यहोवा द्वारा सिखाये गये मार्ग पर चलें
“हे यहोवा, मुझे अपने मार्ग के विषय में सिखा। मैं तेरी सच्चाई पर चलूँगा। मेरे मन को एकनिष्ठ कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ।”—भजन संहिता ८६:११, NW.
१, २. रक्त आधान लेने से इनकार करने के लिये यहोवा के गवाह किस बात से प्रेरित होते हैं?
“रक्त उत्पादनों का इनकार करने से हो सकता है कि यहोवा के गवाह सही हों, क्योंकि यह सच है कि आधान किये गये रक्त से बड़ी संख्या में रोगजनक कारक संचारित हो सकते हैं।”—फ्राँसीसी चिकित्सीय दैनिक Le Quotidien du Médecin, December 15, 1987.
२ कुछ लोगों ने जब इस टिप्पणी को पढ़ा होगा तो शायद यह सोचा होगा कि यह मात्र एक संयोग की बात थी कि यहोवा के गवाहों ने रक्त आधानों का संकटपूर्ण और प्राणघातक सिद्ध होने की जानकारी व्यापक होने से बहुत पहले इनको लेने से इनकार किया था। परन्तु रक्त आधानों के विषय में यहोवा के गवाहों द्वारा ली गयी स्थिति न किसी संयोग और न ही किसी विचित्र पंथ द्वारा बनाये गये नियम के कारण है, एक ऐसी स्थिति जो इस डर से उत्पन्न है कि रक्त असुरक्षित है। उलटा, यहोवा के गवाह इसलिए लहू से इनकार करते हैं कि उन्होंने यह निश्चय किया है कि वे अपने महान् शिक्षक—परमेश्वर के सामने आज्ञाकारिता से चलेंगे।
३. (अ) यहोवा पर निर्भरता के बारे में दाऊद ने कैसा महसूस किया? (ब) परमेश्वर पर भरोसा करने के कारण दाऊद ने कौनसे परिणाम की आशा की?
३ राजा दाऊद, जो परमेश्वर पर अपनी निर्भरता महसूस करता था, उनसे शिक्षा प्राप्त करने और ‘उनकी सच्चाई पर चलने’ के लिए दृढ़निश्चित था। (भजन ८६:११) दाऊद को एक बार यह सलाह दी गयी थी कि यदि वह परमेश्वर की नज़र में खून का दोषी होने से बचा रहेगा तो उसका ‘प्राण परमेश्वर यहोवा की जीवनरूपी गठरी में बँधा रहेगा।’ (१ शमूएल २५:२१, २२, २५, २९) जिस तरह लोग क़ीमती वस्तुओं को बाँधकर रखते थे ताकि ये सुरक्षित और बची रहें, उसी तरह दाऊद का जीवन भी परमेश्वर द्वारा सुरक्षित रखा और बचाया जा सकता था। इस अक़लमंद सलाह को मानकर, दाऊद ने अपने आप को बचाने का व्यक्तिगत प्रयास करने के बजाय उन पर भरोसा रखा, जो उसके जीवन पर स्वामित्व रखते थे: “तू मुझे जीवन का रास्ता दिखायेगा, तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है।”—भजन १६:१०.
४. दाऊद यहोवा द्वारा क्यों सिखाया जाना चाहता था?
४ इस प्रकार का रवैया रखने से, दाऊद ने यह नहीं सोचा कि वह व्यक्तिगत रूप से यह चुन सकता था कि कौनसे ईश्वरीय नियम मान्य थे या उन्हें मानने की ज़रूरत थी। उसका रवैया ऐसा था: “हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर, . . . मुझ को चौरस रास्ते पर ले चल।” “हे यहोवा, मुझे अपने मार्ग के विषय में सिखा। मैं तेरी सच्चाई पर चलूँगा। मेरे मन को एकनिष्ठ कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ। हे यहोवा, मेरे परमेश्वर, मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा गुणगान करता हूँ।” (भजन २७:११; ८६:११, १२, NW.) परमेश्वर के सामने सच्चाई पर चलना कभी-कभी असुविधाजनक प्रतीत हो सकता है या इसके कारण एक बहुत बड़ा त्याग देना पड़ सकता है, परन्तु दाऊद सही मार्ग पर चलने के लिए सिखाया जाकर उस पर चलना चाहता था।
लहू के विषय में सिखाया जाना
५. लहू के विषय में परमेश्वर की स्थिति के बारे में दाऊद ने क्या जाना होगा?
५ यह बात हमारे लिये ध्यान देने योग्य है कि लड़कपन से ही दाऊद को लहू के बारे में परमेश्वर का नज़रिया सिखाया गया था, जो कि कोई धार्मिक रहस्य नहीं था। जब व्यवस्था को लोगों के सामने पढ़ा जाता था, तब दाऊद ने यह सुना होगा: “क्योंकि शरीर का प्राण लहू में रहता है; और उसको मैंने तुम लोगों को वेदी पर चढ़ाने के लिये दिया है, कि तुम्हारे प्राणों के लिए प्रायश्चित किया जाए, क्योंकि प्राण के कारण लोहू ही से प्रायश्चित होता है। इस कारण मैं इस्राएलियों से कहता हूँ, कि तुम में से कोई प्राणी लहू न खाए, और जो परदेशी तुम्हारे बीच रहता हो वह भी लोहू कभी न खाए।”—लैव्यव्यवस्था १७:११, १२; व्यवस्थाविवरण ४:१०; ३१:११.
६. किस प्रकार परमेश्वर के सेवकों को लहू के विषय में सिखाए जाने की निरन्तर आवश्यकता थी?
६ जब तक परमेश्वर ने इस्राएल को अपने एकत्र किये गये लोगों के तौर से इस्तेमाल किया, तब तक जो भी उन्हें प्रसन्न करना चाहते थे, उन्हें लहू के बारे में सिखाये जाने की आवश्यकता थी। पीढ़ी दर पीढ़ी इस्राएली लड़के और लड़कियाँ इसी तरह सिखाये गये। परन्तु क्या परमेश्वर द्वारा मसीही कलीसिया को ‘परमेश्वर के इस्राएल’ के रूप में संघटित करके उन्हें स्वीकारने के बाद भी ऐसी शिक्षा जारी रहती? (गलतियों ६:१६) जी हाँ, बिलकुल। लहू के बारे में परमेश्वर का दृष्टिकोण नहीं बदला। (मलाकी ३:६) लहू का दुरुपयोग न करने की उनकी घोषित स्थिति व्यवस्था की वाचा लागू होने से भी पहले अस्तित्व में थी, और यह व्यवस्था की समाप्ति के बाद भी जारी रही।—उत्पत्ति ९:३, ४; प्रेरितों के काम १५:२८, २९.
७. परमेश्वर द्वारा लहू के विषय में सिखाया जाना हमारे लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है?
७ लहू के प्रति आदर मसीहियत की शिक्षा के केन्द्र पर है। ‘क्या यह एक अतिशयोक्ति नहीं?’ कुछ लोग शायद पूछेंगे। फिर भी, यदि यीशु का बलिदान मसीहियत की शिक्षा के केन्द्र पर नहीं है, तो फिर कौनसी बात केन्द्र पर है? और प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “हम को [यीशु] में उसके लोहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात् अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है।” (इफिसियों १:७) फ्रैंक सी. लाउबाख़ द्वारा अनुवादित, दी इंस्पायर्ड लेट्टर्ज़ [The Inspired Letters] में, इस आयत को ऐसे लिखा गया है: “मसीह के लहू ने हमारा दाम चुकाया है और अब हम उसी के हैं।”
८. “बड़ी भीड़” किस तरह जीवन के लिए लहू पर निर्भर करती है?
८ जो कोई सन्निकट “बड़े क्लेश” से बचने और परादीस पृथ्वी पर परमेश्वर की आशिषों का आनन्द लेने की आशा रखते हैं, वे यीशु के बहाये गये लहू पर निर्भर हैं। प्रकाशितवाक्य ७:९-१४ उनका वर्णन करके पूर्वप्रभावी रूप से कहता है: “ये वे हैं, जो उस बड़े क्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्हों ने अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” इसकी भाषा पर ध्यान दें। यहाँ यह नहीं कहा गया कि जो क्लेश में से बचाये गये हैं उन्होंने ‘यीशु को स्वीकार किया’ था या ‘उन पर विश्वास किया’ था, हालाँकि ये निश्चय ही अत्यावश्यक पहलू हैं। यह एक क़दम आगे जाकर कहता है कि उन्होंने “अपने अपने वस्त्र [यीशु] के लोहू में धोकर श्वेत किये हैं।” वह इसलिये कि उसके लहू में छुड़ौती का मूल्य है।
९. लहू के बारे में यहोवा की आज्ञा मानना इतना गंभीर क्यों है?
९ इस मूल्य की क़दर करने से यहोवा के गवाहों को लहू का दुरुपयोग न करने के लिए कृतसंकल्प होने की सहायता मिलती है, चाहे एक चिकित्सक निष्कपटता से यह दावा करेगा कि रक्त आधान आवश्यक है। वह शायद ऐसा विश्वास करे कि एक आधान के संभावित लाभ, स्वयं लहू द्वारा प्रस्तुत स्वास्थ्य जोख़िमों से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। परन्तु मसीही इससे भी अधिक गहरे जोख़िम को, अर्थात्, लहू के दुरुपयोग को स्वीकारने के द्वारा परमेश्वर की स्वीकृति खो देने के जोख़िम को नज़रंदाज नहीं कर सकता। पौलुस ने एक बार उन लोगों के बारे में कहा जो, “सच्चाई की पहचान प्राप्त करने के बाद . . . जान बूझकर पाप करते” रहते हैं। इस प्रकार का कोई पाप इतना गंभीर क्यों था? क्योंकि इस तरह के व्यक्ति ने “परमेश्वर के पुत्र को पाँवो से रौंदा, और वाचा के लोहू को जिसके द्वारा वह पवित्र ठहराया गया था, अपवित्र जाना है।”—इब्रानियों ९:१६-२४; १०:२६-२९.
दूसरों को सीखने में मदद करें
१०. लहू से परे रहने के हमारे दृढ़निश्चय के पीछे क्या है?
१० हम लोग जो यीशु की छुड़ौती बलिदान की क़दर करते हैं, इस बात का ख़याल रखते हैं कि हम पाप करने की आदत नहीं डालते जिस से लहू की जीवन रक्षक क़ीमत अस्वीकार की जाती है। सारे मामले पर अच्छी तरह विचार करने के बाद, हम यह समझते हैं कि जीवन के लिए परमेश्वर के प्रति सादे आभार से हमें उनके धर्मी नियमों से किसी भी प्रकार के समझौते को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित होना चाहिये, जिनके बारे में हमें यक़ीन है कि वे हमारे हित को मन में रखकर ही दिये गये थे—हमारे चिरकालीन हित। (व्यवस्थाविवरण ६:२४; नीतिवचन १४:२७; सभोपदेशक ८:१२) लेकिन हमारे बच्चों का क्या?
११-१३. कुछ मसीही माता-पिता का अपने बच्चों और लहू के बारे में क्या ग़लत दृष्टिकोण है, और क्यों?
११ जब हमारी सन्तान शिशु हैं या समझने-योग्य उम्र से बहुत छोटे हैं, हमारी भक्ति के आधार पर यहोवा परमेश्वर उन्हें शुद्ध और ग्रहणयोग्य समझ सकते हैं। (१ कुरिन्थियों ७:१४) इसलिये यह सच है कि किसी मसीही परिवार के छोटे बच्चों ने लहू के परमेश्वरीय नियम को अभी तक नहीं समझा होगा और उसे पालन करने का निर्णय अभी नहीं लिया होगा। फिर भी, क्या हम इस महत्त्वपूर्ण मामले में उनको सिखाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं? मसीही माता-पिता को इस मामले पर गंभीरता से सोचना चाहिये, क्योंकि ऐसा मालूम पड़ता है कि कुछ माता-पिता का अपने बच्चों और लहू के बारे में ग़लत रवैया है। कुछ ऐसा महसूस करते हुए प्रतीत होते हैं कि उनके छोटे बच्चों को आधान दिया जायेगा या नहीं, इस बात पर उनका दरअसल अधिक नियन्त्रण नहीं है। ऐसा ग़लत विचार क्यों?
१२ बहुत से देशों में उपेक्षित और, जिनके प्रति दुर्व्यवहार किया जाता है, ऐसे बच्चों की सुरक्षा के लिए क़ानून या सरकारी एजन्सियाँ हैं। यहोवा के गवाहों के बच्चे उपेक्षित नहीं हो रहे हैं, ना ही उनके प्रति दुर्व्यवहार किया जा रहा है जब माता-पिता अपने प्रिय पुत्र या पुत्री को लहू देने के विरुद्ध फ़ैसला करते हैं और उसी समय उन विकल्पी चिकित्साओं के प्रयोग के लिए गुज़ारिश करते हैं जो आधुनिक औषधी-विज्ञान दे सकता है। एक चिकित्सीय दृष्टिकोण से भी यह कोई उपेक्षा या दुर्व्यवहार नहीं है, यदि हम आधान चिकित्सा के स्वीकृत ख़तरों को ध्यान में रखते हैं। यह शामिल ख़तरों को तोलकर फिर चिकित्सा चुनने के अधिकार का प्रयोग है।a फिर भी कुछ चिकित्सा कर्मचारियों ने अनचाहे आधान ज़बरदस्ती देने का अधिकार प्राप्त करने के लिये क़ानूनी प्रबन्धों का आश्रय लिया है।
१३ कुछ माता-पिता, जो इस बात से अवगत हैं कि चिकित्सा कर्मचारियों को एक अवयस्क को आधान देने के लिये अदालत की सहमती आसानी से मिल सकती है, शायद सोचेंगे कि मामला उनके हाथ से बाहर है, और ऐसा कुछ नहीं जो माता-पिता कर सकते हैं या जिसे करने की आवश्यकता है। यह विचार कितना ग़लत है!—नीतिवचन २२:३.
१४. दाऊद और तीमुथियुस अपने लड़कपन में कैसे सिखाए गये?
१४ हम ने ग़ौर किया है कि दाऊद को लड़कपन से ही परमेश्वर के मार्ग के अनुसार सिखाया गया था। इससे उसे जीवन को परमेश्वर की ओर से एक उपहार समझने और यह जानने की मदद मिली कि लहू जीवन का प्रतीक है। (२ शमूएल २३:१४-१७ से तुलना करें।) तीमुथियुस को “बालकपन से” परमेश्वर के सोच-विचार के अनुसार सिखाया गया। (२ तीमुथियुस ३:१४, १५) क्या आप इस बात से सहमत नहीं कि जब दाऊद और तीमुथियुस की आयु आज की क़ानूनी आयु से कम थी, तब भी वे परमेश्वर की इच्छा से सम्बद्ध मसलों पर अपने आप को भली प्रकार अभिव्यक्त कर सके होंगे? इसी प्रकार, वयस्क होने से बहुत पहले ही मसीही युवकों को परमेश्वर के मार्ग के अनुसार चलने के लिए सिखाया जाना चाहिये।
१५, १६. (अ) कुछ स्थानों में अवयस्कों के अधिकारों के विषय में कौनसा दृष्टिकोण विकसित हुआ है? (ब) एक अवयस्क को लहू दिया जाना किस कारण से हुआ?
१५ कुछ जगहों में एक तथाकथित परिपक्व अवयस्क को वयस्कों के समान अधिकार दिये जाते हैं। आयु या परिपक्व विचारशीलता, या दोनों ही के आधार पर, एक युवक को शायद काफ़ी परिपक्व माना जाएगा कि वह चिकित्सीय उपचार के विषय में अपने फ़ैसले खुद कर सकता है। जहाँ यह क़ानून नहीं है, वहाँ भी, जज या अधिकारी एक ऐसे युवक की इच्छाओं को अधिक महत्त्व दे सकते हैं, जो लहू के विषय में अपने दृढ़ निर्णय को सुस्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर सकता है। इसके विपरीत, जब एक युवक अपने विचारों को सुस्पष्टता और परिपक्वता से नहीं समझा सकता है तब शायद अदालत को लगेगा कि उसे निर्णय लेना होगा कि सबसे अच्छा रास्ता क्या है, जैसे इसे शायद एक शिशु के सम्बन्ध में करना पड़े।
१६ एक युवक ने कई वर्ष तक यदा-कदा बाइबल अध्ययन किया था, परन्तु बपतिस्मा नहीं लिया था। उसकी आयु “अपने लिये औषधीय उपचार मना करने का अधिकार” पाने की आयु से केवल सात ही हफ़्ते कम होने के बावजूद एक अस्पताल ने, जो कैन्सर के लिए उसका इलाज कर रहा था, उसकी और उसके माता-पिता की इच्छाओं के विरुद्ध खून देने के लिये अदालत का सहारा लिया। उस कर्तव्यनिष्ठ जज ने लहू से सम्बद्ध उसके विश्वासों के बारे में उससे पूछ-ताछ की और मूल प्रश्न पूछे, जैसे बाइबल की प्रथम पाँच पुस्तकों के नाम। वह युवक उनके नाम नहीं बता सका और ना ही विश्वासोत्पादक गवाही दे सका कि वह समझता है कि उसने लहू लेने से इनकार क्यों किया। खेदजनक रूप से, जज ने रक्त आधानों को देने का अधिकार यह कहकर दे दिया: “उसका रक्त आधानों के लिए सहमत न होना उसके अपने धार्मिक विश्वासों की एक परिपक्व समझ पर आधारित नहीं है।”
१७. एक १४ वर्षीय लड़की ने लहू दिये जाने के बारे में कौनसी स्थिति अपनाई, और इसका क्या परिणाम हुआ?
१७ एक अवयस्क के लिए जिसे परमेश्वरीय मार्ग के अनुसार भली-भाँति सिखाया गया होगा और जो उनकी सच्चाई पर क्रियाशीलता से चल रहा होगा, मामलों का परिणाम बिलकुल विपरीत हो सकता है। उससे कम उम्र वाली मसीही बहन को भी वही असाधारण क़िस्म का कैन्सर था। उस लड़की और उसके माता-पिता किसी प्रसिद्ध अस्पताल के एक विशेषज्ञ से संतुलित ‘कीमोथेरपी’ के बारे में पूरी तरह समझकर उसे स्वीकार किया। फिर भी, इस मामले को अदालत में ले जाया गया। जज ने लिखा: “डी. पी. ने साक्ष्य दी कि वह अपने से जिस तरह से भी हो सकेगा रक्त आधान का विरोध करेगी। उसने रक्त आधान को अपने शरीर पर एक आक्रमण समझा और उसकी तुलना बलात्कार से की। उसने अदालत को अपने चुनाव का आदर करने को कहा और यह अनुमति माँगी कि उसे [अस्पताल] में, अदालत से आदेश-प्राप्त रक्त आधानों के बिना रहने दिया जाये। इस कठिन समय में उस ने जो मसीही शिक्षण प्राप्त किया था, वही उसके काम आया।—बॉक्स देखें.
१८. (अ) लहू लेने के विषय में एक पीड़ित लड़की ने कौनसी दृढ़ स्थिति ली? (ब) उसके उपचार के बारे में जज ने क्या निर्णय लिया?
१८ एक बारह वर्षीय लड़की को लूकीमिया का उपचार दिया जा रहा था। एक बाल-कल्याण संस्था ने मामले को कोर्ट में पहुँचा दिया ताकि उसे बलपूर्वक लहू दिया जाये। जज ने समाप्ति में कहा: “एल. ने अदालत को स्पष्ट और तथ्यात्मक रूप से बता दिया है कि, यदि उसे लहू देने का कोई प्रयास किया जायेगा तो वह जितनी भी शक्ति जुटा सकती है, उससे वह रक्त आधान के विरुद्ध लड़ेगी। उसने कहा है, और मैं उस पर विश्वास करता हूँ, कि वह चिल्लायेगी और हाथ-पैर मारेगी और कि वह अपनी बाँह से सुई लगाने वाले उपकरण को खींच कर निकाल देगी, और अपने पलंग के ऊपर लटकी थैली के रक्त को नष्ट करने की कोशिश करेगी। मैं ऐसा कोई भी आदेश न दूँगा जो इस बालिका को ऐसी कठिन परीक्षा में डाल देगा . . . इस मरीज़ के सम्बन्ध में, अस्पताल द्वारा प्रस्तावित इलाज सिर्फ़ एक शारीरिक अर्थ में ही इस रोग पर ध्यान देता है। यह उसके भावात्मक आवश्यकताओं और धर्म-सम्बन्धी विश्वासों पर ध्यान देने में असफल है।”
माता-पिता—भली-भाँति सिखाएँ
१९. माता-पिता को अपने बच्चों के प्रति क्या विशेष कर्तव्य निभाना चाहिये?
१९ ऐसे अनुभव एक शक्तिशाली संदेश रखते हैं जिनके माता-पिता इच्छा करते हैं कि उनके परिवार के सभी सदस्य लहू के परमेश्वरीय नियम के अनुसार चलें। इब्राहीम का परमेश्वर का मित्र होने का एक कारण यह था कि वे जानते थे कि कुलपिता “अपने पुत्रों और परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने [रहते] और धर्म . . . करते [रहते]” (उत्पत्ति १८:१९) क्या यह बात आज मसीही माता-पिताओं के बारे में भी सच होना नहीं चाहिये? यदि आप एक पिता या माता हैं, तो क्या आप अपने प्रिय बच्चों को यहोवा के मार्ग पर चलने की शिक्षा दे रहे हैं, जिससे वे ‘अपनी आशा के विषय में उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहें, पर नम्रता और भय के साथ’?—१ पतरस ३:१५.
२०. हम मूल रूप से चाहते हैं कि हमारे बच्चे लहू के बारे में क्या जानें और विश्वास करें? (दानिय्येल १:३-१४)
२० यद्यपि हमारे बच्चों के लिए यह अच्छा होगा कि उन्हें रक्त आधानों के रोग संकटों और दूसरे जोख़िमों के बारे में सूचित किया जाये, तथापि उन्हें लहू के सिद्ध परमेश्वरीय नियम के बारे में सिखाने का अर्थ मुख्यतया यह नहीं होगा कि उनमें लहू का भय उत्पन्न करने की कोशिश करें। उदाहरण के लिये, यदि एक लड़की से जज यह पूछता है कि वह रक्त क्यों नहीं लेना चाहती और उसका उत्तर मुख्य रूप से यह हो कि, वह यह समझती है लहू बहुत संकटपूर्ण और डरावना है, तो इसका क्या प्रभाव हो सकता है? जज यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि वह केवल अपरिपक्व और बहुत ज़्यादा डरी हुई है, उसी प्रकार जिस प्रकार वह ‘ॲपेन्डेक्टोमि’ (उंडुकपुच्छोच्छेदन) जैसे आपरेशन से शायद इतना डरकर रोयेगी और इसका विरोध करेगी, हालाँकि उसके माता-पिता भी समझते हैं कि यह उसके लिए सबसे बेहतर होगा। इसके अलावा, हम ने पहले देखा, कि मसीहियों का आधानों पर आपत्ति उठाने का आधारभूत कारण यह नहीं है कि लहू दूषित है, किन्तु यह है कि हमारे परमेश्वर और जीवन-दाता की नज़रों में यह मूल्यवान है। हमारे बच्चों को यह मालूम होना चाहिये, और साथ ही यह भी कि लहू की सम्भाव्य चिकित्सीय जोख़िम हमारी धार्मिक स्थिति को और अधिक प्रभावशाली बना देंगी।
२१. (अ) अपने बच्चों और लहू के बाइबलीय दृष्टिकोण के बारे में माता-पिता को क्या जानना चाहिये? (ब) लहू के सम्बन्ध में माता-पिता अपने बच्चों की सहायता कैसे कर सकते हैं?
२१ यदि आपके बच्चे हैं तो क्या आप निश्चित हैं कि वे आधानों के सम्बन्ध में बाइबल-आधारित स्थिति से सहमत हैं और उसे समझा सकते हैं? क्या वे सचमुच यह विश्वास करते हैं कि यह स्थिति परमेश्वर की इच्छा है? क्या वे इस बात के क़ायल हैं कि परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन करना इतना गंभीर है कि उससे एक मसीही के अनन्त जीवन की प्रत्याशा संकट में पड़ सकती है? बुद्धिमान माता-पिता अपने बच्चों के साथ इन मामलों को दोहराएँगे, चाहे वे बहुत छोटे या लगभग वयस्क हों। माता-पिता अभ्यास सत्र रख सकते हैं जिसमें सभी बच्चे उन सवालों का सामना करते हैं जो एक जज या एक अस्पताल अधिकारी द्वारा पूछे जा सकते हैं। इसका उद्देश्य यह है कि युवक चुने हुए तथ्य या उत्तर रट कर न दोहराएँ। यह अधिक आवश्यक है कि वे जानें कि वे क्या विश्वास करते हैं, और क्यों करते हैं। निःसंदेह, अदालत की सुनवाई में, शायद माता-पिता या दूसरे लोग, लहू के जोख़िमों और वैकल्पिक उपचार की प्राप्यता के बारे में जानकारी प्रस्तुत करेंगे। परन्तु एक जज या अधिकारी संभवतः हमारे बच्चों से बात करके यह जानने की कोशिश करना चाहेगा कि क्या वे अपनी परिस्थिति और विकल्पों को परिपक्वता से समझते हैं या नहीं, और यह भी कि क्या उनके अपने मूल्य और दृढ़ विश्वास हैं या नहीं।—२ राजा ५:१-४ से तुलना करें।
२२. लहू के बारे में हमें परमेश्वर द्वारा सिखाए जाने का स्थायी परिणाम क्या हो सकता है?
२२ हम सब को लहू के बारे में परमेश्वरीय दृष्टिकोण का मूल्यांकन करने और उसे दृढ़प्रतिज्ञता से थामे रहने की आवश्यकता है। प्रकाशितवाक्य १:५ में मसीह का वर्णन एक ऐसे व्यक्ति के तौर से किया गया है, “जो हम से प्रेम रखता है और जिसने अपने लहू के द्वारा हमें पापों से छुड़ाया है।” रोमियों ५:९ में स्पष्टतः कहा गया है: “सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे?” तो फिर यह हमारे लिये और हमारे बच्चों के लिये कितनी बुद्धिमानी की बात है कि हम इस मामले में यहोवा द्वारा सिखाए जाएँ और उनके मार्ग पर हमेशा चलने के लिए कृतसंकल्प हों!
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित, आपके जीवन को लहू कैसे बचा सकता है? पृष्ठ २१-२, २८-३१ देखें.
शिक्षण के विशेष मुद्दे
▫ यहोवा द्वारा सिखाए जाने के बारे में हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिये?
▫ लहू के विषय में परमेश्वर द्वारा दिये गये नियम को मानना इतना आवश्यक क्यों है?
▫ यह महत्त्वपूर्ण क्यों है कि युवजन को लहू के विषय में अपने विश्वासों को स्पष्ट रूप से और दृढ़ता से समझाने आना चाहिये?
▫ लहू के विषय में यहोवा के नियम के सम्बन्ध में अच्छी तरह सिखाए जाने के लिये मसीही माता-पिता अपने बच्चों की सहायता कैसे कर सकते हैं?
[पेज 14 पर बक्स]
न्यायालय प्रभावित हुआ
अनुच्छेद १७ में ज़िक्र की गई डी. पी. के बारे में न्यायालय के फ़ैसले में क्या कहा गया?
“इस १४-१/२ वर्षीय बालिका की अक़्लमंदी, मानसिक संतुलन, गरिमा और ज़ोर से न्यायालय बहुत अधिक प्रभावित हुआ है। यह जानकर वह शायद बहुत अधिक दब गयी होगी कि वह एक घातक प्रकार के कैंसर से पीड़ित है . . . फिर भी, अदालत में गवाही देने एक परिपक्व युवती आयी थी। ऐसा मालूम पड़ता था कि उसके सामने आये कठिन कृत्य पर उसने स्पष्टता से ध्यानकेन्द्रित किया है। वह सभी परामर्श सत्रों में उपस्थित हुई, उपचार की एक योजना के लिये सहमत हुई, एक इंसान होने के नाते वह इस चिकित्सीय चुनौती का कैसे सामना करेगी, इस पर उसने एक सुसंगत दार्शनिक प्रणाली विकसित की, और वह अदालत में एक मर्मस्पर्शी निवेदन लेकर आयी: मेरे निर्णय का लिहाज़ करें . . .
“अपनी परिपक्वता के अलावा, डी. पी. ने अपने निर्णय के लिये पर्याप्त कारण दिये हैं जिसकी वजह से अदालत उसके निर्णय का लिहाज़ कर सकती है। एक ऐसी उपचार योजना जिसमें रक्त आधान सम्मिलित हैं, उससे इसे आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, नैतिक और भावात्मक रूप से हानि पहुँचेगी। अदालत उसके उपचार योजना चयन का लिहाज़ करेगी।”
[पेज 13 पर तसवीरें]
कोई जज या अस्पताल प्रशासक शायद जानना चाहेगा कि कोई मसीही युवक सचमुच क्या मानता है, और क्यों