परमेश्वर का वचन प्रामाणिकता के सबूत
सही या ग़लत?—बाइबल को बीते युगों से अब तक बिना परिवर्तन किए हम तक पहुँचाया गया है।
सही या ग़लत?—बाइबल की हस्तलिपियों में हज़ारों विभिन्नताएँ उसके दावे को, कि यह परमेश्वर का वचन है, कमज़ोर बना देती हैं।
उन प्रश्नों का उत्तर देने से पहले, पिछले वर्ष डब्लिन, आयरलैंड के चेस्टर बीटी लाइब्रेरी में आयोजित, “परमेश्वर का वचन” प्रदर्शनी में कुछ प्रस्तुत जानकारी पर ग़ौर कीजिए।
ये फटे-पुराने, टुकड़े-टुकड़े हुए पॅपाइरस के पन्ने समय के बीतने के कारण बिगड़ते चले जा रहे हैं। फिर भी, चेस्टर बीटी पॅपाइराइ पुस्तकालय के सर्वाधिक मूल्यवान हस्तलिपियाँ हैं। उन्हें क़रीब १९३० में एक कॉप्टिक (मिस्री) क़ब्रिस्तान से खोदकर निकाला गया था। “[वह] एक ऐसी खोज [थी],” सर फ्रेड्रिक केन्यन ने कहा, “जिसकी बराबरी सिर्फ़ कोडेक्स साइनाइटिकस् ही करती है।”
कोडेक्स के रूप में, इन हाथ से लिखे पॅपाइरस के पन्नों की प्रतिलिपि हमारे सामान्य युग की दूसरी, तीसरी और चौथी सदियों में उतारी गयी थी। लाइब्रेरियन विलफ्रिड लॉकवुड ने कहा, “बहुत संभव है कि कुछेकों की प्रतिलिपि मूलपाठ के रचित होने के सौ वर्ष के अन्दर ही उतारी गयी थी।” (तिर्यगक्षर हमारे) एक कोडेक्स में चार सुसमाचार वृत्तान्त और प्रेरितों के काम की पुस्तकें हैं। दूसरे में प्रेरित पौलुस के अधिकांश पत्र हैं, जिन में उनकी इब्रानियों के नाम पत्री भी शामिल है।
इस तरह की हस्तलिपियों की प्रतिलिपि उतारना नीरस और थकाऊ काम होता था, जिस में ग़लती करने की संभावना रहती थी। प्रतिलिपिक चाहे कितनी ही सावधानी क्यों न बरते, फिर भी एक अक्षर को ग़लत पढ़ना अथवा किसी पंक्ति को छोड़ देना आसान होता था। कभी-कभी प्रतिलिपिक को यथार्थ शब्दों के बजाय मूलपाठ के सार और अर्थ में अधिक दिलचस्पी रहती थी। जैसे-जैसे प्रतिलिपियों की प्रतिलिपियाँ उतारी गयीं, वैसे-वैसे ग़लतियाँ क़ायम रखी गयीं। मूलपाठ विद्वानों ने समान विभिन्नता वाली हस्तलिपियों को वर्गों में समूहित किया। चूँकि ये चेस्टर बीटी पॅपाइराइ, जो कि यूनानी बाइबल की अस्तित्ववान हस्तलिपियों में सबसे पुरानी और महत्त्वपूर्ण हस्तलिपियाँ हैं, किसी भी स्थापित वर्ग में ठीक नहीं बैठते थे, इन से विद्वानों को बातों पर अननुमानित रूप से एक नया दृष्टिकोण मिला।
यीशु के समय से पहले, और विशेषकर यरूशलेम के विनाश (६०७ सामान्य युग पूर्व) और तदनन्तर यहूदियों के बिखर जाने के बाद, पवित्र इब्रानी शास्त्र की कई हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ बनायी गयीं। तक़रीबन सामान्य युग १०० में, यहूदी अधिकारी-वर्ग ने ऐसी प्रतिलिपियों को एक ऐसा इब्रानी मूलपाठ स्थापित करने के लिए उपयोग किया, जो रूढ़िवादी यहूदी स्वीकार कर सके।
इस बात को निश्चित करने कि मूलपाठ की नक़ल यथातथ्य हो, उन्होंने सुस्पष्ट नियम भी निर्दिष्ट किए। क्या-क्या सामग्री उपयोग की जा सकती थी और अक्षर, शब्द, पंक्ति तथा कालम के परिमाण और अंतरण का भी उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “कोई भी शब्द या अक्षर, एक योद भी [इब्रानी वर्णमाला का सबसे छोटा अक्षर], याददाश्त से नहीं लिखा जाना चाहिए।” इस तरह प्रतिलिपिकों ने तोराह (शिक्षा) जैसे खर्रे (लपेटवें काग़ज़) बनाए, जिस में बाइबल की पहली पाँच किताबें और एस्तेर की किताब समाविष्ट हैं। प्रदर्शनी के सूचीपत्र में बतलाया गया कि इब्रानी शास्त्र की ऐसी हस्तलिपियाँ “एकरूपता की एक प्रभावशाली मात्रा प्रदर्शित करती हैं।”
दोनों इब्रानी और मसीही यूनानी हस्तलिपियों में जो ग़लतियाँ धीरे-धीरे प्रवेश कर गयीं, वे कितनी गंभीर थीं? “इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए,” श्री. लॉकवुड ने कहा, “कि अन्यजातियों के साहित्य की हस्तलिपियों में पायी गयी भिन्नताओं की तुलना में बाइबल की हस्तलिपियों में पायी गयी भिन्नताएँ ऊपरी हैं . . . एक भी उदाहरण में शास्त्रियों की ग़लती से मसीही धर्मसिद्धान्त के किसी भी विषय पर कोई असर नहीं हुआ है।”—तिर्यगक्षर हमारे।
यीशु के समय से पहले और बाद की बाइबल पुस्तकों का दूसरी भाषाओं में अनुवाद किया गया। सामरी पेंटाट्यूक सबसे पुराने पाठान्तरों में से एक है। सामरी वही लोग थे जो इस्राएल के दस-जातीय राज्य के क्षेत्र में उस समय के बाद बस गए थे, जब अश्शूर के राजा ने इस्राएलियों को निर्वासन में लिया (७४० सा.यु.पू)। उन्होंने यहूदी उपासना की कुछ विशेषताओं को अपनाकर, बाइबल की मात्र पहली पाँच पुस्तकें, पेंटाट्यूक को स्वीकार किया। इन पुस्तकों के सामरी मूलपाठ में, जो एक प्रकार की प्राचीन इब्रानी लिपि में लिखा है, इब्रानी मूलपाठ से ६,००० विभिन्नताएँ हैं। प्रदर्शनी के सूचीपत्र में लिखा गया कि “अधिकतर विभिन्नताएँ तो मूलपाठ के संबंध में बहुत कम महत्त्व के हैं, हालाँकि यह इसलिए दिलचस्प विषय हो सकता है कि शायद वे प्राचीन उच्चारण अथवा व्याकरण की विशेषताओं को बचाकर रखते हैं।”
सामान्य युग पूर्व की तीसरी सदी में, ॲलेक्सॅन्ड्रिया, मिस्र, में रहनेवाले यहूदी विद्वानों ने इब्रानी शास्त्रों का यूनानी सेप्टुआजिन्ट पाठान्तर तैयार किया, जिसका उपयोग संसार भर में यूनानी बोलनेवाले यहूदी करने लगे। कुछ समय बाद यहूदियों ने उसका उपयोग करना बंद कर दिया, परन्तु यह प्रारंभिक मसीही कलीसिया की बाइबल बन गयी। जब मसीही बाइबल लेखकों ने पवित्र इब्रानी शास्त्रों से उद्धरण किया, तब उन्होंने सेप्टुआजिन्ट का उपयोग किया। इब्रानी शास्त्रों के चेस्टर बीटी पॅपाइराइ में सेप्टुआजिन्ट में से दानिय्येल की पुस्तक के १३ पन्ने शामिल हैं।
बाइबल के उत्तरकालीन पाठान्तर, लैटिन, कॉप्टिक, अरामी और आरमीनियन जैसी भाषाओं में तैयार किए गए। प्रदर्शनी में एक उदाहरण चर्मपत्र से बना कोडेक्स था जो सामान्य युग छठी अथवा सातवीं सदी से बाइबल के कॉप्टिक पाठान्तर का एक अंश था। ऐसे पाठान्तर बाइबल विद्वानों और मूलपाठ के पंडितों की मदद कैसे करते हैं? ऐसे पाठान्तर सामान्य रीति से अनुवादकों द्वारा उपयोग की गयी यूनानी हस्तलिपियों के बिल्कुल शब्दानुवाद ही होते हैं। “यदि वह यूनानी मूलपाठ, जिस पर अनुवादक ने काम किया, अच्छा था,” श्री. लॉकवुड ने समझाया, “तो यह ज़ाहिर है कि यह पाठान्तर यूनानी भाषा के मौलिक शब्दों को पुनः प्राप्त करने के कार्य में महत्त्वपूर्ण मदद देगा।”
पुस्तकालय में एक बहुत ही मूल्यवान् और अनोखी प्रदर्शित वस्तु, चौथी सदी के अरामी लेखक, एफराएम द्वारा लिखी, टॅटियन के डायाटेस्सरॉन पर एक समीक्षा है। सामान्य युग के लगभग १७० में, टॅटियन ने, चारों सुसमाचार वृत्तान्तों से उद्धरणों का उपयोग करके, (डायाटेस्सरॉन का अर्थ “[उन] चारों में से” है) यीशु के जीवन और सेवकाई का एक सुमेलित वृत्तान्त संकलित किया। चूँकि कोई भी प्रति नहीं बची, पिछली सदी में कुछेक आलोचकों ने विवाद उठाया कि सुसमाचार वृत्तान्तों का ऐसा संग्रह कभी अस्तित्व में था भी या नहीं। इन आलोचकों ने विवाद किया कि स्वयं ये चार सुसमाचार पुस्तकें दूसरी सदी के मध्य भाग तक नहीं लिखी गयी थीं।
परन्तु, पिछले सौ वर्षों में, आरमीनियन और अरबी में डायाटेस्सरॉन के भाषान्तरों की खोज से उच्च आलोचक पीछे हटने के लिए मजबूर हुए। फिर, १९५६ में, सर् चेस्टर बीटी ने इस अनोखी पाँचवीं/छठी सदी की समीक्षा प्राप्त की, जिसमें टॅटियन की मूल रचना में से लंबे उद्धरण हैं। “इस ने उस विचार को निस्संदेह रोक दिया कि चार सुसमाचार पुस्तकें उस युग में प्रचलित नहीं थीं,” श्री. लॉकवुड ने कहा।
“परमेश्वर का वचन” प्रदर्शनी ने हमें याद दिलाया कि बाइबल विद्वानों और मूलपाठ के आलोचकों के पास कितने अधिक अध्ययन-विषय उपलब्द हैं। तो फिर हम इन में से एक विद्वान, सर् फ्रेड्रिक केन्यन को मौक़ा देंगे कि वह हमें इन सारी बाइबल हस्तलिपियों का महत्त्व समझा दें, जो पायी गयी हैं, और साथ साथ आरंभ में उठाए गए उन प्रश्नों को उत्तर दें:
“शायद कुछ लोगों के लिए इस धारणा को छोड़ देना, कि बाइबल बीते युगों से अब तक बिना परिवर्तन के हम तक पहुँची है, अशान्ति पैदा करनेवाली बात होगी . . . अंत में यह पाना सांत्वनादायक है कि इन सभी खोजों और इतने सारे अध्ययन का प्रधान परिणाम यही रहा है कि शास्त्रों की प्रामाणिकता का सबूत, और हमारा यह विश्वास सदृढ़ हो गया है कि हमारे पास, पर्याप्त प्रामाणिकता के साथ, वास्तविक रूप से परमेश्वर का वचन ही मौजूद है।” (द स्टोरी ऑफ द बाइबल, पृष्ठ ११३)—भजन ११९:१०५; १ पतरस १:२५.
[पेज 29 पर बक्स]
तीसरी-सदी का पॅपाइरस—२ कुरिन्थियों ४:१३–५:४
[चित्र का श्रेय]
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[पेज 30 पर तसवीरें]
एस्तेर की अठारहवीं-सदी के चमड़े और चर्म पत्र के खर्रे
[चित्र का श्रेय]
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[पेज 31 पर बक्स]
छठी- अथवा सातवीं-सदी का चर्म पत्र कोडेक्स—यूहन्ना १:१-९, कॉप्टिक पाठान्तर
[चित्र का श्रेय]
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[पेज 31 पर तसवीर]
Fifth- or sixth-century vellum codex—commentary by Ephraem that includes extracts from Tatian’s Diatessaron, in Syriac
[चित्र का श्रेय]
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