यहोवा के समीप रहो
“प्रार्थना में नित्य लगे रहो।”—रोमियों १२:१२.
१. प्रार्थना के विषय में यहोवा की इच्छा क्या है, और प्रार्थना करने के बारे में प्रेरित पौलुस ने क्या प्रोत्साहन दिया?
अपने सब विश्वासी लोगों को यहोवा “आशा का दाता हैं।” “प्रार्थना के सुननेवाले” की हैसियत से वह उन्हें उनके सामने रखे गए हर्षमय आशा हासिल करने की मदद के निवेदन सुनते हैं। (रोमियों १५:१३; भजन ६५:२) उसके वचन, बाइबल, के ज़रिये वह अपने सभी सेवकों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे उनके पास जब चाहे आ सकते हैं। वह सदा उपस्थित हैं, यह चाहते हुए कि उनके अन्तरम फ़िक्र ग्रहण करें। दरअसल, वह उन्हें “प्रार्थना में नित्य लगे रहने” और “निरन्तर प्रार्थना में लगे रहने” का प्रोत्साहन देते हैं।a (रोमियों १२:१२; १ थिस्सलुनीकियों ५:१७) यह यहोवा की इच्छा है कि सब मसीही लगातार प्रार्थना से उसे बुलाए, और अपने दिल की बात अपने अज़ीज़ बेटे, यीशु मसीह, के नाम में उनको अभिव्यक्त करें।—यूहन्ना १४:६, १३, १४.
२, ३. (अ) क्यों परमेश्वर ने “प्रार्थना में लगे रहने” का उपदेश दिया? (ब) परमेश्वर हमसे प्रार्थना चाहते हैं इसका हमें क्या आश्वासन है?
२ परमेश्वर हमें यह उपदेश क्यों देते हैं? क्योंकि ज़िंदगी का दबाव और ज़िम्मेदारियाँ हमें इतना दबा सकते हैं कि हम प्रार्थना करना भी भूल सकते हैं। या समस्याएँ हमें दबाकर आशा में आनंद न मनाने और प्रार्थना बंद करने का कारण बन सकते हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हमें अनुस्मारकों की ज़रूरत है जो हमें प्रार्थना करने में प्रोत्साहन एवं मदद और दिलासा का स्रोत, यहोवा हमारा परमेश्वर, के बहुत समीप लाता है।
३ शिष्य याकूब ने लिखा: “परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” (याकूब ४:८) हाँ, परमेश्वर हमारी अपरिपूर्ण मानवी हाल के बावजूद, उनके तरफ हमारी अभिव्यक्तियों को सुनने में वे ज़्यादा ऊँचे या दूर नहीं हैं। (प्रेरितों १७:२७) इसके अलावा, वे उदासीन और बेपरवाह नहीं हैं। भजनकार कहते हैं: “यहोवा की आँखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं।”—भजन संहिता ३४:१५; १ पतरस ३:१२.
४. प्रार्थना के तरफ यहोवा की एकाग्रता को कैसे चित्रित किया जा सकता है?
४ यहोवा प्रार्थना को आमंत्रित करते हैं। इसकी तुलना हम एक मजमा से कर सकते हैं जहाँ कई लोग इकट्ठे बातें करते हैं। आप वहाँ दूसरों को बातें करते हुए सुन रहे हैं। आपकी भूमिका प्रेक्षक की है। लेकिन फिर कोई आपके तरफ मुड़कर, आपका नाम उच्चारता है, और आपको अपने शब्द सम्बोधित करता है। एक ख़ास तरीक़े से यह आपका ध्यान खींच लेता है। वैसे ही, वे जहाँ पर भी हो, परमेश्वर अपने लोगों की ओर हमेशा सतर्क हैं। (२ इतिहास १६:९; नीतिवचन १५:३) अतः वे हमारे शब्द सुनते हैं, उनकी हिफ़ाज़त करते हुए आकृष्ट होकर अवलोकन करते हैं। बहरहाल, जब हम प्रार्थना में परमेश्वर का नाम पुकारते हैं, तब उनका ध्यान आकर्षित हो जाता है, और एक सुस्पष्ट तरीक़े से वे अब हम पर केन्द्रित करते हैं। उसके शक्तियों के ज़रिये, यहोवा दिल और मन की छिपी गहराइयों के भीतर अर्पित किसी मनुष्य की अकथित याचिका को ढूँढ़ निकालकर समझ सकते हैं। परमेश्वर हमें आश्वासन देते हैं कि वह उसके नाम को सच्चाई से पुकारनेवाले और उसके समीप आनेवालों के नज़दीक आएगा।—भजन १४५:१८.
परमेश्वर के मक़सद के अनुसार जवाब
५. (अ) “प्रार्थना में लगे रहने” की सलाह हमारी प्रार्थनाओं के बारे में क्या सूचित करती है? (ब) यहोवा प्रार्थनाओं का जवाब कैसे देते हैं?
५ प्रार्थना में लगे रहने का सल्लाह सूचित करता है कि यहोवा कभी-कभी हमें उसका जवाब प्रकट होने से पहले कुछ अरसे के लिए किसी मामले पर प्रार्थना करते रहने की अनुमति दे सकते हैं। हम शायद परमेश्वर से किसी अत्यावश्यक पर आस्थगित अनुग्रह या कृपा के लिए माँगते-माँगते ऊब जा सकते हैं। इसलिए, यहोवा परमेश्वर हमें अनुनय करते हैं कि ऐसे प्रवृत्ति की ओर झुक न जाए पर प्रार्थना करते रहें। हमारे चिंताओं के बारे में हम ने याचना करते रहना चाहिए, यक़ीन करते हुए कि वह हमारे प्रार्थना का इज़्ज़त करते हैं और सिर्फ़ कल्पित ज़रूरत नहीं, बल्कि हक़ीक़ी ज़रूरतों को पूरा करेंगे। बेशक अपने मक़सद के अनुसार यहोवा परमेश्वर हमारे याचनाओं को संतुलित करते हैं। मसलन, अन्य जन हमारे दरख़ास्त से प्रभावित हो सकते हैं। इस मामले की तुलना हम एक पिता से कर सकते हैं जिसका बेटा एक साइकिल के लिए पूछता है। पिता जानता है कि अगर वह उस बेटे के लिए साइकिल ख़रीदेगा, तो उसका दूसरा बेटा भी एक और चाहेगा। चूँकि एक बेटा साइकिल चलाने के लिए उम्र में छोटा है, वह पिता उस ख़ास अवसर पर कुछ खरीदी न करने का फ़ैसला ले सकता है। एक समान तरीक़े में, अपने मामलों का समय और मक़सद के कारण, हमारा स्वर्गीय पिता हमारे लिए और दूसरों के लिए क्या सचमूच उचित है निर्धारित करते हैं।—भजन ८४:८, ११; हबक्कूक २:३ से तुलना करें.
६. प्रार्थना के विषय में यीशु ने कौनसा दृष्टान्त दिया, और प्रार्थना में लगन क्या व्यक्त करती है?
६ “नित्य प्रार्थना करना और निराश न होने” की ज़रूरत के विषय में यीशु ने अपने शिष्यों को यह उल्लेखनीय दृष्टांत दिया। इंसाफ़ पाने में असमर्थ, एक विधवा इंसाफ़ पाने तक एक मानवी न्यायाधीश को अपनी निवेदन में लगी रही। यीशु ने आगे कहा: “सो क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं का इंसाफ़ न करेगा?” (लूका १८:१-७, न्यू.व.) हमारा विश्वास, यहोवा पर हमारा भरोसा, उसके समीप आने की हमारी तत्परता और उसके हाथों में नतीजा छोड़कर याचना करना ज़ाहिर करता है कि हम प्रार्थना में नित्य लगे हैं।—इब्रानियों ११:६.
यहोवा के समीप रहनेवालों के उदाहरण
७. यहोवा के समीप रहने से हम हाबिल का विश्वास का अनुकरण कैसे कर सकते हैं?
७ बाइबल परमेश्वर के सेवकों द्वारा उच्चारण किए हुए प्रार्थनाओं के विवरण से भरी है। इसे “हमारी ही शिक्षा के लिए लिखी गयी है कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शांति के द्वारा आशा रखें।” (रोमियों १५:४) यहोवा के समीप रहनेवालों की मिसालों पर ग़ौर करने से हमारी आशा दृढ़ होगी। हाबिल ने परमेश्वर को एक स्वीकार्य बलिदान चढ़ाया, और हालाँकि किसी प्रार्थना रिपोर्ट नहीं की गयी, बेशक प्रार्थना में उसने यहोवा से अनुरोध किया ताकि उसका चढ़ावा स्वीकार किया जाए। इब्रानियों ११:४ कहता है: “विश्वास ही से हाबील ने कैन से उत्तम बलिदान परमेश्वर के लिए चढ़ाया, और उसी के द्वारा उसके धर्मी होने की गवाही भी दी गई।” उत्पत्ति ३:१५ में दिए परमेश्वर के वादा के बारे में हाबिल जानता था, लेकिन हम क्या जानते हैं उसकी तुलना में, हाबिल बहुत कम जानता था। फिर भी, प्राप्त ज्ञान पर हाबिल ने कार्य किया। आज, सच्चाई में नए दिलचस्पी लेनेवालों को काफी ज्ञान नहीं, फिर भी हाबिल के जैसे, वे प्रार्थना करते हुए अपने ज्ञान का फ़ायदा उठाते हैं। हाँ, वे विश्वास से कार्य करते हैं।
८. हम कैसे यक़ीन कर सकते हैं कि इब्राहीम यहोवा के समीप रहा, और अपने आप से हमने कौनसा सवाल पूछना चाहिए?
८ परमेश्वर का एक और विश्वासी सेवक इब्राहीम था, “विश्वास रखनेवाले सब का पिता।” (रोमियों ४:११, न्यू.व.) आज, पहले से कहीं ज़्यादा, हमें दृढ़ विश्वास और इब्राहीम के जैसे विश्वास में प्रार्थना करने की ज़रूरत है। उत्पत्ति १२:८ कहता है कि उसने “यहोवा के लिए एक वेदी बनायी, और यहोवा से प्रार्थना की।” इब्राहीम परमेश्वर का नाम जानता था और इसे प्रार्थना में इस्तेमाल करता था। वह बार-बार “यहोवा, जो सनातन ईश्वर है, से प्रार्थना में” वफादारी से लगा रहा। (उत्पत्ति १३:४; २१:३३) इब्राहीम परमेश्वर से प्रार्थना विश्वास में करता था, जिस के लिए उसका गुणगान किया गया। (इब्रानियों ११:१७-१९) राज्य की आशा में अत्यधिक आनंद करते रहने में प्रार्थना ने इब्राहीम की मदद की। क्या प्रार्थना में लगे रहने में हम इब्राहीम का उदाहरण अनुकरण करते हैं?
९. (अ) आज परमेश्वर के लोगों के ख़ातिर दाऊद के प्रार्थनाएँ क्यों फ़ायदेमंद हैं? (ब) दाऊद के जैसे यहोवा के समीप रहने के प्रार्थनाओं से क्या नतीजा हो सकता है?
९ प्रार्थना में लगे रहने के विषय में दाऊद श्रेष्ठ था, और प्रार्थनाएँ कैसी होनी चाहिए यह उसका भजन स्पष्ट करते हैं। उदाहरणार्थ, परमेश्वर के सेवक उचित रीति से उद्धार या रिहाई (३:७, ८; ६०:५), मार्गदर्शन (२५:४, ५), रक्षा (१७:८), पापों का माफ़ी (२५:७, ११, १८), और एक शुद्ध हृदय (५१:१०) के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। जब दाऊद ने पीड़ा महसूस किया, उसने प्रार्थना की: “अपने दास के मन को आनंदित कर।” (८६:४) वैसे ही हम दिली ख़ुशी के लिए प्रार्थना कर सकते हैं, यह जानते हुए कि यहोवा चाहते हैं कि हम हमारी आशा में आनंद मनाएँ। दाऊद यहोवा के समीप रहकर प्रार्थना करता है: “मेरा मन तेरे पीछे पीछे लगा चलता है, और मुझे तो तेरा दाहिना हाथ थामता है।” (६३:८, न्यू.व.) क्या हम दाऊद के तरह यहोवा के समीप रहेंगे? अगर हम रहें, तो वह हमें भी सँभालेगा।
१०. एक समय पर भजनकार असाप के क्या ग़लत ख़याल थे, लेकिन उसे फिर क्या अनुभूति हुई?
१० यदि हमें यहोवा के समीप रहना है, तब हमने दुष्टों के बेपरवाह और भौतिकवादी ज़िंदगी के कारण जलने से बचकर रहना चाहिए। एक समय पर भजनकार आसाप ने महसूस किया कि यहोवा का सेवा करना फ़ायदेमंद नहीं, चूँकि दुष्ट “सदा सुभागी” हैं। तो भी, वह देख लेता है कि उसका तर्क ग़लत है और दुष्ट “फिसलनेवाले स्थानों में” हैं। वह जान लेता है कि कुछ भी यहोवा के समीप रहने से बेहतर नहीं, और उसने इस तरह अपने आप को परमेश्वर से अभिव्यक्त किया: “तौभी मैं निरन्तर तेरे संग हूँ; तू ने मेरे दहिने हाथ को पकड़ रखा। पर, देख! जो तुझ से दूर रहते हैं वे तो नाश होंगे। . . . परन्तु परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिए भला है। मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है, जिस से मैं तेरे सब कामों का वर्णन करूँ।” (भजन ७३:१२, १३, १८, २३, २७, २८) दुष्ट, आशा रहित लोग, के बेपरवाह ज़िंदगी पर जलने के बजाय, आइये हम परमेश्वर के समीप रहने में आसाप का अनुकरण करें।
११. क्यों दानिय्येल यहोवा के समीप रहने का बढ़िया मिसाल है, और हम कैसे उसका अनुकरण कर सकते हैं?
११ दानिय्येल प्रार्थना में दृढ़ता से लगा रहा, यहाँ तक कि प्रार्थना पर लगाए गए सरकारी रोक की उपेक्षा करने पर सिंहों की माँद में डाले जाने का ख़तरा था। लेकिन यहोवा ने “अपने दूत भेजकर सिंहों के मुँह बंद कर दिया,” और दानिय्येल को बचा लिया। (दानिय्येल ६:७-१०, २२, २७) प्रार्थना में लगे रहने से दानिय्येल ने बहुत आशिष पायी। क्या हम भी प्रार्थना में लगे रहते हैं, ख़ासकर जब हमारी राज्य प्रचार को विरोध आता है?
यीशु, हमारा आदर्श
१२. (अ) अपनी सेवकाई के शुरुआत में, यीशु ने प्रार्थना के विषय में कैसा आदर्श रखा, और मसीहियों को यह कैसे लाभदायक हो सकता है? (ब) प्रार्थना के बारे में यीशु का आदर्श प्रार्थना क्या ज़ाहिर करती है?
१२ उसके पार्थिव सेवकाई के शुरुआत से ही यीशु प्रार्थना में लगा रहता था। बपतिस्मा के दौरान उसकी प्रार्थनामय अभिवृत्ति ने आधुनिक समय में पानी से बपतिस्मा लेनेवालों के लिए एक बढ़िया मिसाल रखा है। (लूका ३:२१, २२) पानी से बपतिस्मा जिसका प्रतीक है उसे निभाने हम परमेश्वर के मदद के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। यीशु ने दूसरों को भी प्रार्थना में यहोवा के पास जाने की मदद की। एक अवसर पर जब यीशु किसी जगह प्रार्थना कर रहे थे, उसके शिष्यों में से एक ने बाद में कहा: “प्रभु, हमें प्रार्थना करने सिखा।” यीशु फिर सामान्य तौर पर जाना हुआ आदर्श प्रार्थना दोहराते हैं, जिस में विषयों का क्रम बताता है कि परमेश्वर का नाम और मक़सद को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। (लूका ११:१-४) इस प्रकार, “उत्तम से उत्तम बातों” की उपेक्षा न करते हुए, हमें हमारे प्रार्थनाओं में सापेक्ष महत्त्व और संतुलन बनाए रखना चाहिए। (फिलिप्पियों १:९, १०) अवश्य, कई वक़्त पर ख़ास ज़रूरत या एक विशेष समस्या का सम्बोधन किया जाना चाहिए। यीशु के जैसे, कई नियत कार्यों को निभाने में शक्ति अथवा ख़ास तक़लीफ या ख़तरे का सामना करने में हम प्रार्थना में परमेश्वर के पास जा सकते हैं। (मत्ती २६:३६-४४) दरअसल, वैयक्तिक प्रार्थनाएँ ज़िंदगी के लगभग हर पहलू को समाविष्ट कर सकती हैं।
१३. दूसरों के लिए प्रार्थना के महत्त्व पर यीशु ने क्या दिखाया?
१३ उसके बढ़िया मिसाल से, दूसरों के ख़ातिर प्रार्थना की महत्त्व को यीशु ने दिखाया। वह जानते थे जैसे उसे किया गया था वैसे ही उसके अनुयायियों को उत्पीड़ित और नफ़रत किया जाएगा। (यूहन्ना १५:१८-२०; १ पतरस ५:९) इसलिए, उसने परमेश्वर से याचना किया कि “उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।” (यूहन्ना १७:९, ११, १५, २०) और यह जानते हुए कि पतरस के सामने क्या ख़ास तक़लीफ़ हैं, उसने उसे कहा: “परन्तु मैं ने तेरे लिए बिनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे।” (लूका २२:३२) सिर्फ़ अपने समस्याएँ और फ़ायदों के बारे में नहीं पर दूसरों के बारे में सोचना, अपने भाइयों के लिए प्रार्थना में लगे रहना कितना लाभप्रद है!—फिलिप्पियों २:४; कुलुस्सियों १:९, १०.
१४. हम कैसे जानते हैं कि उसके पार्थिव सेवकाई के शुरुआत से अंत तक यीशु यहोवा के समीप रहा, और कैसे हम उनका अनुकरण कर सकते हैं?
१४ अपनी सेवकाई के शुरू से अंत तक, यहोवा के समीप रहते हुए, यीशु प्रार्थना में नित्य लगे रहे। (इब्रानियों ५:७-१०) प्रेरितों के काम २:२५-२८ पर, प्रेरित पतरस भजन संहिता १६:८ उद्धत करते हुए प्रभु यीशु मसीह को लागू करते हैं: “दाऊद उसके विषय में कहता है, ‘मैं प्रभु को सर्वदा अपने सामने देखता रहा; क्योंकि वह मेरी दाहिनी ओर है, ताकि मैं डिग न जाऊँ।” हम भी उसी तरह कर सकते हैं। हम प्रार्थना कर सकते हैं कि यहोवा हमारी समीप रहें, और यहोवा में हमारा विश्वास नित्य मानसिक रूप से हमारी आँखों के सामने रखने से ज़ाहिर कर सकते हैं। (भजन ११०:५; यशायाह ४१:१०, १३ से तुलना करें.) फिर हम हर प्रकार के तक़लीफ से दूर रह सकते हैं, क्योंकि यहोवा हमें सहारा देंगे, और हम कभी डगमगाएँगे नहीं।
१५. (अ) किस मामले पर हम ने प्रार्थना में लगे रहने में चुकना नहीं चाहिए? (ब) हमारी कृतज्ञता के विषय में क्या सावधानी दिया गया है?
१५ “परमेश्वर का बड़ा ही अनुग्रह,” हाँ, उसके भलाई के लिए, जिस में हमारे पापों के लिए उसके पुत्र-रूपी छुड़ौती का बलिदान की भेंट सम्मिलित है, हम यहोवा को हमारे शुक्रिया अदा करने में न चुकें। (२ कुरिन्थियों ९:१४, १५; मरकुस १०:४५; यूहन्ना ३:१६; रोमियों ८:३२; १ यूहन्ना ४:९, १०) सचमूच, “सदा सब बातों के लिए हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो।” (इफिसियों ५:१९, २०; कुलुस्सियों ४:२; १ थिस्सलुनीकियों ५:१८) हमें सावधान रहना चाहिए कि जो हमारे पास है उसके प्रति हमारी कृतज्ञता कटु न हो जाए क्योंकि हमारे पास क्या नहीं है या हमारे निजी समस्याओं के प्रति हम इतने लवलीन हो गए हैं।
अपना बोझ यहोवा पर डालना
१६. कुछ भार दुःख देने पर, हमने क्या करना चाहिए?
१६ प्रार्थना में लगे रहना हमारी भक्ति की गहराई दिखाती है। जब हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, जवाब आने से पहले हम पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अगर हमारे मन को कोई भार दुःख दे रहा है, इस सलाह पालने से हम यहोवा के समीप रह सकते हैं: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे, और वह तुझे सँभालेगा।” (भजन ५५:२२) अपने भार—फ़िक्र, चिन्ताएँ, मायूसी, डर, इत्यादि—परमेश्वर पर सम्पूर्ण विश्वास के साथ डालने से, हमें दिल की शांति, “परमेश्वर की शांति, जो समझ से बिलकुल परे है,” प्राप्त होती है।—फिलिप्पियों ४:४, ७; भजन ६८:१९; मरकुस ११:२४; १ पतरस ५:७.
१७. हम कैसे परमेश्वर की शांति पा सकते हैं?
१७ क्या परमेश्वर की शांति अचानक आती है? हालाँकि हमें फ़ौरन राहत मिल सकती है, पवित्र आत्मा के लिए प्रार्थना के बारे में यीशु ने जो कहा वह यहाँ भी सच साबित होता है: “माँगते रहो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ते रहो, तो तुम पाओगे; खटखटाते रहो, तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।” (लूका ११:९-१३, न्यू.व.) चूँकि पवित्र आत्मा फ़िक्र त्याग देने का ज़रिया है, हम परमेश्वर की शांति के ख़ातिर और अपने भार के विषय में मदद पूछने में लगे रहने की ज़रूरत है। हम यक़ीन कर सकते हैं कि प्रार्थना में लगे रहने से हमें चाहा हुआ राहत और दिल की शांति प्राप्त होगी.
१८. किसी एक स्थिति में अगर हम यह नहीं जानते कि किस के लिए प्रार्थना करनी है तो यहोवा हमारे लिए क्या करेंगे?
१८ तब क्या अगर हम यह नहीं जानते कि किस चीज़ के लिए प्रार्थना की जानी चाहिए? हमारी भीतरी कराह अक़सर ज़ाहिर नहीं होती क्योंकि हम हमारे स्थिति समझ नहीं पाते, या अनिश्चित हैं कि परमेश्वर को क्या भेंट किया जाए। यहाँ पवित्र आत्मा हमारे लिए निवेदन करेगा। पौलुस लिखते हैं: “हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए, परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिए बिनती करता है।” (रोमियों ८:२६) यह कैसे? परमेश्वर के वचन में उत्प्रेरित भविष्यवाणियाँ और प्रार्थनाएँ हैं जो हमारे स्थिति पर संबद्ध रखता है। इन्हें वह मानो हमारे लिए निवेदन करने छोड़ता है। अगर हम इनका मतलब हमारे स्थिति में जानें तो वह इन्हें हमारे प्रार्थना के रूप में मंज़ूर करते हुए, तदनुसार पूरा कर लेते हैं।
प्रार्थना और आशा जारी रहेगा
१९. क्यों प्रार्थना और आशा सदा के लिए बना रहेगा?
१९ हमारे स्वर्गीय पिता को प्रार्थना जारी रहेगा, ख़ासकर नए संसार और उसके आशिषों के लिए कृतज्ञता के विषय में। (यशायाह ६५:२४; प्रकाशितवाक्य २१:५) हम आशा में आनंदित रहने में बने रहेंगे, क्योंकि किसी रूप में आशा सदा बनी रहेगी। (१ कुरिन्थियों १३:१३ का तुलना करें.) जब यहोवा अपने स्वगृहीत विश्राम के सब्त दिन के अधीन नहीं हैं, तब वे क्या नए चीज़ उत्पन्न करेंगे यह हम कल्पना भी नहीं कर सकते। (उत्पत्ति २:२, ३) अनन्तकाल के लिए, वह अपने लोगों के ख़ातिर वह स्नेही आश्चर्य की बात रखेगा, और उसकी इच्छा करने से भविष्य उनके लिए कई विशाल बातों का प्रस्ताव रखता है।
२०. हमारा संकल्प क्या होना चाहिए, और क्यों?
२० हमारे आगे ऐसा रोमांचकारी आशा के साथ, प्रार्थना में लगे रहने से हम यहोवा के समीप रहें। हमारे सभी आशिषों के लिए स्वर्गीय पिता को शुक्रिया अदा करने में हम कभी रूक न जाएँ। जल्द ही हमारी प्रत्याशाएँ, हम ने कल्पित या प्रत्याशित बातों से परे, हर्षमय रूप में पूरे होंगे, क्योंकि यहोवा “हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है।” (इफिसियों ३:२०) फिर, इसे ध्यान में रखते हुए, “प्रार्थना के सुननेवाले,” यहोवा परमेश्वर को सब स्तुति और महिमा और शुक्रिया अनन्तकाल के लिए देते रहें!
[फुटनोट]
a वेब्स्टर्स् न्यू डिक्शनरि ऑफ सिनोनिम के अनुसार, “लगे रहना क़रीब-क़रीब हमेशा एक उत्कृष्ट गुण सूचित करता है; वह दोनों नाकामयाबी, शक़, या मुसीबतों से निराश होने का इनक़ार और किसी लक्ष्य या जिम्मेवारी का दृढ़ या अटल पीछा का प्रस्ताव करता है।”
आप कैसे जवाब देंगे?
▫ हमें प्रार्थना में लगे रहने की ज़रूरत क्यों है?
▫ प्रार्थना के पूर्व-मसीही उदाहरणों से हम क्या सीख सकते हैं?
▫ हमें यीशु का आदर्श प्रार्थना के बारे में क्या शिक्षा देती है?
▫ हम यहोवा पर हमारा भार कैसे डाल सकते हैं और किस परिणाम के साथ?
[पेज 25 पर तसवीरें]
सिंहों के माँद में फेंके जाने के ख़तरे के बावजूद दानिय्येल प्रार्थना में लगा रहा