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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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न्याय जल्द ही सभी जातियों के लिए

“न्याय—न्याय का पीछा पकड़े रहना, जिस से तू जीवित रहे, और जो देश तेरे परमेश्‍वर यहोवा तुझे देते हैं, उसका अधिकारी बना रहे।”—व्यवस्थाविवरण १६:२०, न्यू.व.

१. मनुष्य के लिए परमेश्‍वर का प्रारंभिक उद्देश्‍य क्या था, और वह सिर्फ़ किस रीति से उसे पूरा कर सकता था?

पुरुष और स्त्री की सृष्टि करने में यहोवा परमेश्‍वर का उद्देश्‍य इस पृथ्वी को परिपूर्ण मनुष्यों से भरना था। सभी उनकी प्रशंसा करते और पृथ्वी को अपने वश में करने के कार्य में अपनी भूमिका निभाते। (उत्पत्ति १:२६-२८) चूँकि मानव को परमेश्‍वर के स्वरूप के अनुसार और समानता में बनाया गया था, वह बुद्धि, न्याय, प्रेम और ताक़त के गुणों से सम्पन्‍न था। इन गुणों के संतुलित प्रयोग से ही मनुष्य उसके लिए अपने रचयिता का उद्देश्‍य कभी पूरा कर सकता था।

२. इस्राएल की जाति के लिए न्याय का पीछा पकड़े रहना कितना महत्त्वपूर्ण था?

२ जैसा कि पिछले अंक में बताया गया था, मनुष्य ने परमेश्‍वर के कार्य करने के तरीक़े के ख़िलाफ़ विद्रोह किया और उसे मृत्युदंड दी गयी। अब, अपूर्णता के कारण, मनुष्यजाति को दिया परमेश्‍वर का प्रारंभिक उद्देश्‍य पूरा करना उसके लिए नामुमकिन बन गया था। मनुष्य की परिपूर्ण न्याय प्रदर्शित करने की अयोग्यता इस विफलता में एक महत्त्वपूर्ण तथ्य रही है। तो, कोई ताज्जुब की बात नहीं कि मूसा ने इस्राएल की जाति को याद दिलाया: “न्याय—न्याय का पीछा पकड़े रहना”! उनकी ज़िन्दगी और प्रतिज्ञात देश पर क़ब्ज़ा करने की उनकी क्षमता, उनके न्याय का पीछा पकड़े रहने पर निर्भर थी।—व्यवस्थाविवरण १६:२०, न्यू.व.

आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब

३. इस्राएल के साथ यहोवा के सम्बन्धों की जाँच आज हमारे लिए महत्त्वपूर्ण क्यों है?

३ इस्राएल की जाति के साथ यहोवा के सम्बन्धों से हमारा विश्‍वास मज़बूत बनता है कि वह सचमुच ही अपने चुने हुए सेवक, यीशु मसीह के ज़रिए सभी जातियों को अपना न्याय प्रकट करेंगे। प्रेरित पौलुस बातों को इस तरह समझाता है: “जितनी बातें पहले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिए लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की सान्त्वना के द्वारा आशा रखें।” (रोमियों १५:४, न्यू.व.) चूँकि परमेश्‍वर ‘धर्म और न्याय से प्रीति रखने वाले हैं,’ उन्होंने आदेश दिया कि इस्राएली एक दूसरे के साथ अपने सम्बन्धों में उनका अनुकरण करें। (भजन संहिता ३३:५) इस्राएल को दिए ६०० नियमों में से कुछेकों की जाँच करने से यह स्पष्ट रूप से दिखायी देता है।

४. मूसा के नियम के अंतर्गत क़ानूनी-अधिकार के सम्बन्ध में समस्याओं को कैसे निपटाया जाता था?

४ जब मूसा के नियम का पालन होता था तब क़ानूनी-अधिकार सम्बन्धी समस्याएँ अस्तित्वहीन थीं। उस ग़ैर-इस्राएली की स्थिति का ज़िक्र करते हुए, जो उस देश में रहने के लिए आ गया, लैव्यव्यवस्था १९:३४ बताता है: “जो परदेशी तुम्हारे संग रहे, वह तुम्हारे लिए देशी के समान हो, और उस से अपने ही समान प्रेम रखना।” कैसा न्यायसंगत और प्रेमपूर्ण प्रबंध! इसके अतिरिक्‍त, दोनों न्यायियों और गवाहों को समान रूप से चेतावनी दी गयी: “बुराई करने के लिए न तो बहुतों के पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिरके मुकद्दमे में न्याय बिगाड़ने को साक्षी देना; और कंगाल के मुकद्दमे में उसका भी पक्ष न करना।” (निर्गमन २३:२, ३) ज़रा सोचें—दोनों अमीर और ग़रीबों को एक समान न्याय!

५. आज के दण्ड क़ानूनों से मूसा के नियम के दण्ड क़ानूनों की तुलना करें।

५ मूसा की नियमावली के अंतर्गत, दण्ड क़ानून उन क़ानूनों से कहीं बेहतर थे, जो आज के राष्ट्रों की संविधि-संग्रहों में हैं। मिसाल के तौर पर, चोर को इसलिए क़ैद नहीं किया जाता था कि नियम का आज्ञापालन करनेवाले परिश्रमी लोगों पर बोझ न हो। उसने जिस चीज़ की चोरी की थी, उसके लिए उसे काम करना अथवा दोगुना या उस से ज़्यादा हरजाना भरना पड़ता था। इस से पीड़ित व्यक्‍ति को कोई हानि नहीं उठानी पड़ती थी। मान लीजिए कि चोर ने काम करके क़ीमत चुकाना अस्वीकार किया। तो फिर, उसे गुलाम के तौर से बेचा जाता, उस समय तक जब क्षतिपूर्ति हो जाए। अगर वह फिर भी एक ज़िद्दी मनोवृत्ति दर्शाता रहा, तो उसे मृत्युदण्ड दिया जाता। इस रीति से, पीड़ित व्यक्‍ति को न्याय मिलता, और यह उन लोगों के लिए एक ज़बरदस्त निवारक होता, जो शायद चोरी करने के लिए प्रवृत्त होंगे। (निर्गमन २२:१, ३, ४, ७; व्यवस्थाविवरण १७:१२) इसके अलावा, चूँकि परमेश्‍वर की नज़रों में जीवन पवित्र है, हर खूनी को मृत्युदण्ड दिया जाता। इस से जाति में से दुष्ट, खूनी व्यक्‍ति को हटा दिया जाता। फिर भी, अनभिप्रेत खूनी को दया दिखायी जाती थी।—गिनती ३५:९-१५, २२–२९, ३३.

६. इस्राएल के क़ानूनों की जाँच से हम किस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं?

६ तो फिर, कौन इनकार कर सकता है कि इस्राएल की जाति से परमेश्‍वर के सभी क़ानूनी सम्बन्धों की विशेषता न्याय थी? अतः, जब हम मनन करते हैं कि यशायाह ४२:१ में परमेश्‍वर की प्रतिज्ञा को मसीह यीशु के ज़रिए किस तरह अमल में लाया जाएगा, हम में कैसी सांत्वना, कैसी आशा भर जाती है! वहाँ हमें यह आश्‍वासन दिया गया है: “वह अन्यजातियों के लिए न्याय प्रगट करेगा।”

दया के साथ संतुलित किया गया न्याय

७. इस्राएल के साथ यहोवा के दयालु सम्बन्धों का वर्णन करें।

७ परमेश्‍वर का न्याय दया के साथ संतुलित है। यह उस समय स्पष्ट रीति से दर्शाया गया जब इस्राएली लोग परमेश्‍वर के धर्मी मार्गों के ख़िलाफ़ विद्रोह करने लगे। उनके उजाड़ भूमि में बीताए ४० वर्ष के दौरान यहोवा की उन्हें दिखायी दयालु देख-रेख के बारे मूसा का वर्णन सुनें: “उस ने उसको जंगल में, और सुनसान और गरजनेवालों से भरी हुई मरुभूमि में पाया, उस ने उसके चहुँ ओर रहकर उसकी रक्षा की, और अपनी आँख की पुतली की नाईं उसकी सुधि रखी। जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर ऊपर मण्डलाता है, वैसे ही उस ने अपने पंख फैलाकर उसको अपने परों पर उठा लिया। यहोवा अकेला ही उसकी अगुवाई करता रहा।” (व्यवस्थाविवरण ३२:१०-१२) बाद में, जब जाति धर्मत्यागी बन गयी, तब यहोवा ने बिनती की: “अपने बुरे मार्गों से और अपने बुरे कामों से फिरो।”—जकर्याह १:४अ.

८, ९. (अ) परमेश्‍वर ने यहूदियों को किस हद तक दयालु न्याय दिखाया? (ब) उन पर कौनसी आख़री विपत्ति आयी, फिर भी परमेश्‍वर के उन से निपटने के तरीक़े के बारे में क्या कहा जा सकता है?

८ यहोवा के क्षमा करने के प्रस्ताव की एक न सुनी गयी। भविष्यद्वक्‍ता जकर्याह के ज़रिए, परमश्‍वर ने कहा: “परन्तु उन्होंने न तो सुना, और न मेरी ओर ध्यान दिया।” (जकर्याह १:४ब) तो परमेश्‍वर के दयालु न्याय से वह अपने एकलौते पुत्र को भेजने के लिए प्रेरित हुए, कि वह उन्हें परमेश्‍वर के पास लौटने की मदद करे। बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना ने उनका परिचय यह कहकर किया: “देखो, यह परमेश्‍वर का मेम्ना है, जो जगत का पाप उठा ले जाता है।” (यूहन्‍ना १:२९) कई सालों तक, यीशु ने अथक रूप से यहूदियों को परमेश्‍वर के न्यायोचित मार्ग सिखाए, अनगिनत चमत्कार किए और इस प्रकार साबित किया कि वही वह उद्धारक थे जिनके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी। (लूका २४:२७; यूहन्‍ना ५:३६) लेकिन लोगों ने न सुना और ना ही विश्‍वास किया। इसलिए, यीशु यह बोल उठने तक प्रेरित हुए: “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम; तू जो भविष्यद्वक्‍ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थरवाह करता है, कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूँ, परन्तु तुम ने न चाहा। देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा जाता है।”—मत्ती २३:३७, ३८.

९ परमेश्‍वर ने अपने प्रतिकूल न्याय के कार्यान्वयन को अधिक ३७ वर्षों के लिए, सामान्य युग ७० तक रोक रखा। फिर उन्होंने रोमियों को यरूशलेम का नाश करने और हज़ारों यहूदियों को क़ैद में लेने दिया। जब हम कई सदियों की अवधि के दौरान दिखायी यहोवा की चिर-सहिष्णुता और सहनशक्‍ति पर ग़ौर करते हैं, तब कौन यह देखने से रह जाता है कि इस्राएल की जाति के साथ उनके सारे सम्बन्धों की विशेषता न्याय है?

न्याय सभी जातियों के लिए

१०. परमेश्‍वर का न्याय सभी जातियों तक कैसे बढ़ाया गया?

१० इस्राएल का यीशु को ठुकरा देने के पश्‍चात्‌, याकूब ने कहा: “परमेश्‍वर ने पहिले पहल अन्यजातियों पर कैसी कृपादृष्टि की, कि उन में से अपने नाम के लिए एक लोग बना ले।” (प्रेरितों के काम १५:१४) ये “लोग,” जिन में यीशु को मसीहा के तौर से स्वीकार करनेवाले कुछेक यहूदी थे, सामूहिक रूप से “परमेश्‍वर के [आत्मिक] इस्राएल” बनते हैं, और यह मसीह यीशु के १,४४,००० आत्मा से अभिषिक्‍त अनुयायियों से बना है। (गलतियों ६:१६; प्रकाशितवाक्य ७:१-८; १४:१-५) अन्यजातियों में से पहला खतना-रहित विश्‍वासी कुरनेलियुस नामक आदमी था। जब कुरनेलियुस और उसके परिवार ने परमेश्‍वर के उद्धार करने का मार्ग स्वीकार किया, तब पतरस ने कहा: “अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों के काम १०:३४, ३५) पौलुस यह कहकर यहोवा की निष्पक्षता के औचित्य पर विस्तार देता है: “अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो। और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार सह-वारिस भी हो।”—गलतियों ३:२८, २९, न्यू.व.

११. इब्राहीम को कौनसी प्रतिज्ञा दी गयी, और यह किस तरह पूरा की जाएगी?

११ यहाँ हमें इब्राहीम को दी यहोवा की अद्‌भुत प्रतिज्ञा की याद दिलायी गयी है। अपने परमप्रिय पुत्र इसहाक को बलि चढ़ाने के लिए उस कुलपिता की तैयारी के आधार पर, परमेश्‍वर ने उसे बताया: “तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूँगा . . . और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।” (उत्पत्ति २२:१६-१८) यह प्रतिज्ञा किस तरह पूरी होगी? ‘इब्राहीम का वंश,’ जो मृत्यु तक विश्‍वासयोग्य साबित होनेवाले यीशु मसीह और उनके १,४४,००० अभिषिक्‍त अनुयायियों से बनता है, एक हज़ार वर्षों तक स्वर्ग से मनुष्यजाति पर राज्य करेंगे। (प्रकाशितवाक्य २:१०, २६; २०:६) उस धन्य समय के सम्बन्ध में, यहोवा हमें आश्‍वासन देते हैं: “उसके राजसी शासन की बढ़ती और शान्ति का अन्त न होगा।” क्यों? इसलिए कि उस मसीही राज्य का “राजसी शासन” ‘सर्वदा के लिए न्याय और धर्म के द्वारा संभाले रखा जाएगा।’—यशायाह ९:७, न्यू.व.

१२. इब्राहीमी वाचा की आशिषें अभी से किस हद तक अनुभव की जा रही हैं?

१२ इब्राहीमी वाचा की आशिषों का आनन्द उठाने के लिए यीशु मसीह के हज़ार वर्षीय शासन के वास्ते रुकने की कोई ज़रूरत नहीं है। ये आशिषें पहले ही “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से” लोगों की “एक बड़ी भीड़” द्वारा अनुभव की जा रही हैं। प्रतीकात्मक रूप से ‘अपने वस्त्रों को मेम्ने के लहू में धोकर और उन्हें श्‍वेत बनाकर,’ वे यहोवा के सामने एक धर्मी स्थिति पाते हैं। इब्राहीम के जैसे, वे यहोवा के मित्र बन चुके हैं! यहोवा के सभी जातियों में से करोड़ों लोगों के उद्धार करने के मार्ग की विशेषता सचमुच न्याय ही है।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४.

क्या आप परमेश्‍वर के न्याय्य रीतियों की ओर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं?

१३, १४. (अ) हम में से प्रत्येक को हृदय की कैसी व्यक्‍तिगत जाँच करनी चाहिए? (ब) यहोवा की ओर हमारी कृतज्ञता किस तरह व्यक्‍त की जा सकती है?

१३ क्या आपका हृदय परमेश्‍वर के न्याय और प्रेम के मार्ग से प्रभावित हुआ है और गहरे रूप से छू गया है, कि किस तरह उन्होंने अपने एकलौते पुत्र को आपके लिए एक छुड़ाई के तौर से दिया है? इब्राहीम की भावनाओं की कल्पना करें जब यहोवा ने उसे अपने उस पुत्र की बलि चढ़ाने को कहा, जिसे वह इतना प्रेम करता था! लेकिन परमेश्‍वर की भावनाएँ उस से भी ज़्यादा गहरी हैं। उनकी भावनाओं के बारे में सोचें, जब उनका प्रिय पुत्र उन सारे अपमानों को, पथिकों की गाली-गलौज को और यातना खंभे की तीव्र पीड़ा को सह रहा था। यीशु की चीख़ से यहोवा की प्रतिक्रिया की कल्पना करें: “हे मेरे परमेश्‍वर, हे मेरे परमेश्‍वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती २७:३९, ४६) फिर भी, न्याय से यह आवश्‍यक हुआ कि यहोवा परमेश्‍वर अपने पुत्र को इस रीति से मरने दे कि वह परमेश्‍वर की धार्मिकता को सत्य सिद्ध करने में अपनी ख़राई साबित कर सके। इसके अतिरिक्‍त, अपने पुत्र को मरने देकर, यहोवा ने हमारे लिए उद्धार का मार्ग खोल दिया।

१४ तो फिर, यहोवा और उनके पुत्र की ओर हमारी कृतज्ञता से हमें निश्‍चय ही यह बात सरेआम घोषित करने के लिए प्रेरित होना चाहिए: “उद्धार के लिए हमारे परमेश्‍वर का . . . और मेम्ने का जय-जयकार हो।” (प्रकाशितवाक्य ७:१०) इस तरह हमारा सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया दिखाने के द्वारा, हम दर्शाते हैं कि हम मूसा के शब्दों पर विश्‍वास करते हैं: “[यहोवा] की सारी गति न्याय की है।” (व्यवस्थाविवरण ३२:४) हम यहोवा और उनके पुत्र के दिलों को कितनी खुशी देते होंगे, जब हम मनुष्यों के उद्धार के लिए परमेश्‍वर के न्याय्य रीतियों को स्वीकार करके उनका पालन करते हैं!

१५. यीशु के नीकुदेमुस से कहे शब्द हमारे लिए क्या अर्थ रखते हैं?

१५ क्या हम खुश नहीं कि हमारे सह-विश्‍वासियों ने १८७० के दशक में छुड़ाई बलिदान के विषय में एक पक्का पक्ष लिया? क्या हम प्रसन्‍न नहीं कि हम आज एक ऐसे संघटन के सदस्य हैं जो मानवों के उद्धार के लिए परमेश्‍वर के न्याय्य और प्रेममय मार्ग को पकड़े रहने को उसी तरह कृतसंकल्प है? अगर हम हैं, तो हमें उस बात पर ख़ास ध्यान देना चाहिए जो यीशु ने नीकुदेमुस को बतायी: “परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा, कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिए कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। जो उस पर विश्‍वास करता है, उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती। . . . जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वे परमेश्‍वर की ओर से किए गए हैं।” परमेश्‍वर के प्रतिकूल न्याय से बचने के लिए, हमें ऐसे काम करके जो ‘परमेश्‍वर के अनुसार’ हैं, पुत्र में अपना विश्‍वास प्रमाणित करना चाहिए।—यूहन्‍ना ३:१७, १८, २१.

१६. यीशु के शिष्य स्वर्गीय पिता की महिमा कैसे कर सकते हैं?

१६ यीशु ने कहा: “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे। यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ।” (यूहन्‍ना १५:८, १०) इन में से कुछ आज्ञाएँ क्या हैं? एक आज्ञा यूहन्‍ना १३:३४, ३५ में पायी जाती है, जहाँ यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो . . . यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” यहोवा के गवाहों के बीच प्रेम का फल सुस्पष्ट है। यीशु ने यह भी आज्ञा दी: “इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती २८:१९, २०) क्या आप व्यक्‍तिगत रूप से ‘परमेश्‍वर के अनुसार’ ये काम कर रहे हैं?

१७. कौनसा परिणाम दर्शाता है कि प्रचार करने और सिखाने का कार्य यहोवा के न्याय का एक प्रमाणन है?

१७ यीशु के अनुयायियों को ये प्रचार करने और सिखाने के काम करने देने में यहोवा के मार्ग का न्याय तब सुस्पष्ट हो जाता है जब हम ग़ौर करते हैं कि सिर्फ़ एक साल में यहोवा के गवाहों द्वारा क्या पूरा किया गया। १९८९ के दौरान, २,६३,८५५ नए शिष्यों का बपतिस्मा हुआ! क्या इस बात से आपका दिल खुश नहीं होता?

न्याय का परमेश्‍वर तुरन्त न्याय चुकाएगा

१८. यहोवा के लागों के उत्पीड़न को ध्यान में रखते हुए, कौनसे सवाल उठाए जा सकते हैं?

१८ गवाही देने का कार्य विरोध के बिना चलाया नहीं गया है। यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा: “यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएँगे।” (यूहन्‍ना १५:२०) यहोवा के गवाहों के आधुनिक इतिहास से उस वाक्य की सच्चाई साक्ष्यांकित होती है। प्रतिबन्ध, क़ैद, मारपीट और यंत्रणा भी एक पर एक देश में गवाहों का अनुभव रहा है। हबक्कूक के भविष्यसूचक शब्द एक बार फिर हमें याद आते हैं: “व्यवस्था ढीली हो गई और न्याय कभी नहीं प्रगट होता।” इसलिए, कभी कभी, यहोवा के लोग भी शायद यह पूछना चाहेंगे: ‘यहोवा विश्‍वासघातियों को क्यों देखते रहते हैं? जब कोई दुष्ट किसी निर्दोष को निगल जाता है, तब वह क्यों चुप रहते हैं?’—हबक्कूक १:४, १३.

१९. यीशु ने कौनसा दृष्टान्त दिया जिस से हमें बातों को परमेश्‍वर के दृष्टिकोण से समझने की मदद हो सके?

१९ यीशु ने एक दृष्टान्त दिया जिस से ऐसे सवालों के जवाब मिलते हैं और जिस से हमें परमेश्‍वर के दृष्टिकोण से बातों को समझने की मदद होती है। लूका १७:२२-३७ में, यीशु ने इस रीति-व्यवस्था को चिह्नित करनेवाली हिंसक परिस्थितियों का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि वे उन परिस्थितियों के तुल्य होतीं, जो नूह के दिनों के प्रलय और लूत के दिनों में सदोम और अमोरा के विनाश के पूर्व थीं। फिर, जैसा कि लूका १८:१-५ में वर्णन किया गया है, यीशु ने अपने शिष्यों की ओर मुड़कर “इस के विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए, उन से यह दृष्टान्त कहा।” यीशु ने एक बहुत ही ज़रूरतमंद विधवा के बारे में बताया और “एक न्यायी” के बारे में, जो उसकी आवश्‍यकताएँ पूरा करने की स्थिति में था। विधवा बिनती करती रही: “मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा।” उसके आग्रह के कारण, उस न्यायी ने आख़िरकार ‘उसे न्याय दिला दिया।’

२०. यीशु के दृष्टान्त में हमारे लिए क्या सबक है?

२० आज हमारे लिए क्या सबक है? उस अधर्मी न्यायी से यहोवा की तुलना करते हुए, यीशु ने कहा: “सुनो, कि यह अधर्मी न्यायी क्या कहता है! सो क्या परमेश्‍वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उस की दुहाई देते रहते; और क्या वह उनके विषय में देर करेगा? मैं तुम से कहता हूँ; वह तुरन्त उनका न्याय चुकाएगा।”—लूका १८:६-८अ.

२१. हमें अपनी निजी समस्याओं का कैसे विचार करना और उनसे कैसे निपटना चाहिए?

२१ हमेशा याद रखें कि अपनी निजी समस्याओं के विषय में, हमारी बिनतियों के जवाब आने में कोई देर परमेश्‍वर की ओर से किसी अनिच्छा की वजह से नहीं है। (२ पतरस ३:९) यदि हम उस विधवा के जैसे किसी क़िस्म का उत्पीड़न या अन्याय सह रहे हों, तो हम विश्‍वास रख सकते हैं कि परमेश्‍वर यह निश्‍चित करेंगे कि आख़िरकार न्याय चुकाया जाएगा। हम ऐसा विश्‍वास कैसे दिखा सकते हैं? निरन्तर रूप से प्रार्थना करने और अपनी प्रार्थनाओं का समर्थन विश्‍वासयोग्य व्यवहार बनाए रखने के ज़रिए। (मत्ती १०:२२; १ थिस्सलुनीकियों ५:१७) हम अपनी विश्‍वस्तता से साबित करेंगे कि इस पृथ्वी पर विश्‍वास है, और कि न्याय के सच्चे प्रेमी मौजूद हैं, और कि हम उन में से हैं।—लूका १८:८ब.

“हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द मनाओ”

२२. मूसा अपना गीत किस विजयी वाक्य से ख़त्म करता है?

२२ कई सदियों पहले, मूसा ने अपना गीत इस विजयी वाक्य से ख़त्म किया: “हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द मनाओ; क्योंकि वह अपने दासों के लोहू का पलटा लेगा, और अपने द्रोहियों को बदला देगा, और अपने देश और अपनी प्रजा के पाप के लिए प्रायश्‍चित देगा।” (व्यवस्थाविवरण ३२:४३) यहोवा का बदला लेने का दिन और भी नज़दीक आ रहा है। हम कितने आभारी हो सकते हैं कि वह अब भी न्याय समेत सहनशक्‍ति दिखा रहे हैं!

२३. परमेश्‍वर के लोगों के आनन्द में भाग लेनेवालों के भविष्य में कौनसा आनन्दित परिणाम उनकी राह देख रहा है?

२३ सभी जातियों के लोगों के लिए “मन फिराव” करने का मार्ग अब भी खुला है, लेकिन अब और देर नहीं कर सकते हैं। पतरस ने चेतावनी दी: “यहोवा का दिन चोर की नाईं आ जाएगा।” (२ पतरस ३:९, १०, न्यू.व.) परमेश्‍वर के न्याय से यह आवश्‍यक होता है कि यह दुष्ट रीति-व्यवस्था जल्द ही नष्ट की जाए। जब यह नष्ट कर दी जाएगी, तो हम उन लोगों में पाए जाएँ, जिन्होंने इस आनन्ददायक आह्वान की ओर अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी है: “हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द मनाओ।” जी हाँ, हम उन आनन्दित लोगों के बीच हों, जिन्होंने देखा है कि न्याय परमेश्‍वर की सारी गति की विशेषता है!

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ मूसा के नियम से परमेश्‍वर के न्याय में हमारा विश्‍वास क्यों मज़बूत होना चाहिए?

◻ किस बात से हमें परमेश्‍वर के न्याय्य मार्गों की ओर प्रतिक्रिया दिखाने तक प्रेरित होना चाहिए?

◻ यहोवा की महिमा किस तरह की जा सकती है?

◻ आज, सच्चा आनन्द मात्र कहाँ पाया जा सकता है?

[पेज 11 पर तसवीरें]

“अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों के काम १०:३४, ३५

[पेज 14 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर उनसे बिनती करनेवाले चुने हुओं को न्याय चुकाएँगे

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