कामयाबी हर क़ीमत पर?
किसी व्यक्ति में कामयाब होने का दृढ़ निश्चय सूचित करता है कि उसे एक निश्चित लक्ष्य है। ज़िंदगी में आपका लक्ष्य क्या है? इसे पाने के लिए आप क्या क्या करने के लिए तैयार हैं? वास्तव में, वाक़ई संतुष्ट और आनन्दित होने के लिए आपका सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य क्या होना चाहिए?
अनेक विकासशील देशों में, आम जीवन-स्तर अपर्याप्त है। वहाँ के लोगों के सम्मुख समस्याओं का विचार करके, परमेश्वर के वचन से उचित सलाह पर ग़ौर करना हमें अपने खुद के लक्ष्यों और कामयाबियों को, बेहतर आँकने की मदद करेगा, हम चाहे कहीं भी रहते हों।
चूँकि ग़रीबी इतनी प्रचुर है, अनेक लोग, बाक़ी सब कुछ बिसरकर, आर्थिक कामयाबी की खोज में रहे हैं। यह पाने के लिए कुछेक बेईमानी का सहारा लेते हैं। फिर भी, सच्चे मसीही बनने पर, उन्हें बाइबल के धार्मिक मानदंडों के अनुरूप बनने के उद्देश्य से इस मनोवृत्ति को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहिए था।
परन्तु, कुछ मसीही भी सांसारिक लक्ष्यों की चेष्टा करने में एक बार फिर फँस जाते हैं। कामयाबी पाने के लिए वे शायद अख्रीस्तीय आचरण अपनाएँगे। माता-पिता अपने परिवारों की उपेक्षा करते हैं। कुछ लोग परमेश्वर के प्रति अपनी सेवा की उपेक्षा करते हैं। आप क्या सोचते हैं, जीवन में संतोष और खुशी के संबंध में इसका नतीजा क्या होगा?
उस नतीजे की ओर हमें चौकन्ना करते हुए, बाइबल चेतावनी देती है: “पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फँसते हैं . . . क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमुथियुस ६:९, १०.
‘सब प्रकार की बुराइयाँ।’ ‘नाना प्रकार के दुखों से छलनी बनाए गए हैं।’ वह वाक़ई संतोष और खुशी का वर्णन प्रतीत नहीं होता, है ना? फिर भी, सदियों भर में, आज तक भी, करोड़ों लोगों का अनुभव साबित करता है कि वह बाइबल कथन कितना सच है। तो फिर, यह एक मसीही के लक्ष्यों और जीवन क्रम के संबंध में क्या सलाह देती है?
भटक गए हैं—कैसे?
मसीही किन रीतियों में विश्वास से भटक सकते हैं? कुछेक इस हद तक गए हैं कि उन्होंने पूर्ण रूप से ईश्वरीय नैतिक आचार और विश्वास अस्वीकार किए हैं। दूसरे उदाहरणों में कुछ लोग ईश्वरीय भक्ति के रास्ते से बहकाए गए हैं, यहाँ तक कि दूसरों पर प्रभाव हासिल करने के लिए एक साधन के तौर से ऐसी भक्ति का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं। तो बाइबल ऐसे “मनुष्यों” के बारे में बताती है “जिन की बुद्धि बिगड़ गयी है और [जो] सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति कमाई का द्वार है।” (१ तीमुथियुस ६:५) जब कि वे पूर्ण रूप से मसीहियत को नहीं त्याग देते हैं, वे शायद अपने आप को ऐसे बाइबल सिद्धान्तों को उल्लंघन करते पाएँगे जो मसीही विश्वास के मूलभूत अवयव हैं।
यीशु ने अपने अनुयायियों को दुनिया के लोगों की तरह नहीं होने के लिए बताया, जो दूसरों पर प्रभुता करते हैं। उसने कहा: “परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने।” यहूदी धार्मिक अगुवाओं की निन्दा करने में यीशु और आगे गया। उसने संकेत किया कि सांसारिक प्रतिष्ठा की बड़ी अभिरुचि परमेश्वर का अननुमोदन कमाएगी। (मत्ती २०:२६; २३:६-९, ३३) इस प्रकार, दूसरों को मात देने या उन पर हावी होने के बजाय मसीहियों को एक दूसरे की सेवा करने की कोशिश करनी चाहिए। हर क़ीमत पर कामयाबी ढूँढ़ने वाला मुद्रा का लोभी इस रास्ते से आसानी से बहकाया जा सकता है।
इस संबंध में आप की तुलना कैसे होती है? क्या आप खुद को, जिस हद तक आप दूसरों पर अधिकार जमाते हैं, उस से अपनी कामयाबी आँकते हुए पाते हैं? क्या आप अधिकार जमाने या उसे हासिल करने के लिए मसीही सिद्धान्त और धर्ममत चालाकी से चलाते या उन्हें बाँकते हैं? क्या आप को लगता है कि आप अपने साथियों से ज़्यादा पाना ही चाहिए, उसकी क़ीमत चाहे जो हो? क्या आप अपनी धन-दौलत या कार्यसिद्धि के बारे में बोलने में बड़ा मज़ा लेते हैं? अगर ऐसा है, तो फिर आप को यह विश्लेषित करने की ज़रूरत है कि क्या आप विश्वास से भटक रहे हैं या नहीं।
“कामयाबी” के दुःख
यीशु ने यह भी कहा: “अपने लिए पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो . . . क्योंकि जहाँ तेरा धन है वहाँ तेरा मन भी जगा रहेगा . . . तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते।” (मत्ती ६:१९-२४) जो माता-पिता अपने बच्चों को मुख्यतः भौतिक लक्ष्यों और सांसारिक कैरियरों की ओर मार्गदर्शित कर रहे हैं, क्या वे इस सलाह का अनुकरण कर रहे हैं? क्या सांसारिक कामयाबी पर दिए महत्त्व की क़ीमत उपयुक्त है, अगर बच्चे सच्चाई त्याग दें और अख्रीस्तीय जीवन-शैलियाँ अपनाएँ? “पृथ्वी पर धन” की ख़ातिर उनके आत्मिक जीवन की बलि चढ़ाना या, कम से कम, जोख़िम में डालना उपयुक्त हैं? जो माता-पिता ऐसा करते हैं, अक़्सर पाते हैं कि वे भी अपने बच्चों की चिन्ता के कारण और उनकी आत्मिक—और कभी कभी शारीरिक—हानि पर अफ़सोस करने के कारण ‘नाना प्रकार के दुखों से छलनी बन गए हैं।’
धन-संपत्ति का लोभ एक तवज्जेह माँगनेवाला स्वामी है। यह लोगों का समय, उनकी ताक़त, और क्षमताएँ वसूल करता है; और यह ईश्वरीय भक्ति का गला घोंट देता है। यह सामान्यतः लोगों को और भी ज़्यादा धन-संपत्ति और सांसारिक प्रतिष्ठा खोजने के लिए लुभाता है, और इस तरह उन्हें विश्वास से और भी दूर खींच लेता है। बाइबल सही सही कहती है: “जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से।”—सभोपदेशक ५:१०.
मसीही बनने के बाद भी, आर्थिक कामयाबी के लिए एक आफ्रीकी व्यवसायी की अभिरुचि उसके जीवन में प्रथम स्थान लेती रही। उसने सांसारिक व्यवसायी सहयोगियों के साथ सामाजिक स्तर पर भेंट करने के पक्ष में मसीही कार्यों की उपेक्षा की। उसे मदद करने के लिए उसकी मण्डली के प्राचीनों की कोशिशों के बावजूद भी उसने कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं की। उसने इस प्रकार खुद को एक आत्मिक उलझन में पाया—एक ऐसे अस्पष्ट स्थिति में जहाँ वह मुश्किल से मसीही कहला सकता था और फिर भी एक मसीही के नाते पहचाना जाना चाहता था। हम सब समझ सकते हैं कि उसकी स्थिति जीवन में गहरे संतोष या स्थायी खुशी के लिए सहायक न थी।
ऐसे लोग अवश्य आत्मिक दुःख उठाएँगे। ईमानदारी या लैंगिक नैतिकता के बारे में जिन लोगों को बहुत कम नैतिक संकोच है, ऐसों के साथ व्यावसायिक और सामाजिक मेल-मुलाक़ात करना व्यक्ति को अहितकर प्रभावों की जोख़िम में डालता है। जो मसीही इस तरह जोख़िम में हैं, उन्हें इन प्रभावों के विरुद्ध लड़ना पड़ता है और आम तौर पर अपने अंतःकरण से भी उन्हें एक संघर्ष होता है। अन्त में कुछेक अपने साथियों की तरह बन जाते हैं और पूरी तरह विश्वास से बहकाए जाते हैं। (१ कुरिन्थियों १५:३३) ऐसी आर्थिक कामयाबी का क्या फ़ायदा, जो इस प्रकार के आत्मिक और नैतिक विफलता उत्पन्न करती है? जैसे यीशु ने कहा: “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ हागा?”—मत्ती १६:२६.
एक बेहतर क़िस्म की कामयाबी
अनुभव ने यह पक्का किया है कि इस बाइबल सलाह की ओर ध्यान देना बुद्धिमानी है: “और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु . . . तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है।” जी हाँ, हम बुद्धिमान होंगे अगर हम संसार की नक़ल न करेंगे या उन बातों की लालियत न करेंगे जो यह संसार दे सकता है। हमारी मुख्य चिन्ता परमेश्वर के अनुमोदन के लिए होनी चाहिए, जो संसार की वस्तुओं की खोज में रहने से हासिल की नहीं जा सकती।—रोमियों १२:२; १ यूहन्ना २:१५, १६.
यीशु ने इस बात को एक किसान की कहानी से सचित्रित किया जिसने अपनी धन-दौलत पर भरोसा किया लेकिन जिस से परमेश्वर ने कहा: “हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा। तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है, वह किस का होगा?” अपने दृष्टांत का संक्षेपण करते हुए, यीशु ने कहा: “ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिए धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।”—लूका १२:१५-२१
वही बात दिखाने के लिए यीशु ने एक अमीर तरुण शासक का जीवन्त उदाहरण इस्तेमाल किया। यह आदमी एक सांसारिक भावार्थ में कामयाब था, और प्रकट रूप से वह नैतिक रूप से भी सीधा होना चाहता था। परन्तु, यीशु ने उसे कामयाबी के एक प्रतीक के तौर से प्रस्तुत नहीं किया। उलटा, यीशु ने कहा कि ऐसे लोगों को “परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना” कठिन होता। उस स्थिति में अधिकांश लोग भौतिकवादी स्वार्थ त्यागकर परमेश्वर के राज्य का अपने जीवन में प्रमुख लक्ष्य के तौर से खोजने के लिए तैयार नहीं।—लूका १८:१८-३०.
आत्मिक हितों की प्राथमिकता पर ज़ोर देते हुए, यीशु ने कहा: “इसलिए तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहनेंगे? क्योंकि अन्य जाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएँ चाहिए। इसलिए पहले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करते रहो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।”—मत्ती ६:३१-३३, न्यू.व.
आत्मिक कामयाबी की खोज करते रहो
तो ज़ाहिर रूप से परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज में लगे रहने से कामयाबी खोजना ही बुद्धिमान आचरण है। इस में बाइबल अध्ययन करना शामिल है ताकि हम “परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते” रहें। उसकी इच्छा में आपका उसकी सेवा अपनी ज़िंदगी में प्रथम रखना, आपका मसीही सेवकाई में पूरा भाग लेना, आपका मसीही मीटिंगों की उपेक्षा न करना, और परमेश्वर की धार्मिकता के अनुसार एक नैतिक रूप से सीधा जीवन व्यतीत करना शामिल है। इन बातों को भौतिक स्वार्थ के लिए छोड़ देना नहीं चाहिए, और न उस से दबाया जाना चाहिए। अमीर तरुण शासक को यीशु की दी सलाह से यही सूचित था: “अपना सब कुछ बेचकर कंगालों को बाँट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।”—रोमियों १२:२; लूका १८:२२.
ऐसा करने से, आप खुद अपनी और आपके परिवार की आध्यात्मिकता विकसित कर रहे होंगे। अभिमानी बनने या चंचल धन पर आशा रखने के बजाय, आप उन लोगों में होंगे जो “भले कामों में धनी हैं . . . आगे के लिए एक अच्छी नेव डाल रखें कि सत्य जीवन को वश में कर लें।” जी हाँ, आपका लक्ष्य पुनःस्थापित पार्थिव परादीस में अनन्त जीवन हो सकता है इसलिए कि “संसार और उस की अभिलाषाएँ दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” इस से और कोई बड़ी कामयाबी नहीं जो आप कभी पा सकेंगे।—१ तीमुथियुस ६:१७-१९; १ यूहन्ना २:१७.
[पेज 5 पर तसवीरें]
क्या पैसा कुंजी है?
[पेज 7 पर तसवीरें]
क्या माता-पिता अपने बच्चों को उच्च शिक्षण के ज़रिए कामयाबी की खोज करने के लिए विदा करेंगे?