अध्याय 40
सही जानकारी देना
किस वजह से एक मसीही गलत जानकारी दे सकता है? वह शायद कुछ ऐसी बात बता दे जो उसने कहीं सुनी है, मगर उसमें कितनी सच्चाई है, इसे परखने के लिए वक्त ना निकाला हो। या हो सकता है कि वह जिस किताब से जानकारी दे रहा है, उसे उसने गलत पढ़ा हो और उसे इस बात का एहसास ही न हो और इसलिए वह किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा हो। अगर हम छोटी-छोटी बातों में भी सही जानकारी देने का पूरा ध्यान रखें, तो हमारे सुननेवालों को भरोसा होगा कि हमारे संदेश की मोटी-मोटी बातें भी सोलह आने सही हैं।
प्रचार काम में। बहुत-से लोग प्रचार का काम शुरू करने से घबराते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अब भी उन्हें बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। लेकिन कुछ ही समय बाद, वे पाते हैं कि सच्चाई की बुनियादी बातों के ज्ञान से ही, वे बढ़िया तरीके से गवाही दे पाते हैं। उनकी कामयाबी का राज़ क्या है? अच्छी तैयारी करना।
प्रचार के लिए निकलने से पहले, उस विषय के बारे में अच्छी जानकारी लीजिए जिसके बारे में आप चर्चा करना चाहते हैं। अंदाज़ा लगाने की कोशिश कीजिए कि उस विषय पर लोग क्या-क्या सवाल पूछ सकते हैं। बाइबल में उन सवालों के सही-सही जवाब ढूँढ़िए जिनसे सुननेवालों को तसल्ली हो। इस तरह आप बेफिक्र होकर सही जवाब दे पाएँगे। क्या आप एक बाइबल अध्ययन चलाने जा रहे हैं? तो जिस अध्याय पर आप अध्ययन करवाने जा रहे हैं, उसे ध्यान से पढ़िए और यह अच्छी तरह समझिए कि किताब में दिए सवालों के जवाब कैसे बाइबल के आधार पर दिए गए हैं।
अगर प्रचार में कोई घर-मालिक या काम की जगह पर आपका कोई साथी आपसे ऐसा सवाल पूछे, जिसका जवाब देने के लिए आप तैयार नहीं हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? अगर आपको सही-सही जवाब नहीं मालूम, तो अटकलें लगाने की गलती न करें। “धर्मी मनुष्य अपने मन में विचार करता है, कि क्या उत्तर दे।” (नीति. 15:28, NHT) अगर रीज़निंग फ्रॉम द स्क्रिप्चर्स् किताब या चर्चा के लिए बाइबल विषय पुस्तिका आपकी भाषा में मौजूद है, तो जवाब देने में ये साहित्य मददगार साबित हो सकते हैं। अगर उस वक्त उनमें से कोई भी साहित्य आपके पास नहीं है, तो सवाल पूछनेवाले को बताइए कि आप खोजबीन करके, उसे अगली बार जवाब बताएँगे। अगर उसने नेक इरादे से सवाल पूछा है, तो सही जवाब पाने का इंतज़ार करने में उसे एतराज़ नहीं होगा। और यह भी हो सकता है कि आपकी नम्रता उसे भा जाए।
प्रचार में अनुभवी प्रचारकों के साथ काम करने से, आप परमेश्वर के वचन को सही रीति से काम में लाने का हुनर बढ़ा सकते हैं। ध्यान दीजिए कि वे कौन-सी आयतें इस्तेमाल करते हैं और किस तरह उन आयतों को लेकर तर्क करते हैं। अगर वे आपको कुछ सुझाव देते हैं या सुधारते हैं, तो नम्रता से कबूल कीजिए। यीशु के एक जोशीले शिष्य, अप्पुलोस की दूसरों ने मदद की और इससे उसे फायदा हुआ। लूका बताता है कि अप्पुलोस एक “कुशल वक्ता” था, “पवित्रशास्त्र में निपुण” था और “बड़े आत्मिक उत्साह से भर कर यीशु के विषय में ठीक-ठीक सुनाता और सिखाता था।” (NHT) मगर फिर भी, उसे कुछेक बातों की समझ नहीं थी। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला ने यह देखा, तो वे “उसे अपने यहां ले गए और परमेश्वर का मार्ग उस को और भी ठीक-ठीक बताया।”—प्रेरि. 18:24-28.
“विश्वासयोग्य वचन को दृढ़ता से थामे रहें।” कलीसिया में हम जो भाग पेश करते हैं, उनसे यह ज़ाहिर होना चाहिए कि हम पूरे दिल से कलीसिया को “सत्य का खंभा, और नेव” मानते हैं। (1 तीमु. 3:15) सच्चाई को बुलंद करने के लिए, यह ज़रूरी है कि हम उन आयतों को अच्छी तरह समझें जिन्हें हम भाषणों में इस्तेमाल करना चाहते हैं। ध्यान से देखिए कि आयतों के आस-पास क्या जानकारी दी गयी है और वे किस मकसद से लिखी गयी हैं।
आप कलीसिया में जो जानकारी पेश करते हैं, उसे सुननेवाले शायद दूसरों को बताएँ। माना कि “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं।” (याकू. 3:2) लेकिन अगर आप सही-सही बोलने की आदत डालेंगे, तो आपको काफी फायदा होगा। परमेश्वर की सेवा स्कूल में दाखिला लेनेवाले बहुत-से भाई, कुछ वक्त के बाद प्राचीन बनेंगे। यह ज़िम्मेदारी जिनको सौंपी जाती है, उनसे “और भी अधिक” की उम्मीद की जाती है। (लूका 12:48, NHT) अगर एक प्राचीन, लापरवाही की वजह से गलत सलाह देता है और उससे कलीसिया के सदस्य, बड़ी मुसीबत में फँस जाते हैं, तो ऐसे प्राचीन को परमेश्वर के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। (मत्ती 12:36, 37) इसलिए, प्राचीन की ज़िम्मेदारी निभानेवाले एक भाई को “सिखाने की कला में विश्वासयोग्य वचन को दृढ़ता से थामे” रहने का नाम कमाना चाहिए।—तीतु. 1:9, NW.
इस बात का ध्यान रखें कि आप जो दलीलें पेश करते हैं, वे बाइबल की सारी सच्चाइयों में ज़ाहिर होनेवाले ‘खरी बातों के आदर्श’ से मेल खाती हों। (2 तीमु. 1:13) ऐसा करते वक्त, आपको घबराहट महसूस करने की ज़रूरत नहीं है। हो सकता है कि आपने अभी तक पूरी बाइबल न पढ़ी हो। यह लक्ष्य हासिल करने की लगातार कोशिश करते रहिए। लेकिन इस दौरान आप दूसरों को सिखाते वक्त जो जानकारी पेश करना चाहते हैं, उसे जाँचने के लिए देखिए कि नीचे दिए गए सुझाव कैसे आपकी मदद कर सकते हैं।
सबसे पहले, खुद से पूछिए: ‘क्या यह जानकारी, उन बातों के मुताबिक सही है, जो मैंने बाइबल से अब तक सीखी हैं? क्या इस जानकारी से मेरे सुननेवालों का ध्यान, यहोवा की तरफ खिंचेगा? या क्या फिर इससे ऐसा लगेगा कि संसार की बुद्धि श्रेष्ठ है और इससे लोगों को उस बुद्धि के मुताबिक चलने का बढ़ावा मिलेगा?’ यीशु ने कहा: “तेरा वचन सत्य है।” (यूह. 17:17; व्यव. 13:1-5; 1 कुरि. 1:19-21) इसके अलावा, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास की तरफ से अध्ययन के लिए तैयार किए गए साहित्य का पूरा-पूरा इस्तेमाल करें। ये साहित्य न सिर्फ आयतों की सही समझ पाने में बल्कि उन पर समझ-बूझ के साथ और ठीक तरह से अमल करने में भी आपकी मदद करेंगे। अगर आप ‘खरी बातों के आदर्श’ के मुताबिक भाषण देंगे और यहोवा के ठहराए इंतज़ाम की मदद लेकर आयतों का मतलब समझाएँगे और उन्हें लागू करेंगे, तो आपकी जानकारी बिलकुल सही होगी।
जानकारी की सच्चाई परखना। कुछेक मुद्दों को उदाहरण देकर समझाने के लिए या उन्हें लागू करने के लिए हाल की घटनाएँ, किसी के कहे शब्द और अनुभव मददगार हो सकते हैं। लेकिन आप कैसे पता लगा सकते हैं कि यह जानकारी सही है या नहीं? एक तरीका है, भरोसेमंद किताबों वगैरह से ऐसी बातों का हवाला देना। यह देखना न भूलें कि आप जो जानकारी दे रहे हैं, वह बिलकुल नयी जानकारी है। वक्त के गुज़रते, आँकड़े पुराने हो जाते हैं; विज्ञान नयी-नयी खोज करता है; और जैसे-जैसे ऐतिहासिक घटनाओं और प्राचीन समय की भाषाओं के बारे में इंसान का ज्ञान बढ़ता जाता है, तो पुरानी जानकारी के मुताबिक जो माना जाता था, उसे बदलने की ज़रूरत पड़ती है। अगर आप अखबारों, टी.वी., रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक मेल या इंटरनॆट से कोई जानकारी लेने की सोच रहे हैं, तो सावधानी बरतिए। नीतिवचन 14:15 सलाह देता है: “भोला तो हर एक बात को सच मानता है, परन्तु चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है।” खुद से पूछिए: ‘मैं जिस अखबार, किताब वगैरह से जानकारी ले रहा हूँ, क्या वह सही जानकारी देने के लिए जाना जाता है? क्या उस जानकारी की सच्चाई को परखने का कोई और तरीका है?’ अगर आपको किसी जानकारी की सच्चाई पर शक है, तो उसे इस्तेमाल न करें।
आप जिस अखबार, किताब वगैरह से जानकारी लेते हैं, उसकी सच्चाई परखने के अलावा, इस बात पर भी गौर कीजिए कि आप उस जानकारी को किस तरीके से पेश करेंगे। ध्यान रहे कि आप जिस तरीके से हवाले और आँकड़े इस्तेमाल करते हैं, वह उस संदर्भ के मुताबिक हो, जहाँ से वे लिए गए हैं। सावधान रहिए कि कहीं आप अपनी बात को ज़बरदस्त अंदाज़ में कहने के चक्कर में, “कुछ लोगों” के बदले “ज़्यादातर लोग,” या फिर “बहुत लोगों” की जगह “हर कोई” और “कुछ मामलों में” के बजाय “हमेशा” न कह दें। किसी संख्या, या किसी बात की हद या गंभीरता के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताने से, सुननेवालों के मन में यह शक पैदा हो सकता है कि आप जो कह रहे हैं, वह सच है भी कि नहीं।
अगर आप हमेशा सही बात कहेंगे, तो लोगों की नज़र में आप एक ऐसा इंसान होने की पहचान कायम करेंगे जो सच्चाई से प्यार करता है। इससे एक समूह के तौर पर, यहोवा के साक्षियों का अच्छा नाम होगा। और सबसे बड़ी बात यह है कि इससे ‘सत्यवादी ईश्वर, यहोवा’ की महिमा होगी।—भज. 31:5.