों के इस्तेमाल में तत्पर होता है। इसका अर्थ एक “लापरवाह” व्यक्‍ति नहीं है, अर्थात्‌ एक ऐसा व्यक्‍ति जो बिना सोचे-समझे या कपटी रीति से शब्दों का खुले आम इस्तेमाल करता है। यह धाराप्रवाह या सुखद शालीन बातचीत है जो आराम से निकलती है। वाक्पटुता भाषण सलाह परची पर ख़ास ध्यान देने के लिए शामिल की गई है।

२ बोलने में वाक्पटुता की कमी के सबसे सामान्य कारण स्पष्ट विचार और विषय की तैयारी की कमी है। यह कम शब्दावली या ग़लत शब्दों के चयन से भी हो सकता है। पठन में, वाक्पटुता की कमी साधारणतः ऊँचा पढ़ने में अभ्यास की कमी के कारण होती है, हालाँकि शब्दों के ज्ञान की कमी भी यहाँ रुकावट या झिझक पैदा कर सकती है। क्षेत्र सेवकाई में, वाक्पटुता की कमी इन कारणों से, साथ ही साथ संकोच या अनिश्‍चितता को मिलाकर हो सकती है। तब समस्या ख़ासकर गंभीर है क्योंकि कुछ अवसरों पर आपके श्रोतागण वहाँ से चले जाएँगे। राज्यगृह में आपके श्रोतागण वास्तव में वहाँ से निकल नहीं जाएँगे, परन्तु उनका मन भटक जाएगा और अधिकांशतः आप जो कहते हैं उसका कुछ प्रभाव नहीं होगा। अतः यह एक गंभीर बात है; वाक्पटुता निश्‍चय ही एक ऐसा गुण है जिसे प्राप्त किया जाना चाहिए।

३ अनेक वक्‍ताओं को “और-अ” की तरह के “शब्द विस्तरण” जैसी अभिव्यक्‍तियों को इस्तेमाल करने का ध्यानभंग करनेवाला व्यवहार वैचित्र्य है। यदि आपको नहीं मालूम कि आप कितनी बार ऐसी अभिव्यक्‍तियों का अपनी बोली में इस्तेमाल करते हैं, तो आप एक अभ्यास सत्र रख सकते हैं और किसी से कह सकते हैं कि वह आपकी बात सुने और उन अभिव्यक्‍तियों का आप जब भी इस्तेमाल करेंगे तब वह आपके पीछे दोहराए। आपको शायद आश्‍चर्य होगा।

४ अन्य व्यक्‍ति हमेशा परावर्तनों के साथ बोलते हैं, अर्थात्‌ एक वाक्य शुरू करते हैं, फिर ख़ुद को रोकते हैं और फिर शुरू से बोलते हैं। यदि आपको यह बुरी आदत है तो अपनी दैनिक बातचीत में इस पर विजय पाने की कोशिश कीजिए। विचार करने और विचार को मन में स्पष्ट समझने के लिए पहले सचेतन प्रयास कीजिए। फिर “बीच-रास्ते” रुके बिना या विचारों को बदले बिना पूरे विचार को बताइए।

५-१०. एक वक्‍ता की वाक्पटुता को सुधारने के लिए क्या सुझाव दिए गए हैं?

५ एक और बात। हम अपने आपको व्यक्‍त करने में शब्दों को इस्तेमाल करने के आदी हैं। अतः, यदि हम वास्तव में जानते हैं कि हम क्या कहना चाहते हैं तो शब्द स्वाभाविक रूप से आने चाहिए। आपको शब्दों के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं। वास्तव में, अभ्यास के लिए यह बेहतर है कि आप यह निश्‍चित करें कि विचार आपके मन में स्पष्ट है, और जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं आप शब्दों के बारे में सोचें। यदि आप ऐसा करेंगे, और यदि आप अपना मन आप जो शब्द बोल रहे हैं उस पर नहीं परन्तु विचार पर रखेंगे, तो शब्द अपने-आप आने चाहिए और आपके विचार उस प्रकार व्यक्‍त होने चाहिए जैसे आप उनके बारे में वास्तव में महसूस करते हैं। लेकिन जैसे ही आप विचारों के बजाय शब्दों के बारे में सोचना शुरू करेंगे आपका भाषण अटकने लगेगा।

६ यदि वाक्पटुता के सम्बन्ध में आपकी समस्या शब्द चयन की बात है, तो शब्दावली बढ़ाने के लिए नियमित अध्ययन ज़रूरी है। प्रहरीदुर्ग और संस्था के अन्य प्रकाशनों में उन शब्दों पर ख़ास ध्यान दीजिए जिनसे आप अपरिचित हैं और उनमें से कुछ अपनी दैनिक शब्दावली में शामिल कीजिए।

७ पठन में वाक्पटुता की कमी सामान्यतः शब्दों से अपरिचित होने की वज़ह से है। यदि यह आपकी समस्या है तो आपके लिए अच्छा होगा यदि आप नियमित और व्यवस्थित रूप से ऊँचा पढ़ने का अभ्यास करें।

८ एक तरीक़ा जिससे यह किया जा सकता है वह है विषय के एक या दो अनुच्छेद चुनकर उसे ध्यानपूर्वक मौन रीति से पढ़ना जब तक कि आप उस भाग के पूरे विचार से परिचित नहीं हो जाते। विचार समूहों को अलग कीजिए, और यदि ज़रूरी हो तो उन्हें चिन्हित भी कीजिए। फिर उस भाग को ऊँचा पढ़ने का अभ्यास शुरू कीजिए। अभ्यास करते वक़्त, तब तक बार-बार पढ़िए जब तक कि आप पूरे विचार समूहों को किसी झिझक के या ग़लत जगहों पर रुके बग़ैर पढ़ सकते हैं।

९ अपरिचित या कठिन शब्दों को बार-बार उच्चारित किया जाना चाहिए, जब तक कि आपके लिए उनका उच्चारण आसान न हो जाए। जब आप उस शब्द को अकेले बोल पाते हैं, तब उस शब्द के साथ उस पूरे वाक्य को पढ़िए जब तक कि आप उसे वाक्य में उतनी ही आसानी से जोड़ पाते हैं जितना कि अन्य परिचित शब्दों को जोड़ पाते हैं।

१० साथ ही दृश्‍य-पठन का भी नियमित रूप से अभ्यास कीजिए। उदाहरण के लिए, हमेशा जब आप पहली बार उन्हें देखते हैं तब दैनिक पाठ और टिप्पणियों को ऊँची आवाज़ में पढ़िए। अपनी आँखों को शब्दों को समूहों के तौर पर देखने की आदत डलवाइए जिससे एक बार मात्र एक शब्द को देखने के बजाय पूर्ण विचार व्यक्‍त किया जाएगा। यदि आप अभ्यास करेंगे, तो आप प्रभावकारी भाषण और पठन के इस अनिवार्य गुण पर प्रवीणता पा सकेंगे।

११-१५. वार्तालापी गुण इस्तेमाल की गई अभिव्यक्‍तियों पर कैसे निर्भर करता है?

११ एक और वांछनीय भाषण गुण जो सलाह परची पर बताया गया है, वह है “वार्तालापी गुण।” यह एक ऐसी बात है जो आप अपने दैनिक जीवन में प्रदर्शित करते हैं, परन्तु जब आप भाषण देने खड़े होते हैं तो क्या आप इसे प्रदर्शित करते हैं? किसी तरह, वे व्यक्‍ति जो बड़े समूहों के साथ भी आराम से बात करते हैं अकसर “भाषण देने के लिए” पहले से तैयारी करने को नियुक्‍त किए जाने पर बहुत ही औपचारिक और कुछ हद तक “लेक्चरबाज़” बन जाते हैं। लेकिन वार्तालापी ढंग की प्रस्तुति जन वक्‍तव्य का सबसे प्रभावकारी तरीक़ा है।

१२ वार्तालापी अभिव्यक्‍तियाँ इस्तेमाल की गईं। वार्तालापी बातचीत की अधिकांश प्रभावकारिता इस्तेमाल की गई अभिव्यक्‍तियों पर निर्भर करती है। एक आशु भाषण तैयार करने में, साधारणतः लिखित अभिव्यक्‍तियों को उसी तरह दोहराना अच्छा नहीं है। लिखित शैली मौखिक शैली से अलग होती है। अतः इन विचारों को आपकी अपनी व्यक्‍तिगत अभिव्यक्‍ति के अनुसार ढालिए। जटिल वाक्य गठन के इस्तेमाल से दूर रहिए।

१३ मंच पर आपके भाषण को आपकी दैनिक बातचीत को प्रदर्शित करना चाहिए। आपको “अहंकारपूर्ण” होने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। फिर भी, स्वाभाविक है कि आपका तैयार किया हुआ भाषण दैनिक बातचीत से बेहतर होगा क्योंकि आपके विचार अधिक ध्यानपूर्वक पहले से सोचे गए हैं और अधिक धाराप्रवाहिता से आएँगे। परिणामस्वरूप, आपकी अभिव्यक्‍तियों को बेहतर संगठित होना चाहिए।

१४ यह दैनिक अभ्यास के महत्त्व पर ज़ोर देता है। बात करने में भिन्‍न न होइए। गन्दी भाषा से दूर रहिए। आपके पास जो हर अलग विचार है उसे व्यक्‍त करने के लिए उन्हीं अभिव्यक्‍तियों या वाक्यांशों को हमेशा दोहराने से दूर रहिए। अर्थपूर्ण रूप से बात करना सीखिए। अपनी दैनिक बातचीत पर ध्यान दीजिए और जब आप मंच पर हैं, तो शब्द अधिक तत्परता से आएँगे और आप ऐसे वार्तालापी गुण के साथ बात कर सकेंगे जो सुन्दर, सरल और किसी भी श्रोतागण के लिए स्वीकार्य होगा।

१५ यह ख़ासकर क्षेत्र सेवकाई में सच है। और अपने विद्यार्थी भाषणों में, यदि आप एक गृहस्वामी से बात कर रहे हैं तो उस प्रकार बात करने की कोशिश कीजिए मानो आप क्षेत्र सेवकाई में हों, और उन अभिव्यक्‍तियों का इस्तेमाल कीजिए जो आप वहाँ स्वाभाविक और सहज रीति से इस्तेमाल करेंगे। इससे आपका भाषण अनौपचारिक और यथार्थवादी होगा, और उससे भी महत्त्वपूर्ण, आपको क्षेत्र सेवकाई में अधिक प्रभावकारी प्रस्तुतियों के लिए तैयार करेगा।

१६-१९. बताइए कि कैसे प्रस्तुति वार्तालापी गुण को प्रभावित कर सकती है।

१६ वार्तालापी शैली में प्रस्तुति। वार्तालापी गुण केवल इस्तेमाल की गई अभिव्यक्‍तियों पर निर्भर नहीं करता। प्रस्तुति का आपका तरीक़ा या शैली भी महत्त्वपूर्ण है। इसमें स्वर-शैली, आवाज़ में उतार-चढ़ाव और अभिव्यक्‍ति में स्वाभाविकता शामिल है। यह उतना ही सहज है जितना कि दैनिक बातचीत, हालाँकि यह श्रोतागण के लिए ऊँची आवाज़ में की जाती है।

१७ वार्तालापी प्रस्तुति आलंकारिक भाषण के बिलकुल विपरीत है। यह “उपदेशात्मक” प्रस्तुति के सभी गुणों से रहित है और ढोंग से परे है।

१८ विषय की शब्दावली के बारे में अत्यधिक पूर्वतैयारी करना एक तरीक़ा है जिससे अनेक नए वक्‍ता अकसर वार्तालापी गुण खो देते हैं। प्रस्तुति के लिए तैयारी करते वक़्त, यह न सोचिए कि सही रीति से तैयार होने के लिए आपको भाषण के हर शब्द पर इतना ध्यान देना है जब तक कि आप उसे मानो कंठस्थ न कर लो। आशु भाषण में, प्रस्तुति के लिए तैयारी में व्यक्‍त किए जानेवाले विचारों के ध्यानपूर्वक पुनर्विचार पर ज़ोर देना चाहिए। इन पर विचारों के तौर पर तब तक पुनर्विचार किया जाना चाहिए जब तक कि वे एक के बाद एक आपके मन में आराम से नहीं आते। यदि उन्हें तर्कसंगत रूप से विकसित किया गया है और अच्छी योजना बनायी गई है तो इसे मुश्‍किल नहीं होना चाहिए, और भाषण की प्रस्तुति में विचार अपने आप और आराम से आने चाहिए। यदि ऐसा है और संचारित करने की इच्छा से उन्हें व्यक्‍त किया गया है तो वार्तालापी गुण प्रस्तुति का भाग होगा।

१९ एक तरीक़ा जिससे आप अपने आपको इस बारे में यक़ीन दिला सकते हैं वह है श्रोतागण में विभिन्‍न व्यक्‍तियों से बातचीत करने की कोशिश करना। सीधे एक समय पर एक व्यक्‍ति से बात कीजिए। कल्पना कीजिए कि उस व्यक्‍ति ने एक सवाल पूछा है और फिर उसका जवाब दीजिए। उस व्यक्‍ति के साथ उस ख़ास विचार को विकसित करने में एक निजी चर्चा में होने की कल्पना कीजिए। फिर श्रोतागण में दूसरे व्यक्‍ति की ओर जाइए और वही फिर से कीजिए।

२०-२३. एक व्यक्‍ति कैसे अपना पठन स्वाभाविक बना सकता है?

२० पढ़ते वक़्त प्रस्तुति की वार्तालापी शैली बनाए रखने में प्रवीण होना भाषण के सबसे मुश्‍किल, परन्तु सबसे अत्यावश्‍यक गुणों में से एक है। जी हाँ, हमारा अधिकांश जन पठन बाइबल में से है, जिससे हम एक आशु भाषण से जुड़े हुए पाठ पढ़ते हैं। बाइबल को भावना के साथ और अर्थ के तीव्र बोध के साथ पढ़ा जाना चाहिए। उसे सजीव होना चाहिए। दूसरी ओर, परमेश्‍वर के सच्चे सेवक कभी भी धार्मिक पादरीवर्ग के ढ़ोंगी स्वर परिवर्तन की नक़ल नहीं करेंगे। यहोवा के सेवक उसका वचन इस पुस्तक की सजीव भाषा के योग्य स्वाभाविक ज़ोर देते हुए और आडम्बर-रहित वास्तविकता के साथ पढ़ेंगे।

२१ प्रहरीदुर्ग या एक पुस्तक अध्ययन में अनुच्छेदों को पढ़ने के बारे में भी यही काफ़ी हद तक सच है। यहाँ फिर, अभिव्यक्‍तियों और वाक्यों का गठन वार्तालापी रीति से नहीं किया गया है, अतः आपका पठन हमेशा वार्तालापी नहीं प्रतीत हो सकता है। लेकिन आप जो पढ़ रहे हैं उसका यदि आप अर्थ समझ लें और उसे जितना स्वाभाविक और अर्थपूर्ण रीति से आप पढ़ सकते हैं वैसा पढ़ें, तब आप उसे अकसर आशु भाषण प्रतीत करा सकते हैं हालाँकि जो आप साधारणतः इस्तेमाल करेंगे उससे शायद यह थोड़ा अधिक औपचारिक होगा। अतः, यदि आप पूर्वतैयारी कर सकते हैं तो जो भी चिन्ह आपकी मदद करेंगे उन्हें लिखने की आपकी आदत होनी चाहिए और विषय को यथार्थता से और स्वाभाविक रीति से प्रस्तुत करने के लिए अपना भरसक कीजिए।

२२ वार्तालापी पठन या भाषण में निष्कपटता और स्वाभाविकता मूल बातें हैं। अपने हृदय को प्रफुल्लित होने दीजिए और अपने श्रोतागण से बात करते वक़्त उनसे अनुरोध कीजिए।

२३ अच्छा वक्‍तव्य मात्र एक अवसर के लिए नहीं अपनाया जा सकता है जिस प्रकार सदाचरण किसी एक अवसर के लिए नहीं अपनाया जा सकता है। लेकिन यदि आप प्रतिदिन अच्छी बोली का इस्तेमाल करते हैं तो यह मंच पर भी प्रकट होगा उसी प्रकार जैसे कि घर पर इस्तेमाल किए जाने पर दूसरों के सामने भी सदाचरण हमेशा प्रदर्शित होगा।

२४, २५. ग़लत उच्चारण क्यों वांछनीय नहीं है?

२४ उच्चारण। सही उच्चारण भी महत्त्वपूर्ण है, और यह भाषण सलाह परची पर अलग सूचीबद्ध है। जबकि सभी मसीहियों के पास बहुत ज़्यादा सांसारिक शिक्षण नहीं है, जैसे पतरस और यूहन्‍ना के बारे में कहा गया था कि वे अनपढ़ और साधारण लोग हैं, फिर भी ग़लत उच्चारण की वज़ह से हमारे संदेश की प्रस्तुति से विकर्षित करने से दूर रहना महत्त्वपूर्ण है। यह एक ऐसी बात है जिसे आसानी से सुधारा जा सकता है यदि हम इसकी ओर पर्याप्त ध्यान दें।

२५ यदि एक व्यक्‍ति का उच्चारण बहुत ही बुरा है तो यह भी हो सकता है कि वह अपने श्रोतागण के मन में ग़लत विचार संचारित करेगा जो कि निश्‍चित ही वांछनीय नहीं होगा। जब आप किसी को अपने भाषण में किसी शब्द का ग़लत उच्चारण करते हुए सुनते हैं तो साधारण प्रभाव यह होता है कि यह आपके मन में एक लालबत्ती की तरह चमक उठेगा। आप उनके तर्क के मार्ग से हट सकते हैं और जिस शब्द का उन्होंने ग़लत उच्चारण किया है उसके बारे में सोचने लग सकते हैं। यह आपका ध्यान जो कहा जा रहा है से हटाकर जैसे कहा गया है उसकी ओर मोड़ सकता है।

२६, २७. उच्चारण के सम्बन्ध में कौन-सी समस्याएँ सूचीबद्ध की गई हैं?

२६ कहा जा सकता है कि उच्चारण के सम्बन्ध में साधारणतः तीन तरह की समस्याएँ हैं। एक तो बिलकुल ग़लत उच्चारण है जिसमें ग़लत जगह बल दिया जाता है या अक्षरों को ग़लत स्वर दिया जाता है। अनेक आधुनिक भाषाओं का बल देने का एक नियमित नमूना है, लेकिन अंग्रेज़ी भाषा में वह नमूना समान नहीं है जिससे यह समस्या अधिक जटिल बन जाती है। और फिर, ऐसा उच्चारण है जो सही है परन्तु अतिरंजित, अत्यधिक सुस्पष्ट है, जो नाटकीयता, यहाँ तक कि अभिमान का संकेत करता है, और यह वांछनीय नहीं है। तीसरी समस्या है बेढंगी बातचीत, जो शब्दों के निरन्तर अस्पष्ट उच्चारण, अक्षरों का कम उच्चारण करना या उन्हें छोड़ देना और अन्य ऐसी आदतों से पहचानी जाती है। इनसे दूर रहना है।

२७ साधारणतः हमारी दैनिक बातचीत में हम उन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं जिनसे हम अच्छी तरह परिचित हैं; अतः उच्चारण इस सम्बन्ध में एक बड़ी समस्या नहीं है। सबसे बड़ी समस्या पठन में आती है। लेकिन यहोवा के साक्षी दूसरों के सामने और व्यक्‍तिगत तौर पर बहुत पढ़ते हैं। जब हम घर-घर जाते हैं तब हम लोगों को बाइबल पढ़कर सुनाते हैं। कभी-कभी प्रहरीदुर्ग अध्ययन में, एक गृह बाइबल अध्ययन में या एक कलीसिया पुस्तक अध्ययन में हमसे अनुच्छेदों को पढ़ने के लिए कहा जाता है। यह महत्त्वपूर्ण है कि पठन सही हो, कि उच्चारण उचित हो। यदि यह ऐसा नहीं है तो वह यह प्रतीत कराएगा कि हम नहीं जानते कि हम किस बारे में बात कर रहे हैं। यह हमारे संदेश से भी ध्यान विकर्षित करता है।

२८-३४. एक व्यक्‍ति को अपने उच्चारण को सुधारने में कैसे मदद दी जा सकती है?

२८ ग़लत उच्चारण पर अत्यधिक सलाह नहीं दी जानी चाहिए। एक या दो शब्दों पर यदि कोई संदेह हो तो शायद निजी सलाह काफ़ी है। लेकिन हालाँकि कुछ ही शब्दों का भाषण के दौरान ग़लत उच्चारण हुआ है, और यदि ये वे शब्द हैं जिन्हें हम नियमित रूप से अपनी सेवकाई में या हमारी दैनिक बातचीत में इस्तेमाल करते हैं, तो यह विद्यार्थी के लिए सहायक होगा कि स्कूल ओवरसियर उनकी ओर ध्यान आकर्षित करे ताकि वह सीखे कि उन्हें कैसे उचित रूप से उच्चारित करना है।

२९ दूसरी ओर, यदि बाइबल से पढ़ते वक़्त विद्यार्थी ने एक या दो इब्रानी नामों को ग़लत उच्चारित किया है तो यह एक प्रमुख कमज़ोरी नहीं मानी जाएगी। लेकिन यदि उसने अनेक नामों को ग़लत उच्चारित किया तो यह तैयारी की कमी का प्रमाण देगा और सलाह दी जानी चाहिए। विद्यार्थी को सही उच्चारण का पता लगाना सीखने में और फिर उसका अभ्यास करने में मदद दी जानी चाहिए।

३० ऐसा ही अतिरंजित उच्चारण के साथ भी है। यदि यह नियमित इस्तेमाल की वज़ह से वास्तव में भाषण सुनते वक़्त ध्यान भंग करता है तो विद्यार्थी को मदद दी जानी चाहिए। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब तेज़ी से बात की जाती है तब अधिकांश व्यक्‍ति कुछ शब्दों को अस्पष्ट उच्चारित करने के लिए प्रवृत्त होते हैं। इस बारे में कोई सलाह देने की ज़रूरत नहीं, परन्तु यदि यह एक आदत है, यदि विद्यार्थी हमेशा शब्दों का अस्पष्ट उच्चारण करता है और उसकी बातचीत को समझना मुश्‍किल हो जाता है या संदेश से विकर्षित करता है तो स्पष्ट उच्चारण पर उसे कुछ मदद देना अच्छा होगा।

३१ जी हाँ, आपका सलाहकार याद रखेगा कि स्वीकार्य उच्चारण अलग-अलग जगह आलग-अलग होगा। यहाँ तक कि शब्दकोश भी अकसर एक से अधिक स्वीकार्य उच्चारण सूचीबद्ध करते हैं। अतः उच्चारण पर सलाह देते वक़्त वह सावधानी बरतेगा। वह इसे व्यक्‍तिगत चुनाव के आधार पर नहीं करेगा।

३२ यदि आपको उच्चारण की कोई समस्या है तो अपने मन में ठान लेने से आप उसे सुधारना मुश्‍किल नहीं पाएँगे। यहाँ तक कि अनुभवी वक्‍ता भी पठन की एक नियुक्‍ति प्राप्त करने पर शब्दकोश निकालकर उन शब्दों को देखते हैं जिनसे वे अच्छी तरह परिचित नहीं हैं। वे उन पर तुक्का नहीं लगाते। अतः शब्दकोश का इस्तेमाल कीजिए।

३३ एक और तरीक़ा जिससे उच्चारण सुधारा जा सकता है वह है किसी और को पढ़कर सुनाना, एक ऐसे व्यक्‍ति को जो शब्दों को अच्छी तरह उच्चारित करता हो, और उससे कहिए कि हर बार जब आप कोई ग़लती करते हैं तो आपको रोके और सुधारे।

३४ तीसरा तरीक़ा है अच्छे वक्‍ताओं को ध्यानपूर्वक सुनना। जब आप सुनते हैं तो सोचिए; उन शब्दों को नोट कीजिए जिन्हें वे आपसे भिन्‍न रीति से उच्चारित करते हैं। उन्हें लिख लीजिए; उन्हें एक शब्दकोश में देखिए और उनका अभ्यास कीजिए। जल्द ही आप भी सही रीति से उच्चारित कर रहे होंगे। सही उच्चारण के साथ वाक्पटु, वार्तालापी प्रस्तुति, आपके भाषण को काफ़ी हद तक उन्‍नत करेगी।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें