अध्याय 21
आयतों को सही ज़ोर देकर पढ़ना
जब आप किसी अकेले व्यक्ति के साथ या फिर स्टेज से परमेश्वर के उद्देश्य के बारे में चर्चा करते हैं, तो यह चर्चा परमेश्वर के वचन पर आधारित होनी चाहिए। इसके लिए अकसर बाइबल से आयतें पढ़ना ज़रूरी होता है, और यह अच्छी तरह किया जाना चाहिए।
सही शब्दों पर ज़ोर देने के लिए भावनाओं के साथ पढ़ना ज़रूरी है। आयतों को भावनाओं के साथ पढ़ा जाना चाहिए। कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए। जब आप भजन 37:11 को ऊँची आवाज़ में पढ़ते हैं, तो आपकी आवाज़ से यह साफ पता लगना चाहिए कि आप खुश हैं और बड़ी बेसब्री से ऐसी शांति के आने का इंतज़ार कर रहे हैं जिसका वादा इस आयत में किया गया है। जब आप प्रकाशितवाक्य 21:4 पढ़ते हैं कि दुःख-तकलीफ और मौत का अंत हो जाएगा, तो आपकी आवाज़ में उस शानदार छुटकारे की भविष्यवाणी के लिए एहसान की भावना ज़ाहिर होनी चाहिए। प्रकाशितवाक्य 18:2, 4, 5 को ऐसे लहज़े से पढ़ा जाना चाहिए, मानो आप लोगों से पाप में डूबे “बड़े बाबुल” से फौरन बाहर निकल भागने की फरियाद कर रहे हैं। बेशक, जो भी भावना आप व्यक्त करते हैं वह दिल से होनी चाहिए, मगर हद-से-ज़्यादा नहीं। किस हद तक भावनाओं का इज़हार करना सही होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन-सी आयत पढ़ते हैं और किस तरीके से पढ़ते हैं।
सही शब्दों पर ज़ोर देना। अगर आप किसी आयत का एक भाग समझा रहे हैं, तो उस आयत को पढ़ते वक्त आपको सिर्फ उसी भाग पर ज़ोर देना चाहिए। उदाहरण के लिए, मत्ती 6:33 पढ़ते वक्त अगर आप ‘पहिले उसके राज्य की खोज’ करने पर ज़ोर देना चाहते हैं, तो आप ‘उसके धर्म’ और ‘सब वस्तुओं’ पर ज़्यादा ज़ोर नहीं देंगे।
अगर आप सेवा सभा के अपने भाषण में मत्ती 28:19 पढ़ने की सोच रहे हैं, तो आपको किन शब्दों पर ज़ोर देना चाहिए? अगर आप घर पर बाइबल अध्ययन शुरू करने पर ज़ोर देना चाहते हैं, तो शब्द, “चेला बनाओ” पर ज़ोर दे सकते हैं। लेकिन अगर आप दूसरे देशों से आकर आपके इलाके में बसनेवाले लोगों को बाइबल की सच्चाई सुनाने की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देना चाहते हैं, या कुछ भाई-बहनों को ऐसी जगह सेवा करने के लिए उकसाना चाहते हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है, तो आप “जाकर सब जातियों के लोगों” पर ज़ोर दे सकते हैं।
कई बार, आयत का इस्तेमाल किसी सवाल का जवाब देने या किसी ऐसी बात को सच साबित करने के लिए किया जाता है, जो लोगों में विवाद का विषय है। अगर आप आयत की हर बात पर एक जैसा ज़ोर देंगे, तो सुननेवालों को आपकी बात और आयत के बीच कोई ताल्लुक नज़र नहीं आएगा। आप जो कहना चाहते हैं, वह आपके मन में स्पष्ट होगा, मगर सुननेवालों के नहीं।
उदाहरण के लिए, अगर आप बाइबल से परमेश्वर का नाम बताने के लिए भजन 83:18 पढ़ रहे हैं और आप सारा ज़ोर “परमप्रधान” पर देंगे, तो जो बात आपको साफ-साफ समझ आ रही है वह शायद आपके सुननेवाले को समझ न आए कि परमेश्वर का अपना एक नाम है। इसलिए आपको परमेश्वर के नाम, “यहोवा” पर ज़ोर देना होगा। लेकिन जब आप यही आयत यह बताने के लिए इस्तेमाल करते हैं कि यहोवा ही सारे विश्व का महाराजा और मालिक है, तब आपको सबसे ज़्यादा ज़ोर “परमप्रधान” पर देना होगा। उसी तरह, जब आप विश्वास के साथ-साथ काम करने की अहमियत बताने के लिए याकूब 2:24 इस्तेमाल करते हैं, तो “कर्मों” के बजाय अगर आप “धर्मी ठहरता” है पर ज़ोर देंगे, तो सुननेवाले आपकी बात समझ नहीं पाएँगे।
एक और अच्छा उदाहरण रोमियों 15:7-13 में मिलता है। यह प्रेरित पौलुस के लिखे खत का एक भाग है जो यहूदियों और दूसरी जातियों से बनी कलीसिया के नाम लिखा गया था। यहाँ पर प्रेरित पौलुस दलील देता है कि यीशु की सेवा से सिर्फ खतना-प्राप्त यहूदियों को फायदा नहीं होता बल्कि “अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की बड़ाई” कर पाएँगी। अन्यजातियों को मिलनेवाले इस मौके पर ध्यान दिलाते हुए पौलुस ने चार आयतों का हवाला दिया। पौलुस जो कहना चाह रहा था, उस पर ज़ोर देने के लिए आपको ये हवाले कैसे पढ़ने चाहिए? आप सही शब्दों पर ज़ोर देने के लिए निशान लगाना चाहते हैं, तो आप आयत 9 में “जाति जाति” पर, आयत 10 में “हे जाति जाति के सब लोगो,” आयत 11 में “हे जाति जाति के सब लोगो” और “हे राज्य राज्य के सब लोगो,” और आयत 12 में “अन्यजातियों” पर निशान लगा सकते हैं। इस तरह ज़ोर देकर रोमियों 15:7-13 को पढ़ने की कोशिश कीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो पौलुस जो कहना चाहता था वह लोगों को अच्छी तरह से समझा सकेंगे।
ज़ोर देने के तरीके। विचारों को स्पष्ट करनेवाले शब्दों पर ज़ोर देने के कई तरीके हैं। आप चाहे जो भी तरीका अपनाएँ, उसे शास्त्रवचन के साथ और आपके भाषण की सैटिंग के साथ मेल खाना चाहिए। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं।
आवाज़ से ज़ोर देना। इससे आवाज़ में किसी किस्म का बदलाव लाकर वाक्य के खास शब्दों पर ज़ोर देकर उन्हें उभारा जा सकता है। आप ज़ोर देने के लिए अपनी आवाज़ को तेज़ या धीमा कर सकते हैं। कई भाषाओं में स्वर-बल में फेरबदल करने से ज़ोर दिया जा सकता है। लेकिन किसी-किसी भाषा में ऐसा करने से शब्द का कुछ और मतलब निकल सकता है। अगर खास शब्दों पर ज़ोर देने के लिए आवाज़ को धीमा किया जाता है, तो बात में और भी दम आ जाता है। जिन भाषाओं में आवाज़ के ज़रिए शब्दों पर ज़ोर देने की गुंजाइश नहीं होती, उन भाषाओं में ज़ोर देने का जो तरीका आम तौर पर अपनाया जाता है, वही अपनाया जाना चाहिए।
ठहराव। वचन का खास भाग पढ़ने से पहले या उसके बाद या दोनों जगह ठहराव दिया जा सकता है। खास विचार पढ़ने से एकदम पहले ठहराव देने से दिलचस्पी जागती है और बाद में रुकने से कही गयी बात मन में गहराई तक उतर जाती है। लेकिन अगर ज़रूरत-से-ज़्यादा रुक-रुककर बात करेंगे, तो किसी भी बात पर ज़ोर नहीं पड़ेगा और कोई बात उभरकर सामने नहीं आएगी।
दोहराना। किसी खास बात पर ज़ोर देने के लिए आप पढ़ते-पढ़ते बीच में ही रुककर खास शब्द या भाग को दोबारा पढ़ सकते हैं। एक और बेहतर तरीका है कि पहले आप पूरी आयत या वाक्य पढ़ लीजिए, फिर जिस पर ज़ोर देना हो सिर्फ उसी शब्द को दोबारा पढ़िए।
हाव-भाव। हाव-भाव और चेहरे के भावों से शब्दों को भावनाओं के साथ पढ़ा जा सकता है।
लहज़ा। कुछ भाषाओं में, कई बार शब्दों को ऐसे लहज़े में पढ़ा जाता है जिससे उनके मतलब पर फर्क पड़ता है और उन पर ज़ोर दिया जाता है। इस मामले में भी सावधानी बरतने की ज़रूरत है, खासकर व्यंग्य भरी या कड़वी बातें बोलते वक्त।
जब दूसरे आयत पढ़ते हैं। जब घर-मालिक कोई आयत पढ़ता है, तो हो सकता है कि वह गलत शब्दों पर ज़ोर देकर पढ़े, या फिर किसी भी शब्द पर ज़ोर न दे। तब आप क्या कर सकते हैं? आम तौर पर सबसे बेहतरीन तरीका है कि आप आयत का मतलब समझाएँ। इसके बाद, आप सीधे-सीधे आयत के खास शब्दों पर ध्यान दिला सकते हैं।