अध्याय 9
उतार-चढ़ाव
मतलब पर ज़ोर देने से ही सुननेवालों को आपकी बात समझ आ सकती है। लेकिन जब आप बात करते वक्त आवाज़ ऊँची या नीची करते हैं, बोलने की रफ्तार घटाते-बढ़ाते हैं, और स्वर-बल में फेरबदल करते हैं, तो लोगों को आपकी बात सुनने में और भी आनंद आता है। इससे भी बढ़कर, उन्हें यह पता लगता है कि आप जो कह रहे हैं, उसके बारे में आप खुद कैसा महसूस करते हैं। आपके सुननेवालों पर भाषण का क्या असर होगा, यह काफी हद तक भाषण के बारे में खुद आपके नज़रिए पर निर्भर करता है। आप चाहे स्टेज से भाषण दे रहे हों या प्रचार में किसी को गवाही दे रहे हों, यह बात दोनों मामलों में लागू होती है।
आवाज़, इंसान को मिला एक वरदान है, और इससे इंसान कई तरह की ध्वनि और स्वर निकाल सकता है। अगर हम आवाज़ का सही इस्तेमाल करने में महारत हासिल करें, तो हमारा भाषण जानदार हो सकता है, हम सुननेवालों के दिलों तक पहुँच सकते हैं, उनकी भावनाओं को झंझोड़ सकते हैं, और उन्हें कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए अपने नोट्स् पर सिर्फ निशान लगाना काफी नहीं है कि आपको कहाँ-कहाँ तेज़ या धीमी आवाज़ में बोलना है, रफ्तार घटानी या बढ़ानी है या स्वर-बल में फेरबदल करना है। जहाँ-जहाँ पर ये निशान आते हैं, वहाँ पर आवाज़ में उतार-चढ़ाव करना बनावटी लगेगा। इससे आपका भाषण न तो जानदार होगा, ना ही मज़ेदार, बल्कि इसे सुनने में लोग बेचैनी महसूस करेंगे। इसलिए सही उतार-चढ़ाव अंदर की भावनाओं के साथ निकलता है।
जब भाषण देनेवाला सोच-समझकर सही जगह पर आवाज़ में उतार-चढ़ाव लाएगा, तब लोगों का ध्यान बेवजह उसकी तरफ नहीं जाएगा। इसके बजाय, इससे उन्हें विषय की भावना महसूस करने में मदद मिलेगी।
आवाज़ ऊँची-नीची करना। अपनी आवाज़ में फेर-बदल करने का एक तरीका है, आवाज़ ऊँची या नीची करना। लेकिन इसका मतलब नहीं कि आपको कुछ समय के बाद बार-बार अपनी आवाज़ ऊँची या नीची करनी चाहिए। ऐसा करने से आप जो कह रहे हैं, उसका बिलकुल अलग ही मतलब निकलेगा। यही नहीं, अगर आप बार-बार ऊँची आवाज़ में बात करेंगे, तो लोगों को आपके बारे में अच्छी राय नहीं होंगे।
आपकी आवाज़, आपकी जानकारी के मुताबिक होनी चाहिए। आप चाहे प्रकाशितवाक्य 14:6, 7 या प्रकाशितवाक्य 18:4 जैसी आयतों में दर्ज़ ज़रूरी आदेश पढ़ रहे हों, या फिर निर्गमन 14:13, 14 जैसी आयतों में पक्के विश्वास से कही बातें, बेहतर होगा कि आप ज़रूरत के हिसाब से अपनी आवाज़ को काफी तेज़ कर लें। उसी तरह जब आप बाइबल में से कोई ऐसा भाग पढ़ रहे हों जिनमें कड़ा दंड सुनाया गया हो, जैसे यिर्मयाह 25:27-38 में लिखा है, तो जगह-जगह आवाज़ ऊँची-नीची करने से आयतों के कुछ हिस्से, बाकी के हिस्सों से अलग नज़र आएँगे।
आपके भाषण का मकसद क्या है, इस पर भी गौर कीजिए। क्या आप अपने सुननेवालों को कदम उठाने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि भाषण के मुख्य मुद्दे साफ नज़र आएँ? तो फिर, ज़रूरत के हिसाब से सही जगह पर आवाज़ ऊँची करने से आप ऐसा कर पाएँगे। लेकिन अगर आप सिर्फ ऊँची आवाज़ में बोलेंगे, तो अपने मकसद तक नहीं पहुँच पाएँगे। वह क्यों? हो सकता है, कि आप जो कुछ रहे हैं, उसके लिए ऊँची आवाज़ नहीं, बल्कि स्नेह और भावना के साथ बात करने की ज़रूरत हो। हम इसके बारे में 11वें अध्याय में चर्चा करेंगे।
सोच-समझकर आवाज़ धीमी करने से, लोगों में आगे की बात जानने की उत्सुकता पैदा होती है। मगर इसके फौरन बाद, आपको स्वर में तेज़ी लाने की ज़रूरत होती है। चिंता या डर व्यक्त करने के लिए भी धीमी आवाज़ के साथ-साथ तेज़ स्वर का इस्तेमाल किया जा सकता है। कम अहमियतवाली बातें बताने के लिए भी धीमी आवाज़ का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन, अगर आपकी आवाज़ हमेशा ही धीमी रहेगी, तो इससे यह लगेगा कि आप जो बता रहे हैं उस पर आपको खुद यकीन नहीं है या उस विषय में खुद आपको कोई दिलचस्पी नहीं है। तो ज़ाहिर है कि धीमी आवाज़ और स्वरों का इस्तेमाल करते वक्त सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए।
रफ्तार घटाना-बढ़ाना। हर दिन की बातचीत में जब हम अपने विचार व्यक्त करते हैं, तो शब्द खुद-ब-खुद हमारी ज़बान पर आ जाते हैं। जब हम उमंग से भरे हों, तो हम अकसर एक ही साँस में अपनी बात कह जाते हैं। दूसरी तरफ, अगर हम चाहते हैं कि सुननेवाले हमारे हर लफ्ज़ को याद रखें, तो हम जानबूझकर आहिस्ते-आहिस्ते बात करते हैं।
लेकिन भाषण देनेवालों में से बहुत-से नए जन एक ही रफ्तार में बोलते हैं। क्यों? क्योंकि वे अपने भाषण के हर शब्द पर ज़रूरत-से-ज़्यादा ध्यान देते हैं और जो उनको कहना होता है, वह सब-का-सब कागज़ पर लिख डालते हैं। हालाँकि वे मैन्यूस्क्रिप्ट से भाषण नहीं देते, मगर उन्हें भाषण का हर शब्द लगभग मुँह-ज़बानी याद हो जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि वे बहुत नपी-तुली रफ्तार में भाषण देते हैं। इस कमज़ोरी पर जीत पाने के लिए, भाषण देते वक्त एक आउटलाइन का इस्तेमाल करना मददगार होगा।
अपनी आवाज़ की रफ्तार को अचानक तेज़ मत कीजिए, वरना सुननेवालों को ऐसा लगेगा मानो एक बिल्ली जो आराम से घूम रही थी, अचानक कुत्ते को देखते ही दुम दबाकर भागने लगी हो। और इतनी भी जल्दी-जल्दी मत बोलिए कि आप गलत उच्चारण करने लगें।
बोलने की रफ्तार में बदलाव लाने के लिए, सिर्फ नियमित रूप से बीच-बीच में जल्दी-जल्दी या धीरे से मत बोलिए। भाषण पेश करने का यह तरीका आपकी जानकारी को दिलचस्प बनाने के बजाय लोगों का ध्यान भटका देगा। आप जो बोल रहे हैं, जो भावनाएँ ज़ाहिर करना चाहते हैं और आपके भाषण का जो मकसद है, इन सारी बातों को मन में रखते हुए आपको बोलने की रफ्तार बदलनी चाहिए। अपने भाषण को न तो हड़बड़ी में, ना ही बहुत धीरे-धीरे पेश कीजिए। जिस तरह रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हम उमंग से जल्दी-जल्दी बात करते हैं, उसी तरह भाषण में उमंग ज़ाहिर करने के लिए जल्दी-जल्दी बात करें। यह तब भी किया जाना चाहिए जब आप कम अहमियत रखनेवाले मुद्दे बता रहे हों या ऐसी घटना के बारे में सुना रहे हों जिसका ब्यौरा ज़्यादा ज़रूरी नहीं है। इससे आप अलग-अलग रफ्तार में भाषण दे पाएँगे, साथ ही यह सुननेवालों को भारी नहीं लगेगा। दूसरी तरफ, बहुत ज़रूरी दलीलों, मुख्य मुद्दों और भाषण के खास हिस्से को बताते वक्त आम तौर पर कम रफ्तार में बोलने की ज़रूरत होती है।
स्वर-बल में फेरबदल। कल्पना कीजिए कि एक शख्स एक घंटे से अपने साज़ पर एक ही सुर बजा रहा है। कभी ज़ोर से, कभी धीमे से, कभी जल्दी-जल्दी तो कभी धीरे-धीरे। माना संगीत की आवाज़ और रफ्तार में फर्क है, लेकिन स्वर-बल में बदलाव न होने की वजह से “संगीत” सुनने में बिलकुल बेसुरा लगेगा। उसी तरह, अगर हम बात करने में अपने स्वर-बल में फेरबदल नहीं करेंगे, तो हमारी आवाज़ सुनने में मीठी नहीं लगेगी।
इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि स्वर-बल में फेरबदल करने का असर सभी भाषाओं में एक-सा नहीं होता है। चीनी जैसी स्वर-संबंधी भाषाओं में, स्वर-बल में फेरबदल करने से शब्द का कुछ और मतलब निकल सकता है। लेकिन जो भाषाएँ स्वर-संबंधी नहीं होती, उनमें भी स्वर-बल बदलकर अलग-अलग विचार व्यक्त किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, आवाज़ में थोड़ा ज़्यादा बल लाकर और उसी हिसाब से आवाज़ ऊँची करके आप मतलब पर ज़ोर दे सकते हैं। या फिर, स्वर-बल में बदलाव लाकर किसी चीज़ की नाप, या दूरी बतायी जा सकती है। और अगर आप किसी वाक्य के आखिर में स्वर-बल बढ़ाते जाएँगे, तो ऐसा लग सकता है कि आप कोई सवाल पूछ रहे हैं। कुछ भाषाओं में इसके लिए स्वर-बल घटाने की ज़रूरत पड़ सकती है।
उमंग और जोश ज़ाहिर करने के लिए स्वर-बल को बढ़ाया जा सकता है, जबकि दुःख और चिंता ज़ाहिर करने के लिए स्वर-बल को घटाने की ज़रूरत पड़ सकती है। इन भावनाओं के ज़रिए भाषण देनेवाला अपने सुननेवालों के मन को छू जाता है। इसलिए भावनाएँ ज़ाहिर करने के लिए सिर्फ शब्द बोलिए ही नहीं, बल्कि अपनी आवाज़ से दिखाइए कि आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं।
बुनियाद डालना। तो फिर आवाज़ में उतार-चढ़ाव लाने की बुनियाद कब डाली जाती है? अपने भाषण के लिए जानकारी का चुनाव करते वक्त। अगर आप अपने भाषण में सिर्फ एक-के-बाद-एक दलीलें पेश करने या सिर्फ हौसला बढ़ानेवाली बातें बोलने की सोचते हैं, तो आपको अपनी आवाज़ में उतार-चढ़ाव लाने का बहुत कम मौका मिलेगा। इसलिए अपनी आउटलाइन की अच्छी तरह जाँच कीजिए और ऐसे-ऐसे मुद्दे चुनिए जिनसे आपका भाषण मज़ेदार हो और सुननेवाले उससे बहुत कुछ सीखें।
मान लीजिए कि आप एक भाषण दे रहे हैं। बीच में आपको एहसास होता है कि आपके भाषण में कोई जान नहीं, और यह बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? अपनी जानकारी पेश करने का तरीका बदलिए। कैसे? एक तरीका है, सिर्फ बोलते रहने के बजाय बाइबल खोलकर आयत पढ़िए, साथ ही सुननेवालों को भी अपनी-अपनी बाइबलें खोलने के लिए कहिए। कुछ वाक्यों को सवाल बनाकर पूछिए और ज़ोर देने के लिए ठहराव का इस्तेमाल कीजिए। एक छोटा और आसान-सा उदाहरण बताइए। तजुर्बेकार वक्ता ऐसी ही तरकीबें इस्तेमाल करते हैं। और आप भी इन तरीकों का इस्तेमाल करके अपने भाषण की तैयारी कर सकते हैं, भले ही भाषण देने का आपको कितना ही तजुर्बा क्यों न हों।
आवाज़ में उतार-चढ़ाव के साथ भाषण पेश करना, खाने में मसाले मिलाने के बराबर है। जिस तरह सही किस्म के मसाले, सही मात्रा में डालने से खाना स्वादिष्ट बनता है, उसी तरह सही तरीके से उतार-चढ़ाव लाने पर आपका भाषण दिलचस्प और जानदार होगा, और सुननेवाले इसका पूरा आनंद उठा सकेंगे।