परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ पर निर्भर करें
तीमुथियुस को लिखी दूसरी पत्री से विशिष्टताएँ
यहोवा अपने सेवकों को परीक्षाओं और सताहटों को सहने की शक्ति देते हैं। तीमुथियुस और दूसरे मसीहियों को परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ की कितनी आवश्यकता थी! ६४ सा.यु. में, रोम में आग फैल गयी और अफ़वाह यह थी कि उसका उत्तरदायी सम्राट नीरो था। स्वयं को बचाने के लिए, उसने मसीहयों को दोषी ठहराया और उसने सताहट की लहर को प्रत्यक्ष प्रोत्साहन दिया। संभवतः उसी समय में (लगभग ६५ सा.यु.) प्रेरित पौलुस को रोम में, फिर से कैद कर लिया गया। मृत्यु का सामना करते हुए भी उसने तब तीमुथियुस को दूसरी पत्री लिखी।
पौलुस की पत्री ने तीमुथियुस को धर्मत्यागियों का सामना करने और सताहट के मध्य दृढ़ खड़े रहने के लिए तैयार किया। यह लगातार आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रोत्साहित करता है और उसे पौलुस की कैद की परिस्थितियों के बारे में सूचित करता है। यह पत्री पाठकों को परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ पर निभर्र रहने के लिए भी सहायता देती है।
दुःख सहें और कोमलता से शिक्षा दें
परमेश्वर सुसमाचार प्रचारकों को शक्ति देता है ताकि हम सताहट को सह सके। (१:१-१८) पौलुस अपनी प्रार्थनाओं में तीमुथियुस को कभी नहीं भूला, और वह उसके निष्कपट विश्वास को स्मरण रखता था। परमेश्वर ने तीमुथियुस को “भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी।” गवाही देने में और सुसमाचर के लिए दुःख उठाने मे वह लज्जित नहीं होता था। उसे उकसाया गया कि वह पौलुस से सुनी “खरी बातों को अपना आदर्श बनाए रखे” जैसे हमने भी सच्चा मसीही सत्य को पूरा मानना चाहिए चाहे दूसरे उससे फिर जाएँ।
पौलुस की दी गयी शिक्षाएँ, दूसरों को सिखाने के लिए, विश्वासी पुरूषों को सौंप देनी थी। (२:१-२६) तीमुथियुस को मसीह का अच्छा योद्धा बनने और दुःख उठाते समय विश्वासी बने रहने के लिए आग्रह किया गया। स्वयं पौलुस ने सुसमाचार प्रचार करने के कारण कैद में दुःख उठाया। उसने तीमुथियुस को प्रोत्साहित किया कि वह अपने आप को परमेश्वर का ग्रहण योग्य काम करनेवाला ठहरने का प्रयत्न करे और व्यर्थ बकवाद से बचा रहे। और उसे कहा गया था कि प्रभु के एक दास ने, दूसरों को कोमलता से आदेश देना चाहिए।
वचन का प्रचार करें!
अन्तिम दिनों का सामना करने और पवित्र शास्त्र के सत्य से जुड़े रहने के लिए परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ की आवश्यकक्ता होगी। (३:१-१७) अधर्मियों के बीच से ऐसे लोग उठेंगे जो “सदा सीखते तो रहते हैं पर सत्य की पहचान तक कभी नहीं पहुँचते।” ऐसे “दुष्ट और बहकाने वाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” फिर भी तीमुथियुस ने “जो बातें सीखी थी उनमें दृढ़ बने रहना था।” और ऐसा ही हमें करना चाहिए ये जानते हुए कि “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए।”
तीमुथियुस को धर्मत्यागियों का विरोध करना था और अपनी सेवकाई को पूरा करना था। (४:१-२२) वह ऐसा ‘वचन का प्रचार’ करके और इस से जुड़े रहकर कर सकता था। ऐसा महत्वपूर्ण था जबकि कलीसिया “कठिन समय” का सामना कर रही थी क्योंकि कुछ लोग झूठी शिक्षा सिखा रहे थे। यहोवा के गवाह भी, अभी परमेश्वर के वचन से जुड़े रहते हैं और अति शीघ्रता से इसका प्रचार कलीसिया में, और बाहर के लोगों को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी करते हैं। पौलुस ने “विश्वास की रखवाली की” जबकि कितनों ने उसका साथ छोड़ दिया था। परन्तु “प्रभु ने उसे सामर्थ दी, ताकि उसके द्वारा पूरा पूरा प्रचार हो।” हम भी परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ पर निर्भर करे और सुसमाचार का प्रचार करते रहें।
[पेज 28 पर बक्स/तसवीरें]
एक अच्छा योद्धा: पौलुस ने तीमुथियुस से आग्रह किया: “मसीह यीशु के अच्छे योद्धा की नाई मेरे साथ दुःख उठा। जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिए कि अपने भरती करनेवाले को प्रसन्न करने के लिये, स्वयं को जीवन के व्यापारिक व्यवसायों में शामिल नहीं करता।” (२ तीमुथियुस २:३, ४) एक रोमी पद योद्धा को भारी शस्त्र, कुल्हाड़ी, टोकरा, तीन दिन का राशन और अन्य वस्तुएँ उठाने में “दुख सहना” पड़ता था। (जोसिफ़स वार ऑफ द जूःज़, पुस्तक ३ अध्याय ५) वह व्यापारिक रुचियों के खोज में नहीं रहता, क्योंकि इससे उसका उच्च अधिकारी होता, और उसके खर्चे पूरे हो जाते थे। उसी प्रकार, मसीह का एक अच्छा योद्धा होने के कारण, एक मसीही दुःख सहता है। अपने पवित्र शास्त्रीय कर्तव्यों को निभाने के लिए वह शायद नौकरी करता है, फिर भी उसने आवश्यकता से अधिक भौतिक वस्तुओं में नहीं फसना चाहिए कि वह अपने आत्मिक युद्ध को बंद कर दे। (१ थिस्सलुनीकियों २:९) घर घर जाकर प्रचार करने से वह “आत्मा की तलवार को, जो परमेश्वर का वचन है” उपयोग में लाता है, और धार्मिक त्रुटि से मुक्त होने में लोगों की सहायता करता है। (इफिसियों ६:११-१७; यूहन्ना ८:३१, ३२) क्योंकि जीवन दाँव पर है, हर मसीही योद्ध यीशु मसीह और यहोवा परमेश्वर को इसी तरह प्रसन्न करते रहें।