ईश्वरीय अधीनता —क्यों और किसके द्वारा?
“हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह १०:२३.
१. किस-किस प्रकार की स्वतंत्रता को व्यापक रूप से महत्त्व दिया गया है?
स्वतंत्रता का घोषणा-पत्र सबसे प्रसिद्ध मानव दस्तावेज़ों में से है, जिसके द्वारा १८वीं शताब्दी में उत्तरी अमेरिका में ब्रिटेन के १३ कालोनियों ने अपने मातृ देश, ब्रिटेन से अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। वे स्वतंत्रता चाहते थे, और स्वतंत्रता के लिए विदेशी नियंत्रण से मुक्त होना ज़रूरी था। राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता बहुत लाभदायक हो सकती है। हाल के समयों में पूर्वी यूरोप के कुछ देश राजनीतिक स्वतंत्रता की ओर बढ़े हैं। फिर भी, यह स्वीकार करना होगा कि उन देशों में ऐसी स्वतंत्रता अपने साथ बहुत गंभीर समस्याएं लायी है।
२, ३. (क) किस प्रकार की स्वतंत्रता वांछनीय नहीं है? (ख) यह सच्चाई सबसे पहले कैसे स्पष्ट की गई थी?
२ स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार चाहे कितने भी वांछनीय हों, एक प्रकार की स्वतंत्रता है जो वांछनीय नहीं है। वह क्या है? मनुष्य के रचयिता, यहोवा परमेश्वर से स्वतंत्रता। वह एक आशिष नहीं वरन एक श्राप है। क्यों? क्योंकि मनुष्य को अपने रचयिता से स्वतंत्र होकर कार्य करने के लिए नहीं बनाया गया था, जैसे भविष्यवक्ता यिर्मयाह के उपरोक्त शब्द इतने उपयुक्त ढंग से दिखाते हैं। दूसरे शब्दों में, मनुष्य को अपने रचयिता की अधीनता में रहने के लिए बनाया गया था। अपने सृष्टिकर्ता की अधीनता में रहने का अर्थ उसके आज्ञाकारी होना है।
३ पहले मानव जोड़े को दी गयी यहोवा की आज्ञा के द्वारा यह सच्चाई उन पर प्रभावशाली रूप से स्पष्ट कर दी गयी जैसा कि उत्पत्ति २:१६, १७ में लिखा है: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।” अपने रचयिता की अधीनता में रहने से इनकार करने के कारण आदम और उसके सारे वंशज पर पाप, दुःख, और मृत्यु आयी।—उत्पत्ति ३:१९; रोमियों ५:१२.
४, ५. (क) मनुष्यों का परमेश्वर की अधीनता में रहने से इनकार करने का क्या परिणाम हुआ है? (ख) किस नैतिक नियम से नहीं बचा जा सकता?
४ मनुष्यों का परमेश्वर की अधीनता में रहने से इनकार करना निर्बुद्धि की बात है और साथ ही नैतिक रूप से ग़लत है। संसार में इसका परिणाम व्यापक अराजकता, अपराध, हिंसा, और लैंगिक अनैतिकता हुआ है जिसके फल लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियाँ हैं। इसके अलावा, क्या आज के किशोर अपराध की विपत्ति अधिकतर इसलिए नहीं हुई क्योंकि युवा लोग यहोवा की, और साथ ही अपने माता-पिताओं की और देश के क़ानूनों की अधीनता में रहने से इनकार करते हैं? जिस विचित्र और बेढंगे तरीक़े से बहुत लोग कपड़े पहनते हैं और जो भ्रष्ट भाषा वे इस्तेमाल करते हैं, उसमें स्वतंत्रता की यह आत्मा दिखयी देती है।
५ लेकिन सृष्टिकर्ता के अटल नैतिक नियमों से कोई भी नहीं बच सकता: “धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा। क्योंकि जो अपने शरीर के लिये बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा।”—गलतियों ६:७, ८.
६, ७. अधीनता में रहने से इनकार करने का मूल कारण क्या है, यह किन उदाहरणों से देखा जा सकता है?
६ अधीनता में रहने से इनकार करने का मूल कारण क्या है? सरल शब्दों में कहा जाए, तो यह स्वार्थ और घमंड है। इसी कारण, पहली स्त्री, हव्वा ने अपने आपको सांप के द्वारा बहकावे में आने दिया और वर्जित फल खा लिया। यदि वह विनयशील और विनम्र होती, तो परमेश्वर के तुल्य होने का प्रलोभन—अपने लिए क्या भला है क्या बुरा है, इसका निर्णय करना—उसे आकर्षक न लगा होता। और यदि वह अस्वार्थी होती, तो वह उस चीज़ को न चाहती जो उसके रचयिता, यहोवा परमेश्वर द्वारा विशेष रूप से वर्जित की गयी थी।—उत्पत्ति २:१६, १७.
७ आदम और हव्वा के पतन के कुछ ही समय बाद, घमंड और स्वार्थ ने कैन को अपने भाई हाबिल का खून करने को प्रेरित किया। और, स्वार्थ ने कुछ स्वर्गदूतों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित किया। कामुक भोग-विलास का आनन्द लेने के लिए उन्होंने अपना मूलस्थान छोड़कर भौतिक देह धारण की। घमंड और स्वार्थ ने निम्रोद को प्रेरित किया और उसके समय से ये सांसारिक शासकों के विशेष गुण रहे हैं।—उत्पत्ति ३:६, ७; ४:६-८; १ यूहन्ना ३:१२; यहूदा ६.
यहोवा परमेश्वर के प्रति अधीनता हमारी बाध्यता क्यों हैं
८-११. हमारे द्वारा ईश्वरीय अधीनता दिखाने के चार शक्तिशाली कारण क्या हैं?
८ अपने रचयिता, यहोवा परमेश्वर के प्रति अधीनता हमारी बाध्यता क्यों है? सबसे पहले क्योंकि वह विश्व सर्वसत्ताधारी है। सारा अधिकार न्यायपूर्ण रूप से उसके पास है। वह हमारा न्यायी, व्यवस्थापक, और राजा है। (यशायाह ३३:२२) उसके विषय में उचित लिखा गया है: “हमें जिसको लेखा देना है, उस की आंखों के साम्हने सब वस्तुएं खुली और बेपरद हैं।”—इब्रानियों ४:१३, NW.
९ इसके अलावा, क्योंकि हमारा रचयिता सर्वशक्तिमान है, कोई भी सफलतापूर्वक उसका विरोध नहीं कर सकता; कोई भी उसके प्रति अधीनता की अपनी बाध्यता को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। जो इनकार करते हैं, वे कभी-न-कभी प्राचीन समय के फिरौन की तरह नाश होंगे और जैसे कि परमेश्वर के नियुक्त समय में शैतान अर्थात् इब्लीस भी नाश होगा।—भजन १३६:१, ११-१५; प्रकाशितवाक्य ११:१७; २०:१०, १४.
१० अधीनता सभी बुद्धिमान प्राणियों की बाध्यता है क्योंकि वे अपने रचयिता की सेवा करने के उद्देश्य से अस्तित्व में हैं। प्रकाशितवाक्य ४:११ घोषित करता है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” वह महान कुम्हार है, और वह अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए मानव बर्तन बनाता है।—यशायाह २९:१६; ६४:८.
११ हमें इस तथ्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि हमारा रचयिता सर्व-बुद्धिमान है, इसलिए वह जानता है कि हमारे लिए क्या सर्वोत्तम है। (रोमियों ११:३३) उसके नियम ‘हमारे भले के लिए’ हैं। (व्यवस्थाविवरण १०:१२, १३) सबसे बड़ी बात तो यह है कि, “परमेश्वर प्रेम है,” इसलिए वह केवल वही चाहता है जो हमारे लिए सर्वोत्तम है। अपने रचयिता, यहोवा परमेश्वर की अधीनता में रहने के लिए हमारे पास कितने ही अप्रतिरोध्य कारण हैं!—१ यूहन्ना ४:८.
यीशु मसीह, ईश्वरीय अधीनता का परिपूर्ण उदाहरण
१२, १३. (क) यीशु मसीह ने ईश्वरीय अधीनता कैसे दिखाई? (ख) यीशु के कौन-से शब्द अधीन रहने की उसकी मनोवृत्ति को दिखाते हैं?
१२ निश्चित ही, यहोवा का एकलौता पुत्र, यीशु मसीह हमें ईश्वरीय अधीनता का परिपूर्ण उदाहरण देता है। प्रेरित पौलुस इसे फिलिप्पियों २:६-८ में दिखाता है: “[यीशु] ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। बरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को [और] दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।” जब यीशु पृथ्वी पर था तो उसने बार-बार कहा कि उसने अपने आप पहल करके कुछ नहीं किया; उसने स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं किया, बल्कि हमेशा अपने स्वर्गीय पिता की अधीनता में रहा।
१३ हम यूहन्ना ५:१९, ३० में पढ़ते हैं: “इस पर यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है। मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूं, वैसा न्याय करता हूं, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूं।” इसी समान, अपने पकड़वाए जाने की रात को उसने बार-बार प्रार्थना की: “जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”—मत्ती २६:३९, ४२, ४४; साथ ही यूहन्ना ७:२८; ८:२८, ४२ भी देखिए।
ईश्वरीय अधीनता के प्राचीन उदाहरण
१४. किन तरीक़ों से नूह ने ईश्वरीय अधीनता दिखाई?
१४ ईश्वरीय अधीनता के प्रारम्भिक मानवी उदाहरणों में से नूह था। उसने अपनी अधीनता तीन तरह से दिखाई। पहला, एक धर्मी पुरुष, अपने समय के लोगों में खरा, सच्चे परमेश्वर के साथ साथ चलने के द्वारा। (उत्पत्ति ६:९) दूसरा, जहाज़ बनाने के द्वारा। “परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।” (उत्पत्ति ६:२२) तीसरा, “धर्म के प्रचारक” के रूप में आनेवाले जल-प्रलय की चेतावनी देने के द्वारा।—२ पतरस २:५.
१५, १६. (क) ईश्वरीय अधीनता में इब्राहीम ने क्या उत्तम उदाहरण रखा? (ख) सारा ने अधीनता कैसे दिखाई?
१५ ईश्वरीय अधीनता का एक और उत्कृष्ट उदाहरण इब्राहीम था। उसने परमेश्वर की आज्ञा का पालन करके अधीनता दिखाई: ‘अपने देश से चला जा।’ (उत्पत्ति १२:१) इसका अर्थ था कि वह सौ साल के लिए एक ख़ानाबदोश की तरह पराये देश में भटकने के लिए ऊर (कोई तुच्छ शहर नहीं, जैसा कि पुरातात्त्विक खोजों से सूचित होता है) में अपनी आरामदेह परिस्थितियों को छोड़े। अपने पुत्र इसहाक को चढ़ाने के लिए तत्पर होने की बड़ी परीक्षा पर पूरा उतरने के द्वारा इब्राहीम ने विशेष रूप से ईश्वरीय अधीनता दिखाई।—उत्पत्ति २२:१-१२.
१६ इब्राहीम की पत्नी सारा हमें ईश्वरीय अधीनता का एक और उत्तम उदाहरण देती है। एक अजनबी देश में भटकने के साथ-साथ निश्चित ही बहुत असुविधाएं आयीं, लेकिन हम उसके कुड़कुड़ाने के विषय में कहीं भी नहीं पढ़ते। उसने उन दो अवसरों पर ईश्वरीय अधीनता का एक उत्तम उदाहरण रखा जब इब्राहीम ने उसे अपनी बहन के रूप में मूर्तिपूजक शासकों के सामने प्रस्तुत किया। दोनों बार उसने सहयोग दिया, जबकि इसके परिणामस्वरूप वह उनके हरम की एक सदस्या लगभग बन ही गयी थी। अपने मन में उसने जिस तरह अपने पति को “मेरे प्रभु” कहकर ज़िक्र किया, उससे प्रमाणित होता है कि ईश्वरीय अधीनता उसके हृदय की असली मनोवृति थी।—उत्पत्ति १२:११-२०; १८:१२, NW; २०:२-१८; १ पतरस ३:६.
१७. क्यों कहा जा सकता है कि इसहाक ने ईश्वरीय अधीनता दिखाई?
१७ हम इब्राहीम के पुत्र इसहाक द्वारा दिए ईश्वरीय अधीनता के उदाहरण की उपेक्षा न करें। यहूदी परम्परा दिखाती है कि इसहाक लगभग २५ साल का था जब यहोवा ने उसके पिता, इब्राहीम को उसे बलि के रूप में चढ़ाने की आज्ञा दी। यदि इसहाक चाहता, तो वह आसानी से अपने पिता का विरोध कर सकता था, जो कि उससे सौ साल बूढ़ा था। लेकिन नहीं। जबकि बलि के लिए जानवर न होने के कारण इसहाक को हैरानी हुई, वह नम्रता से अपने पिता के अधीन हो गया जब उसके पिता ने उसे वेदी पर रखा और फिर उसके हाथ-पैर इसलिए बाँध दिए ताकि किसी भी अनैच्छिक प्रतिक्रिया को रोक सके या नियंत्रण में कर सके जो कि उस समय उठ सकती थी यदि वध करनेवाली छुरी का इस्तेमाल किया जाता।—उत्पत्ति २२:७-९.
१८. मूसा ने किस प्रकार अनुकरणीय ईश्वरीय अधीनता दिखाई?
१८ सालों बाद, ईश्वरीय अधीनता में मूसा ने हमारे लिए एक अच्छा उदाहरण रखा। “मूसा तो पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था,” उसका वर्णन इस प्रकार किए जाने से यह बात निश्चित ही सूचित हो जाती है। (गिनती १२:३) उसकी ईश्वरीय अधीनता इस बात से और भी प्रमाणित होती है कि उसने ४० साल तक विराने में आज्ञाकारिता से यहोवा के नियमों का पालन किया, जबकि उसे बीस या तीस लाख विद्रोही लोगों की अध्यक्षता करनी थी। अतः लिखित प्रमाण कहता है कि “मूसा ने जो जो आज्ञा यहोवा ने उसको दी थी उसी के अनुसार किया।”—निर्गमन ४०:१६.
१९. अय्यूब ने किन अभिव्यक्तियों के द्वारा यहोवा को अपनी अधीनता दिखाई?
१९ अय्यूब एक और उत्कृष्ट व्यक्ति है जिसने ईश्वरीय अधीनता में हमारे लिए एक अत्युत्तम उदाहरण रखा। यहोवा द्वारा शैतान को यह अनुमति देने के बाद कि वह अय्यूब की सारी सम्पत्ति नाश कर दे, उसके बच्चों को मार डाले, और फिर उसे “पांव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ों से पीड़ित” करे, अय्यूब की पत्नी ने उससे कहा: “क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।” फिर भी, अय्यूब ने उसे यह कहकर अपनी ईश्वरीय अधीनता दिखाई: “तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” (अय्यूब २:७-१०) अय्यूब १३:१५ (NW) में लेखबद्ध उसके शब्द वही मानसिक मनोवृत्ति दिखाते हैं: “यदि वह मेरा घात भी करे, तो क्या मैं आशा न रखूंगा?” जबकि, वास्तव में अय्यूब स्वयं अपनी सफ़ाई देने के विषय में बहुत चिन्तित था, हमें इस बात की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि अन्त में उसके एक तथाकथित सांत्वना देनेवाले से यहोवा ने कहा: “मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनों मित्रों पर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय में कही है, वैसी तुम लोगों ने नहीं कही।” निःसंदेह, अय्यूब हमें ईश्वरीय अधीनता का एक उत्तम उदाहरण देता है।—अय्यूब ४२:७.
२०. दाऊद ने किन तरीक़ों से ईश्वरीय अधीनता प्रदर्शित की?
२० इब्रानी शास्त्रों में से उल्लेख के लिए केवल एक और उदाहरण, दाऊद का लेते हैं। जब राजा शाऊल ने दाऊद की तलाश ऐसे की जैसे कि वह कोई जानवर हो, तब शाऊल का घात करने के द्वारा अपनी समस्याओं का अन्त करने के लिए दाऊद के पास दो मौक़े थे। फिर भी, दाऊद की ईश्वरीय अधीनता ने उसे ऐसा करने से रोका। उसके शब्द १ शमूएल २४:६ में लेखबद्ध हैं: “यहोवा न करे कि मैं अपने प्रभु से जो यहोवा का अभिषिक्त है ऐसा काम करूं, कि उस पर हाथ चलाऊं, क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है।” (१ शमूएल २६:९-११ भी देखिए.) जब उसने ग़लतियाँ कीं या पाप किया तो ताड़ना स्वीकार करने के द्वारा भी उसने उसी तरह अपनी ईश्वरीय अधीनता दिखाई।—२ शमूएल १२:१३; २४:१७; १ इतिहास १५:१३.
अधीनता का पौलुस का उदाहरण
२१-२३. कौन-सी विभिन्न परिस्थितियों में प्रेरित पौलुस ने ईश्वरीय अधीनता दिखाई?
२१ मसीही यूनानी शास्त्रों में, ईश्वरीय अधीनता का एक उत्कृष्ट उदाहरण हमें प्रेरित पौलुस में मिलता है। उसने इसमें अपने स्वामी, यीशु मसीह का अनुकरण किया, जैसे कि उसने अपनी प्रेरितिक सेवकाई के अन्य सभी पहलुओं में किया। (१ कुरिन्थियों ११:१) जबकि यहोवा परमेश्वर ने उसे अन्य किसी भी प्रेरित से ज़्यादा महान रूप से इस्तेमाल किया, पौलुस ने कभी-भी स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं किया। लूका हमें बताता है कि जब यह प्रश्न उठा कि क्या अन्यजातियों के धर्मपरिवर्तित लोगों को खतना करने की ज़रूरत थी, ‘तो [अन्ताकिया के भाइयों द्वारा] यह ठहराया गया, कि पौलुस और बरनबास, और उन में से कितने और व्यक्ति इस बात के विषय में यरूशलेम को प्रेरितों और प्राचीनों के पास जाएं।’—प्रेरितों १५:२.
२२ पौलुस के मिशनरी कार्यों के विषय में, हमें गलतियों २:९ में बताया गया है: “जब उन्हों ने उस अनुग्रह को जो मुझे मिला था जान लिया, तो याकूब, और कैफा, और यूहन्ना ने जो कलीसिया में खम्भे समझे जाते थे, मुझ को और बरनबास को दहिना हाथ देकर संग कर लिया, कि हम अन्यजातियों के पास जाएं, और वे खतना किए हुओं के पास।” स्वतंत्र रूप से काम करने के बजाए, पौलुस ने मार्गदर्शन ढूंढ़ा।
२३ इसी प्रकार, पिछली बार पौलुस जब यरूशलेम में था, तो उसने मंदिर जाने और व्यवस्था की कार्यविधि के अनुसार चलने के सम्बन्ध में वहां प्राचीनों द्वारा दी गई सलाह स्वीकार की ताकि सब देख सकें कि जहां तक मूसा की व्यवस्था का सवाल था वह एक धर्मत्यागी नहीं था। क्योंकि प्रतीत होता है कि उसका ऐसा करने से उसके विरुद्ध एक भीड़ उत्तेजित कर दी गई, क्या उसका उन प्राचीनों की अधीनता में रहना एक भूल थी? बिलकुल नहीं, जैसा कि प्रेरितो २३:११ में हम जो पढ़ते हैं उस से स्पष्ट है: “उसी रात प्रभु ने उसके पास आ खड़े होकर कहा; हे पौलुस, ढाढस बान्ध; क्योंकि जैसी तू ने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी देनी होगी।”
२४. अगले लेख में अधीनता के और कौन-से पहलुओं पर चर्चा की जाएगी?
२४ सचमुच, शास्त्रवचन हमें स्वयं अधीनता में रहने के शक्तिशाली कारण देते हैं और उन लोगों के प्रभावशाली उदाहरण देते हैं जिन्होंने ऐसी अधीनता दिखाई। जिन विभिन्न क्षेत्रों में हम यहोवा परमेश्वर के अधीन रह सकते हैं, हमारे ऐसा करने में सहायक, और इसके प्रतिफलों पर हम अगले लेख में विचार करेंगे।
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ किस प्रकार की स्वतंत्रता वांछनीय नहीं है?
▫ अधीनता में रहने से इनकार करने का मूल कारण क्या है?
▫ किन कारणों के लिए यहोवा के प्रति अधीनता हमारी बाध्यता है?
▫ शास्त्रवचन ईश्वरीय अधीनता के कौन-से उत्तम उदाहरण देते हैं?
[पेज 8 पर तसवीरें]
निम्रोद, प्रलय के बाद ईश्वरीय अधीनता का विद्रोह करनेवाला पहला शासक
[पेज 11 पर तसवीरें]
नूह, ईश्वरीय अधीनता का खरा उदाहरण—उत्पत्ति ६:१४, २२