शांति क्या यह निरस्त्रीकरण से आएगी
“निरस्त्रीकरण को शांति से मिलाना सबसे बड़ी भूल है,” विन्सटन चर्चहिल ने राष्ट्रों के दूसरे महायुद्ध में भाग लेने से पाँच वर्ष पूर्व कहा। “जब आपको शांति हासिल होगी तब आप निरस्त्रीकरण भी हासिल करेंगे,” उन्होंने आगे कहा।
क्या ही विरोधाभास! निरस्त्रीकरण करने का जोखिम कौन लेगा जब तक कि शांति प्राप्त नहीं हो जाती? लेकिन वास्तविक शांति कैसे बनी रह सकती है जब तक युद्ध के शस्त्रों का संचयन हो रहा है? यह एक ऐसी स्थिति है जिस से राजनीतिज्ञ बाहर निकलने का रास्ता कभी नहीं ढूँढ़ पाए हैं।
विन्सटन चर्चहिल ने अपना बयान, केवल दो वर्ष पूर्व राष्ट्र-संघ द्वारा आयोजित निरस्त्रीकरण सम्मेलन की समाप्ति के बाद, १९३४ में किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य, जिसकी तैयारी में १२ वर्ष लगे थे, यूरोप को दुबारा शस्त्र एकत्रित करने से रोकना था। पृथ्वी की चारों ओर लोग अभी तक स्पष्टता से प्रथम महायुद्ध के दौरान हुए कुछ नब्बे लाख योद्धाओं के भयंकर हत्याकांड को, तथा लाखों और घायलों, और नागरिक मृतकों की एक बड़ी संख्या को भी याद करते थे। फिर भी, निरस्त्रीकरण कभी वास्तविकता नहीं बनी। क्यों?
निरस्त्रीकरण के प्रयास
निरस्त्रीकरण की नीति लागू तो की जा सकती है, पर विरले ही प्रभावशाली रीति से। उदाहरण के लिए, १९१९ की वेरसाय संधि के अंतर्गत जर्मनी का निरस्त्रीकरण हुआ “पर्याप्त गारंटियों के देने और लेने के साथ, कि शस्त्रीकरण को देशीय सुरक्षा के अनुरूप कम से कम किया जाएगा।” यह यू.एस. के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन के प्रस्ताव के सामंजस्य में था, जिसे बाद में राष्ट्र-संघ के प्रतिज्ञापत्र की अनुच्छेद ८ में सम्मिलित किया गया। किन्तु, जब हिट्लर शासन में आया तो उसने जल्द ही नीति की अवज्ञा की।
क्या संयुक्त राष्ट्र संघ द्वितीय विश्व युद्ध के पश्वात् निरस्त्रकरण के लिए एक ठोस नींव स्थापित करने में ज़्यादा सफ़ल रहा? नहीं, लेकिन इसकी सफ़लता का अभाव कृतसंकल्प प्रयास की कमी के कारण नहीं था। चूँकि परमाणु शस्त्र सम्पूर्ण विनाश के लिए अब उपलब्ध थे, निरस्त्रीकरण एक अत्यावश्यक विषय था। न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका कहती है, “पहले विवाद को, कि शस्त्रास्त्रों की दौड़ आर्थिक रूप से अनुपयुक्त है और निश्चित रूप से युद्ध तक ले जाती है, इस तर्क में बदल दिया गया है कि भविष्य में परमाणु शस्त्रों का मात्रात्मक रूप में उपयोग किया जाना, सभ्यता को ही संकट में डाल देगा।”
१९५२ में पूर्व/पश्चिम शस्त्रास्त्रों की बढ़ती हुई दौड़ को निष्फल करने के लिए एक १२-राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण आयोग को बनाया गया। यह निष्फल रहा और अंत में दोनों महाशक्तियों ने अपने विरोधी दलों को और भी अधिक दूर किया। वर्तमान समय तक कई और समझौते व संधियाँ बनायी जा चुकी हैं। तब भी, आपसी अविश्वास के वातावरण ने युद्ध के शस्त्रों के पूर्ण समापन की अनुमति नहीं दी है। यह एक ऐसी बात है, न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका कहती है, जिसका “समर्थन आदर्शवाद विचारक करते हैं।”
मूल्य आँकना
निरस्त्रीकरण करना चाहिए या नहीं—क्या क़ीमत शामिल है? क़ीमत की गिनती हमेशा पैसों में ही नहीं होती। शस्त्र संबंधी उद्योगों में रोज़गारी भी मुख्य रूप से विचारणीय है। बहुत से देशों में कर से एकत्रित पैसा शस्त्रास्त्र ख़रीदने में लगाया जाता है, जिनके उत्पादन से नौकरियाँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए, शायद निरस्त्रीकरण के कारण बेरोज़गारी उत्पन्न होगी। इसलिए वे देश, जो भारी रक्षा बजट बनाने के लिए वचनबद्ध हैं, पूर्ण निरस्त्रीकरण के विचार से काँपते हैं। ऐसी विचारणा उनके लिए एक आदर्शवाद स्वप्न नहीं बल्कि एक दुःस्वप्न के समान है।
फिर भी, हम उस अत्याधिक धन को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते जो युद्ध यन्त्र चलाने में लगाया गया है। अनुमान है कि विश्व के कुल उत्पादन का १०-प्रतिशत हिस्सा शस्त्रास्त्रों पर ख़र्च होता है। वह कितना है? सही आँकड़े मुद्रास्फीति के साथ साथ बदलते रहते हैं, किन्तु, विचार करें कि इस तरीक़े से दिन के हरेक मिनट में दस लाख पौंड ($ १५,४०,०००, यू.एस.) का ख़र्च होता है! यदि आपके पास इतना धन होता तो आप किन चीज़ों को प्राथमिकता देते? अकाल सहायता? स्वास्थ्य परिचर्या? शिशु कल्याण? पारिस्थितिक पुनःस्थापन? कितनी ही चीज़ें हैं जो की जा सकती हैं!
उदाहरण के लिए, यू.एस.एस.आर. के हाल ही में घोषित “टैंकों से ट्रैक्टरों तक” कार्यक्रम को ही लीजिए, जहाँ कुछ शस्त्रों के कारख़ानों को “कृषि-उद्योग क्षेत्र के लिए” २०० क़िस्म के “आधुनिक साधन” बनाने के लिए परिवर्तित किया जा रहा है। उस कृषि-साधन की इतनी आवश्यकता क्यों है? क्योंकि, ब्रिटेन के फार्मिंग न्यूज़ के अनुसार, “राज्य के खेतों में उगाए गए फल व सब्ज़ियों का सिर्फ़ एक तिहाई ही उपभोक्ता तक पहुँचता है, बाक़ी खेतों में सड़ने के लिए या मार्ग स्थलों में और गोदामों में ख़राब हो जाने के लिए छोड़ दिया जाता है।”
टैंकों के बजाय ट्रैक्टरों का उत्पादन जितना सराहनीय है, यह उतना ही असाधारण होने के कारण मुख्य समाचार बन जाता है। इसके अलावा, कुल शस्त्र उत्पादन पर इसका प्रभाव बहुत कम है। असंख्य सैंकडों करोड़ पौंड, रूबल, और डॉलर एक ऐसे संसार में शस्त्रास्त्रों पर ख़र्च किए जा रहे हैं, जिस में “भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते-देखते लोगों के जी में जी” नहीं रहता, ठीक उसी तरह जैसे कि यीशु मसीह ने भविष्यवाणी की थी। इस प्रकार के भय को कैसे दूर किया जा सकता है? क्या सम्पूर्ण निरस्त्रीकरण एक स्वप्न बन कर ही रह जाएगा? यदि नहीं, तो इसको साकार करने के लिए किस चीज़ की आवश्यकता है?—लूका २१:२६.