संगीत का आनन्द लेना इसकी कुंजी क्या है?
प्राचीन दुनिया में अत्यधिक अनैतिकता और मूर्ति पूजा का अभ्यास किया जाता था। इस कारण, प्रेरित पौलुस ने मसीही चालचलन पर अत्यन्त ज़ोरदार परामर्श देना ज़रूरी समझा। उसने इफिसुस की कलीसिया को लिखा: “इसलिए मैं यह कहता हूँ, और प्रभु में जताए देता हूँ कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गयी है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं।”—इफिसियों ४:१७, १८.
क्या वह आज की परिस्थिति जिस अवस्था में है, उसका भी अच्छा वर्णन नहीं देता है? इस में संगीत का क्षेत्र शामिल है। अधिकतर आधुनिक संगीत ऐसी शैली प्रकट करता है जो ‘ईश्वरीय जीवन से प्रतिकूल है।’ अक्सर गीत के बोल कृपा या दया के बिना एक ‘कठोर मन’ प्रकट करते हैं।
लेकिन पौलुस यह कहते हुए अपना परामर्श एक क़दम आगे ले जाता है: “उनकी सही और ग़लत की विवेक बुद्धि के एक बार सुन्न होने पर, उन्होंने अपने आपको कामवासना के वशीभूत होने दिया है और अब हर प्रकार की निर्लज्जता के जीवन का उत्सुकता से पीछा करते हैं।”—इफिसियों ४:१९, द जरूसलेम बाइबल.
यह ‘निर्लज्जता के जीवन का उत्सुकता से पीछा करना’ आज के अधिकांश संगीत में प्रकट है। गीत के बोल और संगीत का उद्देश्य एक ऐसी पीढ़ी को, जो कामवासना, हिंसा, ड्रग्स और सुखविलास में तर है, उत्साहित करने में सहायक होते हैं। मसीहियों को ऐसे अवगुणों का क्या विचार रखना चाहिए? पौलुस के शब्दों पर ध्यान दें: “अब तुमने मसीह से ऐसी शिक्षा तो बिल्कुल नहीं पायी, या फिर, जब तुम्हें यीशु में क्या सत्य है सिखाया गया, तुम ठीक तरीक़े से उसकी सुनने में चूक गए।”—इफिसियों ४:२०, २१, जे.बी.
“एक आत्मिक क्रांति” ज़रूरी है
संगीत के मामले में, जो संसार की आत्मा प्रकट करती है, इस चेतावनी को हम कैसे प्रयोग में ला सकते हैं? इस तरह, कि अगर हम में “मसीह का मन” है, यानी, अगर हम में उसकी मानसिक वृत्ति है, तो हम ऐसा संगीत नहीं सुनेंगे जो “सांसारिक, शारीरिक और शैतानी है।”—१ कुरिन्थियों २:१६; याकूब ३:१५.
मगर आप पूछ सकते हैं, ‘मैं संगीत में अपनी रुचि को कैसे बदल सकता (सकती) हूँ?’ फिर से, पौलुस मदद करता है, क्योंकि वह कहता है: “तुम्हें अपने जीवन के पुराने चालचलन को छोड़ना होगा; तुम्हें अपने पुराने मनुष्यत्व को एक तरफ़ करना होगा, जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार चलने से भ्रष्ट होता जाता है। तुम्हारा मन एक आत्मिक क्रांति के द्वारा नया बनना चाहिए।”—इफिसियों ४:२२, २३, जे.बी.
लो, जवाब यहीं हाज़िर है, एक आत्मिक क्रांति के द्वारा मन का नया बन जाना। इस में संगीत में हमारी रुचि से कुछ अधिक शामिल है। इस से एक पुनर्शिक्षण, मानदण्डों और नैतिक मूल्यों के स्तर को ऊँचा करना, आवश्यक होता है। इसका मतलब है, हमारे सोच-विचार में परिवर्तन, भिन्न मानदण्ड। और इस में हर बात का विचार परमेश्वर और मसीह के दृष्टिकोण के अनुरूप करना शामिल है। जैसे पौलुस ने स्पष्ट रूप से इसे व्यक्त किया: “सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो।”—१ कुरिन्थियों १०:३१.
अधिकांश आधुनिक संगीत से परमेश्वर की महिमा नहीं होती। इसके विपरीत, यह उन मूल्यों का तिरस्कार करता है, जिनका मसीही समर्थन करते हैं, और जिन के लिए बहुत जन बन्दीगृहों और नज़रबन्दी शिबिरों में मरने के लिए तैयार हुए हैं। इसलिए, अगर हमें अपनी संगीत की रुचि में परिवर्तन करना पड़े, ताकि हम ‘न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखें,’ तो हमें इसे एक बलिदान क्यों समझना चाहिए?—१ यूहन्ना २:१५-१७.
अच्छा संगीत—इसकी कुंजी क्या है?
अगर, धर्मशास्त्रीय सिद्धान्तों के लिए हमारी परवाह के कारण, हम भ्रष्ट करनेवाले संगीत को अस्वीकार करते हैं, तो हम उसके बदले में क्या सुन सकते हैं? ख़ैर, क्यों न संगीत के नए क्षेत्रों की खोज करें? हो सकता है कि वे उस संगीत से ज़्यादा आनन्ददायक और उन्नति के लिए हो, जिसे हम भूतकाल में अधिक अच्छा समझते थे। उदाहरणार्थ, एक भूतपूर्व रॉक संगीतकार ने उन परिवर्तनों के विषय में कहा, जो उसने किया:
“मुझे आसान रॉक शैली से एक स्वीकार्य प्रचलित प्रकार के संगीत और अधिक गहरे क्लैसिकल् संगीत की ओर परिवर्तन करने में प्रयत्न करना पड़ा। मगर जब मैं ने महसूस किया कि उस में और भी अधिक तत्त्व है, और मैं अब और अधिकांश आधुनिक संगीत की आत्मा से संबंधित नहीं हो सकता था, वह ज़्यादा आसान और सन्तोषजनक बन गया। वह यकायक हितकर था। वैकल्पिक प्रकार के संगीत के विरुद्ध मेरी भूतपूर्व पूर्वधारणा के कारण मुझे क्या क्या खोना पड़ा था, यह मुझे महसूस हुआ।”
विस्तीर्ण प्रकार के क्लैसिकल् संगीत के साथ साथ लोक संगीत और कुछ आधुनिक संगीत हैं, जिस में अच्छा रागात्मक स्वर-समूह तथा स्वच्छ गीत-काव्य है, और जो बाइबल सिद्धान्तों के विपरीत कोई फ़लसफ़ा प्रकट नहीं करता। कुंजी है कि ऐसे संगीत को ढूँढ़ें और आनन्द लें जो हमारे सोच-विचार पर अनुचित रूप से असर न करे, ऐसा संगीत जो ‘धार्मिक, पवित्र, जिसके बारे में अच्छा कहा जाए, शुद्ध और प्रशंसनीय हो’।—फिलिप्पियों ४:८, न्यू.व.
एक मसीही के जीवन में संगीत की भूमिका
कुछ लोगों के लिए, अच्छे संगीत का आनन्द लेने का एक तरीक़ा यह है, कि गीत गाना या कोई साज़ बजाना सीखें। परिवार और मित्रों के साथ एकल या सामूहिक गायन या वादन से बहुत प्रसन्नता प्राप्त हो सकती है। तो भी, जैसे कि हर बात में होता है, उसी तरह इस में भी सन्तुलन की आवश्यकता है। किसी मनोरंजन या कोई शौक़ को मसीही जीवन में कभी भी एक जुनून नहीं बनना चाहिए। अगर ऐसे हो जाए, तो हितकर संगीत भी, अधिकता के कारण, हानिकारक असर लाएगा। तब मसीही ‘परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहने वाले,’ बनने के ख़तरे में पड़ेंगे।—२ तीमुथियुस ३:४.
संगीत हमारी यहोवा की उपासना का एक अनिवार्य हिस्सा भी है। प्राचीन इस्राएल में, आसाप और उसके भाइयों ने यह गाया: “यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्थना करो; देश-देश में उसके कामों का प्रचार करो। उसका गीत गाओ, उसका भजन करो, उसके सब आश्चर्य कर्मों का ध्यान करो।” हाँ, संगीत परमेश्वर की प्रशंसा कर सकता है और उन्हें खुश कर सकता है।—१ इतिहास १६:८, ९.
किंग्डम गीत, जो यहोवा के गवाह अपने किंग्डम हॉल में इस्तेमाल करते हैं, बाइबल शास्त्रपद, भजन, प्रार्थना और शिक्षाओं पर आधारित हैं। क्या हम भी इस पवित्र संगीत का गहरा आनन्द नहीं ले सकते? और क्या, इन गीतों को भावना और जोश के साथ गाकर हमें अपनी खुशी को प्रकट नहीं करना चाहिए? मसीही सभाओं के अलावा दूसरे अवसरों पर भी, क्या इन गीतों से, जिन्हें किंग्डम मेलोडीज़ कहते हैं, हम अपने जीवन को हर्षित नहीं कर सकते?
इन ऑरकेस्ट्रा वादनों में, सभी वादक यहोवा के गवाह हैं। कुछ तो पेशावर वादक हैं, जो सिम्फ़नी ऑरकेस्ट्राओं में बजाते हैं। दूसरे, गुणी जवान लोग हैं, जिन में ऊपर उद्धृत किया गया भूतपूर्व रॉक संगीतकार भी है, जो अनेक तरह के श्लील संगीत का आनन्द लेते हैं। वे महसूस नहीं करते कि ऐसे संगीत को त्यागने से, जिस में सांसारिक, शैतानी मनोवृत्ति है, उन्होंने कुछ खोया है। उनका बढ़िया उदाहरण दिखलाता है कि हम भी, अगर हम बाइबल सिद्धान्तों को अपने चयन को प्रभावित करने दें, सांसारिक और पवित्र संगीत, दोनों में हितकर आनन्द पा सकते हैं।—इफिसियों ५:१८-२०.
[पेज 21 पर बक्स]
“रॉक संगीत का सिर्फ़ एक ही आकर्षण है, लैंगिक अभिलाषा की ओर एक बर्बर आकर्षण—न प्रेम, न ईरॉस, बल्कि अविकसित और असभ्य लैंगिक अभिलाषा। . . . जवान लोग जानते हैं कि रॉक संगीत की लय और ताल सम्भोग का सा है।”—ॲलन ब्लूम द्वारा लिखित, द क्लोज़िंग ऑफ दी अमेरिकन् माईंड.