अध्ययन १२
अपने श्रोतागण को विश्वास दिलाइए, उनके साथ तर्क कीजिए
१, २. विश्वासोत्पादक तर्क क्या है?
जब आप बात करते हैं तो आप अपने श्रोतागण से सुनने की अपेक्षा करते हैं, परन्तु यह इतना ही नहीं है। आप यह भी चाहते हैं कि वे प्रस्तुत किए गए तर्कों को स्वीकार करें और उन पर कार्य करें। वे ऐसा करेंगे यदि वे आप जो कहते हैं उसकी सत्यता पर विश्वास करते हैं और यदि उनके हृदय निष्कपट हैं। विश्वास दिलाने का अर्थ है प्रमाणों से संतुष्ट करना। लेकिन हमेशा मात्र प्रमाण ही पर्याप्त नहीं होते। उनके समर्थन में तर्क भी अकसर ज़रूरी होता है। अतः, तर्क से विश्वास दिलाने में तीन मूल बातें शामिल हैं: पहला, स्वयं प्रमाण; दूसरा, वह क्रम जिसमें प्रमाण प्रस्तुत किए जाते हैं; तीसरा, उन्हें प्रस्तुत करने की शैली और तरीक़ा। इस चर्चा में, जिसे भाषण सलाह परची पर “विश्वासोत्पादक तर्क” बताया गया है, हम इस बारे में विचार करेंगे कि क्या कहा गया है, क्या प्रमाण दिया गया है, लेकिन आप उन्हें किस रीति से प्रस्तुत करते हैं उस पर नहीं।
२ विश्वासोत्पादक तर्क ठोस मूल कारणों पर निर्भर करता है, और आपका सलाहकार उसे उसी नज़र से देखेगा। आपके प्रमाण विश्वासोत्पादक होने चाहिए, चाहे एक व्यक्ति उसे लिखित में भी पढ़े। यदि आपके भाषण का विश्वासोत्पादक गुण जिन तथ्यों को आपने अपनी बात साबित करने के लिए इस्तेमाल किया है, उन पर नहीं परन्तु जिस तरीक़े से उन्हें प्रस्तुत किया जाता है उस पर निर्भर करता है तो आपको इस गुण को आगे विकसित करना पड़ेगा, ताकि आप अपना तर्क वास्तव में ठोस और तथ्यात्मक बना सकें।
३-६. समझाइए कि एक नींव क्यों डाली जानी चाहिए।
३ नींव डाली गई। अपना तर्क प्रस्तुत करने से पहले, उचित नींव डालनी ज़रूरी है। आपको चर्चा का विषय स्पष्ट करना चाहिए। उन सम्बद्ध बातों पर, जिन पर आप सहमत होते हैं, ज़ोर देने के ज़रिए एक समान आधार स्थापित करना लाभदायक है।
४ कुछ अवसरों पर शब्दों की स्पष्ट परिभाषा दी जानी चाहिए। सभी अप्रासंगिक बातों को निकाल दिया जाना चाहिए। अपनी नींव डालने में जल्दबाज़ी मत कीजिए। उसे ठोस बनाइए, परन्तु उसी को पूरी बात न बनाइए। यदि किसी बात को आप ग़लत साबित कर रहे हैं तो उसके समर्थन में इस्तेमाल किए गए विभिन्न मुद्दों का विश्लेषण कीजिए ताकि आप उनकी कमज़ोरियों का पता लगा सकें जिससे आपको यह निर्धारित करने में मदद मिले कि आप किस तरह तर्क करेंगे और कैसे बात की जड़ तक पहुँचेंगे।
५ अपना भाषण तैयार करने में, आपको यह पहले से निश्चित करने की कोशिश करनी होगी कि आपका श्रोतागण पहले ही उस विषय के बारे में कितना जानता है। यह काफ़ी हद तक इस बात को निर्धारित करेगा कि आपको अपने तर्क प्रस्तुत करने से पहले कितनी नींव डालनी होगी।
६ व्यवहार-कुशलता और मसीही शिष्टाचार एक दयालु और विचारशील प्रस्तुति की माँग करते हैं, हालाँकि वह मुख्य मुद्दा नहीं है जिस पर हम अब कार्य कर रहे हैं। हमेशा मसीही सिद्धांतों के आपके ज्ञान का पूरा-पूरा फ़ायदा उठाइए और अपने श्रोतागण के हृदय और मन को खोलिए।
७-१३. “ठोस प्रमाण दिया गया” का अर्थ समझाइए।
७ ठोस प्रमाण दिया गया। एक बात मात्र इसलिए नहीं “साबित” होती कि वक्ता के तौर पर आप इस पर विश्वास करते हैं या इसे बताते हैं। आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि आपके श्रोतागण उचित ही यह पूछ सकते हैं, “यह सच क्यों है?” या, “आप क्यों कहते हैं कि यह ऐसा है?” वक्ता होने के नाते आपको हमेशा सवाल “क्यों?” का जवाब देने में समर्थ होने की बाध्यता है।
८ सवाल “कैसे?” “कौन?” “कहाँ?” “कब?” “क्या?” जवाब में मात्र तथ्य और जानकारी प्रदान करते हैं, परन्तु सवाल “क्यों?” कारण प्रस्तुत करता है। यह इस मामले में अकेला है और आपसे तथ्यों से ज़्यादा कुछ माँग करता है। यह आपकी विचार शक्ति पर भारी पड़ता है। इस कारण, अपने भाषण को तैयार करते वक़्त, अपने आपसे वही सवाल बार-बार पूछिए: “क्यों?” फिर निश्चित कीजिए कि आप इसका जवाब दे सकते हैं।
९ आप जो कहते हैं उनके कारण के तौर पर आप अकसर एक ऐसे व्यक्ति को उद्धृत कर सकते हैं जिन्हें अधिकार की मान्यता प्राप्त है। इसका सरल अर्थ यह है कि यदि उन्होंने ऐसा कहा है तो वह सच होगा क्योंकि उन्हें एक ऐसा व्यक्ति माना जाता है जो ज्ञानी है। इसे विश्वास करने का यह पर्याप्त कारण है। जी हाँ, इस क्षेत्र में सर्वोच्च अधिकार यहोवा परमेश्वर का है। अतः, समर्थन में बाइबल से एक पाठ को उद्धृत करना किसी बात को साबित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण है। इसे “साक्ष्यात्मक” प्रमाण कहा जाता है क्योंकि इसमें एक स्वीकार्य गवाह का “साक्ष्य” है।
१० साक्ष्यात्मक प्रमाण प्रस्तुत करने में आपको निश्चित होना चाहिए कि आपके साक्षी आपके श्रोतागण को स्वीकार्य होगी। यदि आप मानव प्राधिकारियों को उद्धृत करते हैं तो उनकी पृष्ठभूमि और उन्हें जिस दृष्टिकोण से देखा जाएगा उसके बारे में निश्चित कीजिए। अनेक लोग बाइबल को एक ईश्वरीय अधिकार के तौर पर स्वीकार करेंगे, परन्तु कुछ लोग इसे मानव कृत्य मानते हैं और इसलिए उसका अधिकार पूर्णतः नहीं मानते। ऐसे मामलों में आपको अन्य प्रमाण देने पड़ेंगे या संभवतः पहले बाइबल की प्रमाणिकता को स्थापित करना पड़ेगा।
११ सावधान। सब प्रमाण का ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। किसी उद्धरण का अप्रासंगिक इस्तेमाल न कीजिए। यह निश्चित कीजिए कि आप जो कहते हैं बिलकुल वही है जो वह अधिकारी कहना चाहता था जिसे आप उद्धृत कर रहे हैं। संदर्भ देने में सुस्पष्ट रहिए। आँकड़ों के बारे में भी सावधान रहिए। ग़लत रीति से प्रस्तुत किए जाने पर इसकी प्रतिक्रिया में विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। उस व्यक्ति को याद कीजिए जो तैर नहीं सकता था और औसतन मात्र तीन फुट गहरी नदी में डूब गया। बीच में जो दस-फुट का गड्ढ़ा था उसके बारे में वह भूल गया।
१२ पारिस्थितिक प्रमाण मानव प्रमाण या ईश्वरीय अधिकार से अलग है। यह तथ्यों से निकाले गए निष्कर्षों पर आधारित प्रमाण है, गवाहों के बयान पर नहीं। अपने निष्कर्षों को स्थापित करने और पारिस्थितिक प्रमाण को विश्वासोत्पादक बनाने के लिए आपके पास अपने निष्कर्षों के समर्थन में तथ्य और तर्क पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने चाहिए।
१३ यदि जिन प्रमाणों को आप पेश करते हैं (क्रम में होना ज़रूरी नहीं) वे उस श्रोतागण को सन्तुष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं जिससे आप बात कर रहे हैं तो आपका सलाहकार उसे सन्तोषजनक पाएगा। सलाहकार अपने आपसे पूछेगा, श्रोतागण के दृष्टिकोण से देखते हुए, “क्या मुझे विश्वास दिलाया गया है?” यदि हाँ, तो वह आपकी प्रस्तुति के लिए आपकी सराहना करेगा।
१४. प्रभावकारी सारांश क्या है?
१४ प्रभावकारी सारांश। विश्वासोत्पादक तर्क के लिए किसी प्रकार का सारांश अकसर ज़रूरी होता है। यह तर्क के लिए आख़िरी अपील है और इस्तेमाल किए गए तर्कों के लिए मूल्यांकन बढ़ाता है। एक सारांश को मात्र तथ्यों का दोहराव नहीं होना चाहिए, हालाँकि यह मात्र यह कहने का मामला है “चूँकि यह ऐसा है, और चूँकि वह वैसा है, इसलिए हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि . . .”। यह पहलू सभी मुद्दों को एक साथ गठित करने और उन्हें समाप्ति की ओर ले जाने के लिए तैयार किया गया है। अकसर प्रभावकारी सारांश तर्कों को अच्छी तरह समझाता है ताकि वे वास्तव में विश्वास दिलाएँ।
१५, १६. हमें तर्क करने में श्रोतागण की मदद क्यों करनी चाहिए?
१५ हालाँकि आपने अपने भाषण में जिन तर्कों का इस्तेमाल किया है वे ठोस हैं, फिर भी तथ्यों को मात्र प्रस्तुत करना काफ़ी नहीं है। आपको उन्हें इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए कि आप श्रोतागण को तर्क करने में, आपके तर्क को समझने में, और उसी निष्कर्ष तक पहुँचने में मदद दें जिस पर आप पहुँचे हैं। इसे ही भाषण सलाह परची “श्रोतागण को तर्क करने के लिए मदद दी गई” कहती है।
१६ आपको यह गुण वांछनीय लगना चाहिए क्योंकि परमेश्वर हमसे तर्क करता है। साथ ही, यीशु ने अपने चेलों को अपने दृष्टान्त समझाए और उन्हें वही सच्चाइयाँ दूसरों को सिखाने के लिए सज्जित किया। अतः, अपने श्रोतागण को तर्क करने के लिए मदद देने का अर्थ है उन तकनीकों का इस्तेमाल करना जो आपके श्रोतागण को आपके तर्क समझने में, आपके निष्कर्षों तक पहुँचने में, और अन्य किसी व्यक्ति को सिखाने में आपके तर्कों का इस्तेमाल करने के वास्ते मदद देने के लिए ज़रूरी है।
१७, १८. समान आधार कैसे क़ायम रखा जाता है?
१७ समान आधार क़ायम रखा गया। अपने भाषण की शुरूआत में एक समान आधार स्थापित करने के लिए आप जो कहते हैं और आप इसे कैसे कहते हैं, दोनों ही अति-महत्त्वपूर्ण हैं। लेकिन जैसे-जैसे भाषण आगे बढ़ता है आपको इस समान आधार को खोना नहीं चाहिए, नहीं तो आप अपने श्रोतागण को भी खो देंगे। आपको अपनी बातें इस प्रकार व्यक्त करते रहना चाहिए कि यह आपके श्रोतागण के मन को भाएँ। इसके लिए ज़रूरी है कि आप चर्चा किए जा रहे विषय पर उनके दृष्टिकोण को ध्यान में रखें और इस ज्ञान का अपने तर्कों की तर्कसंगतता को उन्हें समझने में मदद देने के लिए इस्तेमाल करें।
१८ समान आधार स्थापित करने और उसे अन्त तक बनाए रखने, अर्थात् श्रोतागण को तर्क करने में मदद देने का एक उत्तम उदाहरण प्रेरित पौलुस का तर्क है, जैसे प्रेरितों १७:२२-३१ में अभिलिखित है। ध्यान दीजिए कि कैसे उसने शुरूआत में ही एक समान आधार स्थापित किया और व्यवहार-कुशलता से उसे अपने पूरे भाषण के दौरान बनाए रखा। जब उसने समाप्त किया तब वह अपने श्रोतागण में से कुछ लोगों को, वहाँ उपस्थित एक न्यायाधीश को भी, सच्चाई के बारे में विश्वास दिला चुका था।—प्रेरितों १७:३३, ३४.
१९-२३. वे तरीक़े सुझाइए जिनसे मुद्दों को पूरी तरह विकसित किया जा सकता है।
१९ मुद्दे पर्याप्त रूप से विकसित। श्रोतागण को एक विषय पर तर्क करने के लिए उनके पास पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए जिसे उस प्रकार प्रस्तुत की गयी है कि वे तर्कों को मात्र इसलिए नहीं ठुकराएँ क्योंकि वे उन्हें पूरी तरह नहीं समझते हैं। उनकी मदद करना आपके हाथ में है।
२० इसे प्रभावकारी रीति से करने के लिए सावधान रहिए कि आप बहुत ज़्यादा मुद्दों को पेश न करें। आपकी जानकारी का सर्वोत्तम भाग खो जाएगा यदि उसे जल्दबाज़ी में प्रस्तुत किया जाता है। मुद्दों को सही रीति से समझाने के लिए समय निकालिए ताकि आपका श्रोतागण उन्हें केवल सुनेगा ही नहीं परन्तु उन्हें समझेगा भी। जब आप एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे को बताते हैं तो उसे विकसित करने के लिए समय निकालिए। ऐसे सवालों का जवाब दीजिए जैसे क्यों? कौन? कैसे? क्या? कब? कहाँ? इस तरह अपने श्रोतागण को वह विचार और ज़्यादा अच्छी तरह समझने में मदद दीजिए। समय-समय पर आप अपनी स्थिति की तर्कसंगतता पर ज़ोर देने के लिए, अमुक मुद्दे के पक्ष में या उसके विरुद्ध तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं। उसी प्रकार, एक सिद्धांत प्रस्तुत करने के बाद, आप शायद उसका उदाहरण देना लाभदायक पाएँगे ताकि श्रोतागण उसका व्यावहारिक अनुप्रयोग समझ सकें। जी हाँ, समझदारी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। जिस हद तक किसी मुद्दे को विकसित किया जाता है, यह उपलब्ध समय और विचाराधीन विषय के लिए उसके तुलनात्मक महत्त्व पर निर्भर करेगा।
२१ श्रोतागण को तर्क करने में मदद देने के लिए सवाल हमेशा अच्छे होते हैं। आलंकारिक सवाल, अर्थात् वे सवाल जो श्रोतागण के सामने उनसे जवाब की अपेक्षा किए बग़ैर रखे जाते हैं, साथ ही उचित ठहराव सोच-विचार को प्रेरित करेगा। यदि आप मात्र एक या दो व्यक्तियों से बात कर रहे हैं, जैसे कि क्षेत्र सेवकाई में, तो बात करते-करते आप सवालों के ज़रिए उनकी बात निकलवा सकते हैं और इस प्रकार पता लगा सकते हैं कि वे प्रस्तुत किए जा रहे विचारों को समझ रहे और स्वीकार कर रहे हैं कि नहीं।
२२ क्योंकि आप श्रोतागण में उपस्थित लोगों के मन को मार्गदर्शित करना चाहते हैं, आपको उन बातों पर आगे बढ़ना है जिन्हें वे चाहे उनके अपने अनुभव से या आपकी चर्चा के पिछले भाग से जानते हैं। सो यह निर्धारित करने में कि क्या आपने अमुक मुद्दों को पर्याप्त रूप से विकसित किया है, आपको इस बारे में विचार करना होगा कि आपके श्रोतागण पहले से उस विषय के बारे में कितना जानते थे।
२३ यह निश्चित करने के लिए कि वे आपको समझ रहे हैं, श्रोतागण की प्रतिक्रिया पर नज़र रखना हमेशा महत्त्वपूर्ण है। जहाँ ज़रूरी हो वहाँ अगले तर्क की ओर जाने से पहले पीछे जाकर मुद्दों को स्पष्ट कीजिए। यदि आप सावधानी से उन्हें तर्क करने में मदद नहीं देंगे तो वे आपकी विचारधारा से हट जाएँगे।
२४. आपके श्रोतागण के लिए तर्कों का अनुप्रयोग करना किस अच्छे उद्देश्य को निष्पन्न करता है?
२४ श्रोतागण के लिए लागू किया गया। किसी-भी तर्क को प्रस्तुत करते वक़्त, निश्चित ही विचाराधीन विषय पर यह किस प्रकार लागू होता है उसे स्पष्ट समझाने के ज़रिए निष्कर्ष निकालिए। साथ ही, भाषण में श्रोताओं को प्रस्तुत किए गए तथ्यों के सामंजस्य में कार्य करने को उकसाते हुए प्रोत्साहन शामिल कीजिए। यदि वे आपकी कही गई बातों से वास्तव में क़ायल हुए हैं तो वे कार्य करने के लिए तैयार होंगे।