पाठ 28
यहोवा और यीशु के प्यार का एहसान मानिए
अगर आपका कोई दोस्त आपको एक बढ़िया तोहफा देता है, तो आपको कैसा लगेगा? क्या आप खुश नहीं होंगे? और क्या आप किसी-न-किसी तरीके से यह दिखाना नहीं चाहेंगे कि आप उस तोहफे के लिए कितने एहसानमंद हैं? हमें यहोवा और यीशु से भी एक तोहफा मिला है। इससे बढ़िया तोहफा और कुछ नहीं हो सकता! वह तोहफा क्या है और हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें इसकी कदर है? आइए जानें।
1. यहोवा और यीशु का एहसान मानने का एक तरीका क्या है?
बाइबल में यह वादा किया गया है कि ‘हर कोई जो यीशु पर विश्वास करेगा,’ उसे हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। (यूहन्ना 3:16) विश्वास करने का सिर्फ यह मतलब नहीं है कि हम यह मानें कि यीशु हमारे लिए मरा था। इसका यह भी मतलब है कि हम अपनी बातों, कामों और फैसलों से विश्वास ज़ाहिर करें। (याकूब 2:17) जब हम ऐसा करते हैं, तो यीशु और उसके पिता यहोवा के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत होता है।—यूहन्ना 14:21 पढ़िए।
2. हम किस खास तरीके से यहोवा और यीशु का एहसान मान सकते हैं?
यीशु ने अपने शिष्यों को एक और तरीका बताया जिससे वे दिखा सकते हैं कि वे उसके बलिदान की कदर करते हैं। अपनी मौत से एक रात पहले, यीशु ने एक खास समारोह की शुरूआत की जिसे बाइबल में ‘प्रभु का संध्या-भोज’ कहा गया है। यह समारोह मसीह की मौत की याद में रखा जाता है, इसलिए इसे स्मारक भी कहते हैं। (1 कुरिंथियों 11:20) यीशु ने इसकी शुरूआत इसलिए की थी ताकि उसके प्रेषित और उनके बाद सभी सच्चे मसीही यह याद करें कि यीशु ने उनके लिए अपनी जान दी। तभी यीशु ने यह आज्ञा दी थी, “मेरी याद में ऐसा ही किया करना।” (लूका 22:19) इस समारोह में आकर आप दिखा सकते हैं कि आप यहोवा और यीशु के प्यार का दिल से एहसान मानते हैं।
और जानिए
हम और किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम यहोवा और यीशु के प्यार का एहसान मानते हैं? स्मारक समारोह में हाज़िर होना क्यों ज़रूरी है? आइए जानें।
3. एहसान-भरा दिल हमें क्या करने के लिए उभारेगा?
मान लीजिए, आप पानी में डूब रहे हैं और कोई आकर आपकी जान बचाता है। क्या आप उस व्यक्ति का एहसान भूल जाएँगे? या उसका एहसान मानने के लिए कुछ करेंगे?
हमारी जान बचाकर और हमें हमेशा की ज़िंदगी का मौका देकर यहोवा ने हम पर कितना बड़ा एहसान किया है। पहला यूहन्ना 4:8-10 पढ़िए। फिर आगे दिए सवालों पर चर्चा कीजिए:
यीशु का बलिदान क्यों एक अनमोल तोहफा है?
यहोवा और यीशु ने आपके लिए जो किया, उस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
अगर हम यहोवा और यीशु का एहसान मानते हैं, तो हम क्या करेंगे? 2 कुरिंथियों 5:15 और 1 यूहन्ना 4:11; 5:3 पढ़िए। हर वचन को पढ़ने के बाद आगे दिए सवाल पर चर्चा कीजिए:
जैसा इस वचन में लिखा है, यहोवा और यीशु का एहसान मानने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
4. यीशु के जैसा बनिए
एक और तरीके से हम दिखा सकते हैं कि हम यीशु का एहसान मानते हैं। वह है, उसके जैसा बनने की कोशिश करना। पहला पतरस 2:21 पढ़िए। फिर आगे दिए सवाल पर चर्चा कीजिए:
आप किन तरीकों से यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चल सकते हैं?
यीशु को परमेश्वर के वचन से लगाव था, वह खुशखबरी सुनाता था और लोगों की मदद करता था
5. मसीह की मौत के स्मारक समारोह में आइए
जब प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत हुई, तो उसमें क्या हुआ? जानने के लिए लूका 22:14, 19, 20 पढ़िए। फिर आगे दिए सवालों पर चर्चा कीजिए:
प्रभु के संध्या-भोज में क्या किया गया?
रोटी और दाख-मदिरा किस बात की निशानी है?—वचन 19 और 20 देखिए।
यीशु चाहता था कि उसके शिष्य साल में एक बार प्रभु का संध्या-भोज मनाएँ, वह भी उस दिन जिस दिन उसकी मौत हुई। इसीलिए यहोवा के साक्षी हर साल मसीह की मौत का समारोह मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। और वे उसी तरीके से यह समारोह मनाते हैं जैसा यीशु ने आज्ञा दी थी। इस खास सभा के बारे में जानने के लिए वीडियो देखिए। फिर आगे दिए सवाल पर चर्चा कीजिए:
स्मारक में क्या किया जाता है?
रोटी और दाख-मदिरा सिर्फ निशानियाँ हैं। रोटी यीशु के परिपूर्ण शरीर की निशानी है जो उसने हमारे लिए बलिदान किया। और दाख-मदिरा उसके खून की निशानी है
कुछ लोग कहते हैं: “बस यीशु को अपना प्रभु मान लो, आपका उद्धार हो जाएगा।”
यूहन्ना 3:16 और याकूब 2:17 से आप कैसे समझा सकते हैं कि यीशु को मानने के अलावा कुछ और भी करना ज़रूरी है?
अब तक हमने सीखा
जब हम अपनी बातों, कामों और फैसलों से विश्वास ज़ाहिर करते हैं और स्मारक में हाज़िर होते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम यीशु के बलिदान का एहसान मानते हैं।
आप क्या कहेंगे?
यीशु पर विश्वास करने का क्या मतलब है?
आप किन तरीकों से दिखाना चाहेंगे कि आप यहोवा और यीशु का बहुत एहसान मानते हैं?
स्मारक में हाज़िर होना क्यों बहुत ज़रूरी है?
ये भी देखें
यीशु के बलिदान से हमें क्या करने का बढ़ावा मिलता है?
विश्वास क्या है और हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हममें विश्वास है? आइए जानें।
“यहोवा के वादों पर विश्वास कीजिए” (प्रहरीदुर्ग, अक्टूबर 2016)
“अब मैं खुश हूँ और मेरा ज़मीर साफ है,” इस कहानी में पढ़िए और देखिए कि जब एक औरत ने समझा कि यीशु ने उसके लिए अपनी जान दी, तो उस पर क्या असर हुआ।
जानिए कि स्मारक में क्यों कुछ ही लोग रोटी खाते हैं और दाख-मदिरा लेते हैं।
“यहोवा के साक्षी यीशु की मौत की यादगार अलग तरीके से क्यों मनाते हैं?” (jw.org पर दिया लेख)