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  • मंडली के लिए “शांति का दौर शुरू” होता है

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  • मंडली के लिए “शांति का दौर शुरू” होता है
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अध्याय 8

मंडली के लिए “शांति का दौर शुरू” होता है

ज़ुल्म ढानेवाला शाऊल एक जोशीला प्रचारक बन जाता है

प्रेषितों 9:1-43 पर आधारित

1, 2. शाऊल ने दमिश्‍क में क्या करने की ठान ली है?

मुसाफिरों की एक टोली बड़ी तेज़ी से दमिश्‍क शहर की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने ठान लिया है कि वे वहाँ के मसीहियों को घसीटकर घरों से बाहर निकालेंगे, सबके सामने ज़लील करेंगे और उन्हें यरूशलेम की महासभा के सामने लाएँगे ताकि उन्हें कड़ी-से-कड़ी सज़ा मिले।

2 इस टोली का सरदार शाऊल है, जिसके हाथ पहले ही खून से रंगे हैं।a हाल ही में जब कुछ कट्टरपंथी यहूदियों ने यीशु के चेले स्तिफनुस को मार डाला था, तो शाऊल खड़े होकर यह सब देख रहा था और उसने इस कत्ल में पूरा साथ दिया। (प्रेषि. 7:57–8:1) फिर शाऊल यरूशलेम में चेलों को बहुत सताने लगा। यह करके भी उसका जी नहीं भरा, वह दूसरे शहरों में भी मसीहियों पर ज़ुल्म करने निकल पड़ा। उसने ठान लिया कि वह मसीहियों के इस खतरनाक पंथ का नामो-निशान मिटा देगा जिसे “प्रभु की राह” कहा जाता है।​—प्रेषि. 9:1, 2; यह बक्स देखें, “शाऊल को दमिश्‍क जाने का अधिकार कैसे मिला?”

3, 4. (क) शाऊल के साथ क्या होता है? (ख) इस अध्याय में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

3 शाऊल और उसकी टोली शहर के बहुत करीब पहुँच गए हैं। तभी अचानक शाऊल के चारों तरफ तेज़ रौशनी चमक उठती है। यह देखकर उसके साथी चौंक जाते हैं और कुछ नहीं बोल पाते। शाऊल अंधा हो जाता है और ज़मीन पर गिर पड़ता है। उसे कुछ दिखायी नहीं दे रहा है लेकिन उसे आकाश से एक आवाज़ सुनायी देती है, “शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?” वह काँपते हुए पूछता है, “हे प्रभु, तू कौन है?” जवाब सुनकर शाऊल हैरान रह जाता है। वह आवाज़ उससे कहती है, “मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है।”​—प्रेषि. 9:3-5; 22:9.

4 “तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है,” यीशु के इन शब्दों से हम क्या सीखते हैं? शाऊल जब मसीही बना तो उस दौरान जो घटनाएँ हुईं, उन पर ध्यान देने से हमें क्या फायदा होगा? उसके मसीही बनने के बाद जब मंडली के लिए शांति का दौर शुरू हुआ, तो मंडली ने उस समय क्या किया और उससे हम क्या सीख सकते हैं?

शाऊल को दमिश्‍क जाने का अधिकार कैसे मिला?

दमिश्‍क गैर-यहूदियों का शहर था। तो फिर शाऊल को वहाँ जाने और मसीहियों को गिरफ्तार करने का अधिकार कैसे मिला? यरूशलेम की महासभा और महायाजक के पास, दुनिया के हर कोने में रहनेवाले यहूदियों के लिए सही-गलत के स्तर ठहराने का अधिकार था। महायाजक के पास शायद यह अधिकार भी था कि वह दूसरे शहरों के यहूदी अपराधियों को वापस यरूशलेम आने का हुक्म दे ताकि उन पर मुकदमा चलाया जा सके। इसलिए जब दमिश्‍क के सभा-घरों के अधिकारियों को महायाजक की चिट्ठियाँ मिलतीं, तो वे तुरंत कार्रवाई करते।​—प्रेषि. 9:1, 2.

इसके अलावा, रोमी सरकार ने भी यहूदियों को अपने कानूनी मामले खुद निपटाने का अधिकार दिया था। इसीलिए यहूदियों ने पाँच बार प्रेषित पौलुस को “उनतालिस-उनतालिस कोड़े” लगवाए। (2 कुरिं. 11:24) पहला मक्काबियों नाम की किताब में एक खत का ज़िक्र है जिसे एक रोमी अफसर ने ईसा पूर्व 138 में मिस्र के राजा टॉल्मी अष्टम को लिखा था। खत में उस अफसर ने माँग की थी, “अगर गड़बड़ी करनेवाला कोई यहूदी अपने देश [यहूदिया] से भागकर तुम्हारे देश में आ गया है तो उसे महायाजक शमौन के हवाले कर दो, ताकि वह अपने यहूदी कानून के मुताबिक उसे सज़ा दे सके।” (1 मक्काबियों 15:21) ईसा पूर्व 47 में जूलियस सीज़र ने यह बात पक्की की कि महायाजक के पास कई अधिकार थे और उनमें से एक था कि वह यहूदी रीति-रिवाज़ों से जुड़े मसलों को सुलझा सकता था।

“तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?” (प्रेषि. 9:1-5)

5, 6. यीशु ने शाऊल से जो कहा उससे हम क्या सीखते हैं?

5 यीशु शाऊल से यह नहीं पूछता, “तू क्यों मेरे चेलों पर ज़ुल्म कर रहा है?” इसके बजाय, वह पूछता है, “तू क्यों मुझ पर  ज़ुल्म कर रहा है?” (प्रेषि. 9:4) जी हाँ, जब यीशु के चेले तकलीफों से गुज़रते हैं तो यीशु को भी तकलीफ होती है।​—मत्ती 25:34-40, 45.

6 अगर अपने विश्‍वास की वजह से आपको सताया जा रहा है, तो यकीन रखिए यहोवा और यीशु जानते हैं कि आप पर क्या बीत रही है। (मत्ती 10:22, 28-31) हो सकता है, आपकी आज़माइश फौरन खत्म ना हो। याद कीजिए, जब शाऊल स्तिफनुस के कत्ल का साथ दे रहा था और यरूशलेम में चेलों को उनके घरों से घसीटकर जेल में डलवा रहा था, तब यीशु यह सब देख रहा था। (प्रेषि. 8:3) उसने उस वक्‍त उसे नहीं रोका। मगर यहोवा ने यीशु के ज़रिए स्तिफनुस और बाकी चेलों को हिम्मत दी ताकि वे उस मुश्‍किल दौर में भी वफादार बने रहें।

7. ज़ुल्मों के दौरान धीरज धरने के लिए आपको कौन-से कदम उठाने होंगे?

7 आप भी ज़ुल्मों के दौरान धीरज धर सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि आप ये कदम उठाएँ: (1) पक्का इरादा कर लीजिए कि आप पर चाहे जो भी परीक्षा आए आप वफादार बने रहेंगे। (2) यहोवा से मदद माँगिए। (फिलि. 4:6, 7) (3) बदला लेने का काम यहोवा पर छोड़ दीजिए। (रोमि. 12:17-21) (4) भरोसा रखिए कि जब तक यहोवा आपकी आज़माइश दूर नहीं करता, तब तक आपको सहने की ताकत देता रहेगा।​—फिलि. 4:12, 13.

“शाऊल, मेरे भाई, प्रभु . . . ने मुझे तेरे पास भेजा है” (प्रेषि. 9:6-17)

8, 9. जब हनन्याह को एक काम सौंपा गया, तो उसे कैसा लगा होगा?

8 “हे प्रभु, तू कौन है?” इस सवाल का जवाब देने के बाद यीशु शाऊल से कहता है, “उठ और शहर में जा और जो तुझे करना है वह तुझे बता दिया जाएगा।” (प्रेषि. 9:6) शाऊल को कुछ दिखायी नहीं देता, इसलिए उसके साथी उसका हाथ पकड़कर उसे दमिश्‍क ले जाते हैं। वहाँ वह तीन दिन तक उपवास करता है और प्रार्थना में लगा रहता है। इस बीच यीशु, दमिश्‍क में हनन्याह नाम के एक चेले को शाऊल के बारे में बताता है। दमिश्‍क में हनन्याह का बहुत अच्छा नाम है, “सभी यहूदी उसकी तारीफ” करते हैं।​—प्रेषि. 22:12.

9 ज़रा सोचिए मंडली का मुखिया यीशु, जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है, खुद हनन्याह से बात कर रहा है। हनन्याह को कैसा लगा होगा? उसे बहुत खुशी हुई होगी। पर फिर यीशु उसे एक काम सौंपता है, वह कहता है कि उसे जाकर शाऊल से मिलना है। यह सुनकर हनन्याह का दिल बैठ गया होगा। वह यीशु से कहता है, “प्रभु, मैंने उस आदमी के बारे में कई लोगों से सुना है कि उसने यरूशलेम में तेरे पवित्र जनों को कितना दुख दिया है। अब उसके पास प्रधान याजकों की तरफ से यह अधिकार है कि जितने तेरा नाम लेते हैं, उन सबको गिरफ्तार कर ले।”​—प्रेषि. 9:13, 14.

10. यीशु जिस तरह हनन्याह के साथ पेश आता है, उससे हम यीशु के बारे में क्या सीखते हैं?

10 हनन्याह की यह बात सुनकर यीशु उसे फटकारता नहीं। वह हनन्याह को साफ-साफ बताता है कि उसे क्या करना है। मगर वह हनन्याह की भावनाओं का लिहाज़ भी करता है और प्यार से उसे समझाता है कि वह क्यों उसे यह अनोखा काम सौंप रहा है। यीशु, शाऊल के बारे में उसे बताता है, “मैंने उसे चुना है ताकि वह गैर-यहूदियों को, साथ ही राजाओं और इसराएलियों को मेरे नाम की गवाही दे। मैं उस पर साफ ज़ाहिर करूँगा कि उसे मेरे नाम की खातिर कितने दुख सहने होंगे।” (प्रेषि. 9:15, 16) हनन्याह बिना देर किए यीशु की बात मानता है। वह मसीहियों के कट्टर दुश्‍मन शाऊल से मिलने निकल पड़ता है और उससे मिलकर कहता है, “शाऊल, मेरे भाई, प्रभु यीशु जिसने उस सड़क पर तुझे दर्शन दिया था जहाँ से तू आ रहा था, उसी ने मुझे तेरे पास भेजा है ताकि तेरी आँखों की रौशनी लौट आए और तू पवित्र शक्‍ति से भर जाए।”​—प्रेषि. 9:17.

11, 12. यीशु, हनन्याह और शाऊल के वाकये से हम क्या सीखते हैं?

11 यीशु, हनन्याह और शाऊल के इस वाकये से हम कई बातें सीख सकते हैं। एक यह कि यीशु प्रचार काम के लिए निर्देश दे रहा है, ठीक जैसे उसने वादा किया था। (मत्ती 28:20) माना कि आज यीशु सीधे-सीधे किसी से बात करके प्रचार के लिए हिदायतें नहीं देता मगर वह विश्‍वासयोग्य दास के ज़रिए निर्देश देता है। हमारे समय में यीशु ने इस दास को अपने घर के कर्मचारियों के ऊपर ठहराया है। (मत्ती 24:45-47) शासी निकाय के निर्देशन में प्रचारक और पायनियर उन लोगों को ढूँढ़ते हैं जो मसीह के बारे में जानना चाहते हैं। जैसे हमने पिछले अध्याय में पढ़ा, कई बार लोग परमेश्‍वर से प्रार्थना कर ही रहे होते हैं कि तभी उनकी मुलाकात साक्षियों से होती है।​—प्रेषि. 9:11.

12 यीशु ने जब हनन्याह को एक काम दिया तो उसने उसकी बात मानी और वह काम किया। इस वजह से उसे आशीष मिली। हमें भी आज्ञा मिली है कि हम राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दें। क्या हम इस आज्ञा को मानते हैं, फिर चाहे यह काम करना हमारे लिए आसान ना हो? कुछ भाई-बहन घर-घर जाने और अजनबियों से बात करने में घबराते हैं। और कुछ को दुकानों-बाज़ारों में, सड़क पर, टेलिफोन पर या चिट्ठियों के ज़रिए गवाही देना मुश्‍किल लगता है। हनन्याह को भी शुरू में डर लगा था मगर उसने अपने डर पर काबू पाया। इस वजह से वह पवित्र शक्‍ति पाने में शाऊल की मदद कर पाया।b हनन्याह अपने डर पर इसलिए काबू कर पाया क्योंकि उसे भरोसा था कि यीशु प्रचार काम की अगुवाई कर रहा है। इसके अलावा, उसने शाऊल को अपना भाई समझा। हनन्याह की तरह अगर हम यीशु पर भरोसा रखें, लोगों से हमदर्दी रखें और उम्मीद करें कि खूँखार लोग भी हमारे भाई-बहन बन सकते हैं, तो हम भी अपने दिल से डर निकाल पाएँगे।​—मत्ती 9:36.

शाऊल “यीशु का प्रचार करना शुरू कर” देता है (प्रेषि. 9:18-30)

13, 14. अगर आप बाइबल का अध्ययन कर रहे हैं और अभी तक आपका बपतिस्मा नहीं हुआ है, तो आप शाऊल से क्या सीख सकते हैं?

13 शाऊल जो सीखता है उसके मुताबिक कदम उठाने में बिलकुल देर नहीं करता। जब उसकी आँखें ठीक हो जाती हैं तो वह बपतिस्मा लेता है और दमिश्‍क में रहनेवाले चेलों के साथ संगति करने लगता है। इतना ही नहीं, वह ‘तुरंत वहाँ के सभा-घरों में यीशु का प्रचार करना शुरू कर देता है कि वही परमेश्‍वर का बेटा है।’​—प्रेषि. 9:20.

14 अगर आप बाइबल सीख रहे हैं और अभी तक आपने बपतिस्मा नहीं लिया है, तो क्या आप भी शाऊल की तरह जल्द-से-जल्द कदम उठाएँगे? यह सच है कि जब यीशु शाऊल से दमिश्‍क जानेवाले रास्ते पर मिला तो इस चमत्कार ने ज़रूर उसे बपतिस्मा लेने के लिए उभारा होगा। लेकिन सही कदम उठाने के लिए कोई चमत्कार देखना ज़रूरी नहीं है। यीशु के दिनों में कई लोगों ने उसे चमत्कार करते देखा था। जैसे, कुछ फरीसियों ने देखा कि यीशु एक ऐसे आदमी को ठीक करता है जिसका हाथ सूख गया था और कई यहूदी जानते थे कि यीशु ने लाज़र को ज़िंदा किया था। फिर भी उनमें से कई लोग यीशु के चेले नहीं बने उलटा उन्होंने उसका विरोध किया। (मर. 3:1-6; यूह. 12:9, 10) तो फिर शाऊल यीशु का चेला क्यों बना जबकि दूसरे नहीं बने? क्योंकि वह इंसानों से ज़्यादा परमेश्‍वर का डर मानता था और मसीह ने उस पर जो दया की थी, उसके लिए वह दिल से एहसानमंद था। (फिलि. 3:8) अगर आप भी शाऊल के जैसी सोच रखेंगे, तो आप भी प्रचार काम में हिस्सा ले पाएँगे और बपतिस्मे के योग्य बन पाएँगे।

15, 16. शाऊल सभा-घरों में जाकर क्या करता है? उसका संदेश सुनकर दमिश्‍क के यहूदी क्या करते हैं?

15 जब शाऊल सभा-घरों में जाकर यीशु के बारे में सिखाने लगा तो सोचिए लोगों को कैसा लगा होगा? वे ज़रूर दंग रह गए होंगे और कुछ तो गुस्से से तमतमा उठे होंगे। वे एक-दूसरे से कहने लगते हैं, “यह तो वही आदमी है न, जो यरूशलेम में यीशु का नाम लेनेवालों पर ज़ुल्म कर रहा था?” (प्रेषि. 9:21) शाऊल उन्हें समझाता है कि उसने यीशु के बारे में अपनी सोच क्यों बदली और वह “बढ़िया तर्क देकर साबित करता [है] कि यीशु ही मसीह है।” (प्रेषि. 9:22) लेकिन तर्क करके हर इंसान को कायल नहीं किया जा सकता। जो लोग अपनी परंपराओं में जकड़े होते हैं या घमंड से भरे होते हैं उनके साथ हम चाहे कितना भी तर्क कर लें, वे अपनी सोच नहीं बदलते। फिर भी शाऊल हार नहीं मानता, वह प्रचार करता रहता है।

16 तीन साल बाद भी दमिश्‍क के यहूदी, शाऊल का विरोध करते रहते हैं। आखिरकार, वे उसे मार डालने की साज़िश करते हैं। (प्रेषि. 9:23; 2 कुरिं. 11:32, 33; गला. 1:13-18) जब शाऊल को इसकी खबर मिलती है तो वह चुपचाप शहर से निकलने का फैसला करता है। कुछ लोग उसकी मदद करते हैं। वे उसे एक बड़े टोकरे में बिठाकर शहरपनाह में बनी एक खिड़की से नीचे उतार देते हैं। लूका बताता है कि जिन लोगों ने उसकी मदद की वे ‘शाऊल के चेले’ थे। (प्रेषि. 9:25) इससे पता चलता है कि जब शाऊल ने दमिश्‍क में प्रचार किया तो कुछ लोग मसीह के चेले बन गए।

17. (क) सच्चाई के बारे में सुनकर लोग क्या करते हैं? (ख) चाहे लोग हमारी बात पर यकीन ना करें, फिर भी हमें क्या करते रहना चाहिए और क्यों?

17 जब आप नए-नए सच्चाई सीख रहे थे तब आपने भी अपने परिवारवालों, दोस्तों और दूसरे लोगों को इस बारे में बताया होगा। आपने सोचा होगा कि सच्चाई इतनी साफ और सरल है कि हर कोई इस पर यकीन करेगा। और कुछ लोगों ने ऐसा किया भी होगा। लेकिन देखा गया है कि ज़्यादातर लोग यकीन नहीं करते। हो सकता है, आपके परिवार के लोग आपके साथ दुश्‍मनों जैसा बरताव करने लगे हों। (मत्ती 10:32-38) फिर भी हार मत मानिए। शास्त्र से तर्क करने की अपनी काबिलीयत बढ़ाते जाइए और मसीही चालचलन बनाए रखिए। क्या पता, समय के गुज़रते आपके परिवारवालों का रवैया बदल जाए!​—प्रेषि. 17:2; 1 पत. 2:12; 3:1, 2, 7.

18, 19. (क) जब बरनबास शाऊल की मदद करता है, तो नतीजा क्या होता है? (ख) हम बरनबास और शाऊल से क्या सीखते हैं?

18 दमिश्‍क से भागकर शाऊल यरूशलेम आता है। वह चेलों को बताता है कि वह अब एक मसीही बन चुका है। मगर वे शाऊल का यकीन नहीं करते। फिर बरनबास प्रेषितों को समझाता है कि शाऊल सच कह रहा है और तब वे उसे अपना लेते हैं। शाऊल कुछ समय तक उन्हीं के साथ यरूशलेम में रहता है। (प्रेषि. 9:26-28) यहाँ पर भी वह लोगों को गवाही देता है। हालाँकि वह सावधानी बरतता है पर उसे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। (रोमि. 1:16) एक वक्‍त था जब वह इसी शहर में यीशु के चेलों को बेरहमी से सताता था मगर अब वह निडर होकर यीशु के बारे में प्रचार कर रहा है। जब यहूदी देखते हैं कि उनका सरदार शाऊल, खुद मसीही बन चुका है तो उनसे यह बरदाश्‍त नहीं होता। वे शाऊल को खत्म करना चाहते हैं। मगर ‘जब यह बात भाइयों को पता चलती है, तो वे शाऊल को कैसरिया ले आते हैं और वहाँ से उसे तरसुस भेज देते हैं।’ (प्रेषि. 9:30) मंडली के भाई, यीशु के निर्देशन में शाऊल को जो भी हिदायतें देते हैं, वह उन्हें मानता है। इससे शाऊल और मंडली दोनों को फायदा होता है।

19 गौर कीजिए कि बरनबास शाऊल की मदद के लिए आगे आया। इसके बाद इन दोनों जोशीले सेवकों में ज़रूर अच्छी दोस्ती हो गयी होगी। क्या आप बरनबास की तरह मंडली में नए लोगों की मदद करते हैं, उनके साथ प्रचार करते हैं और प्रौढ़ मसीही बनने में उनकी मदद करते हैं? ऐसा करने से आपको बहुत आशीषें मिलेंगी। वहीं दूसरी तरफ, अगर आप एक नए प्रचारक हैं तो क्या आप शाऊल की तरह दूसरों से मदद लेते हैं? अनुभवी भाई-बहनों के साथ प्रचार में जाइए, फिर आपका हुनर बढ़ेगा, आपको इस काम से ज़्यादा खुशी मिलेगी और ऐसे दोस्त मिलेंगे जो ज़िंदगी-भर आपका साथ देंगे।

‘बहुत-से लोग विश्‍वासी बन जाते हैं’ (प्रेषि. 9:31-43)

20, 21. पहली सदी में और आज हमारे समय में परमेश्‍वर के सेवकों ने ‘शांति के दौर’ में क्या किया है?

20 शाऊल के मसीही बनने और सही-सलामत यरूशलेम से रवाना होने के बाद क्या होता है? “सारे यहूदिया, गलील और सामरिया में मंडली के लिए शांति का दौर शुरू” होता है। (प्रेषि. 9:31) चेले शांति के इस समय में क्या करते हैं? (2 तीमु. 4:2) आयत बताती है कि वे “विश्‍वास में मज़बूत” होते गए। प्रेषित और दूसरे ज़िम्मेदार भाई चेलों का विश्‍वास मज़बूत करने के साथ-साथ उनकी अच्छी देखरेख करते हैं जिससे ‘मंडली यहोवा का डर मानती रहती है और पवित्र शक्‍ति से दिलासा पाती रहती है।’ मिसाल के लिए, पतरस शारोन के मैदानी इलाके में लुद्दा शहर में रहनेवाले चेलों की हिम्मत बँधाता है। इस वजह से उस इलाके में बहुत-से लोग खुशखबरी सुनते हैं और ‘प्रभु की तरफ हो जाते हैं।’ (प्रेषि. 9:32-35) शांति के इस दौर में चेले अपना ध्यान बँटने नहीं देते बल्कि प्रचार करने में लगे रहते हैं और एक-दूसरे की मदद करते रहते हैं। इस वजह से मंडली में लगातार ‘बढ़ोतरी होती है।’

21 आज हमारे ज़माने में भी ऐसा ही कुछ हुआ है। सन्‌ 1990 के आस-पास कई देशों में यहोवा के साक्षियों के लिए “शांति का दौर” शुरू हुआ क्योंकि जो सरकारें कई दशकों से साक्षियों पर ज़ुल्म कर रही थीं, अचानक उनका तख्ता पलट गया। इसलिए उन देशों में प्रचार करना आसान हो गया और कुछ देशों में तो पाबंदियाँ पूरी तरह हटा दी गयीं। लाखों साक्षियों ने इस मौके का फायदा उठाकर खुलेआम लोगों को प्रचार किया और इसके बढ़िया नतीजे निकले।

22. आप प्रचार करने की आज़ादी का पूरा-पूरा फायदा कैसे उठा सकते हैं?

22 अगर आप ऐसे देश में रहते हैं जहाँ प्रचार करने की आज़ादी है तो एक बात याद रखिए। शैतान पूरी कोशिश करेगा कि आपका ध्यान धन-दौलत कमाने में लग जाए ना कि यहोवा की सेवा करने में। (मत्ती 13:22) उसके झाँसे में मत आइए। आपके पास जो आज़ादी है उसका पूरा-पूरा फायदा उठाइए। जब तक हालात साथ देते हैं, लोगों को अच्छी तरह गवाही देने और अपने मसीही भाई-बहनों को मज़बूत करने में मेहनत कीजिए। याद रखिए, ज़िंदगी में हालात बदलते देर नहीं लगती। आज आपके पास जो मौका है वह शायद कल ना हो।

23, 24. (क) तबीता के वाकये से हम क्या-क्या सीखते हैं? (ख) हमें क्या ठान लेना चाहिए?

23 अब ज़रा तबीता नाम की एक मसीही बहन पर ध्यान दीजिए जिसका नाम दोरकास भी है।c वह लुद्दा के पास याफा शहर में रहती है। यह बहन अपने समय और साधनों का इस्तेमाल करके ‘बहुत-से भले काम और दान करती है।’ लेकिन एक दिन वह अचानक बीमार हो जाती है और उसकी मौत हो जाती है। उसकी मौत से याफा में रहनेवाले सभी चेलों में मातम छा जाता है, खासकर उन विधवाओं को बड़ा सदमा पहुँचता है जिनकी तबीता ने बहुत मदद की थी। जब तबीता के शव को दफनाने की तैयारी की जा रही होती है तब पतरस वहाँ आता है। फिर वह एक ऐसा चमत्कार करता है जो अब तक किसी प्रेषित ने नहीं किया था। वह प्रार्थना करता है और तबीता को ज़िंदा कर देता है! पतरस विधवाओं और बाकी चेलों को कमरे में बुलाता है और दिखाता है कि तबीता ज़िंदा हो गयी है। आप सोच सकते हैं कि वे कितने खुश हुए होंगे! इन घटनाओं ने ज़रूर उन्हें मज़बूत किया होगा ताकि आगे उन पर जो मुसीबतें आनेवाली थीं, उनका वे डटकर सामना कर सकें। इस चमत्कार की खबर ‘पूरे याफा में फैल जाती है और बहुत-से लोग प्रभु में विश्‍वासी बन जाते हैं।’​—प्रेषि. 9:36-42.

एक बहन एक बुज़ुर्ग और बीमार बहन को फूल दे रही है।

आप तबीता की तरह क्या कर सकते हैं?

24 तबीता के वाकये से हम दो ज़रूरी बातें सीखते हैं। (1) हमारी ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं है, यह आज है तो कल नहीं। इसलिए जब तक हम ज़िंदा हैं हमें परमेश्‍वर की नज़रों में अच्छा नाम कमाना चाहिए। (सभो. 7:1) (2) जो लोग अब नहीं रहे वे ज़रूर ज़िंदा होंगे। यहोवा ने तबीता के सभी भले कामों पर गौर किया और उसे इनाम दिया। उसी तरह वह हमारी कड़ी मेहनत भी याद रखेगा और अगर हर-मगिदोन से पहले हमारी मौत हो जाती है, तो वह हमें दोबारा ज़िंदा कर देगा। (इब्रा. 6:10) इसलिए चाहे ‘समय बुरा’ हो या “शांति का दौर” चल रहा हो, आइए हम ठान लें कि हम मसीह के बारे में अच्छी तरह गवाही देते रहेंगे।​—2 तीमु. 4:2.

शाऊल​—एक फरीसी

प्रेषितों के जिस अध्याय में स्तिफनुस को मार डालने की घटना दर्ज़ है, वहाँ हम पहली बार “शाऊल नाम के एक नौजवान” के बारे में पढ़ते हैं। शाऊल, रोमी प्रांत किलिकिया की राजधानी तरसुस का रहनेवाला था जो आज तुर्की के दक्षिण में है। (प्रेषि. 7:58) इस शहर में बहुत सारे यहूदी रहते थे। शाऊल ने अपने बारे में लिखा था, “आठवें दिन मेरा खतना हुआ, मैं इसराएल राष्ट्र के बिन्यामीन गोत्र का हूँ, जन्म से इब्रानी हूँ और मेरे माता-पिता भी इब्रानी थे। कानून के हिसाब से मैं एक फरीसी हूँ।” इसी वजह से यहूदियों में उसकी बहुत इज़्ज़त थी।​—फिलि. 3:5.

शाऊल नाम का फरीसी।

शाऊल का शहर तरसुस एक बड़ा और फलता-फूलता शहर था, जो व्यापार के लिए मशहूर था और यूनानी संस्कृति का खास केंद्र था। तरसुस में पले-बढ़े होने की वजह से वह यूनानी भाषा भी जानता था। उसने शायद इसी शहर के किसी यहूदी स्कूल में बुनियादी शिक्षा हासिल की थी। तरसुस तंबू बनाने के काम के लिए मशहूर था और शाऊल ने भी यह काम सीखा होगा। उसने शायद यह काम अपने पिता से सीखा होगा, जब वह छोटा था।​—प्रेषि. 18:2, 3.

प्रेषितों की किताब यह भी बताती है कि शाऊल जन्म से एक रोमी नागरिक था। (प्रेषि. 22:25-28) इसका मतलब है कि बहुत पहले उसके पुरखों में से कोई शायद रोमी नागरिक बन गया था। शाऊल के पुरखों को रोमी नागरिकता कैसे मिली यह हम नहीं जानते। मगर एक बात पक्की है कि रोमी नागरिक होने की वजह से उसका परिवार ऊँचे खानदानों में गिना जाता था। अपनी परवरिश और शिक्षा की वजह से शाऊल यहूदी, यूनानी और रोमी, इन तीनों संस्कृतियों से अच्छी तरह वाकिफ था।

शाऊल जब करीब 13 साल का था, तब आगे की पढ़ाई के लिए वह अपने शहर से 840 किलोमीटर दूर यरूशलेम गया। वहाँ उसने खुद गमलीएल से शिक्षा पायी, जो एक जाना-माना गुरु था और फरीसियों की परंपराएँ सिखाता था।​—प्रेषि. 22:3.

शाऊल ने गमलीएल से जो शिक्षा पायी थी, वह आज की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के बराबर है। गमलीएल के यहाँ शास्त्र के साथ-साथ यहूदियों की वे परंपराएँ भी सिखायी जाती थीं और याद करायी जाती थीं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही थीं। गमलीएल के होनहार विद्यार्थियों के आगे दुनिया में तरक्की करने और कामयाबी की बुलंदियाँ छूने के मौके होते थे। ऐसा मालूम पड़ता है कि शाऊल भी उनमें से एक था और वह चाहता तो दुनिया में बहुत आगे बढ़ सकता था। शाऊल ने बाद में लिखा, “मैं यहूदी धर्म में अपने राष्ट्र और अपनी उम्र के कई लोगों से ज़्यादा तरक्की कर रहा था, क्योंकि मैं अपने पुरखों की परंपराओं को मानने में सबसे जोशीला था।” (गला. 1:14) इसी जोश ने शाऊल को इतना खूँखार बना दिया कि वह हाथ धोकर नयी मसीही मंडली के पीछे पड़ गया।

तबीता​—“वह बहुत-से भले काम” करती थी

तबीता किसी ज़रूरतमंद को कुछ दे रही है।

तबीता, याफा शहर से थी जो एक बंदरगाह था। वहाँ की मंडली के भाई-बहन उससे बहुत प्यार करते थे क्योंकि “वह बहुत-से भले काम करती और दान दिया करती थी।” (प्रेषि. 9:36) जिन इलाकों में यहूदी और गैर-यहूदी दोनों रहते थे, वहाँ के ज़्यादातर यहूदियों के दो नाम होते थे। तबीता के भी दो नाम थे। एक नाम इब्रानी या अरामी भाषा में था और दूसरा यूनानी या लातीनी भाषा में। दोरकास, उसका यूनानी नाम था जिसे अरामी भाषा में “तबीता” कहा जाता था। इन दोनों नामों का एक ही मतलब है “हिरणी।”

तबीता शायद बीमार पड़ गयी थी और फिर अचानक उसकी मौत हो गयी। दस्तूर के मुताबिक दफनाने से पहले उसके शव को नहलाया गया। फिर उसे घर के ऊपरवाले कमरे में रखा गया। शायद वह तबीता का ही घर था। मध्य-पूर्वी देशों में किसी की मौत होने पर उसकी लाश उसी दिन या अगले दिन दफना दी जाती थी क्योंकि गरम मौसम की वजह से लाश के सड़ने का डर रहता था। तबीता की मौत के वक्‍त प्रेषित पतरस पास के लुद्दा शहर में था। लुद्दा से याफा सिर्फ 18 किलोमीटर दूर था और पैदल चलकर चार घंटे में याफा पहुँचा जा सकता था। इसलिए जब याफा के मसीहियों को पता चलता है कि पतरस लुद्दा में है, तो वे दो आदमियों को भेजकर उसे फौरन बुला लेते हैं। (प्रेषि. 9:37, 38) एक विद्वान कहता है, “पुराने ज़माने में यहूदी कोई संदेश पहुँचाने के लिए आम तौर पर दो आदमी भेजते थे। इसकी एक वजह यह थी कि एक आदमी दूसरे की बात को पुख्ता कर सकता था।”

पतरस के याफा पहुँचने पर क्या हुआ? आयत बताती है कि चेले “उसे ऊपरी कमरे में ले गए और सारी विधवाएँ रोती हुई उसके पास आयीं। वे पतरस को वे कपड़े और कुरते दिखाने लगीं जो दोरकास ने उनके लिए बनाए थे।” (प्रेषि. 9:39) तबीता मंडली के भाई-बहनों के लिए कपड़े सिला करती थी। वह शरीर से सटकर पहने जानेवाले बिन बाँह के कुरते और उसके ऊपर पहने जानेवाले कपड़े बनाया करती थी। बाइबल यह नहीं बताती कि तबीता खुद कपड़ा खरीदकर उनके लिए कुरते बनाती थी या सिर्फ उनके कपड़ों की सिलाई करती थी। मगर इतना साफ है कि उसे भाई-बहनों की परवाह थी और वह उनके लिए “दान दिया करती थी।” इसलिए भाई-बहन उससे बहुत प्यार करते थे।

ऊपरी कमरे में पहुँचते ही वहाँ का मातम देखकर पतरस का दिल भर आया होगा। विद्वान रिचर्ड लेनस्की का कहना है, “यह कोई बनावटी रोना-पीटना नहीं था। यहाँ लोग जिस तरह मातम मना रहे थे वह याइर के घर पर मनाए गए मातम जैसा नहीं था, जहाँ किराए पर लायी गयी औरतें चीख-चीखकर रो रही थीं और बाँसुरी बजानेवालों की दर्द-भरी धुनों से शोर मचा हुआ था।” (मत्ती 9:23) इन भाई-बहनों को सच में तबीता को खोने का दुख था। बाइबल में कहीं भी तबीता के पति का ज़िक्र नहीं मिलता, इसलिए कई लोग मानते हैं कि वह अविवाहित थी।

यीशु ने जब अपने प्रेषितों को प्रचार करने की आज्ञा दी, तब उसने उन्हें “मुरदों को ज़िंदा” करने की शक्‍ति भी दी। (मत्ती 10:8) पतरस ने देखा था कि यीशु ने कैसे मरे हुओं को ज़िंदा किया था, जैसे याइर की बेटी को। लेकिन तबीता के इस वाकये से पहले बाइबल में कहीं भी ज़िक्र नहीं मिलता कि किसी प्रेषित ने ऐसा चमत्कार किया था। (मर. 5:21-24, 35-43) पतरस सब लोगों को ऊपरी कमरे से बाहर भेजता है, फिर गिड़गिड़ाकर परमेश्‍वर से प्रार्थना करता है। नतीजा, तबीता अपनी आँखें खोलती है और उठ बैठती है। पतरस पवित्र जनों और विधवाओं को बुलाता है और दिखाता है कि उनकी प्यारी बहन तबीता ज़िंदा हो गयी है। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उन मसीहियों के बीच खुशी का कैसा समाँ बँध गया होगा!​—प्रेषि. 9:40-42.

a यह बक्स देखें, “शाऊल​—एक फरीसी।”

b आम तौर पर सिर्फ 12 प्रेषितों के ज़रिए ही दूसरों को पवित्र शक्‍ति के वरदान दिए जाते थे। लेकिन यह घटना कुछ हटकर थी। हनन्याह प्रेषित नहीं था फिर भी यीशु ने उसे यह अधिकार दिया कि वह शाऊल को पवित्र शक्‍ति के वरदान दे। मसीही बनने के बाद शाऊल काफी समय तक 12 प्रेषितों से नहीं मिल पाया। लेकिन इस दौरान वह ज़रूर जोश से प्रचार काम में लगा रहा होगा। इसीलिए शायद यीशु ने हनन्याह के ज़रिए उसे पवित्र शक्‍ति देना ज़रूरी समझा ताकि उसे प्रचार करने की ताकत मिलती रहे।

c यह बक्स देखें, “तबीता​—‘वह बहुत-से भले काम’ करती थी।”

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