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शैतान क्या वह वास्तविक है?

क्या आप मानते हैं कि शैतान का अस्तित्व है? अगर ऐसा है तो मालूम होता है कि आप इस प्रकार का विश्‍वास रखनेवाले लोगों की कम होती हुई अल्प संख्या में सम्मिलित हैं। “कट्टर केथोलिक, केरिस्मेतिक, कट्टर प्रोटेस्टन्ट, पूर्वी और्थोदौक्स, मुसलमानों और कुछेक तान्त्रिकों को छोड़कर १९८० की दशाब्दी तक इब्लीस पर से विश्‍वास गायब हो गया था।” जेफरी बर्टन रसल की पुस्तक मेफिस्तोफलीस​—द डेविल इन द मार्डन वर्ल्ड में ऐसा लिखा है।

परन्तु सबने शैतान को एक वास्तविकता के रूप में मानना नहीं छोड़ा है। पोप जॉन पॉल ने इटली में हाल में दिये हुए एक भाषण में कहा: “इब्दलीस अब भी जिन्दा है और संसार में काम कर रहा है।”

क्या पोप की बात सत्य है? अगर है तो शैतान एक अच्छी स्थिति में है जहाँ से वह जो करना चाहे वह संसार में कर सकता है। यदि लोग उसके अस्तित्व को नहीं मानते हैं तो वे उसका सामना नहीं कर सकेंगे। फिर आश्‍चर्य की बात नहीं कि कर्डिनल रेतज़िनजर जो सिद्धान्तों पर वैटिकन के एक खास अधिकारी है, ने कहा: “इब्लीस गुमनामी में, जो उसका मनपसन्द सिद्धान्त है, अपने आप को छिपा सकता है।”

क्या शैतान वास्तव में है? यदि हम बाइबल को मानते हैं तों हमें ‘हाँ’ में जवाब देना होगा। इस उतप्रेरित अभिलेख में शैतान को नाम से कई बार बुलाया गया है। उदाहरण के लिये, बाइबल लेखक पौलूस ने, मसीही कलीसिया के अन्दर “झूठे प्रेरितों” और “छल से काम करनेवालों” के बारे में चेतावनी देते हुए लिखा: “और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्यातिमय स्वर्गदूत का रूप धारण करता है।” पौलुस ने शैतान को एक बुद्धिशाली, छल करनेवाले व्यक्‍ति के रूप में देखा।​—२ कुरिन्थियों ११:१३, १४.

फिर ऐसा क्यों है कि शैतान के अस्तित्व को आज अधिकत्म लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं? सम्भव है कि यह आज के युग बोध की छाया है। चूँकि हम उस समय में जी रहे हैं जिसे कुछ लोगों ने मसीहत्व के पश्‍चात का युग बताया है, इसलिये नास्तिकता, अहमवाद, भौतिकता, और साम्यवाद ने कटू सामाजों में धार्मिक विश्‍वास का स्थान ले लिया है। करोड़ों लोग अब परमेश्‍वर में विश्‍वास नहीं करते हैं क्योंकि वे अपने व्यक्‍तिगत तत्वज्ञानों में उसके अस्तित्व में विश्‍वास, को आवश्‍यक नहीं समझते हैं। और परमेश्‍वर के साथ उन्होंने शैतान के अस्तित्व पर विश्‍वास, को भी मन से निकाल बाहर किया है। मसीह जगत में भी, कुछ धार्मिक लोग, यद्यपि वे परमेश्‍वर में विश्‍वास करने का दावा करते हैं, यह महसूस करते हैं कि इस २०वी शताब्दी में शैतान के अस्तित्व को मानना अप्रचीलित बात है।

परन्तु यह विचार करने योग्य है कि परमेश्‍वर को अस्वीकार करना कोई नई बात नहीं है। कुछ ३,००० वर्ष पहले इब्रानी कवि दाऊद ने लिखा: “मूर्ख ने अपने हृदय में कहा है: ‘यहोवा है ही नहीं।’ वे बिगड गये, उन्होंने घिनौने काम किये हैं, कोई सुकर्मी नहीं।” (भजन संहिता १४:१; ५३:१) दूसरी जगह में उसने कहा: “दुष्ट अपने अभिमान के कारण कोई खोज नहीं करता; उसका पूरा विचार यही है: ‘कोई परमेश्‍वर हैं ही नहीं।’” (भजन संहिता १०:४) उस प्राचीन समय में भी लोग ऐसा आचरण दर्शाते थे जैसे कि परमेश्‍वर का कोई अस्तित्व नहीं है। फिर तर्क संगत निष्कर्ष यही होना चाहिये कि अगर कोई परमेश्‍वर नहीं है तो कोई शैतान भी नहीं हो सकता है।

कुछेक अब भी मानते है

परन्तु जैसे उपर बताया गया है, कुछेक अभी भी वास्तविक इब्लीस में विश्‍वास, को स्वीकार करते हैं। ऐसे लोग है जो पुराने ज़रतुश्‍ती द्वितीयवाद को मानते हुए, यह कहते हैं कि अच्छाई और बुराई, परमेश्‍वर और इब्दलीस, हमेशा से साथ-साथ रहे होगें। दूसरे यह कहते हैं कि अच्छाई और बुराई दोनों परमेश्‍वर के ही पहलू है। और अब भी कई मसीह जगत और इस्लामी धर्म के लोग है जो शैतान के अस्तित्व को मानते हैं। इन में से कईयों के लिये वह एक पंखधारी आत्मिक व्यक्‍ति है जिसके सींग और पूंछ हैं, जो उन “अमर प्राणीयों” के भाग्य का निरक्षण करता है जिन्हें “नर्क अग्नि” में भेज दिया गया है जैसे कि प्रसिद्ध फ्राँसीसी चित्रकार गस्टेव डोरे ने बताया है।

और फिर कुछ लोगों के लिये शैतान में विश्‍वास और भी गंभीर बना हुआ है। वे उसकी उपासना करते हैं​—या तो नाम से, अथवा शैतानवाद या प्रेतआत्मावाद क्रियाओं द्वारा। हजारों वर्षों से जादू टोना और अभिचार का संबन्ध शैतान की उपासना से रहा है। हमारे आधुनिक, अविश्‍वास के युग में भी शैतान के बारे में बाइबल क्या कहती है उसकी चर्चा करने से पहले, आइये, हम आधुनिक शैतानवाद के बारे में कुछ बातों पर विचार करें।

[पेज 3 पर तसवीरें]

शैतानी “नरक” का एक बौद्ध चित्रण

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