‘परमेश्वर तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा करेगा’
एक महत्त्वपूर्ण खेल के लिए तैयार हो रहे किसी खिलाड़ी को श्रमसाध्य रीति से प्रशिक्षित होना पड़ता है। वह अपने शरीर का डील सुव्यवस्थित बनाना चाहता है ताकि बड़े दिन पर, वह यथासंभव अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन दे सके। मसीहियों को भी श्रमसाध्य रीति से प्रशिक्षित होना पड़ता है, लेकिन एक अलग लक्ष्य से। प्रेरित पौलुस ने कहा: “और लक्ष्य के रूप से दैवी भक्ति के लिए अपना प्रशिक्षण कर।”—१ तीमुथियुस ४:७; न्यू.व.
इस प्रकार, एक मसीही को आत्मिक रूप से अपने डील को बनाना चाहिए। जिस तरह एक खिलाड़ी अपना शरीर बनाता है, उसी तरह एक मसीही अपनी आत्मिक ताक़त और सहनशक्ति को विकसित करता है। ऐसा वह परमेश्वर का शब्द बाइबल का अध्ययन करने, प्रार्थना करने, संगी मसीहियों से नियमित रूप से साहचर्य में रहने, और अपने विश्वास की खुली अभिव्यक्तियाँ करने के द्वारा करता है।
अक़्सर एक खिलाड़ी को एक प्रशिक्षक होता है, और मसीहियों को भी एक प्रशिक्षक है। कौन? स्वयं यहोवा परमेश्वर! मसीही प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए यहोवा की चिंता को प्रेरित पतरस ने यह लिखकर संकेत किया: “परमेश्वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, . . . तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा करके, तुम्हें स्थिर और बलवन्त करेगा।” (१ पतरस ५:१०; न्यू.व.) यहोवा हमें किस तरह का प्रशिक्षण देता है? अनेक प्रकार के, और अगर मसीहियों के हैसियत से हम अपना डील सुव्यवस्थित रखना चाहते हैं, तो सभी अत्यावश्यक हैं।
सीधा अनुशासन
स्वयं पतरस ने यहोवा से अनुशासन प्राप्त किया। हम उसके अनुभव से बहुत कुछ सीख सकते हैं। कभी-कभी पतरस का प्रशिक्षण कष्टदायक था। कल्पना कीजिए कि पतरस को कैसे लगा होगा जब उसने परमेश्वर का उद्देश्य पूरा करने से यीशु को हतोत्साह करने की कोशिश की, और यीशु ने जवाब दिया: “शैतान, मेरे सामने से दूर हो! तू मेरे लिए ठोकर का कारण है, क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।” (मत्ती १६:२३) यह भी कल्पना कीजिए कि उसे कैसे लगा जब, कई साल बाद मनुष्य के डर ने उसे अविवेकपूर्णता से काम करने तक प्रेरित किया। उस प्रसंग पर प्रेरित पौलुस ने यहोवा का अनुशासन दिया: “जब कैफ़ा [पतरस] अन्ताकिया में आया, तो मैं ने उसके मुँह पर उसका सामना किया, क्योंकि वह दोषी ठहरा था।”—गलतियों २:११-१४.
फिर भी, दोनों प्रसंगों पर यहोवा पतरस को प्रशिक्षित कर रहा था। उसने सीखा कि “वर्तमान में हर प्रकार का अनुशासन आनन्ददायक नहीं, पर कष्टदायक बात लगती है, तो भी जो उस से सिखाए गए हैं, बाद में यह उनके लिए शांतिमय फल उत्पन्न करता है, अर्थात् धार्मिकता।” (इब्रानियों १२:११) यहोवा से आए उस कड़ी ताड़ना को अनुशासन के रूप से स्वीकार करना, मामलों का सही दृष्टिकोण प्राप्त करने में पतरस को मददगार साबित हुआ और उसे दीनता और विनम्रता के अत्यावश्यक मसीही गुणों में प्रशिक्षित किया।—नीतिवचन ३:३४; १५:३३.
स्थितियों को निपटना
ऐसी स्थितियों को, जो निपटने में कठिन हों—और ये कभी-कभी मसीही मण्डली के भीतर भी होते हैं—उत्पन्न होने देने के द्वारा यहोवा हमें प्रशिक्षित कर सकता है। हम जैसे जैसे मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करते हैं, जो बाइबल सिद्धान्त हमने सीखे हैं, उनको अमल में लाते हैं, और देखते हैं कि कैसे उन सिद्धान्तों को लागू करना हमेशा सबसे अच्छा तरीका है, हम वैसे वैसे मसीहियों के तौर से बढ़ते हैं।
यीशु के प्रेरितों के बीच उत्पन्न हुए व्यक्तित्व संबंधित संघर्षों में पतरस शामिल था। जब हम इस के विवरण पढ़ते हैं, यह देखना दिलचस्पी की बात है कि यीशु ने कैसे इन संघर्षों को—जो कि वास्तव में असिद्धता और अनुभवहीनता के परिणाम थे—प्रेम, विनम्रता, और क्षमा के ज़रूरी मसीही गुणों में अपने अनुगामियों को प्रशिक्षित करने के मौक़ों के तौर से इस्तेमाल किया।—मत्ती १८:१५-१७, २१, २२; लूका २२:२४-२७.
पौलुस ने भी व्यक्तित्व संबंधित संघर्ष प्रत्यक्ष देखे। (प्रेरितों के काम १५:३६-४०; फिलिप्पियों ४:२) उसने समझाया कि ऐसी समस्याएँ कैसे मसीहियों को प्रशिक्षण प्राप्त करने के मौक़े देते हैं: “और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध अबाधित रूप से क्षमा करो। जैसे यहोवा ने तुम्हारे अपराध अबाधित रूप से क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। और इन सब के ऊपर, अपने आप को प्रेम से ढाँप लो, क्योंकि यह एकता का परिपूर्ण बंधन है।”—कुलुस्सियों ३:१३, १४; न्यू.व.
पहले शतक में मसीहियों के बीच एक अधिक अनिष्टकारक ख़तरा प्रकट हुआ। पतरस ने उसके विषय चिताया: “उसी प्रकार तुम में भी झूठे उपदेशक होंगे, जो नाश करनेवाले पाखण्ड का उद्घाटन छिप छिपकर करेंगे और उस स्वामी का जिस ने उन्हें मोल लिया है, इन्कार करेंगे, और अपने आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे। और बहुतेरे उन की नाईं लुचपन करेंगे, जिन के कारण सत्य के मार्ग की निंदा की जाएगी।” (२ पतरस २:१, २) यह अनुभव अपश्चातापी ‘झूठे उपदेशकों’ के विनाश में परिणत होता। (२ पतरस २:३) पर जो विश्वासयोग्य रहे, उनका क्या?
यह अनुभव उन्हें ‘अपने शुद्ध मन को उभारने’ के लिए प्रशिक्षित करता। (२ पतरस ३:१) झूठे उपदेशकों के घुसपैठ के विरुद्ध निगरानी रखने में उनकी सतर्कता, यह आवश्यक करती कि वे अपने विश्वास के कारणों पर पुनर्विचार करें। जब वे ‘झूठे उपदेशकों’ के कार्यों का बुरा नतीजा देखते, मसीही सच्चाई पर उनका भरोसा और भी मज़बूत बनता।—२ पतरस ३:३-७.
उदाहरणार्थ, एक मण्डली में वृद्ध प्रेरित यूहन्ना का दियुत्रिफेस नामक एक महत्त्वाकांक्षी मनुष्य द्वारा विरोध किया गया। इसे यूहन्ना के प्राधिकार के लिए ज़रा सा भी आदर न था और यूहन्ना द्वारा भेजे गए दूतों को न केवल स्वागत करने से इन्कार किया पर शायद उन लोगों को जाति-बहिष्कृत करने की कोशिश भी की होगी, जिन्होंने उनका स्वागत किया। यह सभी निष्कपट मसीहियों के लिए एक दुःखद बात रही होगा जो दियुत्रिफेस के ही मण्डली में थे। पर इस से उन्हें यह प्रदर्शित करने कि वे ‘बुराई के अनुयायी’ न थे, और इस प्रकार यहोवा और प्रेरितों संबंधी प्राधिकार के प्रति वफ़ादारी दिखाने में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त करने का एक मौक़ा ज़रूर मिला।—३ यूहन्ना ९-१२.
ग़ैर-मसीहियों से व्यवहार करने में
यीशु ने कहा कि उसके अनुयायी इस संसार के भाग न थे। (यूहन्ना १७:१६) एक मसीही की पहली वफ़ादारी यहोवा और उसके राज्य के प्रति है। वह परमेश्वर के नैतिक सिद्धान्तों को बनाए रखने की कोशिश करता है, यहाँ तक कि उसकी प्रधान अभिरुचियाँ और चिंताएँ संसार की अभिरुचियों और चिंताओं से अलग हैं। परंतु, एक मसीही को संसार में रहना तो है ही, और यह अनिवार्यतः तनाव उत्पन्न करता है।
अपनी लंबी सेवा के दौरान, पतरस ने ऐसे कई प्रसंग देखे होंगे जहाँ मसीहियों को, संसार की माँगों को अपने अंतःकरण के आदेशों से संतुलित करके मुश्किल फ़ैसले बनाने पड़े। पतरस की पहली पत्री में, उसने बढ़िया, व्यावहारिक सलाह दी, कि यह किस तरह करें, ताकि मसीही ‘शुद्ध विवेक रख सकते।’—१ पतरस २:१३-२०; ३:१-६, १६.
अवश्य, मसीहियों के तौर से हम उस समय की ओर प्रत्याशा से देखते हैं जब हमें इस वस्तु-व्यवस्था की माँगों की तरफ ध्यान देना नहीं पड़ेगा। पर इस बीच में हमें सहनशक्ति में प्रशिक्षित किया जा रहा है और प्रलोभन तथा अधर्मी प्रभावों के सम्मुख अपनी वफ़ादारी प्रदर्शित करने दिया जा रहा है। जैसे जैसे हम अलग परिस्थितियों में बाइबल सिद्धान्त लागू करने का अनुभव हासिल करते हैं, और साहस से उस तरह बरताव करते हैं, जिस तरह हमें मालूम है यहोवा चाहता है कि हम बरताव करें, वैसे वैसे हम व्यावहारिक बुद्धि और साहस में भी प्रशिक्षित किए जाते हैं। यह विचार कीजिए कि हमने कितना अधिक प्रशिक्षण पा लिया होगा, इसी वजह से कि हमने इस व्यवस्था में जीकर इतनी सारी समस्याओं को सफलतापूर्वक निपट लिया!
उत्पीड़न में
जब पतरस ने परमेश्वर का हमें प्रशिक्षित करने के बारे में कहा, वह विशेष रूप से उत्पीड़न का उल्लेख कर रहा था। उसने बताया कि मसीहियों को उत्पीड़न प्रत्याशित होनी चाहिए: “सचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी, इब्लीस, गर्जनेवाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।”—१ पतरस ५:८; २ तीमुथियुस ३:१२ भी देखें.
पतरस इस विषय बोलने के योग्य था, इसलिए कि उसने व्यक्तिगत रूप से उत्पीड़न सहा था। मसीही मण्डली के प्रारंभिक दिनों में, उसे और अन्य प्रेरितों को कोड़े मारकर प्रचार बंद करने की आज्ञा दी गयी। उनकी प्रतिक्रिया? वे “इस बात से आनंदित होकर महासभा के सामने से चले गए कि वे उसके नाम के लिए निरादर होने के योग्य ठहरे।”—प्रेरितों के काम ५:४१; न्यू.व.
इसलिए, पतरस अनुभव से और साथ साथ प्रेरित अवस्था में बोला, जब उसने कहा: “पर जैसे जैसे मसीह के दुःखों में सहभागी होते हो, आनंद करो, जिस से उसकी महिमा के प्रगट होते समय भी तुम आनंदित और मगन हो। फिर यदि मसीह के नाम के लिए तुम्हारी निंदा की जाती है, तो धन्य हो, क्योंकि महिमा की आत्मा जो परमेश्वर की आत्मा है, तुम पर छाया करती है।”—१ पतरस ४:१३, १४; न्यू.व.
जी हाँ, सीधा उत्पीड़न प्रशिक्षण के एक प्रकार के तौर से काम आ सकता है। उसके तले, मसीही परमेश्वर की आत्मा पर और भी निर्भर होना सीखता है। उसका विश्वास एक “परखा हुआ गुण” विकसित करता है। (१ पतरस १:७; न्यू.व.) वह यहोवा की शक्ति पर आधारित साहस में प्रशिक्षित होता है। (२ तीमुथियुस १:७) वह सहनशील सहिष्णुता विकसित करता है, और यीशु की तरह, वह ‘दुःख उठाकर आज्ञा मानना सीखता है।’—इब्रनियों ५:८; १ पतरस २:२३, २४.
यहोवा हमारा प्रशिक्षण पूर्ण करता है
निःसंदेह, उत्पीड़न को समाविष्ट करके, वे कठिन समस्याएँ, जिसे एक मसीही बरदाश्त करता है, परमेश्वर से नहीं आते। याकूब सलाह देता है: “जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है, क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न किसी की परीक्षा आप करता है।” (याकूब १:१३) समस्याएँ अनेक कारणों से उत्पन्न हो सकती हैं, जिन में वे कारण भी शामिल हैं, जब लोग भूल करते हैं या अपनी स्वच्छंदता से ग़लतियाँ करते हैं। परंतु, चूँकि ऐसी बातें होती रहती हैं, यहोवा उन्हें अपने सेवकों को अत्यावश्यक मसीही गुणों में प्रशिक्षित करने में इस्तेमाल करता है।
अय्यूब, यिर्मयाह, पतरस, पौलुस, और बाइबल समय में यहोवा के सभी सेवक, इसी रीति से प्रशिक्षित किए गए। जैसे जैसे हम विभिन्न कठिन स्थितियों का सामना करेंगे, हमें भी उनका विचार यहोवा से अनुमत प्रशिक्षण के एक स्रोत के तौर से करना चाहिए। यहोवा की ताक़त में उनका सामना करने से, हम आज्ञाकारिता, बुद्धि, विनम्रता, साहस, प्रेम, बरदाश्त और कई और गुणों में प्रशिक्षित होंगे।—तुलना याकूब १:२-४ से करें.
हम इस से भी प्रोत्साहित होते हैं कि हमारे प्रशिक्षण का यह अवस्थान एक दिन खत्म हो जाएगा। इसलिए, पतरस ने अपने संगी मसीहियों को यह कहकर सांत्वना दी: “पर, तुम्हारे थोड़ी देर तक दुःख उठाने के बाद, परमेश्वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, जिस ने तुम्हें मसीह में अपनी अनंत महिमा के लिए बुलाया, आप ही तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा करके, तुम्हें स्थिर और बलवन्त करेगा।” (१ पतरस ५:१०; न्यू.व.) ये शब्द उतने ही प्रभावशालिता से “बड़ी भीड़” पर लागू होते हैं जो कि परादीस पृथ्वी पर अनंत जीवन की ओर आशापूर्वक देखते हैं।
स्वयं में, इस विचार से हमें इन प्रशिक्षक अनुभवों के सामने सहनशीलता से झुक जाने, और समझौता न करने के लिए दृढ़ निश्चित रहने की मदद होनी चाहिए। इस प्रकार, हम पौलुस के प्रोत्साहक शब्दों की सच्चाई का अनुभव करेंगे: “हम भले काम करना न छोड़ें, क्योंकि यदि हम थक न जाएँ, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।”—गलतियों ६:९; न्यू.व.