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  • सच्चा प्रभु न्याय के लिए आता है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
w89 7/1 पेज 30-31

शास्त्रों से शिक्षा: मलाकी १:१-४:६

सच्चा प्रभु न्याय के लिए आता है

“परमेश्‍वर की सेवा करनी व्यर्थ है।” (मलाकी ३:१४) जब मलाकी ने सामान्य युग पूर्व पाँचवी सदी में भविष्यवाणी की तब ऐसा अविश्‍वास खुद परमेश्‍वर के अपने लोगों द्वारा व्यक्‍त किया गया। क्यों? क्योंकि यहूदा में खेदजनक परिस्थितियाँ थीं, विशेष रूप से पुरोहितों के बीच में। उनका मुख्य लक्ष्य स्वार्थी लाभ था। एक स्पष्ट और प्रभावशाली रीति से मलाकी ने उन पाखण्डी धार्मिक अगुओं की पोल खोल दी और चिताया कि सच्चा प्रभु न्याय के लिए आ रहा है।​—मलाकी १:६-८; २:६-९; ३:१.

मलाकी की भविष्यवाणी की एक पूर्ति हमारे अपने दिनों में है। इसलिए उस में पायी जानेवाली शिक्षाओं पर विचार करना हमारे लिए अच्छा होगा।

परमेश्‍वर के नाम को तुच्छ समझना

यहोवा उसके लोगों से उनका सब से उत्तम उसे भेंट करने की अपेक्षा रखता है। परमेश्‍वर पहले उसके लोगों के लिए उसका प्रेम व्यक्‍त करता है। फिर भी, पुरोहितों ने लोगों से बलिदान के लिए अंधे, बीमार और लँगडे पशुओं का स्वीकार करने के द्वारा उसके नाम की उपेक्षा की। यहोवा उन स्वार्थी पुरोहितों में या उनके हाथों की निकृष्ट भेंटों में कोई दिलचस्पी नहीं रखता। लेकिन वे चाहे जो भी करे, यहोवा का “नाम अन्य जातियों में भययोग्य” होगा।​—१:१-१४.

जो शिक्षक हैं, उन्हें एक भारी उत्तरदायित्व है। (याकूब ३:१) पुरोहित “बहुतों के लिए व्यवस्था के विषय में ठोकर का कारण हुए।” कैसे? परमेश्‍वर की व्यवस्था में लोगों को शिक्षा न देने और पक्षपात दिखाने के द्वारा। यहोवा उनसे न्यायानुसार अप्रसन्‍न है “क्योंकि याजक को चाहिए कि वह अपने ओंठों से ज्ञान की रक्षा करें, और लोग उसके मुँह से व्यवस्था पूछें।”​—२:१-९.

यहोवा उनकी ओर लापरवाही से नहीं देखता जो वैवाहिक प्रबन्ध के लिए अनादर दिखाते हैं। परमेश्‍वर के नियम के विपरीत यहूदा के पुरुषों ने विदेशी पत्नियों को लिया। (व्यवस्थाविवरण ७:३, ४) उन्होंने उनकी जवानी की पत्नियों को त्याग देने के द्वारा उन से विश्‍वासघात किया। मलाकी चिताता है कि यहोवा “स्त्री-त्याग से घृणा करता” है।​—२:१०-१७.

न्याय और परिष्करण

यहोवा हमेशा के लिए अधर्म बरदाश्‍त नहीं करता। मन्दिर में “सच्चा प्रभु,” “वाचा का वह दूत” के साथ आएगा। वह लेवी के पुत्रों को शुद्ध और साफ करेगा। यहोवा टोन्हों, व्यभिचारियों, झूठी किरिया खानेवालों, प्रवंचकों और अत्याचारियों के विरुद्ध तुरन्त साक्षी देगा।​—३:१-५.

जो यहोवा को उनका अर्पण देने से इनकार करते हैं, वे अपने आप को दरिद्र कर रहे हैं। यहोवा, अपरिवर्ती है। अगर ये हठी लोग उसकी ओर वापस आते तो वह दयालुता से उनकी ओर लौटता। वे दशांश और दान न देने के द्वारा परमेश्‍वर को धोखा देते रहे। लेकिन अगर वे दशांश लाएंगे तो यहोवा “अपरम्पार आशीष” देने का वचन देता है। वे अनन्त फलों का अनुभव करेंगे।​—३:६-१२.

यहोवा की नज़र उसके लोगों पर है। परमेश्‍वर उनसे असहमत होते हैं जो उसके विरुद्ध तीखी बातें की है। इसके विपरीत वह उनकी ओर निकट ध्यान रखता है, जो उसका भय रखता है। जो “उसके नाम का सम्मान करते हैं” उनके लिए “स्मरण की एक पुस्तक” लिखी जाएगी। उसके लोग धार्मिक और दुष्ट के बीच की भिन्‍नता देखेंगे।​—३:१३-१८.

यहोवा का दिन आ रहा है

यहोवा का दिन दुष्टों के लिए सम्पूर्ण विनाश सूचित करेगा। यहोवा का दिन आ रहा है और दुष्ट खूँटी के समान जलती हुई भट्टी में भस्म हो जाएंगे। वे ऐसे नाश हो जाएंगे कि ‘उनका पता तक न रहेगा।’ वे जो यहोवा के नाम का भय मानते हैं, “धर्म का सूर्य” के आरोग्यकर लाभों का अनुभव करेंगे। इस भयानक दिन के आने से पहले, यहोवा एलिय्याह भविष्यवक्‍ता को एक पुनःस्थापन कार्य करने के लिए भेजेगा।​—४:१-६.

आज के लिए शिक्षा: जब उपासना का विषय आता है यहोवा यह आवश्‍यक समझता है कि उसके लोग उसे उनका सब से उत्तम दें। (मत्ती २२:३७, ३८ से तुलना करें) परमेश्‍वर के वचन के शिक्षकों को सही शिक्षा देने और दूसरों को सच्ची उपासना में आगे ले जाने का उत्तरदायित्व है। हम यह याद रखें कि न्याय के परमेश्‍वर की दृष्टि उन पर है जो विवाह के लिए उचित आदर नहीं दिखाते और जो दुराचार में भाग लेते हैं। जैसे हम “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन” की प्रतीक्षा करते हैं, चलो हम नम्र रूप से सच्चे प्रभु के परिष्कृत करने और साफ करने की प्रक्रिया के अधीन बन जाए।

[पेज 31 पर बक्स]

बाइबल के मूल शास्त्रों का परीक्षण

● १:१०​—ये स्वार्थी, लोभी याजक व्यक्‍तिगत लाभ के लिए सेवा कर रहे थे। वे मन्दिर की सब से सरल सेवाओं जैसे दरवाज़ों को बन्द करना या वेदी में अग्नि सुलगाने के लिए भी मेहनताना की माँग करते थे। यह कोई आश्‍चर्य नहीं कि यहोवा ‘उनके हाथों से भेंट ग्रहण करने में प्रसन्‍न नहीं’ था!

● १:१३​—ये विश्‍वासहीन याजक इन बलिदानों को एक भारी धर्मक्रिया, एक बोझ, के रूप में देखते थे। वे यहोवा की पवित्र बातों का तिरस्कार किया या उन्हें तुच्छ माना। हम कभी भी “धन्यवाद रूपी बलि” को केवल एक आडम्बर के रूप में न चढ़ाए!​—होशे. १४:२; इब्रानियों १३:१५.

● २:१३​—कई यहूदी पतियों ने उनकी जवानी की पत्नियों को त्याग रहे थे, शायद इसलिए कि जवान मूर्तिपूजक औरतों से शादी कर सके। यहोवा की वेदी आँसुओं से भिगो दिया गया​—स्पष्टतया यह उन अस्वीकृत औरतों की थी जो मंदिर में परमेश्‍वर के सामने उनका दुःख बहाने के लिए आती थीं।

● ३:१​—“सच्चा प्रभु” यहोवा परमेश्‍वर है और “वाचा का दूत” यीशु मसीह है। जब यीशु ने मन्दिर को साफ किया तब इस भविष्यवाणी का प्रारम्भिक सम्पादन हुआ। (मरकुस ११:१५-१७) यह उसका पदनामित राजा के रूप में अभिषिक्‍त होने के साढ़े तीन वर्ष के बाद हुआ। उसी तरह, १९१४ की शरत में यीशु का राजा के रूप में प्रतिष्ठित होने के साढ़े तीन वर्ष बाद, वह यहोवा के साथ आत्मिक मन्दिर में प्रवेश किया और परमेश्‍वर के लोगों में परिष्कार करने और शुद्ध करने की आवश्‍यकता पायी।

● ३:२, ३​—शुद्ध करने का प्राचीन प्रक्रम समय लेता था। इसलिए परिष्कारक तब तक “बैठता” जब तक वह द्रव-धातु एक अत्यन्त परिमार्जित आईने के समान न बनता और वह उस में अपना प्रतिबिम्ब देख सके। उसी तरह, आज भी यहोवा अशुद्ध शिक्षाओं और प्रथाओं को निकालने के द्वारा उसके लोगों को साफ करते आया है। ऐसा करना उन्हें उसकी प्रतिमा और सही रूप से प्रतिबिम्बित करने के लिए सहायक बना।​—इफिसियों ५:१.

● ४:२​—यह परमेश्‍वर के नाम का भय माननेवालों द्वारा अनुभव किए जानेवाले भावी आशीषों का वर्णन है। मानव परिवार को कष्ट देनेवाली शारीरिक, मानसिक और भावात्मक बीमारियों से स्वस्थ किए जाने पर उन्हें परमेश्‍वर की कृपा का आनन्द उठाने की प्रत्याशा है।​—प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.

● ४:५​—इस भविष्यवाणी को देने के कुछ ५०० वर्ष पहले एलिय्याह नबी जीवित था। सामान्य युग की पहली सदी में यीशु मसीह ने यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले को एलिय्याह का प्रतिरूप के रूप में पहचाना। (मत्ती ११:१२-१४; मरकुस ९:११-१३) किन्तु, “एलिय्याह,” यहोवा के दिन का अग्रदूत होना था जो इस समय, मसीह की “उपस्थिति” में एक अधिक पूर्ति सूचित करता है।​—२ थिस्सलुनीकियों २:१, २.

[पेज 31 पर तसवीरें]

यीशु की पार्थिव सेवकाई के दौरान, उसने मन्दिर को शुद्ध किया। १९१८ में परमेश्‍वर के लोगों को शुद्ध करने के लिए वह यहोवा के साथ आत्मिक मन्दिर में प्रवेश किया

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