“अपने आप को परखते रहो, कि विश्वास में हो कि नहीं”
कुरिन्थियों को लिखी दूसरी पत्री से विशिष्टताएँ
प्रेरित पौलुस कुरिन्थ में रहनेवाले मसीहियों के लिए चिन्तित था। अपनी पहली पत्री में उन्हें दी सलाह के बारे में उनका क्या विचार होगा? वह मकिदुनिया में था जब तीतुस एक अनुकूल रिपोर्ट लेकर आया कि उस पत्री के कारण कुरिन्थियों ने उदास होकर पश्चाताप किया था। उस ख़बर से पौलुस कितना खुश हुआ!—२ कुरिन्थियों ७:८-१३.
पौलुस ने कुरिन्थियों के नाम अपनी दूसरी पत्री मकिदुनिया से लिखी, संभवतः सामान्य युग के साल ५५ में वर्ष मध्ये के बाद। इस पत्री में, उसने मण्डली को विशुद्ध रखने के लिए जो क़दम लिए गए थे, उन पर विचार-विमर्श किया। उसने इस पत्री में लोगों में यह इच्छा जगायी कि यहूदिया में रहनेवाले ज़रूरतमंद विश्वासियों के लिए अंशदान करें, और उसने अपनी प्रेरिताई की सफ़ाई दी। पौलुस द्वारा कही अधिकांश बातें हमें ‘अपने आप को परखने, कि क्या हम विश्वास में हैं कि नहीं,’ सहायता करती हैं। (१३:५) तो, हम इस पत्री से क्या बटोर सकते हैं?
सान्त्वना के परमेश्वर का सेवक
प्रेरित ने दिखाया कि जैसे परमेश्वर हमें अपने सब क्लेशों में सान्त्वना देते हैं, वैसे ही हमें दूसरों को सान्त्वना देनी चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। (१:१-२:११) हालाँकि पौलुस और उसके साथी अत्यंत दबाव का अनुभव कर रहे थे, परमेश्वर ने उन्हें बचाया। फिर भी, कुरिन्थी उनके लिए प्रार्थना करके मदद कर सकते थे, उसी तरह जैसे हमें दूसरों के लिए, जो सच्चे विश्वास को स्वीकार करते हैं, प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन उस व्यभिचारी पुरुष का क्या, जिसका ज़िक्र १ कुरिन्थियों, अध्याय ५ में किया गया है? प्रत्यक्ष रूप से उसे जाति बहिष्कृत किया गया था लेकिन उसने पश्चाताप किया था। उसे कितनी सान्त्वना मिली होगी जब कुरिन्थियों ने उसे क्षमा दी और प्रेमपूर्वक उसे अपने बीच बहाल किया।
पौलुस के शब्दों से मसीही सेवकाई के लिए हमारी क़दर बढ़ सकती है, जिससे सच्चे विश्वास के लिए हमारा पक्ष सदृढ़ बन जाता है। (२:१२–६:१०) अजी, नयी वाचा के सेवकों को परमेश्वर के नेतृत्व में “जय के उत्सव” में फिरने का ख़ास अनुग्रह प्राप्त है! पौलुस और उसके सहकर्मियों के पास यह बहुमूल्य सेवकाई इसलिए थी कि उन्हें दया दिखायी गयी थी। उनके जैसे, आज के अभिषिक्त लोगों के पास मेल मिलाप की सेवा है। फिर भी, यहोवा के सभी गवाह दूसरों को अपनी सेवकाई के ज़रिए धनवान् बनाते हैं।
पवित्रता को सिद्ध करें और उदार बनें
पौलुस हमें दिखाता है कि मसीही सेवकों को यहोवा का भय रखते हुए पवित्रता सिद्ध करनी चाहिए। (६:११–७:१६) अगर हमें विश्वास में अटल रहना है, तो हमें अविश्वासियों के साथ जुतने से बचे रहना चाहिए और हमें शारीरिक तथा आध्यात्मिक मलिनता से शुद्ध किया जाना चाहिए। कुरिन्थियों ने अनैतिक अपराधी को जाति बहिष्कृत करके शोधन के लिए कार्रवाई की थी, और पौलुस को खुशी हुई कि उसकी पहली पत्री के कारण उन्हें शोक इस हद तक हुआ कि उन्होंने पश्चाताप किया जिसका परिणाम उद्धार है।
हमें यह भी मालूम हो जाता है कि धर्मभिरु सेवक अपनी उदारता के लिए प्रतिदान प्राप्त करते हैं। (८:१-९:१५) ज़रूरतमंद “पवित्र लोगों” के लिए अंशदानों के संबंध में पौलुस ने मकिदुनियों के बढ़िया मिसाल का ज़िक्र किया। वे अपने सामर्थ के बाहर उदारशील रहे थे, और वह कुरिन्थियों की तरफ़ से उसी तरह की उदारशीलता देखना चाहता था। उनका दान—और हमारा—दिल से प्रेरित होना चाहिए, इसलिए कि “परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखते हैं” और अपने लोगों को हर तरह के उदार कार्य के बदले सम्पन्न बनाते हैं।
पौलुस—एक परवाह करनेवाला प्रेरित
जब हम यहोवा की सेवा में सेवकों के रूप में कुछ कर पाते हैं, तब हम अपने पर नहीं, उन पर घमण्ड करें। (१०:१-१२:१३) आख़िर, सिर्फ़ आध्यात्मिक हथियार सहित ही, जो कि “परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं,” हम झूठी तर्कणा को उलट सकते हैं। कुरिन्थियों के बीच शेख़ीबाज़ “बड़े से बड़े प्रेरित,” मसीह के एक सेवक के रूप में पौलुस के सहन करने के रिकार्ड के बराबर कभी बन नहीं सकते थे। फिर भी, इसलिए कि वह फूल न जाए, परमेश्वर ने उसके “शरीर के काँटें” को नहीं निकाला—जो कि शायद उसकी कमज़ोर दृष्टि थी अथवा वे झूठे भविष्यद्वक्ता। किसी प्रकार पौलुस तो अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करना अधिक पसंद करता था, ताकि “मसीह की सामर्थ” उस पर तंबू की छाया की तरह बनी रहे। एक ऐसे आदमी होने के नाते जो विश्वास में अटल रहा था, वह उन बड़े से बड़े प्ररितों से निम्न साबित नहीं हुआ था। कुरिन्थियों ने प्रेरिताई के सबूत देखे थे जो पौलुस उनके बीच “सब प्रकार के धीरज सहित चिन्हों, और अद्भुत कामों, और सामर्थ के कामों से” दिखा चुका था।
एक सेवक और प्रेरित होने के नाते, पौलुस के दिल में संगी विश्वासियों के आध्यात्मिक हित थे, जैसा कि हमारे दिलों में भी होने चाहिए। (१२:१४-१३:१४) वह ‘उनके प्राणों के लिए आनन्द से पूरी तरह ख़र्च होने’ के लिए तैयार था। लेकिन पौलुस को डर था कि कुरिन्थ पहुँचने पर, वह कुछेकों को पाता, जिन्होंने शरीर के कामों से प्रायश्चित नहीं किया था। इसलिए, उसने सभी को सलाह दी कि वे अपने आप को परखते रहें कि क्या वे विश्वास में थे या नहीं और उसने यह प्रार्थना की कि वे “कोई बुराई न करें।” अन्त में, उसने उन्हें आनन्दित रहने, पुनःसंमजित होने और ढाढ़स रखने, एक ही मन रखने तथा मेल से रहने के लिए अनुरोध किया। हमारे लिए भी कैसी उत्तम सलाह!
परखते रहें!
इस प्रकार कुरिन्थियों के नाम पौलुस की दूसरी पत्री में विविध तरीक़े सुझाए गए हैं, यह परखते रहने के लिए कि क्या हम विश्वास में हैं या नहीं। उसके शब्दों से हमें बेशक प्रेरित होना चाहिए कि दूसरों को सान्त्वना दें, उसी तरह जैसे परमेश्वर हमें हमारे सब क्लेशों में सान्त्वना देते हैं। प्रेरित ने मसीही सेवकाई के बारे में जो कहा, उस से हमें प्रेरित होना चाहिए कि हम इसे ईमानदारी से पूरा करें, और साथ ही हम यहोवा का भय रखते हुए पवित्रता सिद्ध करते रहें।
बहुत संभव है कि पौलुस की सलाह पर अमल करने से हम अधिक उदार और सहायता करने के लिए तैयार बनेंगे। फिर भी, उसके शब्दों से हमें अपने आप पर नहीं, बल्कि यहोवा पर घमण्ड करने के लिए प्रेरित होना चाहिए। उन से संगी विश्वासियों के लिए हमारी प्रेममय परवाह बढ़ जानी चाहिए। और निश्चय ही कुरिन्थियों के नाम दूसरी पत्री की ये तथा अन्य बातें हमें यह ‘परखते रहने के लिए’ सहायक होंगी, ‘कि क्या हम विश्वास में हैं या नहीं।’
[पेज 30 पर बक्स/तसवीरें]
यहोवा की महिमा प्रतिबिम्बित करें: जब मूसा साक्षी की दोनों तख्तियाँ हाथ में लिए हुए सीनै पर्वत से उतर आया, उसके चेहरे से किरणें निकल रही थीं, इसलिए कि यहोवा ने उस से बातें की थी। (निर्गमन ३४: २९, ३०) पौलुस ने इसक ज़िक्र किया और कहा: “हम सब के उघाड़े हुए चेहरे से यहोवा का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो यहोवा के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं।” (२ कुरिन्थियों ३:७-१८) प्राचीन आरसियाँ काँसा या ताँबा जैसी धातुओं से बनती थीं, और वे अत्याधिक मात्रा में पॉलिशदार होती थीं ताकि उन पर अच्छी प्रतिबिम्बिक सतह प्राप्त हो। आरसियों की तरह, अभिषिक्त लोग परमेश्वर की महिमा को प्रतिबिम्बित करते हैं, जिसकी ज्योति उन पर यीशु मसीह से प्रकाशमान होती है, और जिस से प्रगतिशील रूप से ‘वे उसी तेजस्वी रूप में,’ जो यहोवा के महिमा-प्रतिबिम्बित करनेवाले पुत्र के द्वारा दी जाती है, ‘अंश अंश कर के बदलते जाते हैं।’ (२ कुरिन्थियों ४:६; इफिसियों ५:१) पवित्र आत्मा और धर्मशास्त्र के ज़रिए, परमेश्वर उन में “नया व्यक्तित्व” बनाते हैं, जो कि खुद उनके गुणों का एक प्रतिबिम्बि है। (इफिसियों ४:२४; कुलुस्सियों ३:१०; न्यू.व.) चाहे हमारी आशा स्वर्गीय हो या पार्थिव, हम उस व्यक्तित्व को प्रदर्शित करें और अपनी सेवकाई में परमेश्वर की महिमा को प्रतिबिम्बित करने के ख़ास अनुग्रह को सँजोए रखें।
[पेज 31 पर बक्स/तसवीरें]
“धार्मिकता के हथियार”: एक तरीक़ा जिस से पौलुस और उसके साथियों ने परमेश्वर के सेवकों के तौर से खुद अपनी सिफ़ारिश की, वह “धार्मिकता के हथियारों से, जो दहिने, बायें हैं,” था। (२ कुरिन्थियों ६:३-७) दायाँ हाथ तलवार चलाने के लिए था, और बायाँ ढाल को पकड़ने के लिए था। हालाँकि पौलुस और उसके सहकर्मियों पर हर तरफ़ से हमला हुआ, वे आत्मिक युद्ध लड़ने के लिए हथियारबन्द थे। यह युद्ध झूठे शिक्षकों और “बड़े से बड़े प्रेरितों” के ख़िलाफ़ लड़ा जा रहा था ताकि कुरिन्थ की मण्डली मसीह के प्रति निष्ठा से बहकाए न जाएँ। पौलुस ने पापमय शरीर के हथियारों का सहारा नहीं लिया—चालाकी, धोखा या धूर्तता। (२ कुरिन्थियों १०:८-१०; ११:३, १२-१४; १२:११, १६) उलटा, जिन “हथियारों” का उपयोग किया गया, वे धार्मिक, या न्याय्य साधन था, जो सभी हमलों के विरुद्ध सच्ची उपासना को बढ़ावा देता। यहोवा के गवाह अब उसी उद्देश्य के लिए ऐसे “धार्मिकता के हथियारियों” का उपयोग करते हैं।