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यहोवा का आदर करें–क्यों और कैसे?

“जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूँगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएँगे।”—१ शमूएल २:३०.

१. किन को नोबेल पुरस्कार दिए जाते हैं, और उन में क्या शामिल है, तथा अनेक लोग इन पुरस्कारों का कैसा विचार करते हैं?

हर साल, स्कैंडिनेविया की चार संस्थाएँ ऐसे लोगों को नोबेल पुरस्कार प्रदान करती हैं, जिन्होंने ‘पूर्वगत वर्ष के दौरान मनुष्यजाति को सबसे ज़्यादा फ़ायदा पहुँचाया है।’ पुरस्कार प्रयास के छः अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यसिद्धि हासिल करने की वजह से दिए जाते हैं। अनेक लोग समझते हैं कि नोबेल पुरस्कार किसी भी इंसान को प्रदान हो सकनेवाला सर्वश्रेष्ठ सम्मान है।

२. नोबेल पुरस्कार के प्रदाता किन को नज़रंदाज़ करते हैं, लेकिन वे ख़ास तौर से आदर-सत्कार के योग्य क्यों हैं?

२ जबकि योग्य इंसानों को सम्मान देने में कोई बुराई नहीं, क्या उन लोगों ने, जो ये सम्मान प्रदान करते हैं, मनुष्यजाति के सर्वश्रेष्ठ उपकारक का आदर-सत्कार करने के बारे में सोचा है? यह उपकारक वे ही हैं जिन्होंने तक़रीबन ६,००० साल पूर्व, उनके द्वारा की गयी पहले आदमी और औरत की सृष्टि से लेकर मनुष्यजाति को अनगिनत आशिषें प्रदान की हैं। उनका आदर-सत्कार करने में लोगों का बार-बार चूक जाना शायद हमें प्राचीन अय्यूब के दोस्त, एलीहू के शब्दों की याद दिलाएगा, जिसने कहा: “तौभी यह कोई नहीं कहता, कि ‘मेरा सृजनेवाला ईश्‍वर कहाँ है, जो रात में भी गीत गवाता है?’” (अय्यूब ३५:१०) हमारे महान्‌ उपकारक ‘भलाई करते रहते हैं, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, मन को भोजन और आनन्द से भरते रहते हैं।’ (प्रेरितों १४:१६, १७; मत्ती ५:४५) यहोवा सचमुच ही ‘हर एक अच्छे वरदान और हर एक उत्तम दान’ के दाता हैं।—याकूब १:१७.

आदर-सत्कार करने का मतलब क्या है

३. वे मूल इब्रानी और यूनानी शब्द क्या हैं, जिनका अनुवाद “आदर” अथवा “सम्मान” किया गया है, और उनके मतलब क्या हैं?

३ आदर-सत्कार या सम्मान के लिए मुख्य इब्रानी शब्द, का·वोधʹ, का मतलब अक्षरशः “भारीपन” है। इसलिए जिस व्यक्‍ति का आदर-सत्कार होता है, उसे वज़नी, प्रभावशाली या कुछ महत्त्व रखनेवाला माना जाता है। अर्थपूर्ण रूप से, धर्मशास्त्र में इस इब्रानी शब्द, का·वोधʹ, का अनुवाद अकसर “महिमा” भी किया गया है, जिस से और अधिक सूचित होता है कि जिस व्यक्‍ति का आदर-सत्कार किया जा रहा है, वह कितना प्रभावशाली या कितना महत्त्वपूर्ण है। धर्मशास्त्र में “आदर” अथवा “सम्मान” के तौर से अनुवाद किया जानेवाला एक और इब्रानी शब्द, येकारʹ, का अनुवाद “बहुमूल्य” और “मूल्यवान वस्तु” भी किया गया है। इसीलिए इब्रानी शास्त्रों में, आदर महिमा या बहुमूल्यता से सम्बन्धित है। बाइबल में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “आदर” अथवा “सम्मान” किया गया है, वह टाइ·मीʹ है, और इस शब्द से भी इज़्ज़त, क़ीमत और बहुमूल्यता का अर्थ सूचित होता है।

४, ५. (अ) किसी व्यक्‍ति को सम्मान देने का मतलब क्या है? (ब) एस्तेर ६:१-९ में बतायी गयी कौनसी स्थिति से सूचित होता है कि सम्मान देने में क्या-क्या शामिल है?

४ इस प्रकार कोई व्यक्‍ति किसी दूसरे का सम्मान उसे गहरा आदर और मान दिखाकर कर सकता है। एक दृष्टान्त के तौर से, बाइबल में बतायी गयी उस स्थिति पर ग़ौर करें जो विश्‍वसनीय यहूदी मोर्दकै के सम्बन्ध में था। एक बार मोर्दकै ने प्राचीन अश्‍शूर के राजा क्षयर्ष की जान लेने के एक षड्यन्त्र को परदाफ़ाश किया था। कुछ समय बाद, एक रात जब राजा सो नहीं पा रहा था, राजा का ध्यान मोर्दकै के इस काम की ओर आकर्षित किया गया। इसलिए उसने अपने परिचारकों से पूछा: “इसके बदले मोर्दकै की क्या प्रतिष्ठा और बड़ाई की गई?” उन्होंने जवाब दिया: “उसके लिए कुछ भी नहीं किया गया।” यह कितनी गंभीर करा देनेवाली बात थी! मोर्दकै ने राजा की जान बचायी थी, फिर भी राजा इसके लिए क़दरदानी दिखाने से रह गया था।—एस्तेर ६:१-३.

५ इसलिए, उपयुक्‍त समय पर, क्षयर्ष ने अपने प्रधान मंत्री, हामान, से पूछा कि उस व्यक्‍ति की प्रतिष्ठा किस तरह करें जिस से राजा प्रसन्‍न हो। फ़ौरन ही हामान ने अपने मन में यह तर्क किया: “मुझ से अधिक राजा किस की प्रतिष्ठा करना चाहता होगा?” इसलिए हामान ने कहा कि उस व्यक्‍ति को “राजकीय वस्त्र” पहनाया जाना चाहिए और “एक ऐसे घोड़े पर, जिस पर राजा सवार होता है,” सवारी करनी चाहिए। आख़िर में उसने कहा: “उस घोड़े पर सवार करके, नगर के चौक में उसे फिराया जाए; और उसके आगे आगे यह प्रचार किया जाए, कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है, उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा।” (एस्तेर ६:४-९) इस तरह से सम्मानित व्यक्‍ति को सभी लोग अत्यन्त मान देते।

क्यों यहोवा आदर के योग्य हैं

६. (अ) कौन हमारे आदर के सब से ज़्यादा योग्य हैं? (ब) “महान्‌,” शब्द यहोवा का वर्णन उचित रूप से क्यों करता है?

६ पूरे इतिहास में इंसानों का आदर-सत्कार किया जा चुका है, अकसर तब भी जब वे इसके योग्य नहीं। (प्रेरितों १२:२१-२३) फिर भी कौन आदर पाने के सब से ज़्यादा योग्य हैं? अजी, ये तो अवश्‍य यहोवा परमेश्‍वर ही हैं! वे हमारे आदर के योग्य हैं इसलिए कि वे निश्‍चय ही महान्‌ हैं। “महान्‌,” यह शब्द उनका ज़िक्र करने में अकसर इस्तेमाल किया जाता है। वे महान्‌ व्यक्‍ति, महान्‌ कर्ता, महान्‌ सृजनहार, महान्‌ राजाधिराज, महान्‌ उपदेशक और महान्‌ स्वामी हैं। (भजन ४८:२; सभोपदेशक १२:१; यशायाह ३०:२०; ४२:५; ५४:५; होशे १२:१४; NW) वे जो महान्‌ हैं, वे राज प्रतापवान, गौरवशाली, उन्‍नत, श्रेष्ठ, प्रतिष्ठित और विस्मय-प्रेरक हैं। यहोवा अतुलनीय हैं, उनका कोई समवर्ग नहीं, वे सर्वोत्कृष्ट हैं। वे खुद इस वास्तविकता की गवाही देते हैं: “तुम किस से मेरी उपमा दोगे और मुझे किस के समान बताओगे, किस से मेरा मिलान करोगे कि हम एक समान ठहरें?”—यशायाह ४६:५.

७. कम से कम कितने विभिन्‍न तरीक़ों से कहा जा सकता है कि यहोवा परमेश्‍वर अनुपम हैं, और ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि वे अधिकार के मामले में अतुल्य हैं?

७ यहोवा परमेश्‍वर कम से कम सात अलग-अलग रीतियों से अतुल्य हैं, जिन से उनका आदर करने की सुस्पष्ट वजह मिलती हैं। सब से पहले, यहोवा परमेश्‍वर अधिकतम आदर के योग्य हैं क्योंकि अधिकार के मामले में वे बेजोड़ हैं। प्रभु यहोवा विश्‍व के अधिराट्‌ हैं—वे सर्वोच्च हैं। वे हमारे न्यायी, व्यवस्था देनेवाला और राजा हैं। स्वर्ग में और पृथ्वी पर रहनेवाले सभी व्यक्‍तियों को उनको हिसाब देना पड़ेगा; फिर भी उन्हें किसी को हिसाब नहीं देना पड़ता है। उनका वर्णन “महान्‌, पराक्रमी और भय योग्य ईश्‍वर” के तौर से भली-भाँति किया गया है।—व्यवस्थाविवरण १०:१७; यशायाह ३३:२२; दानिय्येल ४:३५.

८. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा (अ) अपने पद के सम्बन्ध में, और (ब) अपने अनन्त अस्तित्व के सम्बन्ध में बेजोड़ हैं?

८ दूसरी बात, यहोवा परमेश्‍वर अधिकतम आदर के योग्य इसलिए हैं कि उनके स्तर के सम्बन्ध में वे बेजोड़ हैं। वे “महान्‌ और उत्तम,” परमप्रधान हैं। वे अकल्पित रूप से अपने सारे पार्थिव प्राणियों से बहुत ऊँचे हैं! (यशायाह ४०:१५; ५७:१५; भजन ८३:१८) तीसरी बात, यहोवा परमेश्‍वर का आदर बाक़ी सभों से ज़्यादा किया जाना चाहिए इसलिए कि वे अपने अनन्त अस्तित्व के सम्बन्ध में अद्वितीय हैं। सिर्फ़ उन्हीं की कोई शुरुआत नहीं, चूँकि वे अनादिकाल से अनन्तकाल तक अस्तित्व में हैं।—भजन ९०:२; १ तीमुथियुस १:१७.

९. यहोवा किस रीति से (अ) अपनी महिमा के सम्बन्ध में, और (ब) अपने मूलभूत गुणों के सम्बन्ध में अतुल्य हैं?

९ चौथी बात, यहोवा परमेश्‍वर अपनी व्यक्‍तिक महिमा की शान के कारण अधिकतम आदर के योग्य हैं। वे ‘दिव्य ज्योतियों के पिता’ हैं। उनके व्यक्‍ति-प्रभाव का ऐसा तेज है कि कोई भी इंसान उन्हें देखकर ज़िन्दा नहीं रह सकता। वे सचमुच ही विस्मय प्रेरक हैं। (याकूब १:१७; निर्गमन ३३:२२; भजन २४:१०) पाँचवी बात, हमें यहोवा परमेश्‍वर के अद्‌भुत गुणों की वजह से उन्हें अधिकतम आदर देना ही चाहिए। वे सर्वशक्‍तिमान हैं, उनकी शक्‍ति अपार है; वे सर्वज्ञ हैं, और असीम बुद्धि के मालिक हैं; इंसाफ़ का गुण उन में बिलकुल ही परिपूर्ण है; और वे प्रेम का मूर्तरूप हैं।—अय्यूब ३७:२३; नीतिवचन ३:१९; दानिय्येल ४:३७; १ यूहन्‍ना ४:८.

१०. यहोवा किस रीति से (अ) सृष्टि के कार्यों और सम्पत्ति के सम्बन्ध में, और (ब) अपने नाम और ख़्याति के सम्बन्ध में अद्वितीय हैं?

१० छठी बात, यहोवा परमेश्‍वर अपने सृष्ट के महान्‌ कार्यों की वजह से यथासंभव अधिकतम आदर के योग्य हैं। स्वर्ग में और पृथ्वी पर की सारी वस्तुओं के सृजनहार होने के नाते, वे सारी वस्तुओं के महान्‌ मालिक हैं। हम भजन ८९:११ में पढ़ते हैं: “आकाश तेरा है, पृथ्वी भी तेरी है।” सातवीं बात, यहोवा परमेश्‍वर बाक़ी सारे लोगों से ज़्यादा आदर पाने के योग्य हैं क्योंकि वे बेजोड़ हैं और अपने नाम और ख्याति के सम्बन्ध में अनुपम हैं। सिर्फ़ उन्हीं का नाम यहोवा है, जिसका मतलब है “वे अस्तित्व में लाते हैं।”—उत्पत्ति २:४, फुटनोट.

किस तरह यहोवा का आदर करें

११. (अ) ऐसे कुछ तरीक़े क्या हैं जिनके द्वारा हम यहोवा का आदर कर सकते हैं? (ब) हम किस तरह दिखा सकते हैं कि हम यहोवा पर भरोसा करके उनका सचमुच आदर कर रहे हैं?

११ यहोवा के सभी गुणों को मद्दे नज़र रखते हुए, हम उनका आदर किस तरह कर सकते हैं? जैसा कि हम देखेंगे, उनका भय मानकर, उनके प्रति श्रद्धा दिखाकर, उनकी आज्ञा मानकर, अपने सभी कामों में उनको ध्यान में रखकर, उपहार देकर, उनका अनुकरण करके, और उनसे बिनतियाँ करके हम उनका आदर कर सकते हैं। हम उन पर विश्‍वास करके, और चाहे जो हो जाए, उन पर भरोसा रखकर भी उनका आदर कर सकते हैं। “सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना,” हमें प्रोत्साहित किया जाता है। इसलिए हम यहोवा परमेश्‍वर के वचनों को मानकर उनका आदर करते हैं। मिसाल के तौर पर, वे कहते हैं: “मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ, इधर उधर [डर के मारे] मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर हूँ; मैं तुझे दृढ़ करूँगा और तेरी सहायता करूँगा।” (नीतिवचन ३:५; यशायाह ४१:१०) उन पर सम्पूर्ण मन से भरोसा रखने से रह जाने का मतलब उनका अपमान करना होगा।

१२. यहोवा का आदर करने में आज्ञाकारिता और भय का क्या भाग है?

१२ उनकी आज्ञाओं को मानना एक निकट रूप से सम्बद्ध तरीक़ा है जिस के ज़रिए हम यहोवा परमेश्‍वर को सम्मान देते हैं। और आज्ञापालन में ईश्‍वरीय भय अत्यावश्‍यक है, हाँ, परमेश्‍वर को नाराज़ करने का भय। भय मानने और आज्ञापालन करने के बीच का सम्बन्ध इब्राहीम से कहे यहोवा के इन शब्दों से देखा जा सकता है, जो उन्होंने इब्राहीम को इब्राहीम द्वारा अपने बेटे, इसहाक की बलि चढ़ाने की कोशिश करने के बाद कहे थे। “इस से मैं अब जान गया कि तू परमेश्‍वर का भय मानता है,” यहोवा ने कहा। (उत्पत्ति २२:१२) जब यह विचार-विमर्श करते हुए कि बच्चों को अपने माँ-बाप को क्या देना चाहिए, प्रेरित पौलुस ने भी दिखाया कि आज्ञापालन और आदर-सत्कार साथ-साथ जाते हैं। (इफिसियों ६:१-३) तो परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करने के द्वारा, जो बोझ नहीं हैं, हम यहोवा का आदर करते हैं। बेशक, यहोवा परमेश्‍वर की अवज्ञा करने का मतलब उनका अपमान करना होगा।—१ यूहन्‍ना ५:३.

१३. परमेश्‍वर का आदर करने से हम अपनी गतिविधियों और योजनाओं के सम्बन्ध में कैसी मनोवृत्ति रखने के लिए प्रेरित होंगे?

१३ इसके अलावा, हम नीतिवचन ३:६ में दी गयी सलाह की ओर ध्यान देकर यहोवा परमेश्‍वर को उचित आदर दे सकते हैं: “उसी को ध्यान में रखकर [हाँ, उन्हें मद्दे नज़र रखकर], अपने सभी काम करना, तब वही तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा।” [NW] इस सम्बन्ध में शिष्य याकूब हमें अच्छी सलाह देता है। दिन-ब-दिन आत्म-विश्‍वासी होकर और अपनी ही क़ाबिलियत पर भरोसा रखकर चलने के बजाय, हमें यूँ कहना चाहिए: “यदि प्रभु [यहोवा, NW] चाहे तो हम जीवित रहेंगे, और यह या वह काम भी करेंगे।” (याकूब ४:१५) सालों पहले यह इंटरनॅशनल्‌ बाइबल स्टूडेन्टस्‌ की प्रथा थी कि भविष्य के सम्बन्ध में किसी भी वाक्य के साथ D.V. यह संकेत चिह्न जोड़ें, जिसका अर्थ था डियो वॉलेन्टे, यानी “अगर परमेश्‍वर की मर्ज़ी हो।”

१४. (अ) अगर हम परमेश्‍वर का आदर करना चाहते हैं, तो हमारी कोशिशों के सम्बन्ध में हमें कौनसी मनोवृत्ति बनाए रखनी चाहिए? (ब) वॉच टावर सोसाइटी के साहित्य के प्रकाशन के सम्बन्ध में कौनसी मनोवृत्ति प्रकट की जाती है?

१४ हम एक विनम्र रवैया प्रकट करने के द्वारा भी यहोवा परमेश्‍वर का आदर करते हैं, और जो भी सफ़लताओं का आनन्द उठाते हैं, उनका श्रेय परमेश्‍वर को देते हैं। प्रेरित पौलुस ने अपनी सेवकाई के सम्बन्ध में उचित रूप से ग़ौर किया: “मैं ने लगाया, अप्पुलुस ने सींचा, परन्तु परमेश्‍वर ने बढ़ाया इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्‍वर जो बढ़ानेवाला है।” (१ कुरिन्थियों ३:६, ७) सचमुच, पौलुस अपना नहीं, और न ही किसी और इंसान का, परन्तु परमेश्‍वर का उचित आदर करने के बारे में चिन्तित था। इस प्रकार, आज, वॉच टावर सोसाइटी के प्रकाशनों में उन लोगों की पहचान नहीं दी गयी है, जो इन्हें लिखते हैं, और लेखक दूसरों को यह बताने से बचे रहते हैं कि उन्होंने कौनसा लेख दिया है। इस प्रकार, लोगों का ध्यान जानकारी पर केंद्रित रहता है, जो कि किसी इंसान को नहीं बल्कि यहोवा का आदर करने के इरादे से दिया गया है।

१५. कौनसी मिसाल से दर्शाया जाता है कि कुछ लोगों को यहोवा के गवाहों की शालीनता समझने में कठिनाई होती है?

१५ यहोवा पर ध्यान केंद्रित करने की यह कार्यनीति, जिस से हम उनका आदर करते हैं, कुछ लोगों को ताज्जुब की बात लगती है। कुछ साल पहले, न्यू यॉर्क शहर के सेंट्रल पार्क में एक आम भाषण के लिए जब साउंड व्यवस्था लगायी जा रही थी, गवाह किंग्डम मेलोडीज़ का एक टेप बजा रहे थे, ताकि व्यवस्था का परीक्षण कर सकें। एक ठीक-ठाक दिखनेवाली दम्पति ने एक गवाह से पूछा कि वह संगीत क्या था। यह सोचकर कि यह दम्पति भी गवाह थे, उसने जवाब दिया: “वह तो किंग्डम मेलोडीज़ नं. ४ है।” “हाँ, लेकिन उस संगीत की रचना किस ने की?” उन्होंने पूछा। गवाह ने जवाब दिया: “ओ, संगीतकार तो गुमनाम है।” उस दम्पत्ति ने उत्तर दिया: “जो लोग उस तरह की संगीत रचना करते हैं, वे ऐसा गुमनाम रूप से तो नहीं करते।” गवाह ने जवाब दिया: “लेकिन यहोवा के गवाह ऐसा करते हैं।” हाँ, वे ऐसा इसलिए करते हैं कि सारा आदर यहोवा परमेश्‍वर को ही दिया जाए!

१६. कौनसे अलग-अलग रीतियों से हम अपनी आवाज़ों को यहोवा परमेश्‍वर का आदर करने में इस्तेमाल कर सकते हैं?

१६ यहोवा के बारे में गवाही देने के लिए अपने होंठों को इस्तेमाल करना उनका आदर करने का एक और तरीक़ा है। अगर हम सचमुच ही उनका आदर करने के बारे में परवाह करते हैं, तो हम राज्य का सुसमाचार फैलाने के काम में कर्तव्यनिष्ठ होंगे। घर-घर जाने और हमारे पास जो भी अन्य तरीक़े हों, उनको इस्तेमाल करने, तथा अनौपचारिक रूप से गवाही देने के मौक़ों को नज़रंदाज़ किए बिना, हम ऐसा कर सकते हैं। (यूहन्‍ना ४:६-२६; प्रेरितों ५:४२; २०:२०) इसके अलावा, हमारी मण्डली की सभाओं में, दोनों, टिप्पणी करने के द्वारा और हमारे राज्य गीतों को हार्दिक रूप से गाने के द्वारा, हमें अपनी आवाज़ों सहित हमारे परमेश्‍वर का आदर करने के मौक़े प्राप्त हैं। (इब्रानियों २:१२; १०:२४, २५) हमारे दैनिक बातचीत में भी हम अपने होंठों सहित यहोवा परमेश्‍वर का आदर कर सकते हैं। थोड़ी-सी कोशिश से, हम बातचीत को ऐसे आध्यात्मिक बातों की ओर ले जा सकते हैं, जो उन्‍नति के लिए हैं, और इस के परिणामस्वरूप यहोवा परमेश्‍वर का आदर-सत्कार होगा।—भजन १४५:२.

१७. (अ) हमारा यहोवा का आदर करने में सही आचरण का क्या सम्बन्ध है? (ब) बुरे आचरण का क्या असर होता है?

१७ अपने होंठों से यहोवा परमेश्‍वर का आदर करना जितना उत्तम है, अपने आचरण से उनका आदर करना भी ज़रूरी है। यीशु ने ऐसे लोगों की निन्दा की जो, अपने होंठों से परमेश्‍वर का आदर करते समय, हृदय में उन से बहुत दूर थे। (मरकुस ७:६) बुरे आचरण से यहोवा परमेश्‍वर का अपमान ज़रूर होगा। मिसाल के तौर पर, रोमियों २:२३, २४ में, हम पढ़ते हैं: “तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्था न मानकर, परमेश्‍वर का अनादर करता है? क्योंकि ‘तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्‍वर के नाम की निन्दा की जाती है।’” हाल ही के वर्षों में यहोवा के लोगों की मण्डलियों में से कई हज़ारों को जाति-बहिष्कृत किया गया है। संभवतः, और भी अधिक लोगों को, जो अपमानजनक आचरण में लगे थे, जाति-बहिष्कृत नहीं किया गया, इसलिए कि उन्होंने एक सचमुच ही पश्‍चातापी मनोवृत्ति प्रकट की थी। ये सभी लोग अपने होंठों से यहोवा का आदर कर रहे थे, लकिन वे अपने आचरण से ऐसा करने से रह गए थे।

१८. (अ) अगर कुछ लोगों को, जो अत्याधिक कृपापात्र हैं, यहोवा को उचित आदर दिखाना हो, तो उन्हें किस बात की परवाह करनी चाहिए? (ब) मलाकी के समय के कुछेक याजकों की स्थिति से किस तरह चिन्ता करने की ज़रूरत दर्शायी जाती है?

१८ जो लोग पूरे-समय की सेवा के विभिन्‍न पहलुओं में व्यस्त हैं—चाहे यह बेथेल में, सफ़री कार्य या मिशनरी कार्य में, या पायनियरों के तौर से हो—यहोवा का आदर करने में सहायक होने से सम्बन्धित अपने मौक़ों के बारे में अत्याधिक कृपापात्र हैं। उन्हें जो भी कार्य सौंपा जाए, ‘थोड़े से थोड़े में सच्चा होने के साथ-साथ बहुत में भी सच्चा’ होकर, उस को उत्तम से उत्तम रूप से करने की बाध्यता उन पर है। (लूका १६:१०) कुछ हद तक, उनका सम्मानीय पद, हालाँकि प्रतीक नहीं, पर प्राचीन इस्राएल के याजकों और लेवियों द्वारा चित्रित था। बहरहाल, मलाकी के समय में कुछेक याजकों की लापरवाही के कारण, यहोवा ने उन से कहा: “यदि मैं पिता हूँ, तो मेरा आदर मानना कहाँ है? और यदि मैं स्वामी हूँ, तो मेरा भय मानना कहाँ?” (मलाकी १:६) वे याजक अन्धे, लँगड़े और बीमार जानवरों को बलि के रूप में चढ़ाकर परमेश्‍वर के नाम का तिरस्कार कर रहे थे। जब तक कि वे, जिन्हें आज सेवा के ख़ास अनुग्रह प्राप्त हैं, भरसक कोशिश करके अपना सर्वोत्तम न देंगे, वे ख़ास तौर से उस निन्दा के योग्य होंगे, जो यहोवा परमेश्‍वर ने उन याजकों की की थी। वे परमेश्‍वर का आदर करने में कम पड़ रहे होंगे।

१९. (अ) जैसे नीतिवचन ३:९ में ग़ौर किया गया है, यहोवा का आदर करने का एक अतिरिक्‍त तरीक़ा क्या है? (ब) यहोवा का आदर करने का एक और अत्यावश्‍यक तरीक़ा क्या है?

१९ विश्‍वव्यापी प्रचार कार्य के लिए आर्थिक अंशदान करना जिसका अधिकार यहोवा परमेश्‍वर ने दिया है, एक और तरीक़ा है जिस से हम उनका आदर कर सकते हैं। “अपनी सम्पत्ति के द्वारा और अपनी भूमि की सारी पहली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना,” हमें प्रोत्साहित किया जाता है। (नीतिवचन ३:९) ऐसे अंशदान करने का ख़ास अनुग्रह यहोवा परमेश्‍वर का आदर करने का एक ऐसा मौक़ा है, जो किसी को भी नज़रंदाज़ करना नहीं चाहिए। हम यहोवा परमेश्‍वर की स्तुति और शुक्रिया अदा करके, अपनी प्रार्थनाओं में भी उनका आदर कर सकते हैं। (१ इतिहास २९:१०-१३) दरअसल, चूँकि हम उनके पास विनम्रता और गहरे आदरभाव से आते हैं, हमारा यूँ प्रार्थना के ज़रिए परमेश्‍वर के पास आना ही उनका आदर-सत्कार करना है।

२०. (अ) आम तौर से कौन दुनिया के लोगों द्वारा सम्मानित किए जाते हैं, और कैसे? (ब) कौनसी आज्ञा का पालन करने के द्वारा हम यहोवा का और अधिक आदर कर सकते हैं?

२० आज अनेक लोग, ख़ासकर युवजन, जिन लोगों का समादर करते हैं, उनकी नक़ल करके—उनकी तरह बोलकर और व्यवहार करके—उनका आदर करते हैं। अकसर जिन लोगों की वे नक़ल करते हैं, वे क्रीड़ा जगत्‌ के हीरो या मनोरंजन की दुनिया के सितारे होते हैं। इसके विपरीत, मसीही होने के नाते, हमें यहोवा परमेश्‍वर का अनुकरण करने की कोशिश करने के द्वारा उनका आदर करना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने यह लिखते हुए प्रोत्साहित किया कि हम ऐसा करें: “इसलिए, प्रिय बालकों की नाईं परमेश्‍वर के सदृश्‍य बनो। और प्रेम में चलो।” (इफिसियों ५:१, २) जी हाँ, यहोवा का अनुकरण करने की कोशिश करने के द्वारा हम उनका आदर करते हैं।

२१. (अ) हम यहोवा को महिमा और आदर देने के लिए किस बात से तैयार हो सकते हैं? (ब) यहोवा का आदर करनेवालों को वे क्या-क्या प्रतिफल देते हैं?

२१ सचमुच, ऐसे कई तरीक़े हैं जिनके द्वारा हम परमेश्‍वर को महिमा और आदर दे सकते हैं, और देना भी चाहिए। हम कभी न भूलें कि उनके वचन से नियमित रूप से पोषण प्राप्त करने और उनसे बेहतर रीति से परिचित होने के द्वारा, हम उनका आदर करने के लिए ज़्यादा सक्षम होंगे। ऐसा करने के प्रतिफल क्या हैं? “जो मेरा आदर करें,” यहोवा कहते हैं, “मैं उनका आदर करूँगा।” (१ शमूएल २:३०) यहोवा आख़िर में अपने उपासकों को या तो स्वर्ग में अपने पुत्र, यीशु मसीह, के साथ सह-शासकों के तौर से, या फिर परादीसीय पृथ्वी पर आनन्दित परिस्थितियों में अनन्त जीवन देकर उनका आदर करेंगे।

क्या आपको याद है?

▫ सामान्यतः इंसान किन को सम्मान देते हैं, और आम तौर से किन का आदर-सत्कार करने की उपेक्षा करते हैं?

▫ किसी का आदर करने का मतलब क्या है, और ऐसा किन-किन रीतियों से किया जा सकता है?

▫ यहोवा परमेश्‍वर आदर के योग्य हैं, इसके कुछेक मूलभूत कारण क्या हैं?

▫ वे कुछेक तरीक़े क्या हैं जिनके ज़रिए हम यहोवा का आदर कर सकते हैं?

▫ यहोवा का आदर करनेवालों को यहोवा किन रीतियों से प्रतिफल देते हैं?

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